बुधवार, फ़रवरी 27, 2013
जीत: अब लौट भी तुम आओ
वह सफेद कार में था...
उसने रफ्तार बढ़ा दी...नीली कार पीछे छूटी..फिर पीली वाली...
एक धुन सी सवार हुई कि सबसे जीत जाना है.
वह रफ्तार बढ़ाता गया. जाने कितनी कारें पीछे छूटती चली गईं.
कुछ देर बाद एक मोड़ पर उसकी कार और उसका शरीर क्षत विक्षत पड़ा मिला.
मृत शरीर रह गया, वो सबसे आगे निकल गया- जाने कहाँ?
ये कैसी जीत?
एक कविता- अब लौट भी तुम आओ:
मेरी बाँसुरी की सरगम
वो भी हो गई है मद्धम
कोई जाकर उसे बता दे
कि रुठा हुआ है मौसम....
अब लौट भी तुम आओ
कि ठहरा हुआ है सावन!!
-समीर लाल ’समीर’
बुधवार, फ़रवरी 20, 2013
मतवाली बेखौफ़ गज़ल
बस कोशिश थी कि कुछ कहें मगर जब बात बिगड़नी होती है तो यूँ बिगड़ती है कि साधे नहीं सधती....काफिया उखड़ा बार बार...कोई बात नही....माईने ही उखड़ गया कि जिसे शिद्दत से चाहा उसे ही कुर्बान कर देने को तैयार...खैर, यही तो है मतवाला पन- यही तो दीवानापन...पढ़ ही लिजिये...सुधार, व्याकरण आदि तो खैर चलता रहेगा...सुधार बता देंगे तो कोशिश होगी कि आगे महफिलों में सुधार कर पढ़ी जाये वरना तो आजकल की महफिलें...किस बात पर दाद मिलेगी ...ये तो आप पर निर्भर हैं...शेर पर नहीं.
जबकि लोग लिख रहे हैं कि फलाने गुरु का आशीर्वाद प्राप्त गज़ल...तब ऐसे में बेआशीष गज़ल का लुत्फ उठायें….और कुछ नहीं तो हिम्मत की दाद दे देना
आज इस धूप पर हम भी, जरा अहसान कर देंगे
कि मेहनत का पसीना भी, इसी के नाम कर देंगे.
जरा पलकें झुका ली जो, मेरी महबूब ने थक कर
जहाँ जगने को थी सुबह, वहीं पर शाम कर देंगे
अजब सा हौसला मेरा, अजब सी हसरतें दिल में
जिसे चाहा था शिद्दत से, उसे कुर्बान कर देंगे.
अगर मज़हब बना रोड़ा, प्रेम की राह में अपने
इबारत लेके भजनों की, बुलंद अज़ान कर देंगे.
लिखे ’समीर’ ने अपने, प्यार के गीत में किस्से
ये सारे प्यार के दुश्मन, उसे बदनाम कर देंगे.
-समीर लाल ’समीर’