अपना ही एक फेसबुक नोट सहेजने के लिहाज से यहाँ लेता आया:
जबलपुर से मिर्जापुर जाता मुझ सा आम आदमी राह में आने वाले रोड़े पता करके निकलता था कि कहाँ रोड खराब है...यहाँ तक कि मेरी ससुराल मिर्जापुर में गैरेज थोड़ा नीचा है इसलिए हाई हुड की मारुती वैन के बदले मारुती कार लेकर निकलते ताकि रिश्तेदारों से मुलाकात में विध्न न पड़े और परिवार समुचित दिशा में रिश्तों की सुड्रुढता बनाता चलता रहे सारे रिश्तों को हंसी खुशी निभाते.
और एक वो हैं जो देश चलाने का वादा करते हैं और उसे सही दिशा में दूर तक ले जाने का वादा करते हैं, उनकी हालत देख कर रोना आता है कि अपना रथ तक ले जाना प्लान न कर पाये. न जाने कैसे सलाहकार हैं इनके कि कुछ हजार किलोमीटर की रथ यात्रा का मार्ग भी न भाँप पाये...और पटना में १२.९’ ऊँचे रथ को १२ फुट ऊँचे पुल के नीचे से तोड़ फोड़ कर किसी तरह से निकाल कर खुश हो लिए...हे प्रभु, देश इनके हाथ में न देना...वरना ऐसी तोड़ फोड़ रथ तो बर्दाश्त कर गया, गैरेज में रफू लग कर जुड़ भी गया किसी तरह मगर देश तो गैरेज में रिपेयर नहीं होता..उसका क्या होगा???
अनजान दुविधायें तो सफर का हिस्सा होती ही हैं मगर जिसका पता किया जा सके, उससे तो बचा ही जा सकता है..............
१२.९’ ऊँचा रथ बना है ६ फुट से कम ऊँचें आदमी के लिए जो चाहे जो भी कर ले तो १२.९’ ऊँचा तो कूद कर भी नही छू सकता मगर आज शायद अपनी प्रतिष्ठा का कद नापने का यही तरीका बच रहा है इनके पास...बाकी तो क्या नपवायें ये??
और पिछले दिनों दीपावली का तरही मुशायरा हुआ, उसमें प्रस्तुत गुरुदेव पंकज सुबीर जी का आशीर्वाद प्राप्त मेरी गज़ल:
तेरी मुस्कान से खिले हर सू
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
आग नफ़रत की दूर हो दिल से
है दुआ ये अमन रहे हर सू
बूंद से ही बना समंदर है
अब्र ये सोच कर उड़े हर सू
नाम तेरा लिया है जब भी तो
कोई खुश्बू बहे, बहे हर सू
था चला यूं ’समीर’ तन्हा ही
लोग अपनों से पर मिले हर सू
-समीर लाल ’समीर’