कभी किसी को देख सुन कर वो आपको इतना अधिक प्रभावित करता है कि आपका प्रेरणा स्त्रोत बन जाता है. आप उसके जैसा हो जाना चाहते हैं. ठीक ठीक उसके जैसा न भी हो पाये तो आपको आगे बढ़ने और अभ्यास करने हेतु वो प्रेरणा तो होता ही है.
कितने ही गायको के प्रेरणा स्त्रोत और आदर्श मुकेश, लता मंगेशकर, रफी होंगे. जाने कितने खिलाड़ी क्रिकेट में तेंदुलकर को अपना आदर्श बना कर खेलते हैं.
इस तरह के प्रेरणा स्त्रोत आपको बेहतर और बेहतर करने की ताकत देते हैं. आपको प्रभावित करते हैं. लेखन में भी तो ऐसा होता है.
लेकिन इससे इतर भी स्थितियाँ बनती हैं, जब आप किसी को कुछ करता देखते हैं तो उसे देख आपमें एक आत्मविश्वास आ जाता है कि अरे, जब ये कर ले रहा है तो हम क्यूँ नहीं? इससे बेहतर तो हम ही कर लेंगे.
मुझे याद है, जब हम सी ए कर रहे थे. एक मित्र जो हमारे रुम मेट हुआ करते थे, हमसे ६ महीने सीनियर थे मगर अक्सर सवाल समझने या डिस्कस करने हमारी डेस्क पर चले आते. उनके पास हो जाने ने हमें जबरदस्त आत्मविश्वास दिया कि जब ये पास हो सकते हैं तो हम क्यूँ नहीं. बस, उन्हीं का चेहरा याद कर कर देखते देखते हम पास हो गये.
कल टोरंटो में श्रेया घोषाल और आतिफ असलम का शो था. सच्चे भारतीय होने का धर्म निभाते हुए हमने अपने और अपनी पत्नी के लिए वी वी आई पी का पास जुगाड़ लिया. एकदम स्टेज के नजदीक बैठे.
कार्यक्रम की शुरुवात जबरदस्त रही और प्रथम आधा भाग श्रेया घोषाल ने संभाला. दिल थाम कर सुना गया. जबरदस्त!! आनन्द आ गया.
द्वितीय भाग में उतरे आतिफ असलम.
आतिफ!! आतिफ!! आतिफ!! की आवाजों से हॉल गुँज गया.
आतिफ आये. १.३० घंटे तक मंच पर संपूर्ण नशे की सी हालत में बने रहे, शायद ज्यादा पी ली होगी और उसे देख देख, सुन सुन मुझ जैसे व्यक्ति में जबरदस्त आत्मविश्वास का संचार हुआ.
हाय!! क्यूँ मैं लोगों की बातों में आकर अपनी कविता और गीत पढ़कर सुनाता रहा. मैं तो बड़े आराम से गा कर सुना सकता था और पब्लिक चिल्लाती: समीर!! समीर!! समीर!!
बन्दे में आत्मविश्वास कहो या नशे की गिरफ्त. पूरे १.३० घंटे झिलवाता रहा और पब्लिक टिकिट का पैसा देकर झेलती रही. नये जमाने की लड़कियाँ तो झूम कर नाचीं भी. हम तो फ्री के पास पर थे तो अंतिम गाना खत्म होने के पहले ही निकल लिये.
आतिफ की फोटो भी खींच ली है. अपनी डेस्क पर फ्रेम करा कर रखूँगा कमप्यूटर के बाजू में ताकि सनद रहे और आत्म-विश्वास बना रहे.
इन्तजार है जब हॉल में हल्ला गुँजेगा: समीर!! समीर!! समीर!! ..शायद लड़कियाँ नाचें भी, कौन जाने!!
क्या आपके साथ भी ऐसा होता इस तरह का आत्मविश्वास वर्धन!
चलते चलते:
मैं भी उसे चाहता हूँ,वो भी मुझे चाहती है
प्यार का सबूत है ये, और कैसा चाहिये
शादी ब्याह बात कुछ, प्यार से अलग है जी
बाबू जी की हाँ के लिए, थोड़ा पैसा चाहिये.
शादी हुई बाद में ये, घर भी उसी का है जी
मोटर जो दे दोगे तो उसमें ही घुमाऊँगा
उसकी तो बात छोड़ो, वो तो मेरी बीबी होगी.
मैं तो इतना सीधा हूँ, साली को भी चाहूँगा.
-समीर लाल ’समीर’