शनिवार, अप्रैल 27, 2019

झूठा है तेरा वादा! वादा तेरा वादा


पास के घर से रेडिओ पर फरमाईशी नगमों के कार्यक्रम में गाना बज रहा था.गाने की फरमाईश इतने लोगों ने की थी कि लगा जैसे लोगों के पास पोस्ट कार्ड लिखकर गाने की फरमाईश करने के सिवा कोई काम ही नहीं है. जितनी देर गाना न बजता, उससे ज्यादा देर फरमाईश करने वालों के नाम बजते. मेरा बस चलता तो इस कार्यक्रम का नाम बदल कर नगमों के फरमाईशकर्ताओं के नाम कर देता. नाम बदलने का दौर चल निकला है तो ये भी सही. गाने बजा:  
निंदिया से जागी बहार,
ऐसा मौसम देखा पहली बार,
कोयल कुँहके, कुँहके, गाये मल्हार
बहार जागी कि नहीं, यह तो पता नहीं मगर मेरी नींद जरुर खुल गई. आज थक कर बेसमय सो गया था. शायद गाना या फरमाईशकर्ताओं के नाम न बजते तो तीन चार घंटे और सोता रहता. मगर कोई मेहनतकश कुछ देर आराम कर ले, यह किसी को कहाँ बर्दाश्त? उल्टे आजकल तो आराम न करने का डंका पिटवाने में इंसान समय बिता रहा है. बिस्तर पर लेटे लेटे खिड़की के बाहर की बहार का नज़ारा लिया. वाकई हल्की हल्की बारिश हो रही थी.
कहते हैं कभी कभी किसी की जुबान पर सरस्वती विराजमान हो जाती है और वो जो कहता है वो सच हो जाता है. मुझे लगा कि जैसे आज रेडिओ की जुबान पर सरस्वती विराजमान हो गई हों, कौन जाने. ऐसा विचार कभी भी रेडिओ पर माननीय की मन की बात सुनते हुए न आया आज तक न जाने क्यूँ? शायद सरस्वती को भी इनकी फितरत मालूम हो अतः कभी नहीं आतीं उनकी जुबान पर.
यही कुछ सोचते जल्दी से मौसम के मिज़ाज के हिसाब से चाय बना लेता हूँ और बाहर छज्जे पर आ जाता हूँ हाथ में चाय का कप थामें. उम्मीद थी कि कहीं कोई कोयल मल्हार गा रही होगी.
जैसा कि होता है अब पड़ोस से गाने की आवाज आना बंद हो गई थी. जब मन है कि वो बजे तब वो गुम. किस्मत का खेला भी ऐसा है मानो सरकारी योजनायें कि मधुमेह के अस्पताल में मिठाई बंटवाती हैं. कहने को बाँटना भी हो गया और डॉक्टर की पाबंदी से मिला भी किसी को नहीं. बाँटने वाले भी सरकारी और पाबंदी लगाने वाले भी सरकारी. बादल छाये हैं मगर बारिश बंद हो गई है.
सामने पेड़ पर कोयल तो नहीं दिखी. हाँ, एक कौआ कांव कांव जरुर कर रहा था. उसकी कांव कांव की कर्कशता से मेरा मन किया कि किसी वस्तु को उछाल कर उसे उड़ा दूँ. तभी सामने वाले छज्जे पर नजर पड़ी. वहाँ पांडे जी की पत्नी मुग्ध सी कौव्वे को देख रही हैं. पांडे जी काफी दिनों से दौरे पर हैं. शायद उनकी पत्नी बिहारी की नायिका की तरह इस कांव कांव को अपने प्रिय पति के वापसी का संदेशा मान रही हों और सोच रही हों कि अगर मेरी पति आज आ गये तो तेरी चोंच सोने से मड़वा दूँगी. पांडे जी अच्छे ओहदे वाले सरकारी अधिकारी हैं. अतः उनकी पत्नी के लिए सोने से कौव्वे की चोंच मड़वाना बायें हाथ का खेल है. वो चाह लें तो कौव्वे के लिए पूरा पिंजड़ा ही सोने का बनवा दें. दूसरी तरफ छज्जे पर वर्मा जी बहु नजर आई. वो भी कौव्वे को ही देख रही थी मगर उसकी भाव भंगिमा से लग रहा है कि वो इस कौव्वे की धूर्तता के बारे में सोच रही है. कैसा मजे से बैठा कांव कांव कर रहा है और उधर बेचारी कोयल इसके अंड़े को भी अपने समझ कर से रही होगी.
तभी देखा कि स्वर्गीय गुप्ता जी जिनका आज श्राद्ध है, उनकी पत्नी और बेटा एक थाली में पकवान सजा कर पेड़ के नीचे रख कर कुछ दूर खड़े हो गये. वे बड़े श्रद्धा भाव से कौव्वे को हाथ जोड़े प्रणाम कर प्रार्थना कर रहे हैं कि हे कौआ महाराज, आइये और भोजन ग्रहण करिये ताकि गुप्ता जी आत्मा तृप्त होकर मुक्ति पाये.
कुछ मजदूर पुलिया पर बैठे बीड़ी पीते हुए सुस्ता रहे हैं. उन्हें न कौव्वे की कांव कांव से कुछ लेना देना है और न ही मौसम की रुमानियत से. वो तो अपनी दिहाड़ी कमाने में लगे हैं ताकि शाम को घर में खाना बन जाये.
मैं सोचने लगता हूँ कि एक कौआ और उसकी कांव कांव को सभी किस किस रुप में देख रहे हैं. सबके लिए इसके मायने उनकी सोच के हिसाब से अलग अलग हैं और किसी के लिए इसका कोई मायने ही नहीं है.
तभी ख्याल आता है कि मौसम तो आजकल चुनाव का भी है. नेता सारे आ रहे हैं. पेड़ पर तो नहीं मगर मंच से माईक पर जाने क्या क्या बोल रहे हैं. सब अपनी अपनी समझ से उसका मायने लगा रहे हैं. कोई माईक पर उनकी आवाज की कर्कशता पर परेशान हो रहा है. कोई अच्छे दिन आने का सपना सजा कर इनको स्वर्णजड़ित आसन देने का मन बना रहा है. कोई इनकी धूर्तता के बारे में सोच कर खीज रहा है. कुछ श्रद्धावनत होकर उनको पूजने भी लगे हैं. तो कोई उदासीन सा उनकी तरफ ध्यान भी न दे रहा है.
एकाएक फिर रेडिओ पर गाना बज रहा है कहीं:
सच्चाई छुप नहीं सकतीबनावट के उसूलों से
कि खुशबू आ नहीं सकतीकभी कागज़ के फूलों से!
झूठा है तेरा वादा! वादा तेरा वादावादा तेरा वादा
वादे पे तेरे मारा गयाबन्दा मैं सीधा साधा
वादा तेरा वादावादा तेरा वादा..
-समीर लाल समीर

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार अप्रेल २८, २०१९ को:



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शनिवार, अप्रैल 20, 2019

संस्थानों की स्वायत्तता में आस्था आवश्यक है


नव रात्रे चल रहे हैं.
आजकल घन्सु मौन धरे हैं. नंगे पाँव रहते हैं. सुबह एक गिलास दूध पीते हैं. फिर सारा दिन पूजा पाठ में लिप्त रहते हैं. शाम को आदतानुसार चौक पर आते हैं पान की दुकान पर, मगर जुबान से बोलते कुछ नहीं, बस आँख से बतियाते हैं. बात बात पर मुंडी मटकाते हैं न और हाँ करने के लिए. कभी मुस्करा देते हैं तो कभी भद्दा सा मूँह बना लेते हैं नराजगी जताने को.
यूँ अन्य दिनों में जब घन्सु मौन नहीं होते तो उनके हर वाक्य में साधारण शब्दों से ज्यादा गालियों का शुमार रहता है. उनके अनुसार गालियों के बिना सही भाव प्रेषित नहीं हो पाते. बात अपना दम खो देती है और हल्की रह जाती है. बहुत सारे सदाचारी लोग गालीयुक्त भाषा को हल्का कहते हैं. घन्सु के अनुसार ऐसे लोगों को गालियों के सामाजिक और व्यवहारिक महत्व के विषय में जानकारी ही नहीं है. ऐसे सदाचार के आवरण ओढ़े लोग चूँकि अपने असल भाव पी जाते हैं और वाणी से सिर्फ मीठी भाषा बोलते हैं, अक्सर उच्च रक्तचाप का शिकार होकर हृद्यघात से मरते हैं. घन्सु ने यह मंत्र बाल्यकाल से सीख लिया था अतः आजतक कभी अस्पताल तो दूर किसी चिकित्सक से मिलने की जरुरत भी न पड़ी स्वास्थय की कोई परेशानी को लेकर.
ऐसा नहीं है कि घंसु को गलत आदते नहीं हैं. नवरात्रे छोड़ बाकी तो साल भर जब तक रात में एक पौव्वा न चढ़ा लें, घन्सु को खाना हजम नहीं होता. पान तम्बाखू के भी शौकीन हैं. सिगरेट भी दारु पीते वक्त सुलगा ही लेते हैं. मगर फिर भी चिकित्सक की जरुरत नहीं पड़ती कभी. घन्सु का मानना है कि गालियों के आगे सभी परास्त हैं तो फिर किसी बीमारी की भला बिसात. कभी आकर तो देखे, ऐसी धारा प्रवाह गाली बकेंगे कि उसी में बीमारी बह जायेगी और मिलेगी हिन्द महासागर में जाकर.
परसों शाम चौक पर मिले तो इशारे से बताया कि बस एक दिन और बचा है फिर कल सबका हिसाब करेंगे. जो उन्हें जानते सुनते आये हैं उन्होंने उनकी आँखों में पढ़ लिया और फिर जिस तरह से उन्होंने सर को हल्का सा झटका दिया, समझ भी लिया कि क्या हिसाब करेंगे?  
आज मिले तो भरपूर जोश में थे. तबीयत से नौ दिन का बकाया मय सूद लौटा रहे थे सबको. पूछने पर बताया कि नव रात्रे की आचार संहिता चल रही थी नौ दिन से, तो किसी से कुछ नहीं कह रहे थे. सबने खूब मजे काटे हमारे. हम भी नोट करते गये बस!! अब ढूँढ ढूँढ कर इनको सुना रहे हैं. कई लोगों ने तो इत्ती हद कर दी थी कि मन किया कि लिख कर गाली बक दें. नव रात्रे की आचार संहिता में बोलना मना है, लिखना थोड़े ही न मना है. मगर फिर यह सोच कर जाने दिया कि काहे कोई सबूत छोड़ना. काहे तोड़ना. भगवान से भला कैसी चीटिंग करना? बस नौ दिन की तो बात है. कोई कहीं जा तो रहा नहीं है. न हम घंसु, न चौक, न पान की दुकान. छोड़ेंगे किसी को नहीं बस, टाल दे रहे हैं जब तक आचार संहिता में बंधे हैं. तोड़ने और उलंध्न करने में तो बस एक मिनट लगेगा और गंगा स्नान कर पंडितों को कुछ चढ़ावा चढ़ा कर पाप भी धो लेंगे मगर जो लोगों की आस्था टूटेगी इस आचार संहिता की व्यवस्था से, वो शायद कभी न जुड़ पाये. समाज के सुचारु संचालन के लिए संस्थानों की स्वायत्तता में आस्था आवश्यक है.
घंसु की बात सुनकर लगा कि काश!! इतनी समझ हमारे नेताओं में भी आ जाती. नव रात्रे न सही, लोकतंत्र का महापर्व तो है ही यह चुनाव. चुनाव आयोग चुनाव के दौरान इन नेताओं के आचरण पर लगाम लगाने के लिए आचार संहिता के पालन का नियम बनाता है. चुनाव आयोग भगवान न सही मगर चुनाव के महापर्व का सर्वशक्तिमान संचालक तो है. चुनाव की घोषणा से लेकर चुनाव सम्पन्न होने तक के छोटे से अंतराल में आचार संहिता का पालन करने का भी धैर्य नहीं है इन नेताओं में. नित उलंध्न करेंगे. नित क्षमा मांगेगे और नित सजा पायेंगे और फिर ठीकरा फोड़ेंगे चुनाव आयोग पर कि सरकार से मिले हुए हैं और बदले की भावना से लिया गया निर्णय है.
काश!! ये नेता भी घंसु से यह पाठ ले पाते कि समाज के सुचारु संचालन के लिए संस्थानों की स्वायत्तता में आस्था आवश्यक है. इसे मत नष्ट करो महज अपने कुत्सित षणयंत्रों से जनता को लुभाने के प्रयासों में. जनता सब समझती है. कोई फायदा नहीं. इससे न तुम उनकी नजरों में गिर रहे हो वरन खुद अपनी नजरों में भी गिर ही रहे होगे, तुम मानो या मानो!!
मान तो तुम यह भी नहीं रहे हो कि तुमने कोई गल्ति की है.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार अप्रेल २१, २०१९ को:


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शनिवार, अप्रैल 13, 2019

इस बार तुरुप का पत्ता ही हुँकार भरेगा


तिवारी जी और घंसु देश की दोनों बड़ी पार्टियों का और तमाम आंचलिक पार्टियों का घोषणा पत्र पढ़ पढ़ कर तय कर रहे हैं कि किसमें से कौन सा हिस्सा उठाना है. इस तरीके से वो एक नया घोषणा पत्र तैयार कर रहे हैं.
तिवारी जी और घंसु ने मिलकर गैर मान्यता प्राप्त एक नई पार्टी बना ली है. बस दो ही सदस्य हैं. तिवारी जी राष्ट्रीय अध्यक्ष घंसु के द्वारा चुने गये हैं और घंसु राष्ट्रीय सह अध्यक्ष चुने गये हैं तिवारी जी के द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से.
तिवारी जी पास वाले शहर, जो कि उनका ससुराल भी है, से चुनाव लड़ेंगे और घंसु चूँकि विवाहित नहीं हैं, अतः वे अपने ही शहर से चुनाव लड़ेंगे.
आज घोषणा पत्र आ गया है. कोई पत्रकार तो आया नहीं है अतः पान की दुकान पर ही इसे जारी कर दिया गया है. ऐसा देश में पिछले ७२ सालों में पहली बार हो रहा है जिसमें बिके हुए गोदी मीडिया को कोई स्थान नहीं दिया गया है और घोषणा पत्र भी हस्त लिखित पेंसिल से लिखा गया है.  सच तो यह है कि तमाम निवेदनों के बाद जब मीडिया नहीं आया तो ऐसा कहा है तिवारी जी और घंसु ने संयुक्त बयान में.
घोषणा पत्र में सब कुछ लोक लुभावन है. नाम रखा गया है जनता से संकल्प ’. इसमें जहाँ चुनाव जीतते ही देश के हर घर में १५ लाख रुपये घर पर जा जा कर देने का वादा है, वहीं साथ ही हर महिने १२००० रुपये देने का वादा है. घंसु का मानना है कि सिर्फ १५ लाख एक बार दे देने से सारा जीवन नहीं कटता. हर महीने के खर्चे भी तो लगे ही रहते हैं? साथ ही वादा किया गया है कि न सिर्फ जीएसटी हटेगा वरन आयकर भी हटा दिया जायेगा. फिर देश कैसे चलेगा?  पूछने पर बताया गया कि यह बात आप दुबई वालों से जाकर क्यूँ नहीं पूछते? क्या वो नहीं चल रहा?
सरकारी योजनाओं और विकास के ढेरों वादे हैं. गैस मुफ्त, बिजली मुफ्त, पानी मुफ्त, शिक्षा मुफ्त, चिकित्सा मुफ्त, सड़कें ऐसी जैसे कि हवाई पट्टी.
जेब कतरने वालों को कोई सजा नहीं होगी बल्कि उन्हें स्किल इंडिया के तहत अर्जुन पुरुस्कार दिया जायेगा. उनकी हाथ की सफाई को स्वच्छता अभियान का हिस्सा माना जायेगा. कुछ तो साफ हो रहा है इस बहाने.
साथ ही घोषणा हुई है कि मंदिर वहीं बनेगा. फिर एक घोषणा है कि मस्जिद वहीं बनेगी. इसका क्या आधार होगा पर तिवारी जी थोड़ा झुंझला गये कि क्या कभी दो मंजिला इमारत नहीं देखी क्या. एक की एंट्री उत्तर दिशा से और दूसरे की सीढ़ी दक्षिण से. इतना सरल सा समाधान और आज झगड़ा देखो कि कभी कोर्ट कचहरी तो कभी अली और बजरंगबली. लगता है जैसे कोइ समाधान चाहता ही नहीं. मंदिर मस्जिद न हुआ मानो धारा ३७० हो गई हो कश्मीर की. जब तक रहेगी कम से कम एक पैरा तो घोषणा पत्र में बदलने की जरुरत न होगी हर बार.
घोषणाओं के प्रवाह में बहते हुए तिवारी जी ने घोषणा की कि अब हर शहर में हवाई सुविधा दे जायेगी और हवाई यात्रा का किराया रेल यात्रा के किराये से एक चौथाई और रोड़वेज़ के किराये से आधा होगा. पान की दुकान पर खड़े ग्राहकों को लगा कि तिवारी जी पीकर बहक गये हैं. मगर तब घंसु सामने आये और बताया इस विषय पर हमने पूरी रात गहन मनन किया है. हमारे पास हर घोषणा को बैकअप करने का प्लान है. सरकारी स्कूल के अर्थशास्त्र की मास्साब पांडे जी जो तिवारी जी के मित्र भी हैं, उन्होंने इस योजना को तौला है और एक अच्छी योजना बताया है.
बाद में देर रात गये पुलिया पर बैठे दारु पीते पीते घंसु ने मुझे नाम न बताने की कसम देते हुए पूरी योजना का खुलासा किया. योजना में दम दिखा. उसका कहना था कि हवाई कम्पनियाँ तो प्राईवेट सेक्टर की हैं और उस पर तो हमारा भला क्या जोर चलेगा? मगर रेल और सरकारी रोड़वेज तो हमारी होगी. हम उसका किराया इस प्रकार कर देंगे ताकि वो रेल किराया को हवाई किराये का चार गुना कर दे और रोड़वेज़ की बस का दुगना. बताओ है न सोची समझी हुई योजना. हमने कोई भी घोषणा बिना आधार के नहीं की है जबकि हमने आधार कार्ड का टंटा खत्म करने की भी घोषणा की है.
आलू से सोना बनाने और नाले से गैस जलाने की बातें भी घोषित की गई थीं मगर आधार पोषित न हो पाने से इरेज़र से मिटा दी गई.
यही फायदा है पैंसिल से हस्त लिखित घोषणा पत्र का. मुकरने की जरुरत ही नहीं है. बस, इरेज़र उठाओ और मिटा डालो. कौन सा रिपोर्ट कार्ड और कौन सी वादा खिलाफी. दारु पीते हुए यह बात भी घंसु की जुबान से फिसल गई थी.
एक घोषणा थी कि हिन्दु राष्ट्र बनावेंगे और एक अन्य कि मुस्लिम राष्ट्र बनावेंगे. पूछने पर बताया गया कि हम एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करेंगे जहाँ हिन्दु को लगेगा कि हिन्दु राष्ट्र है, मुस्लिम को लगेगा कि मुस्लिम राष्ट्र है और ईसाई सोचेगा कि क्रिश्चियन राष्ट्र है. हर धर्म का अंतस प्रेम है एक दूसरे से. मानवता है. बस!! हम वैसा ही राष्ट्र बनाने का सपना देखते हैं.
दिल प्रसन्न हो गया. लगा कि काश!! इनकी ही सरकार बने. दोनों जीते तो भला वरना एक भी जीत गया तो लक्षण तो इस चुनाव में ऐसे ही दिख रहे हैं कि एक सीट जीता भी सरकार बना सकता है.
इस बार तुरुप का पत्ता ही हुँकार भरेगा.
-समीर लाल समीर

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार अप्रेल १४, २०१९ को:



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