माँ की धुँधली सी तस्वीर उसके मानस पटल पर अंकित है. साफ साफ तो नहीं याद, जब माँ गुजरी तब वो बहुत छोटा था. रात माँ के बाजू में ही दुबक के सोया था. उसे अंधेरे से डर लगता था तो माँ से चिपक कर सो रहता, कोई डर पास ना आता.
सुबह उठा तो रोज की तरह माँ बाजू में नहीं थी. कमरे के बाहर निकल कर आया तो माँ को सफेद चादर में लिपटा हुआ जमीन पर लेटा पाया. मोहल्ले की सारी स्त्रियाँ उनके इर्द गिर्द इकट्ठा होकर रो रहीं थीं.
सबको रोता देख वो भी रोने लगा. उसे तो यह भी पता नहीं था कि मौत क्या होती है. बाद में रद्दो मौसी ने उसे बताया था.
रद्दो मौसी, उसकी प्यारी मौसी, एक दिन बाद आई थी पास के गांव से. तब तक न उससे किसी ने खाना पूछा था और न ही दूध. जब जब उसे भूख लगती वो माँ को याद करता.
माँ को कँधे पर उठाकर बाबूजी और मोहल्ले वाले ले गये थे. पड़ोस की बिमला चाची कह रहीं थी कि अब वो भगवान के पास गईं और अब कभी नहीं आयेगी. मगर उसे उनकी बात पर यकीन ही नहीं आ रहा था, भला उसकी माँ उसे छोड़ कर कैसे जा सकती है कहीं हमेशा के लिये.
शाम को बाबूजी वहीं बैठक में बैठे रहे और लोग आते जाते रहे उनसे मिलने. कुछ रिश्तेदार भी आ गये थे. किसी को भी उसका ध्यान नहीं था. सब बाबूजी से मिलते और उसके सर पर हाथ फिरा कर चले जाते.
रात होते वो कमरे में आ गया. बाबूजी बैठक में ही बैठे थे. कुछ बोल ही नहीं रहे थे.
वैसे भी वो चुप ही रहते थे और बैठक में ही रहते, खाते और सोते थे. वो तो बस अपनी माँ से ही बात करता था. अब भूख के साथ साथ उसे नींद भी आ रही थी. वो वहीं माँ के बिस्तर पर लेट गया.
उसे पूरा यकीन था कि माँ मौसी के यहाँ गई होगी, रात गये आ जायेगी. तब वो उससे खाना खाने को कहेगी, तो वो रुठ कर मना कर देगा. जब बहुत दुलरायेगी और अपने हाथ से पुचकार कर खिलायेगी, तब खा लेगा.
यही सोचते सोचते आँखों में आंसू लिये कब आँख लग गई, पता ही नहीं चला. सुबह सुबह जब रद्दो मौसी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा, तो उसकी नींद खुली.
उसे ऐसा लगा जैसे माँ वापस आ गई है. उसे मौसी के आंचल से माँ की खुशबू आती थी. मौसी ने उसे बहुत पुचकारा, नहलाया और अपने हाथ से खाना खिलाया. बाबूजी तो आज भी दिन भर बैठक वाले कमरे में ही बैठे थे, सब मिलने जुलने वाले दिन भर आते रहे.
आज वो मौसी के साथ माँ के बिस्तर पर सो गया. मौसी उसके सर पर माँ की तरह ही हाथ फिराती रही. माँ की खुशबू आ रही थी उसके पास से.
उसने मौसी से माँ के बारे में पूछा. मौसी ने उसे बताया कि मौत क्या होती है और यह भी, माँ अब मर चुकी है और अब कभी वापस नहीं आयेगी. पता नहीं क्यूँ अपनी सबसे प्यारी मौसी से यह सुन कर उसका मन बैठ गया. आज मौसी उसे अच्छी नहीं लग रही थी और उसके पास से आती माँ की खुशबू भी न जाने कहाँ खो गई थी. वो करवट बदल कर नम आँख लिए सो गया.
सब क्रिया करम हो जाने के बाद मौसी उसे अपने साथ ले जाना चाहती थी. बाबूजी ने हाँ भी कर दी थी मगर वो रो रो कर जाने को तैयार ही नहीं हुआ. बाबूजी ने डाँटा भी, मगर वो नहीं गया. रद्दो मौसी लौट गई.
बाबू जी सुबह से काम पर निकल जाते और घर पर रह जाता वो और सुबह से आई
छुट्ट्न की माई. वो ही अब खाना बनाती थी, उसे नहलाती, खाना खिलाती और देर रात वापस घर चली जाती. पास ही रहती थी. अक्सर छुट्ट्न भी साथ आ जाता. वो दिन भर छुट्ट्न के साथ खेलता.
समय निकलता गया. बाबू जी शाम से ही पीने लगते. अब वो सोचता है तो लगता है कि शायद इस तरह माँ के न रहने का दुख भुलाते होंगे.
फिर नई अम्मा भी आ गई. मगर बाबू जी का दुख कम नहीं हुआ और उनका शाम से ही पीना जारी रहा. दर्द तो नई अम्मा के आने से उसका भी कम नहीं हुआ बल्कि कुछ बढ़ ही गया. छुट्टन की माई का आना भी बंद करा दिया गया सो छुट्टन का आना भी बंद हो गया.
अब वो खुद से नहाना और खाना निकाल कर खाना भी सीख गया था. मोहल्ले के और बच्चों को अपनी माँ से दुलरवाते देखता तो माँ की याद में उसकी आँखें भर आती. वो अपने ही अहाते में लगे नीम के पेड़ के नीचे आकर बैठा माँ को याद करता रहता. कोई कौआ नीम पर बैठा निंबोली गिरा देता.
बिल्कुल कड़वी निंबोली- उसे उसकी बदकिस्मती की अहसास कराती निंबोली.
दर्जा १२ के बाद उसे आगे पढ़ने शहर भेज दिया गया. उसे बिल्कुल बुरा नहीं लगा. वहाँ भी अकेला ही तो था और यहाँ भी. वो छुट्टियों में भी गाँव न जाता. पढ़ाई खत्म करके वहीं शहर में एक अखबार में नौकरी पर लग गया.
एक रात खबर आई कि बाबू जी की तबीयत खराब है, तुरंत चले आओ. जब वो पहुँचा तो बाबूजी अंतिम सांसे गिन रहे थे. शायद उसका ही इन्तजार कर रहे थे. उसे देखकर उनकी आँखों से दो बूँद आँसूं गिर पड़े. हमेशा की तरह आज भी बोले कुछ भी नहीं. बस, तकिये के नीचे से एक लिफाफा निकाल कर दिया और इस दुनिया से विदा हो गये.
दाह संस्कार करके घर लौटा तो वहीं नीम के नीचे आ बैठा और लिफाफा खोल कर देखने लगा. उसमें एक फोटो थी. माँ की शादी के पहले की. पिता जी ने एक कागज पर लिख दिया था कि माँ की बस यही एक फोटो उनके पास थी. किसी मेले में खींची गई. नाना, नानी और माँ. बिल्कुल मौसी की तरह. शादी के पहले वाली मौसी. उसे अपनी स्मृति वाली माँ की धुँधली सी तस्वीर याद आई. बिल्कुल इस तस्वीर से जुदा.
न जाने क्या सोच कर उसने वो तस्वीर फाड़ दी. आखिर आज तक वो अपनी स्मृति वाली माँ की धुँधली सी तस्वीर के सहारे ही तो जीता आया था. वो उसे विस्मृत नहीं करना चाहता था. तभी कोई कौआ नीम पर आ बैठा और कौवे ने एक निंबोली गिरा दी.
बिल्कुल कड़वी निंबोली- उसे उसकी बदकिस्मती की अहसास कराती निंबोली.
अगले दिन ही वो शहर चला आया और उसके साथ शहर लौटी उसकी अपनी स्मृति वाली माँ की धुँधली सी तस्वीर. वो फिर कभी गाँव नहीं गया लेकिन शहर में अपने घर के अहाते में उसने आम का पेड़ लगाया है,
मीठे आम का पेड़.