बुधवार, जून 27, 2007

चलो, हम भी सीख ही गये

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
यह मेरा पॉड कास्टिंग का पहला प्रयास है. सब सुनाये चले जा रहे थे और हम बैठे देखे जा रहे थे कि कैसे करते हैं पॉडकास्ट. भला हो मित्रों का, जैसे ही हमने दोहे वाली पोस्ट में अपनी असमर्थता व्यक्त की वैसे ही सब भागे भागे भीगे भीगे (उस दिन दिल्ली में बारिश हो रही थी :)) टिप्पणी में बता गये, ऐसा कर लो, वैसा कर लो. बैंगाणी बंधुओं ने तो गुजरात से पूरी ईमेल करके विधी भेज दी और खुद करके दे देने की पेशकश भी की जबकि प्लेयर लोड होते समय हरे रंग का हो जाता है, भगवा नहीं और उस पर से हमारे ब्लॉग का हेडर भी हरा. फिर भी सब किया प्रेमवश. सबका प्रेम देखकर मन खुशी से भर आया. बस खुशी से आंसू टपकने की फिराक में ही थे कि मास्साब ई-पंडित श्रीश महाराज आ पधारे. वो तो हमेशा ही कमाल लिखते हैं (जब भी लिखते हैं :)) और हमारी तकलीफ जानकर, बिना हमारे व्यक्तिगत निवेदन के, दो तीन रातें काली कर पूरी की पूरी स्टेप बाई स्टेप क्लास लगाई और फिर आकर क्लास अटेंड करने का निमंत्रण भी दे गये. ऐसे होती है मित्रों की मदद और ऐसा होता है चिट्ठाकारों का आपसी प्रेम. अरे, कुछ सीखो कि बस हर बात में तलवार खिंचना जरुरी है? :) खैर जाने दो, गाना सुनो.

इस गीत को लिखा मैने है और संगीत दिया है केलिफोर्निया स्थित "साज़मंत्रा" ने. आवाज दी है श्री अंशुमान चन्द्रा ने. यह गीत एक प्रवासी की वेदना दर्शाता है.














खोया मुसाफिर

बहुत खुश हूँ फिर भी न जाने क्यूँ
ऑखों में एक नमीं सी लगे
मेरी हसरतों के महल के नीचे
खिसकती जमीं सी लगे

सब कुछ तो पा लिया मैने
फिर भी एक कमी सी लगे
मेरे दिल के आइने पर
यादों की कुछ धूल जमीं सी लगे

जिंदा हूँ यह एहसास तो है फिर भी
अपनी धडकन कुछ थमीं सी लगे
खुद से नाराज होता हूँ जब भी
जिंदगी मुझे अजनबी सी लगे

कुछ चिराग जलाने होंगे दिन मे
सूरज की रोशनी अब कुछ कम सी लगे
चलो उस पार चलते हैं
जहॉ की हवा कुछ अपनी सी लगे.

--समीर लाल 'समीर'


यहाँ डाउनलोड करें.

जरा बताईये तो सफल रहा या कुछ बदलाव की जरुरत है? Indli - Hindi News, Blogs, Links

रविवार, जून 24, 2007

दो दिन की बात: आशीष के साथ

पता चला कि खाली पिली और अंतरीक्ष वाले आशीष श्रीवास्तव कनाडा आ रहे हैं. हम अधीर हो उठे, मालूम किया तो खबर आई कि मान्ट्रियल पहुँच चुके है और स्थापित होने का प्रयास कर रहे हैं. हमने फोन किया और कह दिया कि हम मदद के लिये एक ईमेल की दूरी पर हैं और औपचारिकतावश कह दिया कि हमारे पास भी आओ. यहाँ से २५० किमी नियाग्रा है, वो घूम जाओ और टोरंटो भी देख लो. हम फोन पर बात कर रहे थे और पत्नी आँख दिखा रही थी कि किस मेहमान को बुलाये ले रहे हो. एक तो ब्लॉग से वैसे ही परेशान और उस पर से ब्लॉगर मेहमान. हमने फोन होल्ड करा कर इन्हें समझाया कि भई, औपचारिकतावश कह रहे हैं. कोई आयेगा थोड़ी इतने पैसे लगाकर हमसे मिलने. ६०० किमी मायने रखता है, कौन आता है.अब कह तो दिया और आशीष से बात आगे शुरु हुई. लगने लगा कि वो तो तैयार ही बैठे हैं. जब आप खाली हों, हम आ जायेंगे. हमने भी सोचा कि मुसीबत जितनी जल्दी आये और टले, उतना अच्छा तो सप्ताहंत में ही बुलवा लिया और वो भी तैयार हो गये.

टिकिट बुक करवा ली और हमें खबर कर दी कि शुक्रवार को रात में ११.४५ बजे आ रहे हैं. आकर साथ खाना खायेंगे. लो, अब कर लो बात...मेहमान आधी रात में और आकर खाना खायेंगे, बतियायेगे और तब सोयेंगे. हमने भी अपना बार वार साफ सुफ कर लिया कि बंदा थका आयेगा तो पहले एक दो पेग की चुस्की लगायेंगे, बात होगी, कविता भी टिका ही देंगे और फिर देखी जायेगी. ११.४५ पर हम स्टेशन पर थे. गाड़ी पार्किंग में खड़ी कर ही रहे थे तब तक महानुभाव चले आ रहे थे कुकड़ते हुये ठंड में. हमारे लिये गर्मी २० डिग्री और उनकी कुल्फी जमीं जा रही थी जबकि ७००० रुपये का लेदर जैकेट पहने थे (उन्होंने ही बताया:)) और हम हॉफ शर्ट में पसीना बहा रहे थे. पता चला कि १०.४५ से स्टेशन पर इंतजार कर रहे हैं और उन्हें याद भी नहीं कि उन्होंने हमें ११.४५ लिखा था. हमने कहा तो फोन कर देते. तो ये न तो फोन नम्बर साथ लाये थे और न ही मेरा पता...वाह!! हमें लगा कि हम खामखाँ अपने बेटों को लापरवाह समझते रहे. उस खास वक्त की टिक के साथ मेरे मन में मेरा अपने बेटों के लिये सम्मान एकाएक बढ़ गया. बेटों की गैर जिम्मेदाराना हरकतें एकदम से नगण्य सी हो गई.

खैर, लाद लूद कर घर लाये. पता चला कि पीते ही नहीं. तब हमें लगा कि यह बंदा जब इत्मीनान से पूरे होशो हवास में बैठा रहेगा तो हमारी कविता तो सुनने से रहा और यह खाना खाने बैठ गये.बात चली...फिर सो गये.

अगले दिन नियाग्रा गये. सारी दोपहर वहीं गुजारी गई.

आशीष नियाग्रा फॉल्स को अपने कैमरे में कैद करने की कोशिश में:






हमने सोचा, चलो हम भी लगे हाथ एक पोज दे दें. आशीष नया कैमरामैन है इसलिये थोडी डार्क आ गई है हमारी फोटो :) :





और उसके अगले दिन टोरंटो घूमा गया. फोटू वगैरह खींचे गये. चिठ्ठों के बारे में बात हुई, चिट्ठाकारी के बारे में बात हुई. लगभग हर चिट्ठाकर और चिट्ठा कवर किया गया. घर परिवार की बात हुई. आशीष की हमारे पिता जी लंबी लंबी चर्चायें हुई. बहुत मजा आया. इस बीच एक ऑनलाईन कवि सम्मेलन भी था तो उसके बहाने कवितायें भी झिलवा दीं. मजबूरीवश वो कह गये हैं कि अच्छी लगीं.

आशीष सी एन टॉवर के प्रवेश द्वार पर






कुछ फुरसत के क्षण:





एक मजेदार तथ्य: आशीष के घर का नाम पप्पू है, उसके छोटे भाई का नाम पिन्टू और बहन-महिमा. क्या संजोग है...हमारे बडे भाई पप्पू हैं, हम पिन्टू और हमारी बहन का नाम महिमा. क्या कभी कोई सोच सकता है.

दो दिन रुककर आशीष चला गया और घर सूना सूना सा हो गया. अब हम हुये रवि रतलामी के दोस्त तो पूरे समय यही जांचते परखते रहे कि बालक कैसा है? अब जाकर बड़ा संतोष हुआ कि लड़का हीरा है हीरा....रवि रतलामी जी को हीरा दामाद पाने के लिये पुनः बहुत मुबारकबाद...बस यही तो थी हमारी और आशीष की भेंट....उम्मीद करता हूँ कि वो अगली बार और हमारे पास आये अपने प्रवास के दौरान. पुनः बहुत मजा आयेगा. अब पत्नी आँख नहीं दिखा रही. वो भी तुम्हें निमंत्रण भेज रहीं है.

बाकी की दास्तान आशीष सुनायेंगे. आज तो भारत वापस भी पहुँच गये होंगे. Indli - Hindi News, Blogs, Links

गुरुवार, जून 21, 2007

कहत समीरानन्द स्वामी जी...

आज स्वामी समीरानन्द द्वारा जनहित में २३ दोहे जारी किये जा रहे हैं एक सुक्ति गान के रुप में प्रस्तुत किये जा रहे हैं. नीचे प्लेयर पर क्लिक करके आप हमारी पत्नी साधना जी की आवाज में कुछ दोहे सुन भी सकते हैं. बहुत मशक्कत के बाद उनकी आवाज मिल पाई. फुरसतिया जी और राकेश भाई के निवेदन से लेकर हमारे जुड़े हाथ उनको किसी तरह तैयार कर पाये. अब तारीफ वारिफ हो जाये तो आगे और कोशिश की जयेगी.

सुनने के लिये यहाँ क्लिक करें.

कहे समीरानन्द जी, सुन लो चतुर सुजान
जो गाये यह स्तुति , हो उसका कल्याण.

गुरुवर हमको दीजिये, अब कुछ ऐसा ज्ञान
हिन्दु-मुस्लिम न बनें, बन जायें इन्सान.

वाणी ऐसी बोलिये, हर एक कर्ण सुहाये
मिलिये ऐसे प्रेम से, मन से मन मिल जाये.

मतभेदों की बात पर, बस उतना लड़िये आप
लाठी भी साबूत रहे, और मारा जाये साँप.

पीने जब भी बैठिये, बस इतना रखिये ध्यान
सब साथी हों होश में और न ही बिगड़े शाम.

नेता जी से पूछिये, जब भी हो कुछ बात
देश तुम्हारा भी यही, क्यूँ करते आघात.

पुस्तक ऐसी बाँचिये, जिससे मिलता ज्ञान
कितना भी हो पढ़ चुके, नया हमेशा जान.

लेखन लेखन सब करें, लिखे नहीं है कोय
जब लिखने की बात हो,गाली गुफ्ता होय.

उल्टी सीधी लेखनी, एक दिन का है नाम
बदनामी बस पाओगे, नहीं मिले सम्मान.

शंख बजाने जाईये, मन्दिर में श्रीमान
यह गीतों का मंच है, बंसी देती तान.

कविता में लिख डालिये, अपने मन के भाव
जो खुद को अच्छा लगे, जग के भर दे घाव.

समीरा इस संसार का, बड़ा ही अद्भूत ढंग
वैसी ही दुनिया दिखी, जैसा चश्में का रंग.

नदियों से कुछ सिखिये, इनकी राह अनेक
सागर में जब जा मिलें, हो जाती सब एक.

ऐसा कुत्ता पालिये, जो भौंके औ गुर्राये
न काटे मेहमान को, चोर न बचने पाये.

दान धरम के नाम पर, लाखों दिये लुटवाये
क्षमादान वो दान है, जो महादान कहलाये.

गल्ती से भी सीख लो, आखिर हो इन्सान
जो गल्ती को मान लें, उनका हो सम्मान.

कौन मिला है आपसे और कितना लेंगे जान
जो कुछ भी हो लिख रहे, उसी से है पहचान

सब साथी हैं आपके, कोई न तुमसे दूर
अपनापन दिखालाईये, प्यार मिले भरपूर.

जरा सा झुक कर देखिये, सुंदर सब संसार
तन करके जो चल रहे, मिलती ठोकर चार.

मौन कभी रख लिजिये, थोड़ा कम अभिमान
जितना ज्यादा सुन सको, उतना आता ज्ञान.

बुरा कभी मत सोचिये, न करिये ऐसा काम
दिल दुखता हो गैर का, किसी का हो अपमान.

साधु संत औ’ महात्मा, सब गाते हैं दिन रात
सुक्ति समीरानन्द की , जय हो उनकी नाथ.

जो स्वामी जी कह रहे, नहीं आज की बात
जीवन का यह सार है, हरदम रखना साथ.

--जोर से बोलो-जय स्वामी समीरानन्द की


यहाँ डाउनलोड करें.

कोई भक्त पॉड कास्टिंग में मदद कर दे, तो भगवान उसका भला करे. :) Indli - Hindi News, Blogs, Links

सोमवार, जून 18, 2007

सुनो नारद, अब हम बोल रहे हैं!!

अभी थोड़ी देर पहले ही कुछ चिट्ठे पढ़ रहा था. अधिकतर पर नारद विवाद वाली गहमा गहमी थी. कुछ मेरी ही तरह के लोग कहते मिल जायेंगे कि हम ऐसे चिट्ठों पर जाते ही नहीं, उन्हें पढ़ते ही नहीं. मैं उनके संयम को नमन करता हूँ और साफ शब्दों में कहना चाहता हूँ कि मैं एक आम इंसान हूँ, भारत में पला, बढ़ा-वो ही संस्कार हैं. झगड़ा देखकर आनन्द लुटने के लोभ को एक आम भारतीय की ही तरह संवरित नहीं कर पाता हूँ. बहुत मेहनती हूँ और इसीलिये अपने अथक प्रयासों से इसमें शामिल होने से अपने को रोक पाता हूँ. थक जाता हूँ अपने आपको रोकते रोकते और सो जाता हूँ और इसीलिये युद्धकाल में जरा कम ही पोस्ट ले आ पाता हूँ. इस हेतु क्षमा का प्राथी भी हूँ और इस गहन थकान के लिये दया का भी. मगर यह मेरा निजी मामला है, इसलिये चल जा रहा है.

जब चिट्ठे पढ़ें तो हमारे जैसे टिप्पणीपीर टिप्पणियाँ न पढ़ें, यह कैसे संभव है? टिप्पणियाँ पढ़ता हूँ तो पाता हूँ कि जैसे इन सदी के महानायकों ने अपना गृहकार्य पूरा नहीं किया, बस बोलना है इसलिये बोल गये और अपनी बात को वजन देने के लिये कोई पुराने का प्रकरण का उद्धरण दे गये जैसे मोदी विवाद, गुजरात विवाद, हिन्दु-मुस्लिम बहस, मुहल्ला विवाद, अमरीका-समरीका विवाद (जिसमें सागर पुनः टंकी पर चढ़े थे), बैंगाणी बंधु विवाद, नेपकीन प्रकरण आदि आदि.जब देखता हूँ तो लगता है कि अलग अलग लोगों ने, या उन्हीं लोगों ने अलग अलग जगह उसी विवाद को अलग अलग नाम से पुकारा जिससे मुझ जैसे अल्प ज्ञानियों (यह अज्ञानी को सुसंस्कृत भाषा में कहा जाता है-और भाषा का महत्व तो अब सबको ज्ञात है ही) को समझने में बड़ी असुविधा होती है. गल्ती लिखने वालों की भी नहीं है, अब जब कभी यहाँ हुये विवादों को कोई नाम ही नहीं दिया गया तो जिसके जो मन आया वो उसे उस नाम से पुकार गया. सब का भला हो जो अपनी समझ से कुछ तो बता ही जाते हैं वरना अगर कोई लिख देता कि वो उस विवाद में नारद और आप कहाँ थे जो अब चले आये? हम तो समझ ही न पाते कि वो उस क्या और अब क्या? उस का कोई रिफरेंस नहीं और अब जिस पोस्ट पर कहा उसका अभी के विवाद से कुछ लेना देना नहीं, वो तो नारद की तकनिकी समस्या को इंगीत करती पोस्ट है.

खैर, इस बात को मैने क्यूँ उठाया और यहाँ लाकर क्यूँ रोक दिया, इस पर एक बहुत ज्ञानवर्धक जानकारी देकर फिर शुरु होते हैं.

क्या आपने कभी गौर किया है कि अटलांटिक में और पेसेफिक में जो समुन्द्री तूफान आते हैं, उनके नाम जैसे रीता, कटरीना, बिल आदि कैसे रखे जाते हैं. कौन इनको नाम देता है और कैसे देता है. दरअसल, १९५३ के पहले तक इन्हें इनके लेटिट्यूड और लोन्गीटयूड से जाना जाता था, कोई नाम नहीं. मगर इससे एक आम आदमी को समझने और इस विषय में बात करने में असहूलियत होती थी. तब १९५३ में राष्ट्रीय मौसम विभाग के समुन्द्री मौसम वैज्ञानिकों ने इनके नामकरण की प्रथा शुरु की.शुरु में जैसा की पानी के जहाज को मादा श्रेणी में रखा गया है, इन तूफानों का नामकरण भी महिलाओं के नाम से ही हुआ. इसका और एक पुख्ता कारण रहा होगा कि इन तूफानों के मूड का कुछ पता नहीं- अभी चुप बैठे हैं, एकाएक भड़के तो ऐसा कि सब तहस नहस. क्या पता कब कौन सी बात और किसकी बुरी लग जाये.

अटलांटिक महासागर के तूफानों के लिये ६ लिस्टें बनाई गईं. हर साल के लिये एक-जैसे जैसे तूफान आते गये, नाम अलग होते गये. जैसे अगर रीता २००४ की लिस्ट में है और ७ वें नम्बर पर है तो २००४ में आया ७वां तूफान रीता कहलायेगा. उसके जाने के बाद अब रीता नाम का तूफान इसके सातवें साल में ही आ सकता है, क्यूँकि अगले ६ सालों की लिस्ट तैयार है. जो ६ साल बाद फिर से शुरु होती है. हर लिस्ट में २१ नाम है. ऐसा ही कुछ पैसेफिक में आये तूफानों के लिये भी इंतजाम है. अब मान लिजिये कि एक साल २१ से ज्यादा तूफान आ गये तब क्या होगा? आम धारणा के अनुरुप क्या अगले साल की लिस्ट इस्तेमाल कर लेंगे? नहीं!! इस साल की लिस्ट इस साल के लिये और अगली अगले साल के लिये. तब ऐसे में तय पाया गया कि इस दशा में नेशनल हेरिकेन सेन्टर ग्रीक गणनावली का इस्तेमाल करते हुये उन्हे अल्फा, बीटा, गामा आदि आदि नामों से पुकारेगा.

कुछ रोचक तथ्य इस विषय में और भी है जैसे १९७९ में नारी स्वतंत्रता टाईप आंदोलनकारियों के आगे धुटने टेकते हुये इसमें पुरुष नाम भी शामिल किये गये..एक महिला फिर एक पुरुष, फिर एक महिला फिर एक पुरुष. चलो, पुनः महिलाओं की जीत हुई बहुत नमन महिला शक्ति को.

दूसरा यह कि जब कोई तूफान अत्याधिक कोहराम मचा देता है और बहुत लोग मारे जाते हैं तो उसे रिटायर कर दिया जाता है यानि वो भविष्य में फिर कभी नहीं आयेगा. जैसे कि कटरीना जिसने न्यू ऑरलिन्स में ऐसा मंजर दिखाया कि उसके लिये ऐसा अप्रिय मगर जरुरी निर्णय लेना पड़ा और उसे सेवानिवृत कर दिया गया. इस बात पर कोई विवाद की सुनवाई नहीं होगी. आप इसे तानाशाही मानें तो या लोकतांत्रिक मानें तो. वो रिटायर हो गया और अब नहीं आ सकता, बस्स!! चाहे लाख हल्ला मचा कर देख लो!! :)

और इन तूफानों को नाम देने के पहले उन्हें उष्णकटिबंधीय दबाव के कारण उठे हुये तूफान होना जरुरी है, तभी उन्हें नाम दिया जा सकता है.

तब अपनी बात आगे बढ़ाता हूँ कि क्यूँ न हम भी अपने चिट्ठाजगत में उठे विवादों को एक स्तर पर पहुँच जाने के बाद नाम देना शुरु कर दें. सब को सुविधा हो जायेगी. लोग उस नाम का लेबल अपनी पोस्ट में लगा लेंगे. सर्च भी आसान हो जायेगी. टिप्पणी में रेफर करना भी सरल. अभी टाईप के विवाद को रिटायर भी कर देंगे...सब साफ सुथरा, निर्मल और सरल. गैर तानाशाही, लोकतांत्रिक.

मैं प्रस्तावित करता हूँ कि फिल्म हिरोईनों के नाम पर इनका नामकरण किया जाये. सुन रहे हो, नारद!!!

रेखा नाम दे दें क्या इस नये वाले को-रिटायर करने की सुभीता को देखते हुये. :)

आप सबके विचार आमंत्रित हैं. :) Indli - Hindi News, Blogs, Links

शुक्रवार, जून 15, 2007

ऑनलाईन कवि सम्मेलन-१६ जून, २००७

ई कविता और 'हिन्दी सीखो' के संयोजन एवं जनप्रिय कवि श्री अशोक चक्रधर जी के मार्ग दर्शन में काव्य गोष्ठी को नया आयाम देने का अनूठा प्रयास:

ऑनलाईन कवि सम्मेलन

"दूर रह कर भी पास होने का अहसास"

दिनाँक: १६ जून, २००७ शनिवार को भारतीय समयानुसार सायं ७:३० बजे और न्यूयार्क में सुबह १० बजे (EST)



आप सब अधिक से अधिक संख्या में ऑनलाईन होकर श्री अशोक चक्रधर एवं अन्य कवियों की रचनाओं का आनन्द उठायें.

इसी अवसर पर १३ जुलाई से १५ जुलाई, २००७ तक न्यूयार्क, अमेरीका में आयोजित होने वाले

के विषय में भी विशेष जानकारी दी जायेगी.

सम्मेलन की आयोजन समिति के सदस्य आप के प्रश्नों के ज़वाब के लिये उपलब्ध होंगे

इस अनूठे कार्यक्रम में भाग लेने के लिये यहाँ क्लिक करें.

अन्य जानकारी के लिये आप मुझे या ekavita1@yahoo.com पर संपर्क कर सकते हैं. Indli - Hindi News, Blogs, Links

सोमवार, जून 11, 2007

वैसे तो मुझको पसंद नहीं

मित्रों, यह कोई कविता नहीं और न ही स्पष्टीकरण है.बस एक मजबूर का मजबूरियों का बखान है.
मजबूरी में आदमी कितना विवश हो जाता है. जो कार्य उसे नहीं पसंद, वो तक करना पड़ता है.जिस मूड़ में लिखी गई है, उसी मूड में पढ़िये और आनन्द उठाईये. इस मजबूरी में अन्तिम छंद चिट्ठाकारी को समर्पित है.





जब चाँद गगन में होता है
या तारे नभ में छाते हैं
जब मौसम की घुमड़ाई से
बादल भी पसरे जाते हैं
जब मौसम ठंडा होता है
या मुझको गर्मी लगती है
जब बारिश की ठंडी बूंदें
कुछ गीली गीली लगती हैं
तब ऐसे में बेबस होकर
मैं किसी तरह जी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.

जब मिलन कोई अनोखा हो
या प्यार में मुझको धोखा हो
जब सन्नाटे का राज यहाँ
और कुत्ता कोई भौंका हो
जब साथ सखा कुछ मिल जायें
या एकाकी मन घबराये
जब उत्सव कोई मनता हो
या मातम कहीं भी छा जाये
तब ऐसे में मैं द्रवित हुआ
रो रो कर सिसिकी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.

जब शोर गुल से सर फटता
या काटे समय नहीं कटता
जब मेरी कविता को सुनकर
खूब दाद उठाता हो श्रोता
जब भाव निकल कर आते हैं
और गीतों में ढल जाते हैं
जब उनकी धुन में बजने से
ये साज सभी घबराते हैं
तब ऐसे में मैं शरमा कर
बस होठों को सी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.

जब पंछी सारे सोते हैं
या उल्लू बाग में रोते हैं
जब फूलों की खूशबू वाले
ये हवा के झोंके होते हैं
जब बिजली गुल हो जाती है
और नींद नहीं आ पाती है
जब दूर देश की कुछ यादें
इस दिल में घर कर जाती हैं
तब ऐसे में मैं क्या करता
रख लम्बी चुप्पी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.



चिट्ठाकारी विशेष:

जब ढेरों टिप्पणी मिलती हैं
या मुश्किल उनकी गिनती है
जब कोई कहे अब मत लिखना
बस आपसे इतनी विनती है
जब माहौल कहीं गरमाता हो
या कोई मिलने आता हो
जब ब्लॉगर मीट में कोई हमें
ईमेल भेज बुलवाता हो.
तब ऐसे में मैं खुश होकर
बस प्यार की झप्पी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.


--समीर लाल 'समीर'

चित्र साभार: गुगल महाराज Indli - Hindi News, Blogs, Links

सोमवार, जून 04, 2007

इक टूटा सा संदेश

एक मेरा प्रिय मित्र कहता है कि आजकल हास्य कुछ ज्यादा हो रहा है तो दूसरा कहता है कि चलो अच्छा है लेख छोटा लिखा. यह साईज पसंद आई, न ज्यादा लम्बा न ज्यादा छोटा. अन्य कहता है कि बड़ी जल्दी खत्म हो गया. सबको पढ़ कर इत्मिनान से आपको पढ़ने आये और आप तो शुरु हुये और खत्म हो गये. जैसे मुन्ना भाई के हॉस्टल का कमरा. अब आप बताओ, क्या करें. हास्य न लिखें कि छोटा न लिखें कि लंबा न लिखें, चिट्ठों पर न लिखें. हम तो अटक से गये हैं. हमें तो साजिश नजर आ रही है कि लोग लिखवाना ही बंद करवाना चाह रहे हैं. जो करो, उसमें मीन मेख. न ये करो न वो करो. क्या लालू समझे हो कि भूसा खायें और डकारे भी न!!

अरे हमारा भी तो कुछ मन करेगा सो करेंगे. तुम कुछ सोचो. अभी समझ नहीं पाये हो हमें. हम बहुत जबरी आईटम है-आईटम गर्ल नहीं राखी सावंत टाईप. मगर जब अपनी पर उतर आयें तो उससे से भी जमकर ठूमका लगाते हैं. लो अब रोना लेकर आये हैं...मन खुश हो जायेगा तुम्हारा कि बहुत हास्य हो गया. बहुत लम्बा हो गया. चलो सब से निजात...अब पढ़ो इसे..झेलो....टिपियाना जरुर...वरना हम बुरा मानते हैं और फिर और जम कर झिलायेंगे...हाईकु लिख मारेंगे ५१ कम से कम...बंद थोड़े करेंगे लिखना...... हा हा

बुरा मानने के चक्कर में कूछ न लिखें तो लगता है कि सबसे दूर होते जा रहे हैं. तब सोचा यही लिख दें कि कुछ नहीं लिख रहे हैं. सब तो हमारी तरह सत्यवादी होते नहीं. अगर हो जायें तो आधे से ज्यादा नेता यही कहते नजर आयें कि कुछ नहीं कर रहे हैं मगर देश चलता जा रहा है.

खैर, उतना भी निकम्मापन अभी हाबी नहीं हुआ है, तो सारी टूटी कवितायें आपकी सेवा में ऊडेल देता हूँ. शायद पूरी न लगें मगर अपने संदेश पूरे दे देंगी, यह मेरा आपसे वादा है. अगर संदेश मिले तो टिपपणी करके सूचित करना :)


लाचारी

रोटी के लिए
बच्चे की जिद
और वो बेबस लाचार माँ
उसे मारती है.

वो जानती है
भूख का दर्द
मार के दर्द में
कहीं खो जायेगा.

कुछ देर को ही सही
बच्चा रोते रोते
सो जायेगा.




पलायन


गाँव की कच्ची सड़कों पर
स्वच्छंद घूमता रामू!!
तेज रफ्तार भागती
कार की चपेट में आ
अपना एक पांव गवां कर
शहर की सड़कों पर चलना
सीख गया है....

फिर सोचता है
शहर की किस बात पर
गाँव का हर बालक आज
रीझ गया है.




महत्वाकांक्षा

सीमित डोर से बंधी पतंग
सामने असीमित आसमान
मुंडेर पर चढ़
कुछ तो ऊँची हुई उड़ान...

इस चाहत का अंजाम
बैसाखियों पर
लटकता बचपन
और
चेहरे पर बेबस मुस्कान!!




दहेज

मिट्टी के तेल की लाईन में
खड़े लोगों को देख
वो डर जाती है....

दहेज की वेदी पर बलि चढ़ी
उसे अपनी बड़ी बहन
बहुत याद आती है!!



शुद्ध

गाँव के खाने से
बहुत घबराता हूँ...

शहर में रहता हूँ, न!
विशुद्ध नहीं पचा पाता हूँ!!



आरक्षण

ऊँचे अंक लाने के बाद भी
वो प्रतिक्षा सूची में
खड़ा है....

आरक्षण का तमाचा
सीधा उसके गाल पर
पड़ा है....



इंसान

इंसान
अब रोशनी से
घबराता है....

रोशनी में
चेहरा जो साफ
नजर आता है....



कवितायें

देख कर हालत जहां की
संवेदनायें सब
सो गई हैं

और मेरे दिल से उठती
कवितायें अब
खो गई हैं.


--समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links