शनिवार, जून 26, 2021

सुझाव देने का समय नहीं रहा अब

 



शाम टहलने निकला था. सामने से आती महिला के कारण तो नहीं मगर उसके साथ पतले से धागेनुमा किसी डोरी में बँधे बड़े से खुँखार दिखने वाले कुत्ते के कारण वॉक वे छोड़ कर किनारे घास पर डर कर खड़ा हो गया. कुत्ता मेरे सामने से बिना मुझे देखे निकल गया मगर शायद वह महिला मेरा डर भाँप गई और मुस्कराते हुए बोलीं- डरो मत. यह मेरा कुत्ता है, वेरी हम्बल. किसी से कुछ नहीं कहता और न भौंकता है. मुझे उस कुत्ते की स्थिति पर थोड़ी दया भी आई मगर यूँ तो कितनी ही महिलाओं के पतियों को भी इसी हाल से गुजरते देखा है तो किस किस पर रोईये का भाव ओढ़ कर पहले तो मैं चुप रहा.

फिर महिला का बातूनी नेचर देख कोतुहलवश उससे पूछ ही लिया कि क्या कभी घर में कोई चोर घुस आये तब भी नहीं भौंकेगा या काटेगा उसे?

महिला पुनः मुस्कराई और बोलीं- कहा न, मेरा कुता है. वेरी हम्बल..न भौंकता है और न काटता है. दूसरे कुत्ते इस पर भौंकते भी हैं तो ये मेरे पीछे आकर छुप जाता है मगर मजाल है कि कभी भौंका हो या काटा हो किसी को. मेरा कुत्ता है, वेरी हम्बल!!

बहुत कोशिश की कि अपनी टहल जारी रखूँ मगर रहा नहीं गया..मूँह से निकल ही गया कि इससे अच्छा होता कि आप इसके बदले में बकरी पाल लेती..कम से कम रोज १.५ से २ लीटर दूध ही दे देती.बाकी का स्वभाव, व्यवहार तो बिल्कुल ऐसा ही रहता.

मुझे लगा था कि उन्हें मेरा सुझाव पसंद आयेगा मगर वो तो उल्टा ही भड़क गई. कहने लगी मैं आप पर अपनी मान हानि का मुकदमा कर दूँगी.

मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैडम की क्या मानहानि हो गई? अगर किसी की हुई भी तो वो तो कुत्ते की हुई और वो मैडम के पीछे दुबका खड़ा था.

मानाहानि भी अजब चीज है. स्वभावतः हम गवां उसी चीज को सकते हैं जो हमारे पास होती है. जैसे अगर रुपया है ही नहीं, तो उसे आप गवां कैसे सकते हैं? बाल अगर हैं ही नहीं सर पर, तो उसकी हानि कैसे होगी.

मात्र मान (इज्जत) ऐसी चीज है जिसकी हानि उसके बिना हुए भी होती रहती है. यह हानि भी संसद की केन्टीन में सस्ते खाने से लेकर हवाई जहाज के बिजनेस क्लास में फ्री चलने की तरह ही सिर्फ नेताओं के लिए आरक्षित है.

जैसे व्यापार में हुये लॉस को निगेटिव प्राफिट भी कहते हैं, वैसे ही मानहानि को आपमान में वॄद्धि भी कह सकते हैं. लेकिन नेताओं को पब्लिक में यह कहना अच्छा नहीं लगता, इस हेतु मानहानि को जुमले के तौर पर इस्तेमाल किये जाने का फैशन है.

मन में आया कि पूछ लूँ कि मैडम आप या आपका कुत्ता राजनीति में हैं क्या? हमारे यहाँ यह मानहानि वाली लग्जरी सिर्फ उनको ही हासिल है. फिर नहीं पूछा. मन में आई हर बात करना आमने सामने उचित नहीं होता है.  मन की बात कहने के लिए रेडियो ज्यादा मुफीद है और फैशन में भी है.

फिर सोचा कि तुलसी दास का दोहा सुना दूँ और मैडम का धन्यवाद कर दूँ कि उन्होंने मुझे विधाता माना:

हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ..

बिधि मतलब विधाता. 

फिर वो भी नहीं सुनाया और शुद्ध आम नागरिक होने का परिचय देते हुए उनसे क्षमा मांग ली. वो कहने लगी  मुझसे नहीं मेरे कुत्ते से मांगिये. अजब बात है मानहानि हुई मैडम की और माफी देगा कुत्ता. कौन झंझट में पड़े अतः कुत्ते से माफी मांग कर चल पड़े.

टहलने निकला था सो टहल के वापस आ गया.

लगा कि सुझाव देने का समय नहीं रहा अब.

-समीर लाल ’समीर’

 

 

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जून 27 , 2021 के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/61414044

 

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शनिवार, जून 19, 2021

ऑक्सीजन की चाह में वृक्षारोपण

 


अस्पतालों में ऑक्सीजन की भीषण कमी हो गई। हाहाकार मचा। जिसको जो समझ में आ रहा था वो उस पर तोहमत लगा रहा था। दोषारोपण हेतु लोगों को खोजा जा रहा था। कई दशकों पहले परलोक सिधार चुके लोग भी चपेट में आ रहे थे। जानवरों के डॉक्टर तक व्हाटसएप पर फेफड़ों में ऑक्सीजन की कमी न आने देने के उपाय बता रहे थे। एक ओर जहाँ भीषण कमी थी वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन बिखरी पड़ी थी। कोई कहता था कि दो सिलेंडर फलानी जगह हमारे पास हैं, जरूरत मंद संपर्क करें। किसी के पास पाँच होते थे। दिया गया फोन उठता नहीं था। वे जरूरतमंदों को व्हाटसएप पर खोज रहे थे और जरूरतमंद उन्हें अस्पतालों में। व्हाटसएप और अस्पताल के बीच का पुल टूट गया था और लोग उसी टूटे पुल से गिर गिर कर ऑक्सीजन के आभाव में दम तोड़ रहे थे।

इसी बीच किसी ज्ञानी ने ऑक्सीजन के बारे में अपना वीडियो वायरल किया। उसने कमी का दोषी आम जनता को बताया। उसने कहा कि तुमने पेड़ काटकाट कर अपने मकान बना लिये। कारखाने खोल लिए। नए पेड़ लगाए नहीं तो ऑक्सीजन कहां से आए? अब भुगतो। दोषारोपण की आग असल आग से भी तेजी से फैलती है। आमजन ने अपना बचाव किया कि हमारे एक पेड़ काटने या लगाने से क्या होता है? सरकार को देखो, पूरे के पूरे जंगल साफ कर डाले।

आरोप का निशाना अपनी ओर घूमते देख वन मंत्री चौंके। उन्हें सपने में भी उम्मीद न थी कि स्वास्थय मंत्रालय की बजाए उनका मंत्रालय ऑक्सीजन की कमी के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाएगा। इसके पहले की बात ज्यादा आगे बढ़ती, उन्होंने आनन फानन में एक सार्वजनिक कार्यक्रम कर कलेक्टर कार्यालय के सामने वृक्षारोपण कर पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। प्रमाण स्वरूप शिलालेख लगाया गया। तस्वीरें खींची गईं जिन्हें अगले रोज प्रमुख अखबारों ने मुख्य पृष्ठ पर छापा। वनों में सौ पेड़ कट जाते हैं, तब न कोई समारोह, न सेल्फी और न कोई समाचार मगर एक वृक्षारोपण की ऐसी कवरेज। मंत्री जी द्वारा बताया गया कि पेड़ बड़ा होकर ऑक्सीजन की समस्या का निदान कर डालेगा। एक फुट का पेड़ भी मंत्री जी के मुखार बिन्द से अपनी भावी उपलब्धि को सुन मंत्री जी के सामने नतमस्तक हो गया। उसे बिना फल आए ही झुकता देख लोगों को ख्याल आया कि भारी गरमी में उसे बो तो दिया है मगर पानी डाला ही नहीं। मंत्री जी अभी भाषण दे ही रहे थे अतः उनकी उपस्थिति ने कमाल दिखाया और तुरंत ही वृक्ष के लिए पानी की व्यवस्था की गई। पेड़ पुनः सीधा खड़ा हो गया।   

वृक्षारोपण करके मंत्री जी जा चुके थे। शाम को घर लौटती बकरी उस पेड़ को खा गई। जानवरों मे मंत्री जी द्वारा लगाये या आमजन द्वारा लगाये या खुद से उग आये पेड़ में भेद करने की परम्परा अभी तक नहीं आई है। उन्हें तो इससे भी मतलब नहीं है कि अमीर ने पेड़ लगाया है या गरीब ने या किसी हिन्दू ने लगाया या मुसलमान ने। मजहब के भेद तो इंसानों की फितरत है, जानवर इससे अछूते हैं। बकरी हिंदुस्तान की हो या पाकिस्तान की, दोनों का स्वभाव एक ही है।

सरकारी अधिकारियों से जानवर इसीलिए भिन्न हैं। अधिकारी घूस खाता है, और उसे अलमारी में बंद करके धर देता है अपने भविष्य के लिए। बकरी का मूलतः स्वभाव पत्ती खाना, दूध देना, और आगे पत्तियों की उपज जारी रहे, नए नए पेड़ फूले फलें, इस हेतू ऑर्गैनिक खाद की नित उपलब्धता बनाए रखना होता है।

जब बकरी पेड़ खाकर चली गई तब वहां सिर्फ एक शिलालेख लगा रह गया कि  ‘इस वृक्ष का वृक्षारोपण माननीय तिवारी जी, मंत्री, वन विभाग द्वारा आज दिनांक को किया गया’। किसी व्हाटसएप जागरूक नागरिक की नजर इस पर पड़ी तो उसने शिलालेख और उसके पीछे नदारत वृक्ष की फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर इस कैप्शन के साथ डाल दी कि जैसे व्हाटसएप पर ऑक्सीजन उपलब्ध है वैसे ही मंत्री जी का पेड़ कलेक्टरेट के सामने। किसी ने उसे फॉरवर्ड करते हुए लिखा कि फिर एक पेड़ फाईलों में उगा। किसी ने उसे ऑक्सीजन की फैक्टरी का भूमि पूजन बताया। किसी ने उसे मंत्री जी को टैग कर दिया। मंत्री जी आग बबूला हो उठे और वहाँ पुनः वैसा ही वृक्ष लगवा कर उसके साथ सेल्फी खिंचा कर सोशल मीडिया पर डाली और वायरल हो रही पोस्ट को विपक्षियों की साजिश बताया।

बकरी का कोई सोशल मीडिया पर एकाउंट तो था नहीं अतः वह प्रसन्न चित्त इस बवाल से अनभिज्ञ पुनः शाम को उसी राह से घर लौटती हुई नया पेड़ भी खा गई। यहीं जानवर और इंसान एक जैसे हैँ, दोनों को ही नियमित अंतराल पर भूख लगती है। 

फिर सोशल मीडिया पर बवाल कटा, फिर पेड़ लगा किन्तु इस बार जासूस भी लगा दिए गए। पता किया जाए कि कौन सी विपक्षी पार्टी इस साजिश में लगी है। बकरी को क्या पता कि उसकी जासूसी हो रही है। वो फिर पेड़ खाने को हाजिर हो गई मगर इस बार पकड़ ली गई। जो बात वृक्ष के आजू बाजू एक बाड़ा लगाकर रोकी जा सकती थी उसे जासूसी विभाग की मदद से रोका गया।

बकरी को पकड़ कर मंत्री जी बंगले पर ले जाया गया। उस रात मंत्री जी ने अपने बंगले पर मित्रों के साथ शराब और उसी बकरी के कबाब की दावत उड़ाते हुए भविष्य में ऑक्सीजन सप्लाई की व्यवस्था के लिए किए गए सुरक्षा प्रबंधों की जानकारी दी और ठहाकों की आवाज गूंज उठी।

दूध से मिली ताकत को दूध देने वाले को मारकर खा जाने की फितरत भी बस इन्सानों की है। जो ताकत देता है उसी को मार देना यूं ही तो सीखा है।     

-समीर लाल ‘समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जून 20, 2021 के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/61254470

 

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शनिवार, जून 12, 2021

अब शराफत और ईमानदारी का जमाना नहीं रहा

 

किस्मत कुछ ऐसी रही कि जहाँ भी पहुंचते हैं तो लगता है वक्त कह रहा है ‘थोड़ा देर कर दी यार तुमने आने में, वरना तो क्या जलवा देखते’. वो तो हमने खैर पैदा होने में भी देर कर दी वरना 1947 के पहले पैदा हो गए होते तो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहलाते. एक दो 1945 और 1946 की पैदाईश वालों को तो मैं भी जानता हूँ जो खुद को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बता बता कर सांसद हो लिये जबकि स्वतंत्रता प्राप्ति के समय 1 बरस और दो बरस के ही थे. मगर कौन चैक करने जाता है? वरना अगर चैक करने की प्रथा होती तो इनके चरित्र चैक होने के बाद तो एक भी वोट न मिलता. 

खैर, जिस जमाने में हम पैदा हुए, तब तक एक तो देश की सोने की चिड़िया फुर्र हो चुकी थी और दूसरा शराफत और ईमानदारी इस दुनिया से विदा हो चुके थे. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं हमारे शहर भर के बुजुर्ग बताया करते थे. हम देर से पैदा हुए. जिससे सुनो बस यही सुनते थे कि अब शराफत और ईमानदारी का जमाना नहीं रहा. विदा तो खैर तब तक गाँधी जी भी हो चुके थे मगर उनके बारे में जान लेने के लिए और बताने के लिए इतिहास की किताबें थी और ज्ञानी लोग थे. अभी उतनी देर भी नहीं हुई थी कि गांधी जी का नाम इतिहास की किताबों से भी मिटा देने का प्रयास शुरू हो गया हो. वैसे इतिहास बहुत जिद्दी होता है, यह बात इस प्रयास में लगे लोग शायद भूल रहे हैं. पाठ्य पुस्तकों से निकाल देने के बाद भी इतिहास तो दर्ज रहता ही है. उसी इतिहास में इस प्रयासकर्ता के रूप में तुम्हारा नाम भी दर्ज हो जाएगा, बस्स!! इतिहास में सिर्फ महापुरुषों का ही नाम दर्ज हो, ऐसा कतई जरूरी नहीं. जनरल डायर भी जलिया वाले बाग के नरसंहार को लेकर जिस इतिहास में दर्ज हैं, उसी में गाँधी जी एक अहिंसा के पुजारी के रूप में शामिल हैं.

शराफत के विषय में किताब में जो कुछ भी दर्ज पाया या लोगों से जाना वो बड़ा कन्फ्यूज करने वाला रहा अतः कभी कोई निश्चित जबाब मिला ही नहीं. जब तक हम किसी की किसी हरकत को शराफत समझते, वो उसे छोड़ने की घोषणा करता मिलता है कि बस, अब तक हम शराफत से पेश आ रहे थे तो तुमको समझ नहीं आ रहा था, अब हम बताते हैं तुमको अपनी असली औकात!

पुलिस वाला तक शराफत और ईमानदारी की बात करता नजर आता है तो सारा पढ़ा लिखा पानी हो जाता है. उस दिन पुलिस वाला कहता मिला कि शराफत से पूछ रहा हूँ, ईमानदारी से बता दो वरना तो फिर तुम जानते ही हो हमें उगलवाना आता है.

लोग शराफत को कपड़ो की तरह उतारते पहनते दिखते हैं. कोई उसे कही छोड़ आता है, तो कोई कहता है कि शराफत गई तेल लेने. एक सज्जन का तो तकिया कलाम ही यही मिला कि हमसे शराफत की उम्मीद मत रखना, उधार देना जानते हैं तो ब्याज वसूलना भी जानते हैं.

एक तरफ तो बुजुर्ग बता गये कि शराफत का जमाना गया तो दूसरी तरफ ऐसे ऐसे विवादास्पद दृष्य देखकर आज तक ये ही नहीं समझ आया कि शराफत होती क्या है. ऐसे में कल को जब बच्चे पूछेंगे कि शराफत क्या होती है तो क्या जबाब देंगे?

यही सब सोच कर अब तो हम भी आजकल इतना ही कहते हैं कि अब शराफत का जमाना नहीं रहा. हालांकि उम्र के इस दौर में बच्चों के लिए हम शहर के वैसे ही बुजुर्ग है जिनका शुरु में हमने जिक्र किया था हमारे जमाने वाले.

क्या पता उन्होंने भी कभी शराफत और ईमानदारी को देखा था या हमारी तरह ही अपने बुजुर्गों से सुना सुनाया जुमला उछालते रहे ‘अब शराफत और ईमानदारी का जमाना नहीं रहा?’

आप में से किसी ने देखा है क्या ‘शराफत और ईमानदारी का जमाना’? अगर देखा हो तो मुझ अज्ञानी का ज्ञानवर्धन कर दें.

-समीर लाल ‘समीर’

 

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जून 13 , 2021 के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/61094652

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शनिवार, जून 05, 2021

चाय की गरमागरम चुस्की के नाम

 


भारत में जब रहा करते थे तब अक्सर पंखे के ऊपर और रोशनदान आदि में लगभग हर ही जगह चिड़िया का घोसला देख पाना एक आम सी बात थी. अक्सर घोसले से उड़ कर घास और तिनके जमीन पर, बाल्टी में और कभी किसी बरतन में गिरे देख पाना भी एकदम सामान्य सी घटना होती थी.

उस रोज एक मित्र के कार्यालय पहुँचा तो एकाएक उनकी टेबल पर एक कप में गरम पानी पर वैसे ही तिनके और घास फूस गिरे दिखे. अनायास ही नजर छत की तरफ उठ गई. न पंखा और न ही घोसला. सुन्दर सी साफ सुथरी छत. पूरे कमरे में एयर कन्डिशन और काँच की दीवारें. समझ नहीं आया कि फिर ये तिनके कप में कैसे गिरे? जब तक मैं कुछ सोचता और पूछता, तब तक मित्र ने कप उठाया और उसमें से एक घूँट पी लिया जैसे की चाय हो. मैं एकाएक बोल उठा कि भई, देख तो ले पीने से पहले? कचरा गिरा है उसमें.

वो कहने लगा कि अरे, ये कचरा नहीं है, हर्बस हैं और यह है हर्बल टी. हमारे जमाने में तो बस एक ही चाय होती थी वो काली वाली. चाय की पत्ती को पानी, दूध और शक्कर में मिला कर खौला कर बनाई जाती थी. उसी का जो वेरीयेशन कर लो. कोई मसाले वाली बना लेता था तो कोई अदरक वाली. एक खास वर्ग के नफासत वाले लोग चाय, दूध और शक्कर अलग अलग परोस कर खुद अपने हिसाब से मिलाया करते थे. कितने चम्मच शक्कर डालें, वो सिर्फ इसी वर्ग में पूछने का रिवाज़ था. फिर एक वर्ग ऐसा आया जो ब्लैक टी पीने लगा. न दूध न शक्कर. समाज में अपने आपको कुछ अलग सा दिखाने की होड़ वाला वर्ग जैसे आजकल लिव ईन रिलेशन वाले. अलग टाईप के कि हम थोड़ा बोल्ड हैं. कुछ डाक्टर के मारे, डायब्टीज़ वाले बेचारे उसी काली चाय में नींबू डालकर ऐसे पीते थे जैसे कि दवाई हो.

फिर एकाएक न जाने किस खुराफाती को यह सूझा होगा कि चाय की पत्ती को प्रोसेसिंग करके सुखाने में कहीं इसके गुण उड़ तो नहीं जाते तो उसने हरी पत्ती ही उबाल कर पीकर देखा होगा. स्वाद न भी आया हो तो कड़वा तो नहीं लगा अतः हल्ला मचा ग्रीन टी ..ग्रीन टी..सब भागे ..हां हां..ग्रीन टी. हेल्दी टी. हेल्दी के नाम पर आजकल लोग बाँस का ज्यूस पी ले रहे हैं. लौकी का ज्यूस भी एक समय में हर घर में तबीयत से पिया ही गया. फिर बंद हो गया. अब फैशन से बाहर है.

हालत ये हो गये कि ठेले से लेकर मेले तक हर कोई ग्रीन टी पीने लगा. अब अलग कैसे दिखें? यह ग्रीन टी तो सब पी रहे हैं. तो घाँस, फूस, पत्ती, फूल, डंठल जो भी यह समझ आया कि जहरीला और कड़वा नहीं है, अपने अपने नाम की हर्बल टी के नाम से अपनी जगह बना कर बाजार में छाने लगे. ऐसा नहीं कि असली काली वाली चाय अब बिकती नहीं, मगर एक बड़ा वर्ग इन हर्बल चायों की तरफ चल पड़ा है.

बदलाव का जमाना है. नये नये प्रयोग होते हैं. खिचड़ी भी फाईव स्टार में जिस नाम और विवरण के साथ बिकती है कि लगता है न जाने कौन सा अदभुत व्यंजन परोसा जाने वाला है और जब प्लेट आती है तो पता चलता है कि खिचड़ी है. चाय की बढ़ती किस्मों और उसको पसंद करने वालों की तादाद देखकर मुझे आने वाले समय से चाय के बाजार से बहुत उम्मीदें है. अभी ही हजारों किस्मों की मंहगी मंहगी चाय बिक रही हैं.

हो सकता है कल को बाजार में लोग कुछ अलग सा हो जाने के चक्कर में मेनु में पायें बर्ड नेस्ट टी - चिड़िया के घोसले के तिनकों से बनाई हुई चाय. एसार्टेड स्ट्रा बीक पिक्ड बाई बर्ड फॉर यू याने कि चिड़िया द्वारा चुने हुए घोसले के तिनके अपनी चोंच से खास तौर पर आपके लिए. इस चाय में चींटियों द्वारा पर्सनली दाने दाने ढ़ोकर लाई गई चीनी का इस्तेमाल हुआ है.

अब जब ऐसी चाय होगी तो बिकेगी कितनी मँहगी. क्या पता कितने लोग अफोर्ड कर पायें इसे. मुश्किल से कुछ गिने चुने और यही वजह बनेगी इसके फेमस और हेल्दी होने की.

गरीब की थाली में खिचड़ी किसी तरह पेट भरने का जरिया होती है और रईस की थाली में वही खिचड़ी हेल्दी फूड कहलाता है, यह बात बाजार समझता है.

बस डर इतना सा है कि चाय के बढ़ते बाजार का कोई हिस्सा हमारा कोई नेता न संभाल ले वरना बहुत संभव है कि सबसे मंहगी चाय होगी- नो लीफ नेचुरल टी. बिना पत्ती की प्राकृतिक चाय और चाय के नाम पर आप पी रहे होंगे नगर निगम के नल से निकला सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त गरमा गरम पानी.

-समीर लाल ’समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जून 6, 2021 के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/60940261

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