शनिवार, अगस्त 26, 2017

भ्रष्ट वो जिसकी कलई खुल गई है..

सबसे पहले उनसे क्षमायाचना जो सचमुच के बाबा हैं. वो इस आलेख के सिलेबस में नहीं हैं. वैसे इतना कहकर अगर इनसे हाथ खड़े करवाये जायें कि बताओ कौन कौन इसके सिलेबस में नहीं हैं तो सभी बाबा हाथ खड़े कर देंगे मगर अगर इनके कर्मों से हाथ उठवाया जाये तो सारे सिलेबस में ही नजर आयेंगे. तो सचमुच के बाबाओं को छोड़ कर बाकी के बचे बाबा दो प्रकार के होते हैं. एक तो वो जिनका पर्दाफाश हो चुका है और दूसरे वो जिनका पर्दाफाश अभी नहीं हुआ है. ठीक वैसे ही जैसे हम नेताओं और अधिकारियों को भ्रष्ट और ईमानदार की श्रेणी में रखते हैं, यहाँ भी सिलेबस के बाहर वाले अपवाद हो सकते हैं, मगर फिर भी, भ्रष्ट वो जिसकी कलई खुल गई है और ईमानदार वह जिसके भ्रष्टाचार के कारनामें अब तक उजागर नहीं हुए हैं. वैसे तो अमूमन देखने में आता है कि बहुतेरे ईमानदार हैं ही इसलिए क्यूँकि उनको बेईमानी का मौका ही नहीं मिला है अब तक. मौका मिले और फिर भी भ्रष्ट न हो तो वह निश्चित ही श्रद्धा का पात्र है और उनके चरणों में मेरा वंदन. लेकिन ऐसे चरण मिलते कहाँ हैं? बचपन में हमारे मोहल्ले में गुल्ली डंडा और कंचे खेलने वाली मंडली में दो लड़के थे. तब नटखट टाईप. उनके रहने से हम अन्य मित्रों को बड़ी सेफ सी फीलिंग रहती थी. एक राजू और एक गप्पू. ये उनका प्यार वाला नाम था. असली नाम नहीं लिख रहे हैं वरना आप दोनों को पहचान जाओगे. साथ खेलते खेलते बड़े हुए. ८ वीं तक साथ पढ़े. फिर वो दोनों फेल होते रहे और पीछे छूट गये और बाद में पता चला कि कुछ बरस कोशिश करने के बाद पढ़ाई से ही पीछा छुड़ा लिया दोनों ने. साथ फेल होते थे, तो साथ भी ज्यादा रहता और दोनों घनिष्टतम मित्र हो गये. पढ़ाई छूटी तो खाली रहने लगे. दिन भर मोहल्ले के नुक्कड़ पर बैठे लड़कियां छेड़ने और मोहल्ले की लड़कियों को छेड़ने वालों को पीटने जैसे छुटपुट वीर कर्मों से प्रमोट होते हुए बड़े होते होते मकानों से कब्जा खाली करवाने से लेकर मकानों पर कब्जा करने तक के महान कार्यों में दोनों लिप्त हो गये. एकाएक किसी बड़े केस में फंस कर दोनों ने सामूहिक जेल यात्रा की और अपने कद में इजाफा पाया. कुछ बरस में छूट कर जब आये तो राजू मोहल्ले में रुक गये और गप्पू गायब हो गये. कोई कहता कि मन बदल गया है और देशाटन पर चले गये हैं, तो कोई कहता कि जेल में बहुत ऊँची सेटिंग हो गई है और एक डॉन का बैंकाक का दफ्तर संभालेंगे. कोई कहता हिमालय का रुख कर लिया है जितने मूँह उतनी बातें. राजू मोहल्ले में ही रुक गये थे और उसके बाद एक एक कर के कई कांडों में कई बार जेल यात्रा करते करते पहले नेताओं की आँखों के सितारे बने फिर मोहल्ले के विधायक की आँख की किरकिरी. यूँ वो खुद ही विधायक हो लिए. जिसने जुर्म की दुनिया में जुर्म की गली से निकल कर जुर्म के राजमार्ग पर सफर किया हो उसके लिए राजनिती का राजमार्ग पकड़ लेना वैसा ही है जैसे दिल्ली में गाड़ी चला चुका बन्दा भला न्यूयार्क में गाड़ी चलाने में घबरायेगा क्या? बस, जरा से नियम ही तो बदलते हैं उल्टे हाथ के बदले सीधे हाथ चलाने लगो. अतः देखते देखते ही राजू सांसद होते हुए केन्द्रीय मंत्री हो गये और वो भी केन्द्र बिन्दु वाले मंत्रालय के. उन्हीं के शपथ ग्रहण समारोह में टीवी पर एकाएक गप्पू नजर आये. बाबा जी के भेष में. पता चला कि करोड़ों भक्त हैं दूर प्रान्त और उसके आसपास के प्रान्तों में. घर की मुर्गी दाल बराबर का मुहावरा वह जानते थे अतः घर से दूर मुकाम बनाया. पता चला कि लोगों को मोह माया से दूर रहने, सीमित साधनों में जीवन जीने, सादा भोजन उच्च विचार की शिक्षा देते देते खुद उन्हीं भक्तों के धन से ऐसे धनाठय हुए कि एक पूरा एम्पायर खड़ा कर लिया. जाने कितने प्रोडक्ट बाजार में आ गये और बाबा अरबपतियों को अपना भक्त बना कर अरबों से मोह माया छुड़वा कर अपने कब्जे में लेते खुद अरबपति बन बैठे. किसी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि बाबा के चलते ही राजू को यह पद मिला है. दोनों आज भी गुप्त मुलाकातें करते हैं और साथ साथ जाम छलकाते हैं और कबाब शबाब का दौर चलता है जिसमें उन दोनों के सिवाय कोई और नहीं होता. एक दूसरे के पूरक कभी किसी तीसरे को शामिल नहीं करते. राजू ने गप्पू को जेड सिक्यूरिटी दिलवा दी और गप्पू ने राजू वोट एवं सपोर्ट की सिक्यूरिटी. गप्पू बाबा (फिर से सही नाम नहीं बता रहे हैं वरना आप पहचान जाओगे) अब बड़े वाले वो बाबा हो लिए हैं जो अभी इस आलेख के सिलेबस के बाहर हैं और उसी तर्ज पर राजू ईमानदार हैं. दोनों एक दूसरे को सिलेबस से बाहर रखने के लिए पुरजोर ताकत झोंकते रहते हैं. मित्र तो हमारे भी है दोनों आज तक. बचपन की दोस्ती कहाँ छूटती है? भले मेलजोल न रहा पर दोस्ती निभाने में आज भी पीछे नहीं रहते हैं दोनों. टेबल के नीचे और पर्दे के पीछे वाले काम वगैरह बोल दें तो करा भी देते हैं अतः चुपचाप में हमें वे अच्छे भी लगते हैं. पिछली बार भारत यात्रा में मुलाकात हुई थी तो पुराने दिन याद किये गये कुछ जाम छलकाते राजू के फार्म हाऊस पर. ऐसे माहौल में शायद दोनों के अलावा तीसरा कभी कोई और रहा हो तो मैं ही रहा हूँगा. विदेश में रहता हूं, यह बचपन के दोस्त से ऊपर मेरी एक और पात्रता है. लोकल को वो अब ज्यादा मूँह नहीं लगाते, पी कर बता रहे थे. लोकल मूँह मार देते हैं बाजार में. दोनों हँस रहे थे कि पढ़ लिख कर ये क्या हाल बना लिया भाई मेरे विदेश में बस कर..अब भी आ जाओ, कुछ न कुछ ठीक ठाक इससे बेहतर करवा ही देंगे. आज भी हो हो गूँजती है दोनों की कान में. फोन पर भी हँसते हैं जब जब बात होती है और मैं सोचता हूँ कि अच्छा है जब तक पर्दा न उठे वरना सारा देश हो हो करेगा...आज एक बाबा पर कर ही रहा है.. रेडिओ पर गाना बज रहा है: यार हमारी बात सुनो, ऐसा एक इन्सान चुनो जिसने पाप न किया हो, जो पापी न हो.. -समीर लाल ’समीर’

भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के अगस्त २६, २०१७ में प्रकाशित

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रविवार, अगस्त 20, 2017

अमरीका में रहना विज्ञान और भारत में रहना कला

आज जुगलबंदी का विषय ’हवा’ था. हवा जब आक्सीजन सिलेंडर से हवा हो जाती है तब गोरखपुर जैसी हृदय विदारक घटना घटित होती है जिसमें ६२ बच्चे अपनी जान से हाथ धो बैठेते हैं और कारण पता चलता है कि सिलेंडर सप्लाई करने वाली कम्पनी को पेमेंट नहीं किया गया था अतः सिलेंडर भरे नहीं गये. ऐसे में जब पेमेंट के आभाव में सिलेंडर से हवा गायब हो सकती है तो हमें ही लिखने के कौन से पैसे मिले जा रहे हैं.. जो हवा विषय पर लिखते वक्त हमारे आलेख से हवा गायब न हो सके..कम से कम यहाँ हवा गायब होने से किसी बच्चे की जान तो नहीं जायेगी और जुगलबंदी में शिरकत की रस्म अदायगी भी हो जायेगी.

अमरीका में रहना अलग बात है और भारत में रहना अलग

अमरीका जैसे देशों में रहना एक विज्ञान है, यहाँ रहने के अपने घोषित और स्थापित तरीके है, जो सीखे जा सकते हैं ठीक उसी तरह जैसे कि विज्ञान की कोई सी भी अन्य बातें- किताबों से या ज्ञानियों से जानकर. कैसे उठना है, कैसे बैठना है, कैसे सोना है, कैसे बिजली का स्विच उल्टा ऑन करना है, कब क्या करना है, सड़क पर किस तरफ चलना है- सब तय है.
मगर भारत में रहना- ओह!! यह एक कला है. इस हेतु आपका कलाकार होना आवश्यक है. और कलाकार बनते नहीं, पैदा होते हैं.
भारत में रह पाना, वो भी हर हाल में खुशी खुशी- इस कला को कोई सिखा नहीं सकता- इसे कोई सीख नहीं सकता. यह जन्मजात गुण है- वरदान है.
बिजली अगर चली जाये तो- दुनिया के किसी भी देश के वाशिंदे बिजली के दफ्तर में फोन करके पता करते हैं कि क्या समस्या है?.... बस भारत एक ऐसा देश है जहाँ..घर से निकल कर ये देखते हैं कि पड़ोसी के घर भी गई है या नहीं? अगर पड़ोसी की भी गई है तो सब सही- जब उनकी आयेगी तो अपनी भी आ जायेगी..इसमें चिन्ता क्या करना!! फोन तो पड़ोसी करेगा ही बिजली के दफ्तर में.
ऐसी मानसिकता पैदा नहीं की जा सकती सिखा कर- यह बस पैदाईशी ही हो सकती है!!
भारत में हम सभी पैदा एक कलाकार हुए हैं. अभ्यास से कला को मात्र तराशा जा सकता है. गुरु अभ्यास करा सकता है मगर कला का बीज यदि आपके भीतर जन्मजात नहीं है तो गुरु लाख सर पटक ले, कुछ नहीं हासिल होगा. यूँ भी सभी अपने आप में गुरु हैं तो कोई दूसरा गुरु कौन और क्या सिखायेगा?
होनहार बिरवान के, होत चीकने पात...
कितनी सटीक बैठती है हम कलाकारों पर..भारत में रहने की कला हर वहाँ पैदा होने वाले बच्चे के चेहरे पर देखी जा सकती है बिल्कुल चीकने पात सा चेहरा. पैदा होते ही फिट- धूल, मिट्टी, गरमी, पसीना, मच्छर, बारिश, कीचड़, हार्न भौंपूं की आवाजें, भीड़ भड्ड़क्का, डाक्टर के यहाँ मारा मारी और इन सबके बीच चल निकलती है जीवन की गाड़ी मुस्कराते हुए. हँसते खेलते हर विषमताओं के बीच प्रसन्न, मस्त मना- एक भारतीय.
फिर तो दुश्वारियों की एक लम्बी फेहरिस्त हैनित प्रति दिन-स्कूल के एडमीशन से लेकर कालेज में रिजर्वेशन तक, नौकरी में रिकमन्डेशन से लेकर विभागीय प्रमोशन तक, अपनी सुलझे किसी तरह तो उसी ट्रेक में फिर अगली पुश्त खड़ी नजर आये और फिर उसे उसी तरह सुलझाओ जैसे कभी आपके माँ बाप ने आपके लिए सुलझाया था- चैन मिनट भर को नहीं फिर भी प्रसन्न. हँसते मुस्कराते, चाय पीते, समोसा- पान खाते, सामने वाले की खिल्ली उड़ाते हम. ऐसे कलाकार कि भगवान भी भारतीयों को देखकर सोचता होगा- अरे, ये मैने क्या बना दिया?
आप खुद सोच कर देखें कि कला और कलाकारी की चरमावस्था- जो मेहनत कर पढ़ लिख कर तैयार होते हैं वो सरकारी नौकरी करते हैं और जो बिना पढे लिखे किसी काबिल नहीं वो उन पर राज करते हैं. यही पढ़े लिखे लोग उन्हें चुन कर अपना नेता बनाते हैं और बात बात में उनसे मुँह की खाते हैं फिर भी हे हे कर मुस्कराते हुए उनकी ही जी हुजूरी बजाते हैं.
इस कलाकारी को मानने मनवाने के चक्कर में विज्ञान तो न जाने कहाँ रह गया बातचीत में. तभी शायद कहा गया होगा कि एक कलाकार को तो वैज्ञानिक बनाया जा सकता है, पढ़ा लिखा कर, सिखा कर- बनाया क्या जा सकता है, बनाया जा ही रहा है हर दिन- भर भर हवाई जहाज भारत से आकर अमरीका में सफलतापूर्वक बस ही रहे हैं. मगर एक वैज्ञानिक को जिसमें कला के बीज जन्मजात न हो, कलाकार नहीं बनाया जा सकता. कहाँ दिखता है अमरीका का जन्मा गोरा बन्दा भारत जाकर बसते?
-समीर लाल समीर
भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के अगस्त २०, २०१७ में प्रकाशित

http://epaper.subahsavere.news/c/21463059

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शनिवार, अगस्त 12, 2017

छेड़छाड़ से छेड़छाड़- ये तो ठीक बात नहीं है जी...


हम हिन्दुतानी अति ज्ञानी...जिसकी भद्द न उतार दें बस कम जानिये.
साधारण सा शब्द है खाना’...संज्ञा के हिसाब से देखो तो भोजन और क्रिया के हिसाब से देखो तो भोजन करना...मगर इस शब्द की किस किस तरह भद्द उतारी गई है जैसे कि माथा खाना, रुपया खाना, लातें खाना से लेकर अपने मूँह की खाना तक सब इसी में शामिल हो गया.
ऐसे में जब आजकल की गर्मागरम चर्चा छेड़छाड़ पर बात चली तो इसके भी अजीबो गरीब इस्तेमाल देखने को मिले.
छेड़छाड़ यूँ तो अनादि काल से हमारी संस्कृति का हिस्सा रही है. कृष्ण जी की रासलीला, गोपियों के संग छेड़छाड़  के प्रसंग हम भक्ति भाव से हमेशा ही पढ़ते और सुनते आए हैं. सहेलियों में आपस में छेड़छाड़ से लेकर जीजा साली की छेड़छाड़ हमेशा ही एक स्वस्थ एवं सुखद मनोरंजन का साधन होते हैं. इससे रिश्तो में एक प्रगाढ़ता और अपनेपन का एहसास पैदा होता है.
कभी प्रेमिका की लटों से हवा की छेड़छाड़ पर पूरे के पूरे गीत लिखे और गाये जाते थे.
फिर वक्त के साथ साथ बदलती मानसिकता के चलते छेड़छाड़ शब्द सुनते ही ख्याल आता था कि जरुर किसी लड़के ने लड़की के साथ छेड़छाड़ की होगी. मगर फिर अति ज्ञान का सागर कुछ ऐसा बहा कि छेड़छाड़ से ही बहुत छेड़छाड़ कर गया मानो हाल ही मुंबई में एक आम आदमी द्वारा पुलिस वाले को कई थप्पड़ मारे गये जैसी कोई घटना हो. जिस शब्द का काम ही छेड़छाड़ दर्शाना था, उसी से छेड़छाड़ हो गई.
कायदे से यह शब्द सबसे ज्यादा लड़कियों द्वारा अपने उपर हो रही छींटाकसी को बताने के लिए होना चाहिये था कि फलाने लड़के ने मेरे साथ छेड़छाड़ की मगर देखने में आ रहा है कि लड़कियाँ तो आज के जमाने की अपने उपर हो रही छेड़छाड़ से खुद ही निपटने में सक्षम हो ली हैं और यह शब्द उनसे ज्यादा दूसरों के काम आ रहा है. न न!! आप यह न समझे कि अब लड़के इसे अपने आपको लड़कियों के द्वारा छेड़े जाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.
दरअसल नेतागण इसका इस्तेमाल अपने ओहदे के मद में आकर अपने द्वारा दिये गये ऊलजलूल बयानों से, जब बात का बतंगड़ बन जाता है, तब बचाव करने के लिए करते नित नजर आते हैं. हर उल्टे सीधे बयान से बचने के लिए उनके पास सबसे मुफीद उपाय होता है कि एक और बयान दे डालें कि मीडिया ने मेरे बयान के साथ छेड़छाड़ कर उसे तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया है.
हालात तो ये हैं कि जब इन नेताओं का आम छेड़छाड़ की चरम का एमएमएस बन कर आम जनता के बीच सेक्स सीडी के रुप में आ जाता है तब भी यह ललकारते हुए कहते हैं कि सीडी से छेड़छाड़ की गई है. यह डॉक्टर्ड है. इन्हीं लोगों से मुझे यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि छेड़छाड़ को अंग्रेजी में डाक्टर्ड भी कहते हैं.
ऐसे ऐसे नेता जो आम जनता को भड़काते नहीं थकते थे कि जब कोई रिश्वत मांगे तो मना मत करना, दे देना जी और उसकी रिकार्डिंग करके हमें भिजवा देना, हम उसको तुरंत जेल भिजवायेंगे, उन्हीं के लोग जब खुद रिश्वत लेते हुए या सौदेबाजी करते हुए रिकार्ड हो जाते हैं तो कहते हैं कि यह रिकार्डिंग गलत है और इससे छेड़छाड़ की गई है.
कभी तथ्यों से, तो कभी बयानों से, तो कभी मंत्री के लड़के के द्वारा लड़की को छेडे जाने वाले सीसीटीवी के फुटेज से छेड़छाड़ का सिलसिला इतना बढ़ गया है कि छेड़छाड़ शब्द खुद ही यह भूल गया है कि वो दरअसल किसी लड़के द्वारा किसी लड़की को छेडे  जाने के लिए बना था.
यूं भी आजकल ऐसी छेड़छाड़ का जमाना भी नहीं रहा जिसमें राह चलते किसी लड़की को कोई लड़का कुछ बोल बाल कर छेड़छाड़ कर दे. जहाँ से खबर आती है सीधे रेप की ही आती है..छेड़छाड़ वाली बातें अब नहीं होतीं. छेड़छाड़ की रिपोर्ट अगर पुलिस में लिखवाने जाओ तो लगेगा कि जैसे ऎके ४७ के जमाने में देशी तमंचे से कहीं पर आतंकवादी हमला हो गया हो और उसकी रिपोर्ट लिखी जा रही हो.
बदले जमाने में अब छेड़छाड़ की रिपोर्ट लिखवाने के लिए थाने नहीं जाना पड़ता, पुलिस खुद तलाश में रहती है कि एंटी रोमियो कानून में किसी घटना को कैसे छेड़छाड़ का नाम देकर बुक कर लिया जाये ताकि साहेब को एक आंकड़ा दिया जा सके कि इतनी छेड़छाड़ की घटनायें रोक दीं. छेड़छाड़ का केस दर्ज करने के लिए आवश्यक सामग्री एक लड़का और एक लड़की का साथ में मिल जाना बस पूरे केस को मुकम्मल कर देता है फिर लड़की लाख दुहाई दे कि मैं तो इसकी बहन हूँ और इसके साथ बाजार जा रही थी.
छेड़छाड़ के खिलाफ लाये गये एंटी रोमियो एक्ट से साथ पुलिस और एंटी रोमियो स्काव्यड ने जिस तरह से छेड़छाड़ की है कि छेड़छाड़ भी शर्मिंदा होकर कह रही है कि अब बस भी करो कितनी छेड़छाड़ करोगे मेरे साथ?
-समीर लाल समीर
भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के अगस्त १३, २०१७ में प्रकाशित

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शनिवार, अगस्त 05, 2017

अफवाह उड़ाओ तो ऐसी कि पकड़ न आये

अपने दिल की किसी हसरत का पता देते हैं
मेरे बारे में जो अफवाह उड़ा देते हैं...
कृष्ण बिहारी नूर को यह शेर कहते सुनता हूँ, तो मन में ख्याल आता है कि अफवाह वह अनोखा सच है जो तब तक सच रहता है जब तक झूठ न साबित हो जाये. जब से यह विचार मन में आया है तब से एकाएक दार्शनिक सा हो जाने की सी फीलिंग आने लग गई है. लगता है कि हम कोई बाबा से हो गये हैं और खूब सारी जनता हमें बैठ कर सुन रही है. अब जनता तो कहाँ से लाते तो लिख दे रहे हैं यह मानते हुए कि खूब सारे लोग पढ़ेंगे और हमारे कहे का लोहा मानेंगे.
बस यही सुनने वाले जब कहने वाले की बात का लोहा मानने लगते हैं तो वो कहने वाला ऐसी अफवाह उड़ाने की मान्यता प्राप्त कर लेता है जो इतनी दूर तक फैल जाती है कि उसको समेटते समेटते ही इतना वक्त लग जाता है कि उसके झूठ साबित होने का जब तक समय आये, तब तक दो और नई अफवाहें हवा में तैरने लगती हैं. ऐसा ही लोहा मनवा कर मीडिया और नेता दोनों अपना उल्लु सीधा करने के लिए नित नई अफवाह उड़ा देते हैं और आमजन उसी में उलझे अपनी जिन्दगी बसर करता रहता हैं. पता ही नहीं चल पाता कि क्या सच है और क्या झूठ है?
वैसे एक अचूक तरीका, जनहित में बताता चलूँ..जैसे बाबा लोग सलाह देते हैं वैसा ही..जब कभी आपको यह जानना हो कि बात अफवाह है या सच तो बस इतना ख्याल रखें..जो उड़ रही हो वो अफवाह और जो अपरिवर्तित थमा हो वह सत्य..कहते हैं न कि अफवाह उड़ा दी है और यह भी कि सत्य अटल है. हमें हिंट ही तो देना था बाकी तो आप ज्ञानी हैं ही अतः इस हिंट के आधार पर भेद कर ही लेंगे...जब हिंट के आधार पर जीवन जीने की कला सीख लेते है श्री श्री से आर्ट ऑफ लिविंग में तो यह तो कुछ भी नहीं.
कई बार तो क्या, अक्सर पता भी होता है कि बात झूठ है मगर जैसा कहा गया है एक ही झूठ को बार बार बोला जाये और जोर जोर से बोला जाये तो वह सच लगने लगता है. उसी का सब फायदा उठाये चले जा रहे हैं.
कुछ इसी तरह के उदाहरण देखता हूं जैसे कि एक अफवाह है कि नोट बन्दी से सारे भारत की जनता खुश है..देखिये सब हमको ही वोट दिये जा रहे हैं और कह रहे हैं कि आपने ठीक किया. अब इसमें सच क्या तलाशें? वाकई वोट दिया लोगों ने कि इवीएम वाली अफवाह सच है..या नोटबन्दी से जनता खुश है और सारा काला धन वापस आ गया और वो भी इत्ता सारा कि ९ महिने गुजरने को हैं और अभी तक नोटों की गिनती चलती ही जा रही है. इसमें नोट गिनने की मशीनों से लेकर ब्रान्च से मुख्य बैंक तक रकम भेजे जाने की एकाउन्टिंग पर प्रश्न चिन्ह लगने के बावजूद... इस अफवाह पर मुहर लगाने वाला भी सबसे बड़े बैंक का प्रमुख ही है..अगर वही अफवाह उड़ायेगा तो सच कौन बतलायेगा की तर्ज पर इस अफवाह को भी झूठ साबित करने का मन ही नहीं करता.
अब एक अफवाह हाल में यूं उड़ रही कि कोई चोटीकटवा है जो महिलाओं की चोटी काट कर ले जाता है.अव्वल तो अब पुरुष चोटी रखते नहीं तो चोटीकटवा की मजबूरी है कि महिलाओं की चोटी काटे..अतः इसे महिलाओं पर हमला नहीं मानना चाहिये..कि उन्हें कमजोर समझा गया...यह मात्र चोटी पर हमला है..उस पर से महिलायें भी ज्यादती करती हैं....शहर में अक्सर चोटी रखने से गुरेज करने लगी हैं तो बिहार के गाँवों की महिलाओं पर चोटीकटवा का कहर जायज ही है..जहाँ चोटी मिलेगी वहीं न जायेगा..इसमें दलित महिलाओं पर हमले वाली बात कहाँ से आ गई? हालांकि वो चोटी काट क्यूँ रहा है..इससे किसी को कुछ लेना देना दिख नहीं रहा है..बस, आज यहाँ कहर..कल वहाँ कहर ..दलित महिला पर कहर पर बहस जारी है!!
खैर..बहुत हल्ला हो लिया इस अफवाह का भी..कल परसों तो कोई नई अफवाह लाना प़ड़ेगी वरना यह झूठ न साबित हो जाये...
अफवाह का विलुप्त हो जाना ही उसकी खूबी है..जो अफवाह झूठ साबित हो जाये वो अफवाह उड़ाने वाले की नाकामी है...न कि अफवाह की.
पहले अपने अंदर वो काबिलियत पैदा करो कि अफवाह उड़ाओ तो ऐसी उड़े कि पकड़ न आये वरना कृप्या इस खेल से बाहर रहो...
इतना तो होश रखो...कि कहीं तुम्हारे कारण अफवाह अपनी उड़ान न रोक दे किसी रोज!!

-समीर लाल समीर
भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के रविवार ६ अगस्त के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/21130031

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