जब जबाब न सूझे, तो खिसक लो!!
मैने देखा है जो चुप रहता है और सीधा होता है, उसका फायदा सब
लोग उठाते हैं. अब जरा सी आत्मा, बेचारा चूहा, क्या हालत कर
डाली है सबने उसकी. कहाँ तो गजब का मान सम्मान था. गणेश जी तक उस पर बैठ कर सवारी
करते थे. हर समय लड्डू के पास बैठा कर रखते थे कि जितना खाना है खाओ. उसके नाम
लेकर शेर लिखे जाते थे: मूषक वाहन गजानना बुद्धिविनायक गजानना।.. और एक आज का समय
आया है. अब गणेश जी भी यात्रा पर कम ही निकलते हैं और जब कभी कहीं जाना भी हो,
तो
ऐसा माहौल है कि बिना बुलेट प्रूफ गाड़ी में निकल ही नहीं सकते. चूहा वहाँ से भी
बरखास्त! बस पुरानी फोटूओं में उनके साथ दिख जाता है.
सिर्फ पूजा का सामान बन गया है. वैसे भी आज के जमाने में, जो
भी कभी बड़े काम का रहा हो या बड़े नाम का रहा हो, जब किसी काम का
नहीं रह जाता तो उसे पूजनीय घोषित कर सलाहकार मंडल में किनारे बैठा देने का रिवाज
है. इस तरह का प्रयोग राजनीति में तो खूब होता है.
अखबार पढ़ता हूँ कि मेडिकल साईंस में बड़ी रिसर्च चल रही है. परिक्षण
सफल रहा. चूहे पर किया गया. चूहा बच गया. जिस तरह उसका व्यवहार होना चाहिये था,
वैसा
ही हुआ परिक्षण के बाद. वो स्वस्थ है इसलिये अब उसको मार दिया जायेगा. उसकी अब
उपयोगिता नहीं रही क्योंकि उसके शरीर में उस दवा की गुणधर्मिता आ गई है. अब उन
परिणामों के आधार पर मरते हुए तुम, फिर से सेहतमंद होकर जी सकोगे. अगले
परिक्षण के लिये दूसरे नये चूहे पकड़ कर लाये जायेंगे. न तो रोग खत्म हुये जा रहे
हैं और न ही शोध. चूहों पर परिक्षण और उनको मारा जाना जारी रहेगा.
लेकिन जो चुप रहता है, उसे कमजोर न समझो. वो जब बोलता है न!!
तब जबाब देना भारी हो जाता है. चुप रहने वाला विचारक होता है और विचारक के तर्कों
का तो तुम्हारे पास यूँ भी जबाब नहीं होता.
तो सुनो, बताओ!! आज चूहा पूछता है कि "आखिर उसकी ही ऐसी क्या खता है जो
उसे तुम अपने परिक्षण का साधन बनाये हो और फिर मार देते हो? क्या तुम्हें और
कोई नहीं मिलता?"
तुम्हारे पास कुछ देर तक बहस करने की शक्ति तो हमेशा रही है जिसके
आधार पर तुम अपना गलत सही सब सिद्ध करने की कोशिश करते हो. तुम उस चूहे को भी जबाब
देने लगते हो, अपने बड़े बड़े सुने हुये तर्कों के साथ:
क्यूँ न करें तुम पर परिक्षण? क्यूँ न मारे
तुमको? तुम और हो किस काम के?
तुम जिस गोदाम में घुस जाओ, वहाँ का सारा अनाज खा जाओ. पूरे देश को
खोखला कर डाल रहे हो. तुम्हारे पास कोई काम नहीं, सिवाय नुकसान
करने के और अपनी जमात बढ़ाने के. बिना सोचे समझे बच्चे पैदा करते जाते हो. हर तरफ
बस गन्दगी फैलाते हो. जहाँ से गुजर जाओ, पूरा माहौल खराब कर दो. बदबू ही बदबू.
तुम्हें पकड़ने के लिये लोग पिंजड़ा लगाते है, तुम बच निकलते
हो. जो भी जाल बिछा लो, तुम्हें उसे कुतर कर बच निकलने के सब गुर मालूम हैं. अरे, तुम
खुद बच कर निकल लो तब भी ठीक. तुम तो जिस पर अपनी उदार नजर रख दो, उसे
तक जाल कुतर कर छुड़ा ले जाते हो. तुम बस चेहरे से भोले लगते हो, अंदर
से कुछ और ही हो. बिल्ली तक को चकमा देकर निकल जाना तुम्हारे बायें हाथ का खेल है.
तुम तो पूरे समाज के लिये घातक हो. दफ्तर की जरुरी जरुरी फाईलें तक कुतर डालते हो.
न जाने कितने साक्ष्य मिटा डाले इस तरह तुमने, कुछ पता भी
है.कई बार तो लगने लगता है कि तुम भ्रष्ट नौकरशाहों और क्रिमनल्स के लिये कमीशन पर
काम करते हो. अरे, हमने तो यह तक देखा है कि जब माड लगा तिरंगा झंडा गणतंत्र दिवस पर
फहरने के बाद स्वतंत्रता दिवस के लिये लपेट कर रखा गया, तब तुम उसे तक
कुतर गये. राष्ट्र के सम्मान का जरा भी ख्याल नहीं. तुम देशद्रोही हो. तुम महामारी
फैलाते हो. (शायद यह प्लेग की बात की है)!!!
चूहा तुम्हारी हर बात को गौर से सुन रहा है चुपचाप. जो चुप रहते हैं
न! वो बहुत समझ कर और गौर से सुनते हैं. लो, अब वो चूहा कह
रहा है:
वही तो!! फिर हम को ही क्यूँ. नेताओं को क्यूँ नहीं पकड़ते. उन पर
क्यूँ नहीं करते यही परिक्षण और सफल होने के बाद उन्हें क्यूँ नहीं मार देते.
तुमने जितने भी कारण गिनाये हैं, बताओ तो जरा, उनमें से कौन सा
इन नेताओं में नहीं है? अरे! हम जो महामारी फैलाते हैं न प्लेग की. वो तो एक गाँव या ज्यादा
ज्यादा एक शहर में सीमित होकर रह जाती है. और ये तुम्हारे नेता!! ये जो महामारी
फैला रहे हैं-भ्रष्टाचार की, संप्रदायिकता की, धर्म
के नाम पर बँटवारे की-वो तो पूरे राष्ट्र को संक्रमित कर रही है. कोई भी इस
संक्रमण की चपेट से नहीं बच पा रहा है. न तो इसका कोई इलाज है, न
दवा!!
हर गली कूचे से लेकर, ब्लॉक से शहर तक, प्रदेश
से राष्ट्रीय स्तर तक हर जगह ये बहुतायत में हैं. पकड़ो न इन्हें!!! करो न
परिक्षण!! मारो न इन्हें. हम लिख कर दे सकते हैं कि हमारी प्रजाति तो खत्म हो सकती
है, मगर ये तुम्हें अपनी उपलब्धता की कमी का एहसास कभी न होने देंगे. हम
छोटे से प्राणी, कितना अन्न खा जायेंगे, कितना बिगाड़ कर लेंगे.
अब तुम्हारे पास जबाब नहीं है. बहस तो शुरु कर ली, पूरा
ज्ञान एक ही बारी में उलट कर रख दिया और अब खिसकने का रास्ता देख रहे हो!!
खिसको..खिसको!! यही तुम्हारी फितरत है. जब जबाब न सूझे, तो खिसक लो!!
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अगस्त 22, 2021 के
अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/62618353