दूर बहुत दूर
मगर मेरे दिल के आस पास
कई दरियाओं के पार
मेरी यादों में बसा
वो शहर रहता है..
जहाँ गुजरा था मेरा बचपन
जिसकी सड़को पर मैं जवान हुआ
वहाँ अब यूँ तो अपना कहने को
कुछ भी नहीं है बाकी
लेकिन उस शहर की गलियों से
मेरा कुछ ऐसा नाता है
कि शाम जब ढलता है सूरज
एक अक्स उस पूरे शहर का
मेरे जहन में उतर आता है...
जाने क्या क्या याद दिलाता है..
और मेरी नजरों के सामने से
अब तक का बीता सारा जीवन
एक पल में गुजर जाता है..
-समीर लाल ’समीर’