शनिवार, मार्च 31, 2018

लीकेज का दूसरा एंगल


तिवारी जी, एक खुश मिज़ाज हिन्दी के रिटायर्ड सरकारी प्रायमरी स्कूल के शिक्षक. जब परेशान होते हैं तो बस मौहल्ले के नुक्कड की पान की दुकान पर चले आते है. चार साथियों से अपनी परेशानी कह कर थोड़ा हल्का हो लेते हैं.
आज भी वहीं बैठे थे मूँह में पान दबाये सर पर हाथ धरे. लगा कि जैसे उनकी पूरी दुनिया डूब गई है और वो तन्हा बचे साहिल पर किनारे बैठे हैं.
पूछने पर कहने लगे कि तुम तो जानते हो कि मैं एक टैकी हूँ. टेक्नालॉजी मेरी हर सांस में बसी है,मैं उसी को जीता हूँ.
हालांकि खुद को टैकी कहने के पीछे उनकी पिछले तीन वर्षों की वो महारत है जो उन्होंने फेस बुक पर तीन खाते खोल कर (एक खुद के नाम का और दो फेक आईडी) और व्हाटस अप पर एक खुद का एकाऊन्ट और चार ग्रुप के एडमिन होने के नाते हासिल की है. इसके सिवाय तो शायद टेक्नालॉजी को अगर अंग्रेजी में लिखना हो, तो भी न लिख पायें. मगर नेताओं को देखते सुनते हुए वह इतने गुर तो सीख ही गये हैं कि इसे अपनी कमी को मानने की बजाये वह इसे अपनी हिन्दी भाषा की सेवा एवं अन्तर्जाल पर हिन्दी के प्रसार और प्रचार में स्वयं का समर्पण मानते हैं. इसके सिवाय उनका टेक्नालॉजी से कोई साबका न आज है और न ही उम्मीद है कि कल रहेगा जैसा कि उनका हिन्दी के साथ रहा. आँठवी कक्षा तक पढ़ाते थे तो उसके आगे की कभी थाह भी न ली और न ही उससे आगे हिन्दी से कोई मतलब रखा.
आगे परेशानी बताने लगे कि लीक के बारे में तो सुना ही होगा तुमने?
वे पान की दुकान पर बैठ कर इसी तरह के मुद्दे उठाते थे जो वहाँ बैठे अन्य किसी की समझ के परे की बात होती. मगर पान की दुकान की खासियत ही यह है कि वहाँ बैठे सभी अपनी राय बात जरुर हर मुद्दे पर रखते हैं. देखकर तो लगता है कि पान की दुकान न हुई, संसद हो गई हो जिसे देखो कश्मीर के आर्टिकल ३७० की बात करने लगेगा, जीएसटी की बात करने लगेगा, जीडीपी की बात करने लगेगा मगर इसकी समझ कितनो को है यह कहना मुश्किल है. मुद्दे पर बकर करना और मुद्दे की समझ होना, दो अलग अलग बातें हैं.  
हमने कहा कि जी, पिछली बार जब आप मिले थे तब आप अपने घर की छत लीक होने की बात कर रहे थे और आप कोई मिस्त्री को खोज रहे थे, वो तो आप को दिला दिया था. फिर क्या हुआ?
दूसरे सज्जन बोल उठे कि अरे, उसमें मिस्त्री ने वाटरप्रूफिंग कम्पाऊन्ड नहीं मिलाया होगा इसलिए फिर से लीक कर गई होगी.
तीसरे ने अपनी बात जोड़ी कि पुराना पल्सतर चिनवा कर फिर नया डालो तो रुकेगी लीकेज.
चौथे बोले कि हमारी मानो तो कुछ न करवाओ. लीकेज, भ्रष्टाचार और बेईमानी सब एक समान हैं, ये ना जाने वाले कहीं. इधर से रोको तो उधर से शुरु, उधर से रोको तो फिर इधर से शुरु. हमने तो इसे अपना प्रारब्ध मान कर अपना लिया है. खुद ही दायें बायें हो लेते हैं कि चुअन से बचे रहें बस्स!!
तिवारी जी झुंझला कर बोले कि अरे वो वाला लीक नहीं भई, वो तो इसके सामने कुछ भी नहीं है.
अच्छा तो फिर जब आपकी शर्ट में पैन लीक कर गया था तब भी तो आपको तुरंत नई शर्ट ला कर दी थी स्कूल के मंच पर चढ़ने के पहले..फिर कैसी परेशानी?
अरे तुम समझ नहीं रहे हो..मैं अपने टेक्नालॉजी क्षेत्र की बात कर रहा हूँ!
उसमें क्या हुआ?
अरे वहाँ मेरा डाटा लीक हो गया है..और तुम पूछ रहे हो कि क्या हुआ? मैं तो एकदम एक्सपोज हो गया हूँ!!
अरे..ये क्या बात हुई...आपके पास एक्पोज होने के लिए है ही क्या? आपका डाटा लेकर कोई करेगा क्या?
सो तो हमारे पास रुपया पैसा भी नहीं है तो क्या घर खुल्ला छोड़ दें? घुस जाने दें चोर को घर में कि आओ, आओ..हमारे घर भी आओ और फिर वो जाकर सबको बताता फिरे कि इनके घर तो कुछ मिला ही नहीं. कौन झेलेगा बदनामी? ढका रहे तो ही ठीक. दिखावे का जमाना है. वरना तो क्या हम और क्या देश...परदा हट जाये तो कैसा विकास और कैसी स्वच्छता?
एक ज्ञानी तुरंत तिवारी जी को समझाने के मोड में आ गये कि ज्यादा परेशान न हुआ करिये. हर परेशानी का एक दूसरा एंगल भी होता है उसे देखकर संतोष कर लिया किजिये. जैसे कि अगर आप ये सोचें कि नीरव मोदी १८००० करोड़ का घोटाला करके भाग गया है तो परेशानी तो होगी मगर अगर दूसरा एंगल देखें कि पर हैड तो १५० रुपये ही ले गया. इत्ता बड़ा डायमंड का व्यापारी, यूँ भी अगर आप से कहता कि भाई, विदेश जाना है, जरा १५० रुपये की मदद कर दो तो क्या कोई मना करता भला?
अभी तो बस डाटा लीक हुआ है. इस उम्र में अगर इतना परेशान रहेंगे तो किसी दिन खुद ही लीक हो लेंगे इस दुनिया से और किसी को पता भी न चलेगा. इसलिए बाकी की किसी भी लीक पर ध्यान न दें, बस खुद को लीक होने से बचाये रखें.
-समीर लाल समीर

भोपाल से प्रकाशित सुबहा सवेरे में अप्रेल १, २०१८ को:

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शनिवार, मार्च 24, 2018

क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात


वे आंदोलन की पैदाईश हैं, ऐसा उन्होंने खुद बताया. इसका क्या अर्थ है यह जानना भी अपने आप में आंदोलन का विषय है, जिस पर फिर कभी सोचा जायेगा,मुद्दा बचा कर रख लेते हैं. एक ओर जहाँ आंदोलन करना एक विज्ञान है, वहीं दूसरी तरफ इसके लिए मुद्दे खोजना और आड़े वक्त के लिए बचा कर बाकी रखना एक कला है.
आंदोलन की पैदाईश होने का प्रमाण भी वे समय समय पर एक फुटप्रिन्ट की तरह छोड़ते रहते हैं. उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किया. उन्होंने सरकार के खिलाफ आंदोलन किया. उन्होंने अपने ही खिलाफ आंदोलन करते हुए सरकार से इस्तिफा दे डाला. खुद की सरकार गिरा दी. फिर उस इस्तिफे को अपनी गल्ती मानते हुए जनता से माफी मांग कर फिर आंदोलननुमा वापसी की. कभी एलजी, कभी केन्द्र, कभी पुलिस..कोई भी ऐसा न बचा, जिसके खिलाफ आंदोलन न किया हो. हर तरफ फुट प्रिन्ट ही मिलते मगर आजकल सर्वव्याप्त बकैती के साम्राज्य के चलते अब युगपुरुष फुटप्रिंट के बदले टंगप्रिंट छोड़ते हैं..जो आने वाले जमाने की बकैती के मानक बनेंगे फॉलो करने के लिए...  आजकल ये इसी ज्ञान को प्राप्त टंगप्रिंट छोड़ रहे हैं.
जिन्दाबाद जिन्दाबाद मुर्दाबाद मुर्दाबाद की आवाजें जैसे इनकी सांसों की सरगम हों गई हैं. वो रुकीं तो ये भी जी न पायेंगे.
खाँसे भी तो आंदोलन के अंदाज में. याने कि खाँसे तो खाँसेते ही चले गये, फिर रुके तो रुक ही गये. अब नहीं खाँस रहे हैं. कौन जाने कल फिर खाँसने लगें? सब वक्त का तकाजा है और चुनाव जीतने के लिए अगर आवश्यक हुआ तो फिर से खाँसेंगे. जबाब देने में अगर फंस रहे हों तो खाँसेंगे. गला हमारा, खाँसी हमारी!
चुनाव जीतने के लिए खाँसी ही क्यूँ..बाकी हथकंडे भी आंदोलन वाले जिन्दाबाद मुर्दाबाद की तर्ज पर लगाये. जो सामने आया उस पर आरोप लगायें जो सामने न आया, उस पर भी आरोप लगाये.
आरोप भी संगीन इतने कि सब के सब चोर हैं सिवाय इनके.
जब सब चोर हैं तो यह भी सोच लेना था कि चोर चोर मौसरे भाई होते हैं!! सबने आपस में हाथ मिलाये और इनकी बैंड बजाने की ठान ली!
इधर से मान हानि, उधर से मान हानि..हर तरफ से मान हानि के मुकदमें इनके खिलाफ दायर होने लगे. मानहानि भी उनकी कि जिनका मान दो कौड़ी का भी नहीं. मगर मानहानि का अपना स्वभाव है, ठीक वैसे ही जैसे चप्पल मारना उतना मायने नहीं रखता..किस कम्पनी की चप्पल किसने किस पर कितनी बार चलाई..ये मायने रखता है..वरना रिक्शे वाले तो गली गली रोज पिटते ही हैं. सब मौके की नजाकत है. ठीक वैसे ही जैसे बात चली थी कि सांसदों के अधिकारों की रक्षा के लिए जिस तरह एक सांसद ने हवाई जहाज में चप्पल चलाई थी, उसे वीरता चक्र मिलना चाहिये था. बैन की जो बात करे उसे देश निकाला दो.
चूँकि मान की हानि एक राज्य के सीएम ने की और वो भी एक केन्द्र के अहम की..तो मामला करोड़ों में हो गया. इतने सारे मान हानि के मुकदमें कि आने वाले जिन्दगी के कई साल तो कोर्ट में पेशी अटेंड करते हुए गुजरें और बाकी का जीवन मान हानि की रकम, आदतन एनजीओ में अनुदान लेकर भरते हुए गुजरे. सीएम हैं मात्र भ्रम की बात होकर रह जायेगी तब.
अतः आज मौके की नजाकत ऐसी है कि सोचा, एक नया आंदोलन छेड़ा जाना चाहिये और आजकल आप देख रहे हैं एक नया आंदोलन- माफी मांगो आंदोलन.
हर किसी से माफी. हमका माफी दे दो, हमसे भूल हो गई. किसी ने पूछा था कि आप इतनी माफी क्यूँ मांग रहे हैं आखिर एकाएक? तो कहने लगे कि हम बहुत धार्मिक प्रवृति के हैं और हमारे बनिया (जैन) धर्म में साल भर में अगर किसी का दिल दुखाया हो तो पर्युषण पर्व के दौरान मिच्छामी दुक्कड़म कह कर माफी मांगने का रिवाज है. इसलिए मांग रहे हैं. तब उनको याद दिलाया कि आपके धर्म में तो किसी तो सताने की भी मनाही है फिर? तब कहने लगे कि मैं सर्वधर्म बिलिवर हूँ और उसमें से राजनिति भी तो मेरा धर्म है. फिर वे खाँसने लगे. अब कुछ कहने को बाकी बच न रहा तो हम ही चुप लगा गये.
मगर फिर भी हालत ये हो लिए कि एक ने पूछ लिया कि किस बात की माफी मांग रहे हो भाई? तो वे शरमाते हुए बोले..कल जो हरकत करने वाले हैं उसकी.
कुछ खतायें जो गुजर गई...
कुछ आज जिन्दा बाकी हैं..
तुम क्या जानो मुझको मेरे...
कितनी खतायें अभी बाकी हैं..
९०% लोग माफी दे भी चुके, वे समझते हैं इस बात को कि
क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात ..
मगर कुछ ऐसे भी हैं जो पुराणों के कहे को नहीं मानते..वो माफी नहीं दे रहे हैं. वे चाण्क्य के किचन केबीनेट वाले चेले हैं. वे चाणक्य निती समझते हैं. उन्हें पता है इस क्षमा याचना आंदोलन का निहित क्या है...
न तो वे क्षमा देंगे और न ही क्षमा आंदोलन के पर्वर्तक का निहित पूरा होगा...
ऐसे में अगले चुनाव में छोटन का उत्पात जारी रहेगा...तब उस उत्पात से एक नया आंदोलन छिड़ेगा..उसको तब देखा जायेगा.. उत्पात और आंदोलन के गर्भ से हमेशा कुछ नया ही निकला है!!
नया बदलाव लाता है....अच्छा या बुरा, कौन जाने!
-समीर लाल समीर

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार मार्च २५, २०१८ को प्रकाशित:
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