सबसे पहले उनसे क्षमायाचना जो सचमुच के बाबा हैं. वो इस आलेख के सिलेबस में नहीं हैं. वैसे इतना कहकर अगर इनसे हाथ खड़े करवाये जायें कि बताओ कौन कौन इसके सिलेबस में नहीं हैं तो सभी बाबा हाथ खड़े कर देंगे मगर अगर इनके कर्मों से हाथ उठवाया जाये तो सारे सिलेबस में ही नजर आयेंगे.
तो सचमुच के बाबाओं को छोड़ कर बाकी के बचे बाबा दो प्रकार के होते हैं. एक तो वो जिनका पर्दाफाश हो चुका है और दूसरे वो जिनका पर्दाफाश अभी नहीं हुआ है. ठीक वैसे ही जैसे हम नेताओं और अधिकारियों को भ्रष्ट और ईमानदार की श्रेणी में रखते हैं, यहाँ भी सिलेबस के बाहर वाले अपवाद हो सकते हैं, मगर फिर भी, भ्रष्ट वो जिसकी कलई खुल गई है और ईमानदार वह जिसके भ्रष्टाचार के कारनामें अब तक उजागर नहीं हुए हैं.
वैसे तो अमूमन देखने में आता है कि बहुतेरे ईमानदार हैं ही इसलिए क्यूँकि उनको बेईमानी का मौका ही नहीं मिला है अब तक. मौका मिले और फिर भी भ्रष्ट न हो तो वह निश्चित ही श्रद्धा का पात्र है और उनके चरणों में मेरा वंदन. लेकिन ऐसे चरण मिलते कहाँ हैं?
बचपन में हमारे मोहल्ले में गुल्ली डंडा और कंचे खेलने वाली मंडली में दो लड़के थे. तब नटखट टाईप. उनके रहने से हम अन्य मित्रों को बड़ी सेफ सी फीलिंग रहती थी. एक राजू और एक गप्पू. ये उनका प्यार वाला नाम था. असली नाम नहीं लिख रहे हैं वरना आप दोनों को पहचान जाओगे. साथ खेलते खेलते बड़े हुए. ८ वीं तक साथ पढ़े. फिर वो दोनों फेल होते रहे और पीछे छूट गये और बाद में पता चला कि कुछ बरस कोशिश करने के बाद पढ़ाई से ही पीछा छुड़ा लिया दोनों ने. साथ फेल होते थे, तो साथ भी ज्यादा रहता और दोनों घनिष्टतम मित्र हो गये.
पढ़ाई छूटी तो खाली रहने लगे. दिन भर मोहल्ले के नुक्कड़ पर बैठे लड़कियां छेड़ने और मोहल्ले की लड़कियों को छेड़ने वालों को पीटने जैसे छुटपुट वीर कर्मों से प्रमोट होते हुए बड़े होते होते मकानों से कब्जा खाली करवाने से लेकर मकानों पर कब्जा करने तक के महान कार्यों में दोनों लिप्त हो गये. एकाएक किसी बड़े केस में फंस कर दोनों ने सामूहिक जेल यात्रा की और अपने कद में इजाफा पाया. कुछ बरस में छूट कर जब आये तो राजू मोहल्ले में रुक गये और गप्पू गायब हो गये. कोई कहता कि मन बदल गया है और देशाटन पर चले गये हैं, तो कोई कहता कि जेल में बहुत ऊँची सेटिंग हो गई है और एक डॉन का बैंकाक का दफ्तर संभालेंगे. कोई कहता हिमालय का रुख कर लिया है जितने मूँह उतनी बातें.
राजू मोहल्ले में ही रुक गये थे और उसके बाद एक एक कर के कई कांडों में कई बार जेल यात्रा करते करते पहले नेताओं की आँखों के सितारे बने फिर मोहल्ले के विधायक की आँख की किरकिरी. यूँ वो खुद ही विधायक हो लिए. जिसने जुर्म की दुनिया में जुर्म की गली से निकल कर जुर्म के राजमार्ग पर सफर किया हो उसके लिए राजनिती का राजमार्ग पकड़ लेना वैसा ही है जैसे दिल्ली में गाड़ी चला चुका बन्दा भला न्यूयार्क में गाड़ी चलाने में घबरायेगा क्या? बस, जरा से नियम ही तो बदलते हैं उल्टे हाथ के बदले सीधे हाथ चलाने लगो. अतः देखते देखते ही राजू सांसद होते हुए केन्द्रीय मंत्री हो गये और वो भी केन्द्र बिन्दु वाले मंत्रालय के.
उन्हीं के शपथ ग्रहण समारोह में टीवी पर एकाएक गप्पू नजर आये. बाबा जी के भेष में. पता चला कि करोड़ों भक्त हैं दूर प्रान्त और उसके आसपास के प्रान्तों में. घर की मुर्गी दाल बराबर का मुहावरा वह जानते थे अतः घर से दूर मुकाम बनाया.
पता चला कि लोगों को मोह माया से दूर रहने, सीमित साधनों में जीवन जीने, सादा भोजन उच्च विचार की शिक्षा देते देते खुद उन्हीं भक्तों के धन से ऐसे धनाठय हुए कि एक पूरा एम्पायर खड़ा कर लिया. जाने कितने प्रोडक्ट बाजार में आ गये और बाबा अरबपतियों को अपना भक्त बना कर अरबों से मोह माया छुड़वा कर अपने कब्जे में लेते खुद अरबपति बन बैठे. किसी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि बाबा के चलते ही राजू को यह पद मिला है. दोनों आज भी गुप्त मुलाकातें करते हैं और साथ साथ जाम छलकाते हैं और कबाब शबाब का दौर चलता है जिसमें उन दोनों के सिवाय कोई और नहीं होता. एक दूसरे के पूरक कभी किसी तीसरे को शामिल नहीं करते. राजू ने गप्पू को जेड सिक्यूरिटी दिलवा दी और गप्पू ने राजू वोट एवं सपोर्ट की सिक्यूरिटी.
गप्पू बाबा (फिर से सही नाम नहीं बता रहे हैं वरना आप पहचान जाओगे) अब बड़े वाले वो बाबा हो लिए हैं जो अभी इस आलेख के सिलेबस के बाहर हैं और उसी तर्ज पर राजू ईमानदार हैं. दोनों एक दूसरे को सिलेबस से बाहर रखने के लिए पुरजोर ताकत झोंकते रहते हैं.
मित्र तो हमारे भी है दोनों आज तक. बचपन की दोस्ती कहाँ छूटती है? भले मेलजोल न रहा पर दोस्ती निभाने में आज भी पीछे नहीं रहते हैं दोनों. टेबल के नीचे और पर्दे के पीछे वाले काम वगैरह बोल दें तो करा भी देते हैं अतः चुपचाप में हमें वे अच्छे भी लगते हैं.
पिछली बार भारत यात्रा में मुलाकात हुई थी तो पुराने दिन याद किये गये कुछ जाम छलकाते राजू के फार्म हाऊस पर. ऐसे माहौल में शायद दोनों के अलावा तीसरा कभी कोई और रहा हो तो मैं ही रहा हूँगा. विदेश में रहता हूं, यह बचपन के दोस्त से ऊपर मेरी एक और पात्रता है. लोकल को वो अब ज्यादा मूँह नहीं लगाते, पी कर बता रहे थे. लोकल मूँह मार देते हैं बाजार में.
दोनों हँस रहे थे कि पढ़ लिख कर ये क्या हाल बना लिया भाई मेरे विदेश में बस कर..अब भी आ जाओ, कुछ न कुछ ठीक ठाक इससे बेहतर करवा ही देंगे.
आज भी हो हो गूँजती है दोनों की कान में. फोन पर भी हँसते हैं जब जब बात होती है और मैं सोचता हूँ कि अच्छा है जब तक पर्दा न उठे वरना सारा देश हो हो करेगा...आज एक बाबा पर कर ही रहा है..
रेडिओ पर गाना बज रहा है:
यार हमारी बात सुनो, ऐसा एक इन्सान चुनो
जिसने पाप न किया हो, जो पापी न हो..
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से
प्रकाशित सुबह सवेरे के अगस्त २६, २०१७ में
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