रविवार, मार्च 31, 2019

तो आज देश की हालत कुछ और होती


युवा अवस्था क्रांतिकारी होती है. क्रांति भी ऐसी कि बस विरोध करना है एक बड़ी भीड़ का. इस चक्कर में वो गाँधी के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान को नकार देता है. नेहरु के राष्ट्र निर्माण को नकार देता है. वो इतने विश्वास से यह बात कहता है कि अगर गाँधी ने नेहरु की जगह पटेल को प्रधानमंत्री बना दिया होता तो आज देश कहीं का कहीं होता. कहीं का कहीं मे कहाँ होता ये तो मालूम नहीं मगर उसे सुनकर ऐसा लगता है कि मानो उस कमरे में गाँधी, नेहरु, पटेल के अलावा चौथा आदमी ये ही थे. मीटिंग खत्म होने के बाद पटेल ने इन्हीं के साथ बैठकर अपने राष्ट्र निर्माण का प्लान बताया था जो उनके प्रधानमंत्री न बनाये जाने के कारण वे गंगा में बहा आये. कहाँ से लाते हैं ऐसी सोच ये?
बहुत गंभीरता से आंकलन करता हूँ तो कभी कभी शक की सुई चे ग्वेरा की तरफ घूम जाती है. ऐसे युवाओं को अक्सर चे ग्वेरा की तस्वीर वाली टी शर्ट, जीन्स और उसी स्टाईल के बेतरतीब से बाल के साथ पाया है. धीर गंभीर सा चेहरा लिए न जाने भीतर भीतर किस ज्वाला को सुलगाये हुए जीवन जीता है. हाथ में तो सुलगती हुई सिगरेट दिखती है.
उनकी नजर में कुछ भी सही नहीं हो रहा है. उन्हें बस ये समझ में आता है कि जो हो रहा है उसकी जगह जो नहीं हो रहा है, वो ही सही रहता. डर लगता है कभी अति चिन्तन में ये ऐसा विचार न रख दें कि अगर गंगा बंगाल की खाड़ी से शुरु हो कर गंगोत्री तक जाकर गोमुख में समाई होती तो कभी इतनी मैली न होती. एक जरा सी गल्ती और आज देखो, गंगा सफाई के कारण क्या क्या नहीं हो जा रहा है. करोड़ों करोड़ों रुपये एक जमाने से इसकी सफाई के नाम पर डकार लिए जा रहे हैं. कितनी सरकारें बन बिगड़ गई. कोई गंगा सफाई बोर्ड का कभी चेयरमैन बना तो कोई इस अभियान का प्रमुख. बात बढ़ते बढते यहाँ तक आ गई कि इसकी हालत देखकर एक बेटा तो बनारस ही चला आया और हालत का रोना रोते रोते दिल्ली में सत्ता की बागडोर संभाल देश का प्रधान चौकीदार बन गया. वो भूल गया कि सफाई चौकीदार नहीं करता है.
हमारे देश में विडम्बना यही है कि हम जिन मुद्दों और आधारों पर चिन्तित होकर सरकारें चुनते आये हैं, वो मुद्दे अगर खत्म हो जायें तो फिर आखिर चुनाव का आधार क्या होगा? आजादी के बाद से ही आज तक गरीबी हटाओ, किसानों की स्थिति, बेरोजगारी, सड़कों की हालत, गंगा की सफाई, राम मंदिर, धारा ३७२ आदि आदि हर चुनाव के स्थाई मुद्दे हैं. आने वाले ५० साल बाद भी यही मुद्दे इतने ही ज्वलंत रहेंगे और चे ग्वेरा की तस्वीर वाली टीशर्ट पहने ये चिन्तक तब भी कहते पाये जायेंगे कि अगर जो हुआ है, उसकी जगह वो हो जाता जो नहीं हुआ है, तो आज देश की हालत कुछ और होती.
यही वो चिन्तक हैं जो त्यौहारों पर भी मूँह फुला लेते हैं कि हम क्यूँ मनायें ये त्यौहार? अपने धार्मिक त्यौहारों की तो खैर चलो, इनका गुस्सा जाने भी दो. मगर बाजार द्वारा प्रद्दत त्यौहारों को जैसे मदर्स डे, फादर्स डे, वेलेन्टाईन डे पर तो इनके ऐसे बोल फूटते हैं कि क्या कहा जाये?
भले घर में सिर्फ सोने और खाने जाते हों मगर कहेंगे कि हम तो अपने मां, बाप की हर रोज ही सेवा सुश्रुषा करते हैं तो फिर हम ये दिखावे वाला एक दिन मदर्स डे और फादर्स डे के नाम का क्यूँ मनायें? साल में चार बार गर्ल फ्रेण्ड बदलने के बाद वेलेन्टाईन डे के दिन इनको ख्याल आता है कि प्यार कोई एक दिन की दिखाने की चीज थोड़े ही है? हम नहीं मनाते वेलेन्टाईन डे!!
इन सब बातों का ख्याल कुछ यूँ आया कि सामने ही १ अप्रेल है और लोग अप्रेल फूल बनाने के लिए तरह तरह की योजनायें बना रहे हैं. मुझे इन्तजार है इन चिन्तकों का जो कम से कम एक बार तो एक दम सौ टका सच बात कहेंगे कि हम तो हर रोज हर पल अपने नेताओं से मूर्ख बनते आ रहे हैं और सतत बनते जा रहे हैं तो हम क्यूँ मनायें मूर्ख दिवस?
हम तो यह त्यौहार मनाने के लिए उस दिन का इन्तजार करेंगे, जिस दिन ये नेता हमें मूर्ख बनाना बंद कर देंगे. मगर हम ये भी जानते हैं ऐसा दिन भी तब ही आयेगा जब गरीबी हट जायेगी, किसान  समृद्ध हो जायेगा, बेरोजगारी खत्म हो जायेगी, सड़कें हवाई पट्टी बन जायेंगी, गंगा एकदम साफ सुथरी हो जायेगी, राम मंदिर बन जायेगा, धारा ३७२ हट जायेगी आदि आदि. न ये सब कभी होगा, न कभी त्यौहार मनाने की नौबत आयेगी.
मगर बुराई क्या है ऐसे दिन आने का इन्तजार करने में. अच्छे दिन आने का इन्तजार तो कर ही रहे हो.
-समीर लाल समीर 
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार मार्च ३१, २०१९ को:
http://epaper.subahsavere.news/c/38075001


चित्र साभार: गुगल Indli - Hindi News, Blogs, Links

सोमवार, मार्च 25, 2019

साहित्य के रंग – शैलजा के संग


साहित्य के रंग – शैलजा के संग



टोरंटो के TAG TV से प्रसारित ’साहित्य के रंग – शैलजा के संग’ पर समीर लाल ’समीर’ और न्यू यॉर्क से अनूप भार्गव जी से बातचीत शैलजा जी की.


TAGTV का facebook link:






Indli - Hindi News, Blogs, Links

शनिवार, मार्च 23, 2019

जुमलों की शेल्फ लाईफ बहुत थोड़ी होती है




रंग बिरंगी दुनिया मॆं कितने ही सफहें हैं अलग अलग रंगो के. हर वक्त हर व्यक्ति के लिए कोई न कोई नया रंग.  सब जोड़ कर देखो तो एक एकदम इन्द्रधनुषी दुनिया नजर आये. होना भी यही चाहिये.
कल ही होली के रंगो से सारोबार मस्ति में नाचते गाते लोग आज उसी रंग के निशानों को दाग बताने में जुटे हैं. यह भी हमारी गिरगिटिया मानसिकता का बदलता रंग ही तो है. होली के रंग दाग में तब्दील होते होते जब तक  गुम हो जायेंगे, उसके पहले देश पूरा चुनाव के रंग में रंग जायेगा.
चुनावों को कौन सा रंग कितना रंगता हैं वो ही निर्धारित करेगा कि आगे देश किस रंग में रंगेगा. भगवा, हरा, नीला, लाल और भी जाने कौन कौन से रंग उछाले जायेंगे. उछालने को क्या है, कीचड़ भी लोग उछालेंगे ही. अब आप चाहो तो उसे मटमैला मान लो या चितकबारा, क्या फर्क पड़ता है? मगर इस रंग से देश को रंग देना भी तो ठीक नहीं होगा. इन्द्रधनुषी देश मनभावन होता है और नजारा नयनाभिराम. काश!! सब रंग मिलजुल कर इन्द्रधनुष ही बनायें तो बेहतर!!
शायद इन्हीं चुनावों को रंगने के लिए एक देश भक्ति का रंग भी पूरे कैनवास पर ऐसा रंगा गया कि लगा हमारा नेता खुद ही हाथ में तलवार उठाये दुश्मन मुल्क में घर में घुस घुस कर मार रहा है. पुरजोर माईक से चीखा कि हम वो हैं जो घर में घुस कर मारते हैं. चीख चाख कर जब अपने ही लोगों के बीच से गुजरा तो जेड सिक्यूरिटी से घिरा हुआ निकला ताकि कोई अपना ही उनको उनके घर में घुस कर न मार दे. जिसे अपनों से मिलने और छूने में इतना डर लगता हो कि जेड सिक्यूरिटी का दायरा कभी छूटता ही नहीं. जो अपनों से ही सीधे बात चीत करने में डरता हो. जो बस रेडियो से मन की बात करता हो जिसमें सिर्फ सुनाने की क्षमता है, सुनने के नहीं. वो दुश्मन को घर में घुस कर मारने की बात करे, शोभा नहीं देता. यह हास्यास्पद है. यह तो हमारी सेना की शहादत, उनके शौर्य, उनकी वीरता को अपने खाते में लिख लेने जैसी बात हुई जो कतई बरदास्त करने योग्य नही.
कभी देश के लिए फांसी पर हंसते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले देश प्रेमी एवं देश भक्त भगत सिंह गाते थे:
रंग दे बसन्ती चोला
मेरा रंग दे बसन्ती चोला माई रंग दे बसन्ती चोला।
इसी रंग में गांधी जी ने नमक पर धावा बोला।
मेरा रंग दे बसन्ती चोला।
उसी गाँधी को ढोंगी करार देने वाले उसके हत्यारे गोडसे की पूजा करने वाले आज वो ही गाना गा रहे हैं देश भक्ति में:
मेरा रंग दे बसन्ती चोला।
क्या विडंबना है!!
शायद वो वक्त अगर आज का होता तो बसन्ती भगवा होता और ये तथाकथित देश भक्त गा रहे होते:
मोहे रंग दे भगवा चोला!!
इसी रंग ने बावरी पर धावा बोला
मोहे रंग दे.
मुझे नहीं याद पड़ता वो भारत २०१४ के पहले का, जो कभी इस तरह के रंग भेद से प्रताड़ित रहा हो. मगर रंग बिरंगी दुनिया का क्या.. गिरगिट तो गिरगिट है..रंग बदलते रहना स्वभाव है!!
सब बदल सकता है मगर स्वभाव नहीं!
साँप आस्तीन में पालोगे तो एक दिन डसेगा ही!!
स्वभाव पहचानो. रंग परखना सीखो. इन्द्रधनुष से प्रेम करो, अकेले रंग से नहीं!!
दुनिया ब्लैक एण्ड व्हाईट से निकल कर रंग बिरंगी हुई है इन सत्तर सालों में. भ्रम में आना इनके जुमलों के कि ७० साल में कुछ हुआ ही नहीं, वरना आज रंग अपना अस्तित्व तलाश रहे होते और आप आँख मलते हुए सच में पूछ रहे होते कि क्या पिछले ७० साल  ही व्यर्थ गये?
जुमलों की शेल्फ लाईफ बहुत थोड़ी होती है. सजग रहना जरुरी है.
-समीर लालसमीर

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार मार्च २३, २०१९ को:
ब्लॉग पर पढ़ें
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging

Indli - Hindi News, Blogs, Links