बुधवार, अक्तूबर 29, 2008

ये अत्याचारी लड़कियाँ..

नियमित प्रक्रिया के तहत सुबह सुबह ६.३० बजे ट्रेन पकड़ी दफ्तर जाने के लिए.

आज जरा जगह बदल गई. वजह, देर से पहुँचना. सामने की कुर्सी पर दो सहेलियाँ, सुकन्यायें. चलो, देर से पहुँचें मगर कोई गम नहीं और कोई नुकसान नहीं.

एक ने पहना था पीला टॉप, तो कान में पीले बूंदे और साथ ब्लैक जिन्स-टाईट फिट. गले में एक महिला कलर का स्कार्फ.

’महिला कलर’- अचरज न करें यह शब्द सुन कर. जैसे ’कहूँगी’ ’मरुँगी’ ’हट्ट’ ’आप बड़े वो हैं’ आदि स्त्रीलिंग हैं अर्थात सिर्फ वो ही बोलती और समझती हैं वैसे ही कई रंग भी होते हैं जो मेरी नजर में पुरुषों की समझ और पहचान से परे हैं. जैसे हम नहीं पहचान पाते कि मर्जेन्टा, बेज़, बरगंडी, धानी, मस्टर्ड आदि रंग कौन से होते हैं. हम इसे महिला वर्ग के लिए रिजर्व मान इस ओर मेहनत तक नहीं करते. उन्हीं में से किसी रंग का स्कार्फ था. पुरुष का काम पांच मुख्य रंगों में चल जाता है.

मुझे इन सब से क्या. वो तो नजर पड़ गई सो बता दिया. मुझे तो अपनी किताब पढ़ना है परसाई जी की ’माटी कहे कुम्हार से’ निकाली बैग से. अपना आई पॉड भी निकाल कर कान में फिट कर लिया मगर ऑन नहीं किया वरना दो सहेलियों की बात कैसे सुनता?? बताओ, कहलाया न होशियार. वो समझें कि हम गीत सुन रहे हैं और हम चुप्पे किताब में आँख गड़ाये उनकी बात सुन रहे हैं.

ईश्वर की विशिष्ट कृपा उस कन्या पर. सुन्दर काया..गोरा रंग और मानक अनुपात शरीर का. मानो ईश्वर के शो रुम का डिसप्ले आईटम हो. हर तरह से फिट और परफेक्ट.

सुना कि जल्दी में निकली तो ब्रेक फास्ट न कर पाई बेचारी. अतः साथ लाई है.

बैग खुला. पहले लिपिस्टिक निकली, वो लगी लगे पर. फिर मसखारा और फिर फेस फाऊन्डेशन, पाऊडर, रुज...मेकअप पूरा हुआ और उसने अपना ब्रेक फास्ट निकाला.

makeup

एक बिस्किट, फ्रूट्स में चार अंगूर, फ्रूट ज्यूस...एक ३० मिलि की बोतल. बिस्किट उसने बारह बार में चबा चबा कर खत्म किया..खाया तो क्या, कुतरा. हमारे तो एक कौर के बराबर था. चार अंगूर खाने में कांख गई. चार अंगूर जो हम एक मुट्ठी में फांक जायें. ज्यूस इतना सा कि मानो वाईन टेस्टिंग कर रहे हों.

उस पर से सब खत्म करके हल्की सी डकार भी ली...’एस्क्यूज मी’ न बोलती तो मालूम भी न पड़ता कि डकार ली, मौन की भी आवाज होती है सिद्ध करते हुए. अरे खाया ही क्या है जो डकार रही हो.

हमें तो गुस्सा सा आ गया. उस पर से वो ही गुस्सा सातवें आसमान पर पहूँच गया जब सुना कि इतने हेवी ब्रेक फास्ट के बाद लंच में सिर्फ सलाद खायेगी और उसका डिब्बा दिखाया सहेली को. मानो सिगरेट की साईज के डिब्बे में पूरा सलाद जो लंच में खाया जाना है. साथ में एक उतना बड़ा ही ज्यूस जो अभी खत्म किया है.

अरे, ऐसा भी क्या!!! क्या दुश्मनी है इतनी सुन्दर काया से. मन में तो आया कि गा गा कर अपनी वो जीरो साईज वाली कविता सुनाऊँ उसको. फिर सोचा, जाने दो-क्या बात का बतंगड़ बनाना.

मैं तो उसे अत्याचारी की कटेगरी में ही रखना पसंद करुँगा. नाजायज परेशान कर रही है अपने ही शरीर को.

शाम को डिनर के लिए भी योगर्ट (दही) और प्रोटीन बार रखा हुआ है.

हम सोचने लगे-अरे, हमें तो इसकी दस परसेंट भी रुप रंग और/ या काया मिलती तो आत्म मुग्ध हो रोज सुबह सुबह प्रसाद में खुद को ही एक किलो लड्डू प्रसाद में चढ़ा कर खाते हुए जाते दफ्तर वरना फायदा ही क्या ऐसी काया का कि भूखा मरना पड़े.

हद है फीगर कॉन्सेसनेस की.

स्वास्थय अपनी जगह है और फीगर के प्रति दीवानगी का पागलपन ...वो सिद्ध सा नहीं लगता, न जाने क्यूँ!!

वो अपना मेकअप फिर से कर रही है. समझ नहीं आता कि नाश्ते ने मेकअप का क्या बिगाड़ डाला. और अगर बिगाड़ा भी होता, तो नाश्ते के पहले काहे मेकअप किया था.

हम तो एक बार की क्रीम लगाये अगले नहान के बाद ही लगाते हैं, तब पर भी चेहरा चमकता रहता है. सरासर वेस्टेज करती हैं यह लड़कियाँ भी. कितना मंहगा तो आता है इनका मेकअप का सामान. कुछ तो कद्र करो.

चलो, जो देखा है सो बताया है. अब हम तो अपनी माटी क्या कह रही कुम्हार से, वो पढ़ते हैं. Indli - Hindi News, Blogs, Links

रविवार, अक्तूबर 26, 2008

मैसेज बहुत बड़ा मगर पोस्ट माईक्रो..

ऐसा तो नहीं कि हमने बताया नहीं था
तू तो कह देना कि समझाया नहीं था..
संभल जाओ कि वक्त बाकी है अभी
फिर न कहना पातियों का साया नहीं था.


(संभल जाओ वरना ऐसे होगी बड़ सावित्रि पूजा)




आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की मंगलकामनाऐं. Indli - Hindi News, Blogs, Links

गुरुवार, अक्तूबर 23, 2008

ये लो भई-टीवी पर भी आ लिए

याद आता है जब पहली बार सीए की ट्रेनिंग करते हुए ऑफिस टूर पर हवाई जहाज से जाना था. पहला मौका था जब हवाई जहाज में चढ़ता. खुशी का तो मानो कोई ठिकाना ही नहीं. अति उत्साहित. जब ऑफिस से बताया गया, उस दिन मंगलवार था और रविवार की रात उड़ान थी बम्बई से मद्रास.

उसी दिन शाम को दफ्तर से निकले तो बस एक धुन. कैसे लोगों से बताऊँ कि हवाई जहाज से जाने वाला हूँ. हॉस्टल के पास सीधे अपनी सिगरेट वाले की दुकान पर पहूँचे. पैकेट लिया और उससे कहा कि यार, शानिवार को तीन-चार पैकेट रख लेना (जबकि उसकी दुकान में मेरी ब्राण्ड की १०-१५ पैकेट तो सामने ही सजी रहती थी हर वक्त.) मद्रास जाना है मुझे. वैसे तो घंटे-१.३० घंटे में ही पहूँच जाऊँगा हवाई जहाज से मगर क्या पता वहाँ रात गये मिले न मिले. मन को बड़ी तसल्ली लगी कि चलो, इसी बहाने इसको बता लिया.

फिर, अपने चाय वाले के यहाँ. यार, जल्दी चाय लगवा दे, निकलना है टिकिट उठाने जाना है. शनिवार को निकल रहा हूँ जरा जरुरी काम से मद्रास हवाई जहाज से. उसी की टिकिट उठानी है, तब तक चाय सर्व भी हो गई. वो तो पहले से ही गरम होती रहती थी.

धोबी, नाई, मेहतर, कमरे में झाडू लगाने वाले से लेकर हर संभव दोस्त को व्यक्तिगत या फोन द्वारा बता ही दिया कि हवाई जहाज से जा रहे हैं किसी न किसी बहाने. रात मैस में खाना खाते खानसामा से लेकर सर्व करने वाले नौकर तक को कोई न कोई बहाने से बताते चले गये.

ये दीगर बात है कि शुक्रवार आते तक ऑडिट कैंसल और हम रह गये पुनः बिना हवाई यात्रा के. दो दिन को यूँ ही नासिक घूम आये और सबको बताया मद्रास वो भी हवाई जहाज से.

झूठ ही सही, एक माहौल सा बन गया. ऐसा मुझे लगा. इस लगने में ही तो हम हर माहौल में खुश दिख लेते हैं, अन्यथा तो दुखों की क्या कमीं चारों तरफ.

अभी चार दिन पहले फोन आया. एशिया टेलीविजन नेटवर्क (ATN) जो कि यहाँ सारे भारतीय टीवी चैनेल पूरे कनाडा के लिए संचालित करता है, उस पर एक काव्य संध्या का आयोजन है और दो दिन बाद स्टूडियो बुलाया गया है. बड़े खुश कि अब टीवी के माध्यम से घर घर पहूँच जायेंगे. सारे हिन्दी भाषी कनाडा में लोग हमें सुनेंगे. तीन चार कविता बिल्कुल कंठस्थ कर डाली.

लोगों को बताने का सिलसिला भी फिर चल निकला. ऑफिस से नाई के यहाँ जाकर कटे कटाये बाल फिर से कटवाये कि टीवी पर शो है. संभाल कर काटना. काटे क्या, कुछ हों तो काटे. मगर जान गया कि टीवी पर जा रहे हैं. अपना काम हो गया.

बॉस को बता दिया कि बुधवार को नहीं आयेंगे टीवी पर शो है. एक महिने बाद की डेड लाईन वाले प्रोजेक्ट की मिटिंग में जबरदस्ती फुदक लिए कि शायद प्रोजेक्ट एकाध दिन डिले हो जाये क्यूँकि कल नहीं आ पा रहा हूँ टीवी पर शो है. वो प्रोजेक्ट तो यूँ भी १० दिन से ज्यादा, पुरानी हरकतों की वजह से, डिले होने वाला है, उसका कोई जिक्र नहीं.

जिस दोस्त का फोन आये, उसे बताये जा रहे हैं कि कल ऑफिस नहीं जा पा रहा हूँ. जाहिर सी बात है कि पूछेगा कि क्या हुआ? और बस, अरे यार, वो टीवी वालों ने रिकाडिंग के लिए बुलवाया है. याने जितने कान, उसमें उतनी अलग अलग मंत्रों से एक ही बात-कल टीवी पर रिकार्डिंग है. कुछ को तो ईमेल पर भी कह दिया कि कल जबाब नहीं दे पाऊँगा, जरा टीवी रिकार्डिंग पर जाना है. जाना दो घंटे के लिए, व्यस्तता ऐसी मानो १५ दिन नहीं दिखेंगे.

खैर, जो व्यस्त नहीं होते वो ही सबसे व्यस्त होते हैं दिखने में-यह मुहावरा भी कोई तो सच करे.

तब बुधवार याने २२ अक्टूबर को रिकार्डिंग हो गई. ४ कवियत्रियाँ और २ कवि उपस्थित थे. सुश्री भुवनेश्वरी पाण्डे, श्री पराशर गौड, सुश्री लता पाण्डे, सुश्री सविता अग्रवाल, सुश्री किरण, एवं हम याने समीर लाल. कार्यक्रम संचालित किया सुश्री कान्ता अरोरा जी ने जो एटीएन की हिन्दी प्रभाग की संचालिका हैं एवं समाजसेवी भी.

सबने अपनी २-२ रचनाऐं पढ़ी और कनाडा में बसे हिन्दी भाषियों को अपना संदेशा दिया. हमने भी लोगों से हिन्दी से जुड़ने के लिए ब्लॉग जगत में आने की अपील की और ब्लॉग खोलने और हिन्दी में टंकण के लिए किसी भी मदद के लिए हमसे संपर्क साधने की अपील की. उम्मीद है जल्द ही ब्रॉडकास्ट होगा.

इस मौके पर एक मजेदार बात यह रही कि जब हम सब कविगण ग्रीन रुम में बैठ कर रिकार्डिंग के लिए स्टूडियो सेट-अप का इन्तजार कर रहे थे तो एटीएन के सौजन्य से चाय और भुवनेश्वरी जी के सौजन्य से बेहतरीन कचौरी और मिठाई का लुत्फ उठाते हुए एक काव्य गोष्टी का आयोजन हो लिया. यह भी बड़ा ही आनन्ददायी रहा. सबने अपनी रचनाऐं सुनाई.

फिर शुरु हुई स्टूडियो में रिकार्डिंग. जगह की कमी के कारण तीन लोग ही एक बैठक में शामिल हो सकते थे. अतः सेट बना दो कवियत्रियाँ और एक कवि का.

हम पहले सेट में थे भुवनेश्वरी जी और लता जी के साथ. दूसरे में पराशर जी, सुश्री सविता अग्रवाल जी, सुश्री किरण जी. दोनों हिस्सों का संचालन सुश्री कान्ता अरोरा जी ने ही किया.

उसी वक्त की कुछ तस्वीरें:


बायें से दायें: भुवनेश्वरी जी, समीर लाल, लता पाण्डे जी और कान्ता अरोरा जी:
2


सुश्री किरण जी, श्री पराशर गौड जी, सविता अग्रवाल जी एवं कान्ता अरोरा जी:
7


श्री पाराशर जी, लता जी, कान्ता अरोरा जी, किरण जी, सविता जी, भुवनेश्वेरी जी, समीर लाला ग्रीन रुम में:
6


आपके अपने समीर लाल:
4

आगे एक पोस्ट में किसने क्या सुनाया, वो बताऊँगा. अभी इतने से संतोष कर लिजिये. Indli - Hindi News, Blogs, Links

रविवार, अक्तूबर 19, 2008

चलो, एक बार फिर हम तुम!!!

आज तो आनन्द ही आ गया, जब चिट्ठाजगत में आज जुड़े चिट्ठों के बारे में पता चला. पिछले २४ घंटो में ११७ नये चिट्ठे. अगर इसी तरह यह आंकड़ा चलता रहा तो १०००० चिट्ठों का दिन बहुत दूर नहीं. रोज पोस्टें सैकड़ा पार कर रही हैं. वक्त की अपनी बंदिशें हैं. सभी जगह पहुँच पाना कठिन होता जा रहा है. फिर भी कोशिश यही होती है कि जितना अधिक देख सकें.

एक सलाह सी है, कुछ लोग एक ही दिन में अभी भी चार चार पांच पांच या उससे भी ज्यादा पोस्ट कर रहे हैं. आपको दिनभर लिखना है, दिन भर लिखिये मगर कोशिश करके सबको अगर एक पोस्ट बना कर पोस्ट कर दें तो बेहतर हो जाये.

राजू श्रीवास्तव का लॉफ्टर होता तो वो जरुर कह उठते:

हम तो भरे बैठे हैं. हमारा मूँह न खुलवाओ. उनकी एक पोस्ट पर टिप्पणी लिख ही रहे हैं. सबमिट की कि उन्हीं की दूसरी पोस्ट हाजिर. वो टिपियाये, सबमिट की तो अगली हाजिर. पोस्ट लिख रहे हो कि हमको चिढ़ा रहे हो कि लगे रहो मुन्ना भाई टिपियाने में..हम भी न दौड़ाये तो कहना!!

महाराज!! कुछ तो रहम खाओ, इस काया पर. और साथ ही दूसरों की पोस्ट को भी कुछ देर रह लेने दो पहले पन्ने पर. बस, निवेदन ही बाकि तो जैसा जी में आये और जो उचित लगे, सो करिये.

एक तो लोगों को यूँ ही चैन नहीं. बार बार वही बात कि ये आदमी इतनी टिप्पणी कैसे करता है, क्यूँ करता है, कट पेस्ट करता है, रेडीमेड टिप्पणी चिपकाता है, नेटवर्क बनाता है, टिप्पणी पाने के लिए करता है..

मानो ये सब करके मुझे खजाना मिलने वाला है कि वाह, उड़न तश्तरी-इस साल तुमने सबसे ज्यादा टिप्पणियाँ पाईं तो तुमको नोबल पुरुस्कार दिया जाता है या फिर कोई खद्दरधारी चले आयेंगे कि भाई, बहुत बेहतरीन जनाधार है. आओ मैडम ने बुलाया है, तुमको सरदार बनायेंगे. आज से तुम भारत के प्रधान मंत्री. हम कहेंगे कि मैडम, हम तो चुनाव तक नहीं लड़े हैं और वो कहेंगी कि पहले प्रधान मंत्री बन लो, बाकि सब सेट हो जायेगा. ऐसे जनाधार वाले लोगों को हम नहीं छोड़ते.

हिन्दी चिट्ठाकारी की टिप्पणी साईकिल: वर्तमान परिपेक्ष में:




भई, अपना अपना काम शांति से करो न. कुछ मदद चाहिये तो बताओ. ये क्या है कि वो ये क्यूँ करते हैं. हम तो ऐसा नहीं करेंगे चाहे कोई हमारे द्वारे आये या न आये. अगर इतने ही निर्मोहि हो तो इसमें बताना क्या?

क्या फरक पड़ता है कि शास्त्री जी ने क्या कहा या उन्होंने १० चिट्ठों पर टिप्पणी करने की सलाह दी. अरे, हमसे पूछोगे तो हम १०० पर करने की देंगे और एक दो को जानता हूँ, उनसे पूछोगे तो वो कहेंगे कि एक ही जगह इक्कठे होकर गाली बको. सबकी अपनी सोच है, जो जिसे प्रभावित कर जाये.

सलाहकारों के देश में एक भारतीय मौलिक अधिकार के तहत सलाह ही दी जा रही है अपनी समझ से निवेदन के माध्यम से. मानना है मानो वरना कोई कानून तो पारित किया नहीं है उन्होंने. फिर कैसी परेशानी?

सब सोच की बात है-मान लो तो नये लोगों को जोड़ कर परिवार सुदृढ किया या मान लो नये लोगों को लाकर भीड़ की भभ्भड़ मचवाई दिहिन. जैसा दिल चाहे मानो.

कुछ पंक्तियाँ जेहन में आईं:

वो
दूर खड़ा

चाँद को
कोसता रहा..


रोशन जहाँ
उसे
रास नहीं आता!!!


खैर, लिखो-और कुछ हो न हो पोस्ट की संख्या तो बढ़ती चलेगी. थोड़ा सनसनी भी मची रहेगी. चहल पहल बाजार की पहचान है शायद कल को व्यापार और सौदे होने लगे तो कुछ फायदा भी हो जाये. इन्तजार तो है ही ऐसे शुभ दिवस का.

अनेकों शुभकामनाऐं.

***********************************************************


आज एक नया हाथ आजमाने का मन किया है.

बहर-ए-रमल २१२२,२१२२,२१२२,२१२ में एक गज़ल लिखने का प्रयास किया है.

मास्साब पंकज सुबीर से डांट खा खा कर कुछ सुधार तो आ ही गया होगा.


भूल बैठे हैं उसे, जीते थे जिसके नाम से
दूरियां कुछ हो गई हैं, आज उनकी राम से.

मत लगा नारे यहाँ पर, धर्म के ईमान के,
सो रहे हैं मौलवी जी, तान कर आराम से.

अब न जागे तो समझ लो, हाथ आयेगा सिफर
खेलते हैं रोज कितने, देश की आवाम से.

कल मरे थे लोग कितने, रो रही थी ये जमीं
महफिलें सजने लगेंगीं, देख लेना शाम से.

कौन कैसे मर रहा है, कौन पूछेगा यहाँ
बेच आये ये जमीरां, कौड़ियों के दाम से.

नाम जिसका है खुदा, भगवान भी तो है वही
भेद करते हो भला क्यूँ, इस जरा से नाम से.

-समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

गुरुवार, अक्तूबर 16, 2008

अथ श्री बंदर कथा!!!

monkey

एक बार की बात है-एक गांव में एक व्यापारी आया और उसने घोषणा की कि वो बंदर खरीदना चाहता है. हर बंदर के वो १० रुपये देगा.

गांव और उसके आस पास के जंगल में बहुत बंदर थे. गांव वाले बंदर पकड़ पकड़ कर लाने लगे और व्यापारी उन्हें हर बंदर के १० रुपये देता गया. सैकड़ों बन्दर वो खरीदता गया और एक बहुत बड़े पिंजड़ेनुमा बाड़े में रखता चला गया.

धीरे धीरे बन्दर गांव में और आसपास के जंगलों में मिलना बन्द हो गये तो लोगों ने मेहनत करना बंद कर दिया.

फिर व्यापारी ने घोषणा की कि अब वो २० रुपये में बन्दर खरीदेगा. गांव वाले फिर से मेहनत करने लगे और दूर दूर से बंदर पकड़ कर लाने लगे. धीरे धीरे दूर से भी बन्दर मिलना बन्द हो गये. सप्लाई खत्म, सब फिर बैठ गये.

फिर उसने २५ रुपये की बात की. सप्लाई तो खत्म हो चुकी थी. बन्दर पकड़ना तो दूर, दिखना ही बन्द हो गये. अब उसने दाम बढ़ा कर ५० कर दिये. फिर उसे किसी कार्य से शहर जाना था, तो उसने अपने साहयक को अधिकार सौंप दिया और खुद शहर चला गया.

व्यापारी के शहर जाते ही, उसके सहायक ने गांव वालों से कहा कि ये पुरानी खरीद का माल तो शहर में ३५ रुपये में बेचना ही है. अगर तुम लोगों को खरीदना हो तो तुम लोग ले लो और व्यापारी जब वापस आयेगा, तो उसे ५० रुपये में बेच देना. सारे गांव वालों ने अपनी जमा पूंजी लगाकर उससे बन्दर खरीद लिए.

उसके बाद गांव वालों ने न कभी उस व्यापारी को देखा और न ही उसके सहायक को. दिखे तो बस सब तरफ बन्दर ही बन्दर.

अब तो आपको समझ आ ही गया होगा कि शेयर बाजार कैसे चलता है.

(यह कथा एक ईमेल फारवर्ड पर आधारित है)

अब चलते चलते दो कवितानुमा कुछ विचार!!

शतरंज.....

शतरंज के खेल में
घोड़ा हमेशा ढाई घर
चलता है
और
ऊँट तिरछा.

चलाते तुम हो
चाहो तो
घोड़ा
एक घर चला दो
या
ऊँट को
सीधा.

लेकिन तुम
ऐसा नहीं करते!!

हर चीज के अपने
कायदे होते हैं!!!

-0-

कहीं तुम मुझे......!!!

मैं दौड़ रहा हूँ
मुझे धावक न समझना!
मैं तैर रहा हूँ
मुझे तैराक न समझना!!

सब मजबूरियाँ हैं....

मैं हँसता भी हूँ
कहीं तुम मुझे
खुश तो नहीं समझते!!

यूँ तो मैं
सांस भी लेता हूँ,
कहीं तुम मुझे......!!!

--समीर लाल ’समीर’ Indli - Hindi News, Blogs, Links

मंगलवार, अक्तूबर 14, 2008

हो आये वाशिंग्टन-आप भी सुनो!!

बीती ११ अक्टूबर की सुनहरी शाम का ६ बजना चाहता था. कभी कभी ऐसा हो जाता है कि सूरज डूबने को होता है और चांद निकल आता है. एक तरफ डूबता सूरज, मानो आज घर जाने को राजी ही न हो और दूसरी तरफ चाँद, आज वक्त के पहले ही हाजिर. कौन नहीं होना चाहेगा जब इतना सुन्दर आयोजन हो राकेश खण्डेलवाल जी के अद्भुत गीतों के संकलन के विमोचन का.

यूँ तो गीत शब्द एक संज्ञा है. जब भी मन के भावों को एक विशेष छंदबद्ध तरीके से शब्दों में ढाला जाता है, तब हम उसे गीत कहते हैं. वो ही अगर बहुत उम्दा भाव, उम्दा शब्द चयन और उम्दा लय के संगम को दर्शाता हो, तो हम गीत रुपी इस संज्ञा में एक विशेषण जोड़ देते हैं, सुन्दर गीत. और यदि उस सुन्दर गीत में भावों को दर्शाने के लिए बिम्ब चयन भी विशिष्ट हो, तब एक और विशेषण लगा कर हम उसे अति सुन्दर गीत निरुपित करते हैं.

किन्तु राकेश भाई के गीतों के लिए ’अति सुन्दर गीत’ एक संज्ञा ही है. वो जब भी अपने दिल के भावों को छंदों मे उतारते हैं, वो स्वतः ही एक अति सुन्दर गीत का रुप ले लेता है और हम सुनने और गुनने वाले कह उठते हैं, ’वाह, अद्भुत’

इस मौके पर एक अन्तर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का भी आयोजन था, जिसके मुख्य अथिति थे जाने माने साहित्यकार डॉ सत्यपाल आनन्द जी और कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे फिलाडेफिया से पधारे विख्यात कवि श्री घनश्याम गुप्ता जी.

राजधानी मंदिर, वर्जिनिया, अमरीका के प्रांगण में कवियों और श्रोताओं का जमावड़ा सा था.

कविश्रेष्ट श्री सुरेन्द्र तिवारी जी, न्यू जर्सी से अनूप भार्गव जी और उनकी कवियत्री पत्नी श्रीमति रजनी भार्गव जी, टोरंटो से मैं स्वयं याने समीर लाल उड़न तश्तरी वाले, वाशिंग्टन से श्रीमति बीना टोड़ी, विशाखा जी, जिन्होंने ने बखूबी कार्यक्रम का संचालन किया, श्रीमति मधु माहेश्वरी जी एवं वाशिंग्टन के ही अनेक कवियों ने अपनी रचनाओं को प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया.

कार्यक्रम की शुरुवात स्थानीय कवियों के काव्य पाठ से हुई एवं उसके बाद डॉ सत्यपाल आनन्द जी ने किताब का विमोचन किया.

पुस्तक का विमोचन: डॉ.सत्यपाल आनन्द जी द्वारा:



लिंक:

http://www.youtube.com/watch?v=3HxweVw5QoE

इसी दौरान, मैने इस पुस्तक के प्रकाशक शिवना प्रकाशन, सिहोर के संचालक श्री पंकज पुरोहित ’सुबीर’ जी का प्रतिनिधित्व करते हुए राकेश जी का सम्मान पत्र एवं शाल पहना कर अभिनन्दन किया.

rk2

इसके बाद फिर काव्य पाठ का सिलसिला शुरु हुआ जो देर रात जाकर थमा. बीच में राजधानी मंदिर के सौजन्य से विविध व्यंजनों का लुत्फ उठाया गया. आप भी सुनिये.

विडियो अनूप भार्गव जी के सौजन्य से यूट्यूब पर चढ़ाये गये है.

राकेश खण्डेलवाल जी का काव्य पाठ:



लिंक:

http://www.youtube.com/watch?v=WjwqUEq0GUA

समीर लाल: काव्य पाठ



लिंक:

http://www.youtube.com/watch?v=Qqlt0QZZmdI


अनूप भार्गव जी का काव्य पाठ



लिंक:

http://www.youtube.com/watch?v=TEB2lQv2Z-o



रजनी भार्गव जी का काव्य पाठ:



लिंक:

http://www.youtube.com/watch?v=6O5AcJqTyrw Indli - Hindi News, Blogs, Links

बुधवार, अक्तूबर 08, 2008

जा रहे हैं विमोचन में...पढ़ेंगे अपनी कविता

११ अक्टूबर को गीत सम्राट राकेश खण्डेलवाल जी की पुस्तक ’अंधेरी रात का सूरज’ का विमोचन है. हमारे तो खैर वो गुरु जी हैं और हम उनके खास मूँह लगे चेले. न भी बुलाते, तो भी जाते जबरन. मगर पिछले तीन साल से लगातार वो उस कवि सम्मेलन में हमें बुला रहे हैं और हम जा रहे हैं, जिसमें इस साल विमोचन भी होना है. कितना बड़ा सौभाग्य है.

इस बार हम वहाँ तिहरी भूमिका में जा रहे हैं. एक राकेश जी के भक्त शिष्य की, दूसरी शिवना प्रकाशन, सिहोर, जिसने इस पुस्तक का प्रकाशन किया है, उनके प्रतिनिधि के रुप मे और तीसरे हम खुद भी तो कुछ मायने रखते हैं भई.

शिवना प्रकाशन जो हमारे गुरु पंकज सुबीर जी का है, उसके एक विमोचन में मैं सिहोर में था पिछले साल. हटीला जी की पुस्तक ’बंजारे गीत’ का विमोचन था और साथ ही कवि सम्मेलन भी. सारा कार्यक्रम देखा, सुना और सुनाया. बहुत ही सम्मान और अभिनन्दन के साथ होता है विमोचन. बड़ा आनन्द आया था. इस बार उसी परम्परा का निर्वहन मैं करुँगा शिवना के लिए, यह सौभाग्य की बात है. फोटो आदि भी आगे पोस्ट की जायेंगी, मेरे लौटने पर.

यह आय्जन राकेश जी के लिए भावुक क्षण होगा..मेरे लिए भी. अनूप भार्गव जी और उनकी पत्नी रजनी भार्गव न्यू जर्सी से एवं घनश्याम गुप्ता जी जी फिलाडॆफिया से आ रहे हैं इस कार्यक्रम में शिरकत करने. बहुत आनन्ददायी यात्रा रहेगी. ३ घंटे की एक जगह रुकते फ्लाईट है. परसों दोपहर में...निकलेंगे और आनन्द उठायेंगे और आनन्द फैलाना की कोशिश तो खैर रहेगी ही.

राकेश जी के लिए:

हमारे पास तो राकेश जी के हर गीत के लिए एक ही टिप्पणी है: ’अद्भुत’

अब सुनिये पिछली बार इसी जगह हुए कवि सम्मेलन की रिकार्डिंग:




अनेकों शुभकामनाऐं इस कार्यक्रम के लिए. बाकी वहाँ से आकर रिपोर्ट पेश करता हूँ.

This video presentation is courtesy of YouTube. Video Taken By: Sameer Lal. Video camera: SONY Battery used: Nokia Categories: Songs, Movie, Poems Indli - Hindi News, Blogs, Links

रविवार, अक्तूबर 05, 2008

स्वर्ग तुम्हें मैं दिलवा दूँगा...

आज रविवार है अतः थोड़ा आराम रहा. सोचा था कि आज कुछ समय निकाल कर लिखा जायेगा. मगर मैने देखा है कि जब भी समय ज्यादा रहता है, सोचा हुआ काम पूरा नहीं हो पाता. पता नहीं क्या वजह है. जब समय कम रहता है तो काफी बड़े बड़े काम निपट जाते हैं मगर खाली वक्त जैसे कुछ करने ही नहीं देता.

दिन भर में सोचता ही रह गया और कुछ नहीं लिखा. कुछ ब्लॉग पढ़े. पुराने दिनों के ब्लॉग एग्रीगेटर पर भी जाना हुआ.लोग लिख रहे हैं और खूब लिख रहे हैं. एक बात सोचता हूँ कि जब इतना लिखा जा रहा है तो लोग एक ही पोस्ट दो दो चार चार ब्लॉग से बार बार क्यूँ पोस्ट करते हैं? क्या उद्देश्य रहता है? और भी कि एक लिखता है, वो एग्रीगेटर पर दिखता है तो दूसरा उसका लिंक बताता है, वो भी दिखने लगता है. संसाधनों का दुरुपयोग सा लगता है.

शिकायत तो नहीं, महज एक विचार है. कभी सोचता हूँ कि गाँधी जी जब जिन्दा रहे होंगे तब उनको जन्म दिन की इतनी मुबारकबाद मिली होगी क्या जितनी हम दिये चले जा रहे हैं. एक बार हो गया भई..१३७ पोस्ट-जन्म दिन मुबारक. फिर ११० इस पर कि शास्त्री जी को याद नहीं किया. फिर ९९ ईद मुबारक तो ८० नव रात्रे की शुभकामनाऐं.

त्यौहार का मौका है. मास्साब बच्चों को समझा रहे हैं-ईद है, गाँधी जयंति है, शास्त्री जी का जन्म दिन है, नवरात्रि है-सब का एक संदेश-भाई चारा फैलाना है. मानो कि भाई चारा न हुआ, रायता हो लिया अमेरीकी अर्थ व्यवस्था जैसा कि फैल जायेगा. चलो फैला भी लोगे-तो समेटेगा कौन?

बच्चा समझने की कोशिश कर रहा है. टीवी दर्शक बच्चा है यानि सीखा सिखाया ज्ञानी. सर, भाईचारा फैल ही नहीं सकता?

’क्या बात करते हो’ मैं उसकी नादानी पर आश्चर्य व्यक्त करता हूँ.

उसका कहना है कि जो चीज है ही नहीं, उसे फैलाओगे कैसे?

मैने कहा कि है कैसे नहीं?

बोल रहा है कि भाई तो पाकिस्तान में जाकर बैठा है, इन्टर पोल तक खोज रही है, वो भी नहीं ढ़ूंढ़ पा रही तो हम आप क्या खोजेंगे फैलाने के लिये. तो भाई तो प्रश्न से बाहर हो लिये. अब बचे चारा, वो अगर होता तो लालू और खा लेते. वेशियों और उन के समतुल्य माने जाने वाली आम जनता के हाथ तो आने से रहा. सी बी आई उसी चारे की तहकीकात कर रही है, उन्हें ही करने दें. फैलाने की बात बाद में करेंगे.

इसी बात में क्लास खत्म होने की घंटी बज जाती है और मैं बहुत शांत महसूस कर रहा हूँ घंटनाद से.

एक गीत लिख देता हूँ, पढ़िये:



स्वर्ग तुम्हें मैं दिलवा दूँगा

स्वर्ग तुम्हें मैं दिलवा दूँगा, मेरा तुम विश्वास करो
फर्ज तुम्हारा भूल गये हो, पूरा उसको आज करो.

सोने की चिड़िया होता था भारत वो नीलाम हुआ
जिसने जिसने लूटा इसको, उसकी तहकीकात करो.

फरमानों को गाँधी जी के, कैसे हम तुम भूल गये
नेताओं आज यहाँ कहते है, अपना घर आबाद करो.

धर्म हमें जुड़ना सिखलाता, डूब के उसको जानों तुम
आपस में लड़ते भिड़ते ही, वक्त न तुम बर्बाद करो.

देश हमारा फिर से होगा, सपनों वाला भारत वो,
छोड़ो उसको क्या कहता है, तुम अपनी ही बात करो.

-समीर लाल ’समीर’ Indli - Hindi News, Blogs, Links

बुधवार, अक्तूबर 01, 2008

सुनो!! हम अब जाग गये है!!

कल रात किसी वजह से सोने में ज्यादा देर हो गई और बिना किसी वजह नींद भी जल्दी खुल गई. कुछ देर कम्प्यूटर पर विचरण और चल दिये हमेशा की तरह सुबह ६.१५ पर ऒफिस के लिए. ६.३० की ट्रेन हमेशा की तरह सही समय स्टेशन पर आई और हम सवार होकर निकल पड़े.

थोड़ी देर किताब पढ़ते रहे मनोरह श्याम जोशी जी की और न जाने कब नींद का झोंका आया और हम सो गये. पूर्व से पश्चिम तक १०० किमी में फैले इस रेल्वे ट्रैक पर मेरे दफ्तर टोरंटो डाउन टाउन के लिए पूर्व से पश्चिम की ओर ५० किमी ट्रेन से जाना होता है. दूसरी तरफ फिर ५० किमी पश्चिम की तरफ ओकविल और हेमिल्टन शहर है. मगर मेरी ट्रेन डाऊन टाऊन पहुँच कर समाप्त हो जाती है. आगे नहीं जाती सवारी लेकर.

एकाएक नींद खुली, तो देखा ट्रेन में कोई नहीं है. मैं ट्रेन की पहली मंजिल से उतर कर जल्दी से नीचे आता हूँ, वहाँ भी कोई नहीं. खिड़की के कांच से बाहर झांक कर देखता हूँ. कहीं जंगल जैसा इलाका है जिसमें ट्रेन खड़ी है. मैं दूसरी तरफ की खिड़की से झांक कर देखता हूँ. एक नहर बह रही है और कुछ नहीं. दरवाजे बंद हैं और मै एक अकेला पूरी ट्रेन में. घड़ी पर नजर डालता हूँ तो ८ बज रहे हैं जबकि मेरा स्टेशन तो ७.१५ पर आ गया होगा. बाप रे!! कितनी देर सो गया और किसी ने उतरते वक्त जगाया भी नहीं. मैं थोड़ा सा घबरा जाता हूँ. क्या पता, अब कब वापस जायेगी और पहले तो यही नहीं पता कि हूँ कहाँ?

मन में विचार आया कि अगर शाम को वापस लौटी तब? तब तक मैं बंद पड़ा रहूँगा यहाँ. फिर अगला विचार कि भूख लगी तब? याद आया कि लंच तो साथ है ही. ब्रेकफास्ट भी नहीं किया था कि ऒफिस चल कर खा लेंगे. हाँ, एक केला और ज्यूस भी है. मैं कुर्सी पर फिर बैठ जाता हूँ. भारतीय हूँ, कैसी भी स्थितियों से फट समझौता कर लेता हूँ. मैं बैग में से केला निकाल कर खाने लगा.

इस दौरान विचार करता रहा कि क्या करना चाहिये. एक बार विचार आया कि आपातकाल वाली खिड़की फोड़ कर बाहर निकल जाऊँ मगर फिर सोचा कि जाऊँगा कहाँ? ट्रेक के दोनों बाजू तो तार की ऊँची रेल लगी है. इस शरीर के साथ तो कम से कम उस पर चढ़कर पार नहीं जाया जा सकता है. हाँ शायद चार छः दिन बंद रह जायें तो शरीर उस काबिल ढ़ल जाये मगर तब ताकत नहीं रहेगी कि चढ़ पायें, अतः यह विचार खारिज कर केला खाने लगा.

go_train

सेल फोन भी साथ है मगर फोन किसे करुँ और क्या बताऊँ कि कहाँ हूँ? सोचा, अगर लम्बा फंस गये तो घर फोन कर बता देंगे. अभी तो बीबी सोई होगी, बीमारी में खाम खां परेशान होगी. उसके हिसाब से तो शाम ५ बजे तक कोई बात नहीं है, ऒफिस में होंगे. कोई मिटिंग चल रही होगी, इसलिए दिन में फोन नहीं किए होंगे.

खाते खाते केला भी खत्म. मगर हम अब भी बंद. कुछ समझ नहीं आया तो बाजू के कोच में भी टहल आया. हर तरफ भूत नाच रहे थे याने कोई नहीं. रेल्वे वालों पर गुस्सा भी आया कि यार्ड में खड़ा करने से पहले चैक क्यूँ नहीं करते. अगर कोई बेहोश हो जाये तो?? पड़ा रहे इनकी बला से.

बस, ऐसा विचार आते ही गुस्सा आने लगा. गुस्सा शांत करने के लिए ज्यूस निकाल कर पीने लगा. विचार तो चालू हैं कि क्या करुँ? बेवकूफी ऐसी कि तीन पेट भरने के सामानों में से केला खा चुके, ज्यूस पीने लग गये और खाना रखा है मगर सोचो यदि एक दो दिन बंद रहना पड़ जाये कि ट्रेन आऊट ऒफ सर्विस हो गई है तब?? मुसीबत के समय के लिए कुछ तो बचा कर रखना चाहिये. मगर क्या करें इतनी दूर की सोच कहाँ? यह विचार आते ही, आधा पिया ज्यूस वापस बंद कर बैग में रख लिया.

बाथरुम में जाकर पानी चला कर भी देख लिया कि आ रहा है. वक्त मुसीबत पीने के भी काम आ जायेगा, यह सोच संतोष प्राप्त किया.

एकाएक ख्याल आया कि एमरजेन्सी बेल बजा कर देखता हूँ. शायद कहीं मेन से कनेक्ट हो. कोई सुन ले. बस, पीली पट्टी दबा दी. कोई जबाब नहीं. दो मिनट चुप खड़े रहे जबाब के इन्तजार में. फिर खिसियाहट में दबाई और वाह!! एकाएक एनाउन्समेन्ट हुआ कि डब्बा नं. २६२६ में कोई है, चैक किया जाये. जान में जान आई. ५ मिनट में ही अटेन्डेन्ट आ गया. कहने लगा आप यहाँ कैसे? मैने कहा कि भई सो गया था, अब मैं कहाँ हूँ? उसने बताया कि अभी आप पश्चिम में टोरंटो से ४५ किमी दूर ओकविल के बाहर हैं.

मैने उससे कहा कि आपको मुझे जगाना चाहिये था, अब मुझे वापस पहुँचाईये टोरंटो. मैं नहीं जानता कि कैसे पहुँचाओगे मगर यह तुम्हारी जिम्मेदारी है. वो मुस्कराता रहा. शायद मेरे मन में इतनी देर का भय गुस्सा बन कर निकल रहा है, वह समझ गया था.

मैं चिल्लाता गया, वो मुस्कराते हुए सुनता रहा. फिर कहा कि आप बैठ जाईये और हम दस मिनट बाद यहाँ से रवाना होंगे और दो स्टेशनों के स्टॉप के बाद टोरंटो डायरेक्ट जायेंगे. आपको वापस टिकिट खरीदने की भी जरुरत नहीं है, मैं टीसी से कह दूँगा. मेरी जान में जान आई और वो चला गया. दस मिनट बाद ट्रेन रवाना हुई और एक स्टेशन ’क्लार्कसन’ पर आकर रुकी. लोग चढ़ते हुए मुझे पहले से बैठा देख अजूबे की तरह से देख रहे थे कि ये पहले से यहाँ कैसे?

इतने में वो अटेन्डेन्ट भी आ गया. उसके हाथ मे दो कप कॉफी थी. एक उसके लिए और एक मेरे लिए तथा वो रेल्वे की तरफ से मुझसे मुझे हुई परेशानी के लिए माफी मांग रहा था. मैं तो मानो शरम से गड़ गया. फिर टोरंटो भी आ गया और मैं उसे धन्यवाद दे अपने ऒफिस आ गया.

सोचता हूँ कि इसी तरह सोते सोते मेरे देशवासी भी कहाँ से कहाँ तक चले आये हैं और अब कोई रास्ता ही नहीं सूझता है कि करें क्या? तो सब विधाता के हाथ छोड़ बैठे केला खा रहे हैं बिना कल की चिन्ता किये. जिस दिशा की हवा चल जायेगी, जहाँ लहर बहा कर ले जायेगी, चले जायेंगे. अभी तो केला खाओ!!

लगता है मित्रों, अब समय आ गया है कि हम जागें और पीला अलार्म बजायें. उनको सुनना ही होगा हमारी तकलीफें और देना ही होगा हमें कुछ निदान हमारी समस्याओं का. हमें ही हवाओं को और लहरों कों अपनी मंजिल की दिशा में मोड़ना होगा. अपने अधिकार की मांग करनी होगी. ठीक है आज तक हम सोते रहे, गल्ती हमारी है मगर उन्होंने भी तो हमें जगाया नहीं. बल्कि हमारी नींद की आड़ में अपना उल्लू सीधा करते रहे. कैसे नहीं सुनेंगे हमारी वरना हम प्रतिकार करेंगे क्योंकि हम अब जाग गये हैं. Indli - Hindi News, Blogs, Links