अति की तरह ही
छेड़छाड़ को भी हर हाल में बुरा माना गया है. फिर वो चाहे लड़की से हो, भूगोल से हो या
इतिहास से.
अति सर्वत्र
वर्जिते!!
लड़कियों से
छेड़छाड़ करना तो खैर सदियों से हमारी परम्परा और संस्कृति का हिस्सा रही है और
इसे मान्यता भी लगातार पुरुष प्रधान मानसिकता देती आई है. हालात तो यहाँ तक रहे हैं कि उत्तम प्रदेश के
पूर्व मुख्य मंत्री तक, लड़कियों से
छेड़छाड़ के चरम, बलात्कार तक के
बचाव में खड़े यह कहते नजर आते थे कि लौंडे है, लौंडों से गल्ती हो जाती है..इसे जाने देना चाहिये. लड़कियों को ख्याल रखना चाहिये कि ऐसा पहनावा न
पहनें या ऐसे समय घर से न निकलें जो लड़कों को उकसाये...हद है!!
वहीं हाल ही में
जब दूसरी तरफ इस
छेड़छाड़ को रोकने के लिए एण्टी रोमियो स्कवाड बनाया गया, तब वो तो खुद ही छेड़छाड़ पर उतारु हो गया. वह उसे कमाई का एक नया जरिया मान बैठा इसे. भाई बहन का साथ
निकलना मुश्किल कर दिया इस स्कवाड ने. यह भी नये नये स्थापित तंत्र की सोच के साथ छेड़छाड़ का चरम ही कहलाया.
भूगोल से छेड़छाड़
करने के लिए किसी के भी भूगोलिक नक्शे में से थोड़ी सी भू गोल कर दो, बस हो गई
भूगोल से छेड़छाड़. भूगोल से छेड़छाड़ यूँ तो बहुत नहीं होती मगर छेड़छाड़ का एक अन्य
अर्थ फिरकी लेना भी होता है... अगर आप में फिरकी लेने का गहन अर्थ जानने की तीव्र इच्छा हो तो कृप्या आमिर
खान की फिल्म पीके देख लें.. मगर बस.. फिरकी का अर्थ जानने के लिए रेक्मेन्ड किया है..बाकी आप अपने
विवेक का इस्तेमाल करें कृप्या... ऐसे में किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर फिरकी लेकर मजे लेना भी इन्सानी फितरत का
हिस्सा ही है. उदाहरण के तौर पर, कभी एकाएक ऑनलाईन मैप में भारत के नक्शे से
कश्मीर ही गुम हो गया था. भारी बवाल कटा, हल्ला मचा और
कश्मीर फिर भारत में आ जुड़ा. यह दीगर बात है
कि वो न कभी अलग हुआ था और न कभी होगा. सोच कर देखें कि अगर कभी वो अलग होकर पाकिस्तान में जा मिला तो भारत और
पाकिस्तान दोनों समय समय पर अपने ही देश में अन्य दहकते मुद्दों से देश का ध्यान
कैसे भटकायेंगे? कश्मीर का
विवादित बने रहना ही दोनों देशों की सियासत के लिए मुफीद है, इसे कोई नहीं सुलझायेगा. जो इसे सुलझायेगा, वो खुद ही इसकी आग में जल जायेगा. बस इतनी सी बात है.
अब बात करते हैं
इतिहास की. बीती घटनायें
इतिहास बन जाती हैं. आज मेरा लिखना कल
इतिहास कहलायेगा. इतिहास बखानेगा
कि एक लेखक हुआ करते थे समीर लाल ’समीर’ जो उड़न तश्तरी के नाम से लिखते थे अखबार में. ऐसे में कोई नवोदित फुदक कर सामने आयेगा और
कहेगा कि उड़न तश्तरी ने आखिर लिखा ही क्या था, जो उनको याद किया जाये? उन्होंने तो
लेखन के नाम पर बस मजाक किया है..मसखरी की है. असल लेखन तो हमारे
जैसे लेखकों के आने के बाद से शुरु हुआ है मानो ये न आये हों सन २०१४ आया हो. २०१४ के बाद से लेखन ने अपने परचम को विश्व
स्तर पर लहराया है...वरना तो पिछले कई
दशकों में कुछ हुआ ही नहीं लेखन के क्षेत्र में. प्रेम चंद, मंटो, रेणु, शरद जोशी, परसाई, निराला, टैगौर से लेकर
कबीर, तुलसी, गालिब तक...सब एक ही जुमले में नेस्तनाबूत हो गये...मानो एकाएक कोई नया ग्रह ऊग आया हो, जिसका कोई
इतिहास है ही नहीं!!
इतिहास को इतिहास
बना देने की साजिश ही इतिहास से छेड़छाड़ कहलाती है..अब इसमें गाँधी नेहरु का मजाक उडा लो तो..और पटेल जो यूँ भी लोह पुरुष माने गये हैं, उनका लोहा मनवा लो तो...या किसी हत्यारे को जायज ठहरा कर उसका मंदिर
बनवा लो तो..
बस इतना समझ लेना
कि इतिहास पेंसिल से लिखी इबारत नहीं है जो जुमले रुपी रबर से पोंछी जा सके..वो पत्थर में खुदी वो लिखाई है जो सदियों तक
अमर रहती है...
पद्मावति महज एक
फिल्म है..और फिल्म मनोरंजन
का साधन है..वो कुछ भी
स्थापित नहीं करती...पद्मावति का
इतिहास पत्थर में खुदा है..और तुम एक फिल्म
से घबरा कर बवाल मचा रहे हो !!
मनोरंजन, सियासत और फिरकी में भेद करना सीख लो वरना हर
दिन दंगे मचाते नजर आओगे और सफल वो होंगे जिन्होंने तुमसे दंगे मचवाने के लिए पासा
फैंका था इतिहास से छेड़छाड़ का.
आज जो तुम कर रहे
हो न!! वो ही कल इतिहास होगा..ऐसा करो कि शर्मिंदा न हो कल, जब तुम पलट कर देखो
वरना कहीं अपने किये को देख कर खुद ही को अपने ही इतिहास से छेड़छाड़ करने को आमादा
न होना पड़े.
-समीर लाल ’समीर’
दैनिक सुबह सवेरे, भोपाल के रविवार २६ नवम्बर, २०१७ में प्रकाशित:
http://epaper.subahsavere.news/c/24002361
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