शनिवार, जनवरी 14, 2023

आज मौसम बड़ा..बेईमान है बड़ा

 

प्रकृति प्रद्दत मौसमों से बचने के उपाय खोज लिये गये हैं. सर्दी में स्वेटर, कंबल, अलाव, हीटर तो गर्मी में पंखा, कूलर ,एसी, पहाड़ों की सैर. वहीं बरसात में रेन कोट और छतरी. सब सक्षमताओं का कमाल है कि आप कितना बच पाते हैं और मात्र बचना ही नहीं, सक्षमतायें तो इन मौसमों का आनन्द दिलवा देती है. अमीर एवं सक्षम इसी आनन्द को उठाते उठाते कभी कभी सर्दी खा भी जाये या चन्द बारिश की बूँदों में भीग भी जायें, तो भी यह सब सक्षमताओं के चलते क्षणिक ही होता है. असक्षम एवं गरीब मरते हैं कभी लू से तो कभी बाढ़ में बह कर तो कभी सर्दी में ठिठुर कर.

कुछ मौसम ऐसे भी हैं जो मनुष्य ने बाजारवाद के चलते गढ लिये हैं. इनका आनन्द भी सक्षमतायें ही उठाने देती है. इसका सबसे कड़क उदाहरण मुहब्बत का मौसम है जिसे सक्षमएवं अमीर वर्ग वैलेन्टाईन डे के रुप में मनाता है फिर इस डे का मौसम पूरे फरवरी महीने को गुलाबी बनाये रखता है. फरवरी माह के प्रारंभ में अपनी महबूबा संग गिफ्ट के आदान प्रदान से चालू हो कर वेलेन्टाईन दिवस पर इजहारे मुहब्बत की सलामी प्राप्त करते हुए फरवरी के अंत तक यह अपने नियत मुकाम को प्राप्त हो लेता है.

रेडियो पर गीत बज रहा है...’आज मौसम बड़ा..बेईमान है बड़ा..आज मौसम...’

बेईमानी का मौसम? फिर अन्य मौसमों से तुलना करके देखा तो पाया कि इसे भी अमीर एवं सक्षम एन्जॉय कर रहे हैं. इससे बचने बचाने के उनके पास मुफीद उपाय भी है और कनेक्शन भी. कभी कभार बड़ा बेईमान पकड़ा भी जाये तो क्या? कुछ दिनों में सब रफा दफा और फिर उसी रफ्तार से बेईमानी चालू. इस बीच कुछ दिन लन्दन जाकर ही तो रहना है या अगर किसी सक्षम को जेल जाना भी पड़ा तो वहाँ भी उनके लिए सुविधायें ऐसी कि मानो लन्दन घूमने आये हों. मरता इस मौसम में असक्षम ही है जैसे पटवारी, बाबू आदि की अखबारों में खबर आती है कि २००० रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ाये. वे जेल की हवा तो खाते ही खाते हैं, साथ ही नौकरी से भी हाथ धो बैठते हैं. उनके पास खुद को बचाने के न तो कनेक्शन होते हैं और न ही ऊँचे ओहदे वाले वकील. इसका कतई यह अर्थ न लगायें कि उन्होंने गलत काम नहीं किया बात मात्र सजा के अलग अलग मापदण्ड़ो की है.

इधर एकाएक नया सा मौसम सुनने में आ रहे हैं- देशभक्ति का मौसम.

इस मौसम का हाल ये है कि जो हमारे साथ में है वो देशभक्त और जो हमारा विरोध करेगा वो देशद्रोही? देश भक्ति की परिभाषा ही इस मौसम में बदलती जा रही है. देशभक्ति भावना न होकर सर्टीफिकेट होती जा रही है. सर्टिफाईड देशभक्त बंदरटोपी पहने, हर विरोध में उठते स्वर को देशद्रोह घोषित करने में मशगुल हैं. सोशल मीडिया एकाएक देशभक्तों और देशद्रोहियों की जमात में बंट गया है.

भय यह है कि कल को यह देशभक्ति का मौसम भी अमीरों और सक्षम लोगों के आनन्द का शगल बन कर न रह जाये और गरीबों और असक्षमों को फिर इस मौसम की भी मार सहना पड़े.

रेडियो पर गाना अब भी बज रहा है.. ’आने वाला कोई तूफान है ..कोई तूफान है.. आज मौसम है बड़ा...’

-समीर लाल ‘समीर’

 

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में सोमवार जनवरी 15, 2023 में:

https://epaper.subahsavere.news/clip/1886

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रविवार, जनवरी 08, 2023

न्यू ईयर रेजोल्यूशन

 

2022 गुजरने को है। न जाने कितने लोग आने वाले नये साल के साथ कितना कुछ नया कर गुजरने की मंशा बना रहे हैं। न्यू ईयर रेजोल्यूशन जिस कदर फैशन में है, उससे कहीं ज्यादा उस पर अमल न कर पाना फैशन में है। 100 में से कोई एक पूरा कर जाए यह भी बमुश्किल ही देखने को मिलता है। इससे ज्यादा प्रतिशत तो नेताओं के चुनावी वादों को अमली जामा पहनाने का है। वहां शायद 100 मे से दो नेता वादा निभाते दिख जाएँ -इसमें भी शायद शब्द गौर फरमा है।

ऐसे ही अपवादों मे से एक हैं हमारे तिवारी जी। कहते हैं इसी न्यू ईयर रेजोल्यूशन के चलते बहुत सालों पहले उनकी शादी हुई थी वरना शादी कर के परिवार चलाने लायक न तो उनकी कमाई थी और न ही निकट भविष्य में कोई आशा। बाद में सोचो तो लगता है कि अच्छा ही हुआ जो न्यू ईयर रेजोल्यूशन बना बैठे और शादी कर ली। कमाई के भरोसे रहते तो आजीवन बेरोजगार के साथ साथ अविवाहित भी रह जाते। उस जमाने में शादी के बाद गौना करके पत्नी को घर लाया जाता था। साल भर बाद गौना होना था। भरम ये था कि शायद तब तक कुछ कमाई भी होने लग जाएगी। चौराहे पर पान की दुकान पर सुबह से डेरा और मात्र चर्चाओं मे कमाई के साधनों का प्रयास मानो घर नहीं देश चलाना हो। न कभी प्रयास पर चर्चा खत्म हुई और न कभी कमाई शुरू हुई।

बस किस्मत ही की बात थी कि पत्नी अपने माँ बाप की इकलौती संतान थी और उनके पास उनका पुश्तैनी मकान था जिसका ज्यादा हिस्सा किराये पर था और वही किराया उनकी जीविका का साधन था। गौना होता होता तब तक पत्नी के पिता का देहावसान हो गया और गौना एक बरस के लिए टल गया। तिवारी जी कमाई के साधन की चर्चा में चौराहे की पान की दुकान पर इतना मशगूल रहे कि समय कैसे कटता गया, पता ही नहीं चला। चर्चा करते करते शाम तक इतना थक जाते कि इतना भी होश न रहता कि किसने पिलवा दिया और किसने खिलवा दिया – बस गुजर बसर हो जाती।

इस बीच पत्नी की माता जी भी गुजर गई और तिवारी जी को गौना कराने की जरूरत ही नहीं पड़ी बल्कि वे स्वयं ही पत्नी के घर पर रहने लगे। कमाई के साधन की चर्चा को भी विराम मिला। अब पत्नी के पुश्तैनी मकान का किराया इनकी जीविका का साधन बन गया।

तिवारी जी अक्सर घँसू को समझाते भी थे कि न्यू ईयर रेजोल्यूशन का बहुत महत्व होता है यदि आप उस पर अमल करें। एक बहुत बड़ी भ्रमित आबादी की तरह ही घँसू की मजबूरी यह कि सब समझने के बाद भी उसे यही नहीं समझ आ रहा है कि आखिर न्यू ईयर रेजोल्यूशन बनाएं तो बनाएं क्या? पूरा करना या नहीं करना तो बहुत दूर की बात है।

खैर, अब तिवारी जी हर साल नये नये न्यू ईयर रेजोल्यूशन बनाते और उनको पूरा करते। घँसू इसी बात से प्रसन्नतापूर्वक जीवन काटे दे रहा था कि तिवारी जी अपने न्यू ईयर रेजोल्यूशन पूरे किये चले जा रहे हैं। तिवारी जी की भी एक खासियत यह रही कि न तो उन्होंने कमाई को ले कर कभी कोई चिंता की और न ही इसके लिए कभी न्यू ईयर रेजोल्यूशन बनाया। घँसू बता रहे थे कि तिवारी जी जरा हट के काम करने वालों में से हैं। पता नहीं वो हट कर क्या काम करते थे जिन्हें हमने चौराहे से ही हटते कभी नहीं देखा।

घँसू से और जानने का प्रयास किया तो बताने लगे कि 2021 में तिवारी जी ने मंचों के लिए कविता लिखने का न्यू ईयर रेजोल्यूशन बनाया था और साल भर में 100 से ऊपर मंचों के लिए कविता लिखी याने हर साढ़े तीन दिन मे एक नई कविता मंच के लिए हाजिर।

करत करत अभ्यास ते की तर्ज पर 2022 का न्यू ईयर रेजोल्यूशन फिल्मों के लिए गीत लिखने का बनाया और अभी साल खत्म भी नहीं हुआ है 200 के आसपास गीत लिख चुके हैं। सुनने वाले सब आश्चर्यचकित से खड़े तिवारी जी को देख रहे थे और श्रद्धाभाव से सर झुकाए थे। तिवारी जी कागज कलम लिए पान दबाए आसमान की तरफ मुंह उठाए मुस्करा रहे थे मानो अगले बरस का टारगेट आसमान ही हो।

बताया गया कि 2023 में और भी बड़ा कुछ कर गुजरने की मंशा है और न्यू ईयर रेजोल्यूशन फिल्मों के लिए पटकथा लेखन का है और साथ ही डायलॉग राइटिंग भी करेंगे।

जिज्ञासा तो जिज्ञासा होती है अतः मैं पूछ बैठा कि कौन कौन सी फिल्म के लिए गीत लिखे हैं और अब पटकथा किस फिल्म के लिए लिखने जा रहे है? जबाब में पता चला कि तिवारी जी का काम है लिखना और वही वादा भी था सो लिखे जा रहे हैं। फिल्म वाले अभी तक तिवारी जी तक नहीं पहुंचे हैं अतः इनके लिखे गीतों से वंचित हैं और अगर फिल्म वाले लोग ऐसी ही कामचोरी करते रहे तो अगले साल इनकी पटकथाओं से भी वंचित रह जाएंगे।

मैं तिवारी जी के जज्बे पर नतमस्तक अपना 2023 का न्यू ईयर रेजोल्यूशन राष्ट्र निर्माण का बना बैठा हूं -देखना यह है कि राष्ट्र इस बात का फायदा उठा पता है या फिर फिल्मी दुनिया की तरह ही यह भी वंचित रह जाएगा।

-समीर लाल ‘समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में सोमवार जनवरी 9, 2023 में:

 https://epaper.subahsavere.news/clip/1806

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