कल रात ही तुम्हारी हालत और हिचकियाँ देख कर मैं समझ गया था कि अब मेरा तुम्हारा साथ अंतिम पड़ाव पर है लेकिन एक उम्मीद, एक आशा और उस तीसरी शक्ति पर भरोसा. कैसी खराश की आवाज आ रही थी तुम्हारे गले से.
मैं रात भर तुम्हें गोदी मे लिए हर संभव इलाज करता रहा. जो जहाँ से पता चला वो दवा की मगर होनी के कौन टाल सकता है. सुबह सुबह तुमने एक लम्बी सिसकी ली और मेरी गोद में ही दम तोड़ दिया. सूरज बस उगने को था.
मैं आवाक देखता रह गया. नियति के आगे भला किसका जोर चला है.
इतने साल तुम्हारा साथ रहा. मेरे हर अच्छे बुरे समय और कर्मों में तुमने मेरा साथ निभाया. जाने कितने ही काम मैने तुम्हारी आड़ में जाने अनजाने में ऐसे किये जो शायद सार्वजनिक रुप से खुल कर करता तो हर तरफ मात्र धिक्कार ही मिलती. मगर तुमने एक सच्चे साथी का धर्म निभाते मेरे हर अच्छे बुरे को अपनी ममतामयी आत्मीय ओट में छिपा लिया. कभी भी, कहीं भी कोई राज नहीं उगला.
मैने जब चाहा, तब तुमने मेरा साथ दिया. दिन का कोई पहर हो या आधी रात. कभी तुम्हारे चेहरे पर शिकन न आई. जब मैं उदास होता तो कोई मन को लुभाने वाला गीत तुम सुनाते, कैसे कैसे किस्से लेकर आते कि उदासी कोसों दूर भाग जाती.
हम भी कितने अजीब होते हैं. सोचा ही नहीं कि कभी न कभी बिछड़ना भी होगा. ऐसा नहीं कि इस बीच तुम कभी बीमार नहीं पड़े मगर हल्की फुल्की बीमारी, बस चलते फिरते इलाज से दूर होती गई और हम एक दूजे को अजर अमर मान बैठे.
मैंने अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप निश्चिंतता की चादर ओढ़ ली थी. कब क्या करना है, कहाँ जाना है, क्या कहना है-सब तो तुम बताते थे. किससे कैसे संपर्क होगा किस पते पर, आज फलाने का जन्म दिन, आज उसकी शादी की सालगिरह, बैंक में इतना पैसा, फलाने के घर का पता-मेरी जिन्दगी की तुम धूरी थे. तुम्हारे बिना रहना पड़ेगा, यह कभी सपने में भी नहीं सोचा था.
मैं जहाँ भी जाता-चाहे शहर में या शहर और देश के बाहर, सब कुछ भूल सकता था मगर तुम्हें नहीं. तुम हमेशा मेरे साथ रहे मेरे रहनुमा बन कर.
हालांकि मेरी भरसक कोशिश होती थी कि तुम बीमार न पड़ो. तुम्हें जरुरी टॉनिक और बीमारी के कीटाणुओं से बचाने का टीका इत्यादि का प्रबंध मैं हमेशा करवाता रहा. लेकिन एड्स, स्वाईन फ्लू, आतंकवाद आदि जैसी मारक बीमारियों कब किसे चपेट में ले लें कौन जानता है. इनके तो वैक्सीन इनके आ जाने के बाद ही बनते हैं और तब तक तो यह कितनों की जिन्दगियों को लील चुके होते हैं.
शायद मेरा तुम्हारा साथ यहीं तक था. आज तुम चले गये और साथ ले गये न जाने मेरी कितनी यादे. न जाने कितने विचार, सोच, कथन, कुछ कहे और कुछ अनकहे, कुछ उपजते और कुछ लहलाते..सब कुछ...मेरी जिन्दगी के कितने ही राज तुम्हारे साथ ही विदा हो गये.
उम्र तो तुम्हारी हो रही थी, एक न एक दिन सबको जाना ही होता है लेकिन इस तरह-अपनों के जाने का गम तो हमेशा सालता है वो भी जब आप उस पर इस कदर आश्रित हों.
सूनी हो गई मेरी दुनिया. शमशान वैराग्य में गोते लगा रहा हूँ. साथी तो फिर कोई मिल जायेगा मगर जो कुछ तुमसे जुड़ा था और जो तुम्हारे साथ गया वो...वो शायद कभी वापस न आये..
आज ओबेद उल्लाह अलीम के शेर याद आते है, जो तुम सुनवाया करते थे...
जैसे तुम्हें हमने चाहा था, कौन भला फिर चाहेगा...
माना और बहुत आयेंगे, तुमसे प्यार जताने लोग!!
तेरे प्यार में रुसवा हो कर, जायें कहाँ दीवाने लोग
जाने क्या क्या पूछा रहे हैं, ये जाने पहचाने लोग!!
(नोट: आज सुबह मेरा लेपटॉप एक अनजान वायरस की चपेट में आकर मेरी गोद में दम तोड़ बैठा. साथ गये कई फोटो, विडिओ और एक माह पूर्व लिए बेकअप के बाद के आलेख, कविता, गीत, कुछ पूरे, कुछ अधूरे. उसी लेपटॉप को समर्पित यह श्रृद्धांजलि पोस्ट दो बूँद आंसू के साथ.)
निवेदन: कृप्या टिप्पणी के माध्यम से अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करें तो मुझे आपका पता वापस मिले वरना तो वो सब साथ ले ही गया है.