सोमवार, नवंबर 19, 2012

अधूरे सपने- अधूरी चाहतें!!

mountains

मेरे कमरे की खिड़की से दिखता

वो ऊँचा पहाड़

बचपन गुजरा सोचते कि

पहाड़ के उस पार होगा

कैसा एक नया संसार...

होंगे जाने कैसे लोग...

क्या तुमसे होंगे?

क्या मुझसे होंगे?

आज इतने बरसों बाद

पहाड़ के इस पार बैठा

सोचता हूँ उस पार को

जिस पार गुज़रा था मेरा बचपन...

कुछ धुँधले चेहरों की स्मृति लिए

याद करने की कोशिश में कि

कैसे थे वो लोग...

क्या तुमसे थे?

क्या मुझसे थे?

तो फिर आज नया ख्याल उग आता है

जहन में मेरे

दूर

क्षितिज को छूते आसमान को देख...

कि आसमान के उस पार

जहाँ जाना है हमें एक रोज

कैसा होगा वो नया संसार...

होंगे जाने कैसे वहाँ के लोग...

क्या तुमसे होंगे?

क्या मुझसे होंगे?

पहुँच जाऊँगा जब वहाँ...

कौन जाने बता पाऊँगा तब यहाँ..

कुछ ऐसे ही या कि

चलती जायेगी वो तिलस्मि

यूँ ही अनन्त तक

अनन्त को चाह लिए!!

बच रहेंगे अधूरे सपने इस जिन्दगी के

जाने कब तक...जाने कहाँ तक...

तभी अपनी एक गज़ल में

एक शेर कहा था मैने

“कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा

वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है”

-समीर लाल ’समीर’

Indli - Hindi News, Blogs, Links