पहले की तरह ही, पिछले दिनों विल्स कार्ड भाग १ , भाग २ , भाग ३ ,भाग ४ और भाग ५ को सभी पाठकों का बहुत स्नेह मिला और बहुतों की फरमाईश पर यह श्रृंख्ला आगे बढ़ा रहा हूँ. (जिन्होंने पिछले भाग न पढ़े हों उनके लिए: याद है मुझे सालों पहले, जब मैं बम्बई में रहा करता था, तब मैं विल्स नेवीकट सिगरेट पीता था. जब पैकेट खत्म होता तो उसे करीने से खोलकर उसके भीतर के सफेद हिस्से पर कुछ लिखना मुझे बहुत भाता था. उन्हें मैं विल्स कार्ड कह कर पुकारता......) |
कल शाम खिड़की के बाहर नजर पड़ी तो देखा कि आसमान एकदम पास तक उतर आया है. हाथ बढ़ा कर जितना मन चाहे तारे तोड़ लूँ और अपने पास रख लूँ.
हाथ बढ़ा कर कुछ तोड़े भी, मगर हाथ कुछ नहीं आया. बस वो आसमान के संग ही चमकते हैं. समेटो तो कुछ हाथ नहीं लगता. उन्हें देखना, अहसासना, उनकी सुन्दरता का लुत्फ उठाना-बस इतना ही है हमारे लिए. वो जहाँ हैं वहीं के लिए हैं. वहीं से अच्छे हैं-एक खुशनुमा अहसास देते. पास लाने की और समेट लेने की कोशिश में अहसास भी जाता रहेगा. बस फिर एक अंधेरा बच रहेगा.
कितना स्वाभाव एक सा है इन सितारों का और मेरी पुरानी गठरी में टंके उन यादों के सलमों का. जब जब समेटने की कोशिश करता हूँ, पास बुलाता हूँ. हाथ कुछ नहीं लगता. हाँ, एक खालीपन का नया अहसास और पा लेता हूँ.किस काम का है ऐसा खालीपन-वैसे ही जैसा बिना सितारों वाला घुप्प काला आसमान.
उन्हीं यादों में वो यादें भी शामिल हैं जो चन्द विल्स सिगरेट की खाली डिब्बियों से बने कार्डों पर शब्द रुप में अंकित हैं. जिन्हें मैं प्यार से विल्स कार्ड बुलाता हूँ. किन्तु अंकन तो बस एक दस्तावेज है बिल्कुल वैसा ही जैसे यह सब यादें मानस पटल पर दर्ज हैं झिलमिल झिलमिल सी.
दस्तावेज पलटता हूँ..मानस पटल पर टटोल कर देखता हूँ, एक सुखद अहसास होता है. मुस्कराता हूँ और फिर लौट आता हूँ अपने उस आज में जो कल फिर खुशनुमा यादों का हिस्सा बनेगा. शायद यही तरीका भी है जिन्दगी जीने का और उन खुशनुमा अहसासों को खुशनुमा रखने का.
आज फिर ऐसे ही कुछ दस्तावेज..ऐसे ही कुछ पलों की यादें, जब इन्हें न जाने क्या सोचते और न जाने किन स्थितियों में बम्बई की मायानगरी के उस हॉस्टल के रुम मेटों की भीड़ से भरे वीरान कमरे के किसी कोने में बैठ दर्ज किया था. तब से अब तक के जिन्दगी के एक लम्बे सफर के बाद भी ये यादें वहीं खड़ी हैं और अक्सर अपने नजदीक होने का अहसास, हाँ सुखद एहसास दिलाती हुई झिलमिलाती हैं.
~१~
जब घर में
भीड़ भाड़ थी
हर तरफ कोलाहल
मैं खोजता था
एक कोना...
जहाँ सन्नाटा हो..
कोई आवाज नहीं..
बस मैं और मेरी सोच..
कुछ कोशिश के बाद
मिल भी जाता था
मुझे एक कोना ऐसा..
आज जब घर में
सिर्फ सन्नाटा है
और मैं खोज रहा हूँ
कोलाहल...
कुछ भीड़ भाड़..
बहुत कोशिश कर
हार जाता हूँ मैं
नहीं मिलता
मुझे कोई कोना ऐसा...
कैसी विडंबना है यह!!
क्या यही जीवन है??
~२~
सब को खुश रखने की
ख्वाहिश मे..
न जाने कितने
दुख पाये हैं मैने..
न जाने कितने
आंसू बहाये हैं मैने...
~३~
पहाड़ सी ऊँचाई से
नीचे देख
डर जाता हूँ मैं...
वहीं से आया
हूँ मैं..
कैसे भूल जाता हूँ मैं!!
~४~
एक छूअन का
अहसास
तेरी...
हर वक्त
साथ लिए
फिरता रहा हूँ मैं...
उठ उठ कर
न जाने क्यूँ
गिरता रहा हूँ मैं...
~५~
मुड़ कर देखता हूँ
जब भी..
तू ही नजर आती है...
सुना था
किसी से...
जिन्दगी
यूँ ही कहर ढाती है...
~६~
एक
अहसास
तेरे पास होने का...
झूठ ही सही..
अपने खास होने का...
-समीर लाल 'समीर'
90 टिप्पणियां:
सब को खुश रखने की
ख्वाहिश मे..
न जाने कितने
दुख पाये हैं मैने..
यकीनन सबको खुश रखना सम्भव नही है और अगर कोशिश करे तो खुद और खुदी की खुशी महरूम हो जाती है.
यादो का यह तोहफा बहुत खूबसूरत है.
बहुत कोमल और खूबसूरत अहसास । अति सुन्दर !
आज आपकी एक ही प्रविष्टि में इतना कुछ अच्छा अच्छा लिख गया है ...
खुशनुमा एहसास सचुमच वहीँ खड़े मिलते हैं ...मोड़ पर कितने ही आगे तक चले जाएँ ...सबको खुश रखने की कोशिश में इंसान ना घर का रहता है ना घाट का ....भीड़ में सन्नाटा ...यथार्थ है ...!!
भावुक मन की लिखी सुन्दरतम कवितायेँ ...!!
सुंदर क्षणिकाएं हैं .. आपने पुरानी रचनाएं भी सुरक्षित रखीं .. हमें पढने को मिल गयी .. आपका आभार !!
संवेदना के धरातल पर कहर ढाती हैं है ये रचनाएं !
रही आपकी वह विकट आकुलता तो उसके लिए छोटे मोटे
आसमान नहीं -ब्रहम मिलन का अनुष्ठान हो तब काम बने !
पूर्व पीठिका तो तैयार ही है किसी दिन वह उत्कंठित समागम भी हो जायेगा !
गुरुदेव,
आफताब(सूरज) की रौशनी के लिए एक दिया कुछ कहे, न तो इसकी उसमें सामर्थ्य है और न ही हिम्मत..बस एक ही शब्द कहूंगा...लाजवाब...
जय हिंद...
पहाड़ सी ऊँचाई से
नीचे देख
डर जाता हूँ मैं...
वहीं से आया
हूँ मैं..
कैसे भूल जाता हूँ मैं!!
ये तो बहुत अच्छा है। कहीं विल्स के नाम पर अभी की रचनायें तो नहीं हैं ये सब?
बीते पल की याद को सजा दिया खुछ खास।
याद करे प्रायः सभी अपना ही इतिहास।।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
समीर जी!
आपको गुरूदेव तो नही कहूँगा क्योकि मैंने अभी आपको गुरू-दक्षिणा दी ही नही है। मेरे घर आओगे तो गुरू बना लूँगा।
विल्स कार्ड के संस्मरण बहुत बढ़िया हैं।
आपकी कविताएँ तो मुझ जैसे निठल्ले को भी लिखने की प्रेरणा देती हैं।
शुभकामनाएँ!
आप के विल्स कार्ड लाजवाब हैं। सूत्र में बड़ी बात कह जाते हैं।
पहाड़ सी ऊँचाई से
नीचे देख
डर जाता हूँ मैं...
वहीं से आया
हूँ मैं..
कैसे भूल जाता हूँ मैं!!
sameer bhai ...wah ...wah wah
kya baat hai ....jindabad ...wah ...wahui se aaya hun mein kaise bhul jata hun ...wah ....maja aaya ...kya baat kahi hai ....
"सब को खुश रखने की
ख्वाहिश मे..
न जाने कितने
दुख पाये हैं मैने..
न जाने कितने
आंसू बहाये हैं मैने... "
सही बात है! जो सब को खुश रखना चाहता है उसे दुःख ही मिलता है।
एक
अहसास . . .
झूठ ही सही..
अपने खास होने का...
-------------------
तारे तोड़ने की कोशिश और ये अहसास?
... खास बात है।
एक
अहसास
तेरे पास होने का...
झूठ ही सही..
अपने खास होने का
बेहद खुबसूरत और कोमल एहसास
regards
कैसी विडंबना है यह!!
क्या यही जीवन है??
शायद मनुष्य हमेशा विपरीत की तरफ़ ही आकर्षित रहता है. अगर वर्तमान को मंजूर करले तो खुद ही परमात्मा ना हो जाये?
रामराम.
समीर जी, आपके विल्स कार्ड ने हमें अपने कॉलेज के दिनों की याद दिला दी जब हम लोग अपने विजीटिंग कार्ड पर ही किसी का भी फोन नंबर, पता या कोई भी जरूरी काम लिख लिया करते थे, यह आदत आज भी हम में है। हम आज भी कागज न रहने पर पूरे समाचार का संक्षिप्त मजमून वीजिटिंग कार्ड में ही लिख लेते हैं। वास्तव में यादें सुखद होती हैं। यादों को हमेशा संजो कर रखना चाहिए। दुनिया में यादों से बड़ी धरोहर कोई हो ही नहीं सकती
मुड़ कर देखता हूँ
जब भी..
तू ही नजर आती है...
सुना था
किसी से...
जिन्दगी
यूँ ही कहर ढाती है...
Bahut sundar !
आपकी इन कविताओं को पढ़ कर अफ़सोस होता है की क्यूँ हमने विल्स की डिब्बियों को यूँ ही पी पी कर फैंक दिया...ना फैंकते तो शायद आज हमारे पास भी यादों के दस्तावेज़ होते....आप बचपन से ही कमाल का लिख रहे हैं...पूत के पाँव पालने में वाली बात चरितार्थ होती दिखती है आपकी इन रचनाओं को पढ़ कर...बहुत खूब...
नीरज
हर बार की तरह उम्दा है..आपकी ये पोस्ट
बहुत शानदार है। हर शब्द जानदार है। तारे हाथ में नहीं आते, यही खासियत तो इनमें मेरे यार है।
पहाड़ सी ऊँचाई से
नीचे देख
डर जाता हूँ मैं...
वहीं से आया
हूँ मैं..
कैसे भूल जाता हूँ मैं!!
स्तब्ध!
निशब्द!!
बी एस पाबला
एक
अहसास
तेरे पास होने का...
झूठ ही सही..
अपने खास होने का...
This is the best Sameer
Regds
Rachna
एक
अहसास
तेरे पास होने का...
झूठ ही सही..
अपने खास होने का...in pakatio pe or kuch nahi kaha ja sakta sirf rooh se mahsoos kiya ja sakta hai...
एक
अहसास
तेरे पास होने का...
झूठ ही सही..
अपने खास होने का...
ये कविता बताती है कि कविता लिखने के लिये बड़े शब्दांबर और बड़े ताम झाम की आवश्यकता नहीं होती है । कविता तो बहुत छोटे में अपनी बात को पूरा करके और प्रभाव छोड़ कर आगे बढ़ जाती है । ये आपकी श्रेष्ठ कविताओं में शुमार की जायेगी ये मेरा विश्वास है ।
" सब को खुश रखने की
ख्वाहिश मे.. न जाने कितने
दुख पाये हैं मैने.. न जाने कितने
आंसू बहाये हैं मैने... "
अति सुन्दर !
खूबसूरत एहसास
बहुत खूबसूरत एहसास से सजे हैं हैं विल्स कार्ड पहले भी बहुत पसंद आये थे यह भी बहुत भाया ..शुक्रिया
sahi baat ek hi samaye me sab ko khush rakhna sambhaw nahi hai .......
naayaab post......
एक
अहसास
तेरे पास होने का...
झूठ ही सही..
अपने खास होने का......
खूबसूरत यादों का पिटारा खोला है समीर भाई ..........गहरे बैठे हुवे जज्बात जब तट तोड़ कर बहते हैं तो हमारे दिल के शहर को बहा ले जाती हैं ........
आज जब घर में
सिर्फ सन्नाटा है
और मैं खोज रहा हूँ
कोलाहल...
कुछ भीड़ भाड़..
पहली बार आपकी विल्ड कार्ड की यादें पढ़ रही हूं, बहुत दिल से लिखे हैं समीर जी, कविताएं भी बहुत सुंदर हैं
प्रभु आपके चरण कहाँ है?
अति सुन्दर !
सब को खुश रखने की
ख्वाहिश मे..
न जाने कितने
दुख पाये हैं मैने..
न जाने कितने
आंसू बहाये हैं मैने...
समीर जी क्यो सब के दिल की बात लिख देते है, बहुत सुंदर लगी आप कॊई सभी कविताये, अब किस किस की तारीफ़ करे... बस दिल करता है पढते जाये...
धन्यवाद
’जब घर में
भीड़ भाड़ थी
हर तरफ कोलाहल
मैं खोजता था
एक कोना...’
बहुत सुंदर!
मन वह चाहता है जो पास नहीं है
सच में कहूं तो इतने सरल और संक्षिप्त में गहन संवेदनाएं भर देने में आप माहिर हैं ।
बहुत सुंदर
एक
अहसास
तेरे पास होने का...
झूठ ही सही..
अपने खास होने का...
@ (1) विल्स कार्ड
मेहफिल में नही लगता सेहरा में घबरता है दिल
अब कहाँ ले जायें बतला ऐस दीवाने को हम
बढ़िया....!
समीर जी आपके कविता से मै गिन रहा हु कि आप कितने सिगरेट पिए है :)
एक बात बताइये जब आपकी मिसेज ये पढ़ती हा तो आपके ऊपर गुस्सा नहीं करती कि आप सिगरेट क्यों पीते थे ?
बहरहाल कविता के बारे में तो मै कुछ नहीं कह सकता ,
jindagi ka khaaka kheench diya aapne
जब घर में
भीड़ भाड़ थी
हर तरफ कोलाहल
मैं खोजता था
एक कोना...
जहाँ सन्नाटा हो..
कोई आवाज नहीं..
बस मैं और मेरी सोच.. कुछ कोशिश के बाद
मिल भी जाता था
मुझे एक कोना ऐसा.. आज जब घर में
सिर्फ सन्नाटा है
जिंदगी जाने कितने मोड़ लेती है.
ऐसी ही होती है जिंदगी.
सभी कवितायेँ संवेदनशील.
कैसी विडंबना है यह!!
क्या यही जीवन है?
ये उलझाने वाली बात सबसे ज्यादा पसंद आई !
पहाड़ सी ऊँचाई से
नीचे देख
डर जाता हूँ मैं...
वहीं से आया
हूँ मैं..
कैसे भूल जाता हूँ मैं!
बहुत खूब। काश कि हम सब भी ये ना भूले।
बहुत सुन्दर शब्द रूपी मोती पिरोए हैं आपने अपने विल्स के खजाने में ...
सब को खुश रखने की
ख्वाहिश मे....
कभी विल्स नेवीकट, कभी पासिंग शो, कभी कैप्सटन कभी....... धुएं में उडाते चले गए:)
हाय जुलमी कित्ती बीडी पी तुमने ...और कित्ता लिख डाला उन बीडी की खोलियों पर....हम तो निहाल हुए जाते हैं...उफ़्फ़ ये विल्स कार्ड ..मुंआ अब तो कोरे कागज पर लिखने को मन नहीं मानता...सोचते हैं कि कल से बीडी पीना शुरू करें...का पता कभियो अपना भी कौवा छाप काली बीडी कार्ड हिट हो ही जावे...का ख्याल है.एक ठो कन्फ़ूजन है ..हमको तो लगता है कि आप बीडी पीने के लिये लिखते थी कि लिखने के लिये पीते थे..तनिक शंका निवारण किया जावे ....
हाथ बढ़ा कर कुछ तोड़े भी, मगर हाथ कुछ नहीं आया. बस वो आसमान के संग ही चमकते हैं. समेटो तो कुछ हाथ नहीं लगता. उन्हें देखना, अहसासना, उनकी सुन्दरता का लुत्फ उठाना-बस इतना ही है हमारे लिए. वो जहाँ हैं वहीं के लिए हैं. वहीं से अच्छे हैं-एक खुशनुमा अहसास देते.....
ये पंक्तियाँ क्या किसी कविता से कम हैं .....?
इन shbdon का दर्द एक mitha ehsas देता है .......!!
कितना स्वाभाव एक सा है इन सितारों का और मेरी पुरानी गठरी में टंके उन यादों के सलमों का. जब जब समेटने की कोशिश करता हूँ, पास बुलाता हूँ. हाथ कुछ नहीं लगता. हाँ, एक खालीपन का नया अहसास और पा लेता हूँ.किस काम का है ऐसा खालीपन-वैसे ही जैसा बिना सितारों वाला घुप्प काला आसमान.....
waah ......एक एक shbd दिल में utar gya ......!!
और isne तो सच much kahar ही dha दिया .......
मुड़ कर देखता हूँ
जब भी..
तू ही नजर आती है...
सुना था
किसी से...
जिन्दगी
यूँ ही कहर ढाती है...
सब को खुश रखने की
ख्वाहिश मे..
न जाने कितने
दुख पाये हैं मैने..
न जाने कितने
आंसू बहाये हैं मैने...
waah
बहुत खूबसूरत...
पीछे छूटी वो तो कहानी है.. क्या खूब लिखा है... लेकिन अक्सर डायरी में सिमटी यादें... आंखों की कोरों को गीला कर जाती हैं..
आज जब घर में
सिर्फ सन्नाटा है
और मैं खोज रहा हूँ
कोलाहल...
कुछ भीड़ भाड़..
मन की दशा बडी निराली....जीवनप्रयन्त कुछ न कुछ खोजने में लगा ही रहता है !!
सादगी से कहा गया गूढ़ सच है इनमे.बहुत कुछ जेन-कथाओं की-सी सुन्दरता को लिए.
लुटाते जाइए ये खजाना.
purani rachnaon ko bhi itna sambhal kar rakha hai..bahut badi baat hai.
-likhne wale ke liye ye kewal panktiyan nahin hain..in mein chhupe hain..bhaav..yaden.
--sabhi kavitayen..bahut achchhee lagin.. yah kuchh khaas lagi-
एक अहसास तेरे पास होने क...
झूठ ही सही..
अपने खास होने का...
भाई इतना अच्छा लिखते हो, सोचता हूं मैं भी यहां से कुछ-कुछ उड़ा कर अपने नाम से यहां-वहां छापता फिरूं...सुंदर रचनाएं साझा करने के लिए आभार.
Sameerjee,aapkee
meethee -meethee
yaaden
aur
aapkee rasbharee
baaten lajwaab hain.
समीर भाई सच कहूँ आज आपका गध्य कविता से ज़्यादा कवितामय लग रहा है । मै भी इस खिड़की से हाथ बढ़ाकर कुछ तारे तोड़ लेना चाहता हूँ ।
हमेशा की तरह गहरे अहसास दिलातीं पंक्तियाँ| ये तो बेहद पसंद आई.....
"पहाड़ सी ऊँचाई से
नीचे देख
डर जाता हूँ मैं...
वहीं से आया
हूँ मैं..
कैसे भूल जाता हूँ मैं!!"
वाह! सादगी और सच को पका सुंदर शब्दों का शहद बहुत मीठा और तीखा है...
आपके विल्स कार्ड तो अच्छा है ही आपकी कविताएँ कमाल हैं । खास कर आखरी वाली तो बहुत भाई ।
बहुत ही सुन्दरता से यादों का पिटारा खोला है. दिल को छूती हर पंक्ति.
सुन्दर, अगर विल्स कार्ड देखने को मिलें (स्कैन तो कर ही सकते हैं)तो और फीलिन्ग आयेगी :)
वाह... समीर जी, स्मृति-श्रंखला की यह कड़ी भी बेहतरीन है....
राम चन्द्र,
बहुत मद्धम पड़ अये हैं, फिर भी एकाध अगली बार लगाता हूँ..अभी तो काफी बचे हुए हैं. :)
समीर अंकल, मैं उनसब से माफ़ी मांगता हूँ जिनके दिलों को ये बात चुभी हो, मेरा मकसद सिर्फ स्वस्थ ब्लोगींग और साहित्य को सामने लाना है, किसी का दिल दुख के नहीं.
aur aapki writing ko kya kahoon? ye to bas pariyon wali jadoo ki chhadi hai. kabhi lagta hai Gulzar saab aur Javed saab dono ki kalam ki syahi chura ke apni kalam me daal ke likhte hain... :)
Aapka chaheta Bhateeja.(maine bhi kuchh mahine Jabalpur me guzare hain TFRI me)
आपने तो अपने कार्ड्स संजो कर रखे हैं। हमारी जिन्दगी तो रेलवे की ट्रेन रनिंग की रोज की पोजीशन की तरह दो दिन बाद रद्दी में चली गयी। दशकों दशक।
और जो दिमाग में बचा भी है, वह लगता है कभी डिमेंशिया का शिकार हो कर गुम जायेगा। इस तरह की पोस्ट देखते हैं तो छटपटाहट होती है।
वर्तमान विकास का माडल किस तरह से मनुष्यता को कुंद कर दे रहा है, इसके एक बानगी इन छोटी-छोटी कविताओं में दिखाई पड़ती है। बेशक हम उछल-उछल कर चाहे जितना इस तंत्र के ढांचे को बचाए रखने का ढोल पीटे पर जब गम्भीरता से सोचें तो कमोबेश एक असंवेदनशील होता जा रहा समय हमें भी परेशान करने लगेगा।
पहाड़ सी ऊँचाई से
नीचे देख डर जाता हूँ मैं... वहीं से आया
हूँ मैं.. कैसे भूल जाता हूँ मैं!!
ये छोटे-छोटे चित्र खूबसूरत है समीर जी।
बहुत ही ख़ूबसूरत एहसास के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार और लाजवाब रचना प्रशंग्सनीय है!
ऐसे कार्ड तो सबसे त्वरित अभिव्यक्ति हैं,,सबसे ओरिजनल और सबसे सुन्दर...
सब को खुश रखने की
ख्वाहिश मे..
न जाने कितने
दुख पाये हैं मैने..
इन पंक्तियों ने जाने कितना कुछ कह दिया बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जब पास कुछ नहीं रहता तो यादें ही पास होती हैं, कुछ सुनहरी कुछ खुरदरी !! इन्ही यादों का सहारा अकेलपन को राहत देता है , बहुत बधुया विल्स कार्ड < और कौना खोजती कवितायें अति सुन्दर !!
सारे बेहतरीन है अंकल... उठने का मौका ही नहीं देते... पैक पर पैक पिलाते जा रहे है आप तो...
पहाड़ सी ऊँचाई से
नीचे देख डर जाता हूँ मैं... वहीं से आया
हूँ मैं.. कैसे भूल जाता हूँ मैं!!
यह तो खुद में कितना सारा ज्ञान समेटे हुए है ...
एक अहसास तेरे पास होने का... झूठ ही सही.. अपने खास होने का.
वाह! क्या शिद्दत है ... अनुकर्णीय ही कहूँगा इसे...
एक और बेहतरीन दिल को छूती विल्स कार्ड कड़ी.
बहुत ही सुन्दर सवेंदन क्षणिकाये ।
"सब को खुश रखने की
ख्वाहिश मे..
न जाने कितने
दुख पाये हैं मैने..
न जाने कितने
आंसू बहाये हैं मैने... "
" bilkul aap ke swabhav se milti line sir sayad magar ...pata nahi ...aapne kitne dukho ko humse chupaya hoga ."
" dil ko chu ne wali post ke liye aapko salam "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
बहुत भावपूर्ण लगीं सभी कवितायेँ समीर भाई
विनीत,
- लावण्या
कविताओं में थोड़े से ही शब्दों में पूरा दिल उंडेल कर रख दिया आपने. न जाने कितनी बार सिगरटों के धुएँ ने दिल को ढांपने की कोशिश की होगी, कितनी ही बार उँगलियों के बीच का हिस्सा पीला हुआ होगा, लेकिन फिर भी उन्हीं विल्स कार्डों की बदौलत वो अतीत का खज़ाना आज भी आपको अचेतन मस्तिष्क में दबी हुई स्मृतियों को शब्दों के रूप में आँखों को नम किये दे रहे हैं.
एक छूअन का
अहसास
तेरी...
हर वक्त
साथ लिए
फिरता रहा हूँ मैं...
उठ उठ कर
न जाने क्यूँ
गिरता रहा हूँ मैं...
बहुत सुन्दर!
आपकी पुरानी गद्य और पद्य की रचनाओं को पढ़ते हुए इन रचनाओं को देखता हूँ तो राजकपूर की 'मेरा नाम जोकर' फिल्म के हीरो के किरदार और आपकी कलम से निकले हुए उद्गारों में कितना साम्य लगता है. बस इस श्रृंखला को चलाते रहें.
पहाड़ सी ऊँचाई से
नीचे देख
डर जाता हूँ मैं...
वहीं से आया
हूँ मैं..
कैसे भूल जाता हूँ मैं!!
बहुत ही गहन संवेदनात्मक पोस्ट है. गब्बर और सांभा आपको शुभकामनाएं देते हैं।
जय भवानी।
"सब को खुश रखने की
ख्वाहिश मे..
न जाने कितने
दुख पाये हैं मैने..
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
निम्न पंक्तियाँ बहुत प्रभावी रहीं:
पहाड़ सी ऊँचाई से
नीचे देख
डर जाता हूँ मैं...
वहीं से आया
हूँ मैं..
कैसे भूल जाता हूँ मैं!!
kaafi achhe hai ye wills card....abhi tak kaam aa rahe hai...
ab kya tippani karen..na jaane humari tippani kahan chup jayegi itni tippaniyon mein.. humari total itni ho wahi bahut hai :P
aapke 'wills cards' amazing hain as always :)
Meri Fav -
"एक
अहसास
तेरे पास होने का...
झूठ ही सही..
अपने खास होने का..."
इन एहसासात को रूह से मेहसूस करने पर पुरानी हलके पड गये विल्स कार्ड हमारे पंख बन जाते हैं, और कोमल भावनाओं के एक ऐसे संसार में ले जाते हैं, जहां जीने के लिये किये जाने वाले जेद्दो जेहेद की जगह सिर्फ़ प्यार है, या दर्द है.
अति सुन्दर! दिल के किसी कोने में छिपे हुए मधुर अहसासों को जागृत कर दिया आपकी रचनाओ ने.
बेहतरीन लगी आपकी क्षणिकाएँ !
एक
अहसास
तेरे पास होने का...
झूठ ही सही..
अपने खास होने का...
हर एक कार्ड क्या कुछ कह देता है आपका ....
ये सिलसिला विल्स कार्ड का यूँ ही चलता रहे ....:)
kaisi viadambana hai .......... kya yahi jeevan hai
jo nahi hai uski talash hai
bahut achchi baat dil ko andar tak jhakjhorti hui
सब को खुश रखने की
ख्वाहिश मे..
न जाने कितने
दुख पाये हैं मैने..
न जाने कितने
आंसू बहाये हैं मैने...
sabko khush nahi rakha jaa sakta
पहाड़ सी ऊँचाई से
नीचे देख
डर जाता हूँ मैं...
वहीं से आया
हूँ मैं..
कैसे भूल जाता हूँ मैं!!
kitni gahri baat hai
ye sirf upar kadhe log hi samjh paayenge ki wapis jaate hue kitna dar lagta hai
एक छूअन का
अहसास
तेरी...
हर वक्त
साथ लिए
फिरता रहा हूँ मैं...
उठ उठ कर
न जाने क्यूँ
गिरता रहा हूँ मैं...
hmmmm bahut badha sawal hai
~५~
मुड़ कर देखता हूँ
जब भी..
तू ही नजर आती है...
सुना था
किसी से...
जिन्दगी
यूँ ही कहर ढाती है...
kya baat hai
is baar aapki post mein itna kuch hai ki man vayathith ho gaya
aap kitna soch rahe ho
ye pata chal raha hai
झूठ ही सही..
अपने खास होने का...
shabd itar rachna . chand shabdon me bhavon se labrej.
afreen.
satya vyas
एक
अहसास
तेरे पास होने का...
झूठ ही सही..
अपने खास होने का....Bahut dilchasp aur khubsurat ehsas...badhai.
Shabdon ke bahane atit ki sundar yaden...apne abhi tak sahej kar rakha hai...sadhuvad.
bahut hee sunder rachana.
bahut hee sunder rachana.
बहुत ही सुन्दरता से यादों का पिटारा खोला है. दिल को छूती हर पंक्ति.
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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