सफ़हा दर सफ़हा
लम्हा दर लम्हा
बरस दर बरस
दर्ज होता रहा
किताब में मेरे दिल की
तुम्हारे मेरे साथ की
यादों का सफर
और मैं
अपने दायित्वों का निर्वहन करता
चलता रहा इस जीवन डगर पर
लादे उस किताब को अपनी पुश्त पर...
कि कभी फुरसत में
मुस्करा लूँगा फिर
पढ़ कर उन यादों को
किश्त दर किश्त
आहिस्ता आहिस्ता!!
-समीर लाल ’समीर’