रविवार, सितंबर 25, 2016

सच कह न पायेंगे लब...



सच कह न पायेंगे लब, आँखों की जुबां पढ़ना
पढ़ पाओ खुद को जब तुम, औरों की जुबां पढ़ना...
जो तुम में बस गया है किरदार अजनबी सा
उसे जानने की खातिरगैरों की जुबां पढ़ना..
किस प्यार से चमन को सींचा है बागबां ने...                
जब  गंध कुछ न बोलेभौरों की जुबां पढ़ना..
है सिलसिला-ए-ख्यवाहिश ये जिन्दगी मुसलसल 
इक दौर क्या मुनासिबदौरों की जुबां पढ़ना..
जाना समीर ने कब गम है किसी को कितना
मुस्काते गुल मिलेंगेखारों की जुबां पढ़ना..


-समीर लाल समीर
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