लौटते वक्त अपने गुरु राधा स्वामी श्री श्री अनुकुल जी महाराज के आश्रम देवघर, झारखण्ड गये. सारा दिन वहीं बिताया और बैजनाथ धाम के दर्शन का सौभाग्य भी प्राप्त किया. दर्शन करने टांगे से गये. घोडे पर क्या बीती, पता नहीं मगर मुझे मजा आया. बचपन की ढ़ेरों यादें घिर आई इस टांगा यात्रा के साथ. यादों ने साथ छोड़ा, पंडों को स्पेस मिली, उन्होंने घेरा. किसी तरह उन्हें ढ़केला तो समय खत्म हुआ और हम निकल पड़े जबलपुर की ओर. रास्ते में इलाहाबाद पड़ना था. ज्ञानदत्त जी से मुलाकात हुई. जैसा सोचा था उससे कहीं ज्यादा विनम्र और व्यवहारकुशल. अफसोस हुआ कि मुझे कम से कम से एक दिन इलाहाबाद के लिये रखना चाहिये था. हमने तो अपनी खुशी के लिये घोड़े की चिन्ता नहीं की तो ज्ञानजी के लिये क्या सोचें कि क्या वो भी चाहते थे कि हम एक दिन रुकें.
ज्ञानजी आये. पूरे ट्रेन में हमारी पूछ हो ली. सबने समझा कि या तो हम कोई मंत्री हैं या रेल्वे बोर्ड के मेंम्बर. हमारा मौन और मुस्कराह्ट सह यात्रियों से लेकर रेल्वे स्टाफ की अटकलों पर अपनी मोहर लगाता रहा और हम मुस्कराते रहे और बकायदा सम्मान पाते जबलपुर तक चले आये.
महाशक्ती परमेन्द्र प्रताप का भी इलाहबाद में मिलने का वादा था. फिर बाद में पता चला कि ट्रेन छूटने के बाद, गलत जानकारी की वजह से, वो हाँफते हुए पहुँचे भी और मुलाकात न हो पाई. खैर आगे कभी सही, फिर मुलाकात हो लेगी. वो अमरुद अपने बगीचे से लेकर आये थे. मैं नहीं खा पाया, हमेशा इस बात का रंज रहेगा जब तक की खा न लूँ.
न तो अरुण भाई से और न ही ज्ञानजी से, मिलन की उत्सुक्ता में ,कोई विशेष प्रयोजन पर बात हो पाई. बस, एक बिखरी सी बात ब्लॉगिंग, ब्लॉगिंग का भविष्य, आगे के प्लान आदि पर हल्की फुल्की चर्चा हुई.
दोनों ही जगह, गौरतलब, इस विषय पर अवश्य नजर डाली गई कि आखिर क्या वजह है कि एकाएक नव आगंतुकों की संख्या में कमी आई है. क्या कहीं प्रोत्साहन की कमी है या विस्तार को लेकर विशेष कार्य नहीं किया जा रहा है. है तो चिन्ता का विषय मगर मेरा मानना है कि इससे उबरा जा सकता है और हम सब को इस ओर प्रयासरत होना होगा. हर ब्लॉगर अगर माह में मात्र दो से तीन लोगों को नया ब्लॉग बनाने को प्रेरित करे तो चेन एफेक्ट में हिन्दी के विस्तार को एक नया आयाम मिल सकता है. बस, एक सजग प्रयास की आवश्यक्ता है.
बाकी का कल....