वो प्रेमी युगल बात बात में एक दूसरे को लिप टू लिप किसिंग कर रहा है. आते ही- एक किस्स, कैसी हो-एक किस्स--मैं ठीक हूँ-एक किस्स-अच्छा लगा तुम ठीक हो-एक किस्स, तुम्हारा ईमेल मिला-एक किस्स. अरे, ईमेल मिलने का किस्स देने लगें तो हमारा तो दिन १५० से कम किस्स में खतम ही न हो और उपर से वो मास फारवर्ड वाले, किस्स करने के लिए एक दो कर्मचारी रखवा कर ही मानें.
हर बात पर किस्स!! ट्रेन रुक गई-तो किस्स. ट्रेन चल दी-तो किस्स, ट्रेन चल रही है-तो किस्स, ट्रेन रुकी है-तो किस्स!! गजब है भई!!!
मेरी आँख किताब में गड़ी, कान उनकी बातों पर टिके और ट्रेन अपनी रफ्तार में दौड़ी. बीच बीच में कनखियों से उन पर नजर. सीधे भी नजर रखे रहता तो उनको कोई फर्क न पड़ता मगर मेरे हिन्दुस्तानी संस्कार आड़े आ रहे थे.
उसने कहा-मैं अपना पैक्ड खाना ले आया हूँ-एक किस्स-फ्री मिला-एक और किस्स-सो गुड-एक किस्स-तुम क्या बनाओगी अपने लिए-एक किस्स- चिकिन बेक्ड-सो डिलिसियस-एक किस्स-कीप द लेफ्ट ओवर फॉर टुमारो लंच-मेरा खाना बाहर है-एक और गहरा किस्स. किस्स किस्स किस्स!!
मन तो किया कि पूछूँ-क्यूँ भई आप ये करते करते बोर नहीं हो जाते. मगर उनका जबाब क्या होगा, यही न कि जब भी बोर होते हैं-एक किस्स!! सो नहीं पूछा.
गिनते गिनते गिनती खत्म होने को आई, मगर उनके किस्स का आदान प्रदान खत्म न हुआ. धन्य है-४५ मिनट के सफर में जितने किस्स उन्होंने किये-और हम अतीत में झांक कर देखते हैं तो हमारे और पत्नी के बीच सारे जीवन के किस्स-हम हार गये. कॉस्य पदक की तो छोड़ो-क्वालिफाई तक नहीं कर रहे. भारतीय हैं तो ओलंपिक हॉकी की भांति ही बुरा नहीं लगा. अमरीकन होते तो डूब मरते मगर हारना भी एक आदात होता है, एक सांस्कृतिक विरासत होता है जो हमें भारतीय होने की वजह से स्वतः प्राप्त है- सो चल गया. ये दीगर बात है कि महर्षि वात्सायन ने कामसूत्र हमारे मोहल्ले में बैठ कर लिखी थी- सो तो हॉकी के जादूगर ध्यान चन्द भी हमारे ही स्कूल से पढ़े थे.
हम ऐसा सोचने लगे कि ये दोनों सारा होमवर्क यहीं ट्रेन में निपटा लेंगे तो घर जाकर करेंगे क्या? लाईफ स्टाईल मैग्जीन ने ज्ञानवर्धन किया कि पति महोदय घर जाकर बियर पीते हुए सोफे पर बैठ कर टी वी पर बास्केट बॉल देखेंगे और पत्नी सिर्फ अपने लिए खाना बनाते हुए अपनी सहेली से नई रेसिपि पर फोन पर बात करेगी. फिर थक कर दोनों सो जायेगे और सुबह ५ बजे उठकर दफ्तर जाने की जद्दोजहद. कठिन जिन्दगी है!!
आत्मग्लानि आत्मविश्लेषण की जननी है-इस सिद्धांत के तहत हम आत्मविश्लेषण करने में जुट गये.
पिछले बरस भी एक ऐसा ही जोड़ा जो बात बात में या बात बेबात में चुम्बन यज्ञ मे बिला जाता था, सामने बैठा करता था. इस बरस, दोनों सामने से हट कर कुछ दूर वाली सीट पर बैठते हैं अलग अलग दिशा में मगर अपने अपने नये साथियों के साथ. क्रियायें और भंगिमाऐं प्रायः वही हैं.
निष्कर्ष स्वरुप जिस फल की प्राप्ति मैने की, वह आम से कम मीठा मगर फिर भी मीठा सा ही नजर आया.
मुझे यह कैनेडियन पंडित यानि विदेशी ब्राह्मण टाइप आईटम लगे. वो पंडित जो दिन भर मंदिर में राम राम जपते हैं मगर दिल में बस एक उम्मीद कि कोई जजमान फंसे और वो उसे लूटें. सारा जैव रस इसी लूटम लाट को निछावर. भगवान गये तेल लेने, नोट आयें तो काम बने. भगवान का नाम नोट लाने के हाईवे की तरह- बस, दौड़े चले जाओ. छल एवं दिखावा ही परम धर्म!!
ये वो साधु संत हैं, जो यह बताने के लिए लाखों रुपये बतौर फीस लेते हैं कि धन की जीवन में कोई महत्ता नहीं-धन त्यागो और बैकुंठ का फ्री पास लो. रोज सुबह टीवी पर दाढ़ी खुजाते उज्जवल सफला वस्त्र धारण किए और अपने नाम के साथ महाराज या बापू जोड़े गाँधी जी को गाली बकते सबको ब्रह्मचर्य का पाठ पढ़ाते और अपने बेटे पर कोई कंट्रोल बिन हवा में पिचकारी चलाते सभी प्रकार के धतकर्मों में लीन ये बाबा, बिल्कुल ऐसे ही नजर आते हैं.
वो सारा जीवन रस जो हम पति पत्नी अपने रिश्तों क दीर्घजीवी बनाये रखने के लिए सरेस की तरह बचाये रखते हैं, उसे ये किसिंग में लुटाये दे रहे हैं. यह पंडितों की तरह मंत्रोच्चार के दिखावे के बिलिवर हैं और हम एक आम भक्त जो दिल में श्रृद्धा को जगह देता है, मौन रहता है और परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना करता है कि हमारा वैवाहिक जीवन सुखमय बीते की तरह. भले हम बास्केट बॉल न देख पायें, मगर जो भी रुखी सूखी मिले, मिल बांट कर खायें. आधा तुम, आधा हम.
साधु संत तुम्हें मुबारक-हमें हमारी मुक्ति का मार्ग मालूम है. परिवार बंधा रहे-बच्चे लोन मुक्त पढ़कर परिवार के साथ यथा संभव रहते रहें, अपने परिवारिक दायित्व समझें और उन दायित्वों के प्रति सजग रहें और हम उन पर भरसंभव बोझ न बन मार्गदर्शक बनें रहें, इसे ही हम मुक्ति का मार्ग समझते हैं और हम इससे खुश हैं.
आपको आपकी कनैडियन पंडिताई और संतई मुबारक...एन्जॉव्य किजिये. हेव फन!!! हेव एनदर किस्स!!
--------------------------------------------------------------------
नोट:कनाडा में कम उपलब्ध गरमियाँ चल रही हैं. शायद एक दो हफ्ते के और मजे. फिर वही ठंड और सब घर में पैक. अतः सप्ताहंत घूमने फिरने और बाह्य कार्यक्रमों में उपयोग किये जा रहे हैं. अभी राजधानी ऑटवा से तीन दिन बाद वापस आया हूँ, अतः पिछले तीन दिन से कोई टीप नहीं कर पाया अब कोशिश कर कुछ देखता हूँ कल!!! अगला सप्ताहंत भी लॉस वेगस (विश्व की जुआ राजधानी) का कार्यक्रम है.
-------------------------------------------------------------------