मत कहो आकाश
कोहरा घना है,
यह किसी की
व्यक्तिगत आलोचना है.
दुश्यंत कुमार ने
यह पंक्तियां जिससे भी कहीं होंगी या जिसके लिए भी लिखी होंगी, उसने मानी कि नहीं मानी यह तो पता नहीं..मगर हमसे तो जो भी कहता है हम मान लेते हैं
तुरंत.
बीबी पूछती है कि
कैसी दिख रही हूँ? तब कोहरे की
क्या मजाल कि हम यह कहें कि बहुत कोहरा है ठीक से देख नहीं पा रहे. कोहरा तो कोहरा...मुझे तो लगता है
कोई अंधा भी यह हिम्मत न जुटा पायेगा अपनी बीबी से कहने की कि अंधा हूँ इसलिए नहीं
बता पाऊँगा कि कैसी दिख रही हो. इस प्रश्न का एक ही जबाब होता है जो हर शादी शुदा जानता है कि बहुत सुन्दर दिख
रही हो. बीबी हमेशा पलट कर बोलती है कि क्या सच में? और आप इस बार बस
चुपचाप मुस्करा देते हैं जिसे बीबी हामी मान लेती है आपकी.
खैर जो भी हो मगर
दुश्यंत की इन पंक्तियों का इस्तेमाल हमारे देश में बेजा हुआ है. हम इन्सानों ने
इसे सुरक्षा कवच मंत्र की तरह से इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है. जैसे ही लगता है
कि अब काम गड़बड़ा गया है, अब शायद लतियाये जायेंगे ..आलोचना भी जुबान से लतियाये जाना ही है, तब तुरंत यह मंत्र पढ़ने लगते हैं कि मत कहो
आकाश में कोहरा घना है. अगर दुश्यंत भी यह जानते होते कि इसका इस्तेमाल इस काम के लिए इस हद तो होगा तब
वे शायद इसे लिखते ही न!!
गल्ति पर गल्ति
करते रहें...मगर उनसे कोई कुछ कहो मत. करने दो उन्हें
उनके मन की. खुद से हवाई
जहाज उड़ाने में देर हो जाये इसी कोहरे के चलते तो सही मगर हम कह दें कि भई, विमान इतनी देर
से उड़ा क्य़ूँ नहीं..क्या कोहरा बहुत घना है तो वही आदतन..ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है...
नेताओं के लिए तो
यह सबसे जबरदस्त और सफल मंत्र रहा है. पूरा देश इनकी हरकतों से निराश हो जाये. कहीं कोई राह न
सूझे. कोई भविष्य न नजर आये. सब तरफ वाकई धुँधला धुँधला सा ही दिखे. जिन्दगी रुक सी जाये.. न कोई साफ प्लान, न कोई साफ
उपल्ब्धियाँ..ये नेता खुद भी जानते हैं कि आमजन को कुछ नजर नहीं आ रहा..जितने वादे किये
थे वो तो वैसे भी हवाई फायर ही थे..अब क्या जबाब दें..तो इसके पहले की जनता आलोचना पर उतरे..ये खुद ही शुरु हो जाते हैं कि मत कहो आकाश में...
आये दिन ये लोग
ऐसा कुछ वादा कर जाते हैं जो पूरा तो कर नहीं पाते और टोको तो कहेंगे कि मत कहो
आकाश में कोहरा घना है..चलो, नहीं कहते. मगर कुछ साफ साफ तो दिखा भी नहीं पा रहे हो. हम मान लेते हैं कि हमारी आँख में ही मोतिया बिंद
हो गया होगा. शायद कोई चुटुर
मुटर आँख में गिर गया होगा मगर साफ साफ तो कोई भी नहीं देख पा रहा है. रोज चिल्लाते हो विकास विकास विकास..और जब कोई पूछे
कि दिखाओ तो बस्स!! हजार बातें हैं सुनाने के लिए मगर दिखाने को कुछ नहीं..जो हिम्मत करके
कह दे उसे तुम डांट देते हो कि मत कहो...वो तुम्हारी डांट न सुने और सच सच बोल दे तो कहते हो कि यह किसी की व्यक्तिगत
आलोचना है. किसी की क्या
तुम्हारी ही है आलोचना..काहे नहीं मान
लेते कि जो कहे थे वो दिखा नहीं पा रहे. न अच्छे दिन दिख रहे न भ्रष्टाचार मुक्त डिजिटल इंडिया.
आलोचना झेल न
पाये तो सच बोलने वाले को ही देशद्रोही करार कर दिया. इससे बेहतर तो यह रहे कि कह दें हमने कोहरे
वाले अच्छे दिन बतलाये थे वरना तो तुम्हारी किस्मत में अंधेरा तय था. अँधेरे से अच्छा
तो कोहरा है न!! है कि नहीं?
लेकिन अभी बाहर
झांक कर देखा तो वाकई आज कोहरा बहुत घना है मगर यह हमारी आदत ही नहीं है कि किसी
की आलोचना करें. हम हिन्दुस्तानी हैं ..हर हाल से समझौता कर उसे अपनी नियति मान लेते हैं. हम भला क्या
आलोचना करेंगे किसी की..हमें आदत है कोहरा छँटने तक इन्तजार करने की..हमारे लिए
इन्तजार से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं...
हमारी जिन्दगी का
सफर इन्तजार में ही गुजरता है और गुजरता रहेगा...आप निश्चिंत रहें..हम नहीं करेंगे
आपकी आलोचना चाहे कोहरा कितना भी घना क्यूँ न हो!!
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के दैनिक
सुबह सवेरे में रविवार जनवरी ७, २०१८ को प्रकाशित:
http://epaper.subahsavere.news/c/25170349
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1 टिप्पणी:
बहुत ही सटीक बात दुष्यंतजी के माध्यम से।
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