सच
कह न पायेंगे लब, आँखों
की जुबां पढ़ना
पढ़
पाओ खुद को जब तुम, औरों की जुबां पढ़ना...
जो
तुम में बस गया है किरदार अजनबी सा,
उसे
जानने की खातिर, गैरों की जुबां पढ़ना..
किस
प्यार से चमन को सींचा है बागबां ने...
जब
गंध कुछ न बोले, भौरों की जुबां पढ़ना..
है
सिलसिला-ए-ख्यवाहिश ये जिन्दगी मुसलसल
इक
दौर क्या मुनासिब, दौरों की जुबां पढ़ना..
जाना
समीर ने कब गम है किसी को कितना,
मुस्काते
गुल मिलेंगे, खारों की जुबां पढ़ना..
-समीर लाल ’समीर’