मंगलवार, अक्तूबर 31, 2006

दुई पाटन के बीच में..

आज सुबह सुबह टहलने निकला. मन पता नहीं क्यूँ अनमना सा था. जबकि मौसम बड़ा खुशनुमा था. मगर इधर अक्सर मैं देख रहा हूँ कि जब मौसम खुशनुमा होता है तो मेरा मूड खिन्न. शायद अच्छे मौसम, पूरी बिजली और पूरी पानी स्पलाई, शुद्ध दूध आदि की आदत ही नहीं रही. शुद्ध दूध से पेचिश पड़ने लगती है और सात्विक एवं शुद्ध भोज से कब्जियत. वैसे ऐसा कहा गया है कि प्रातः भ्रमण अति आनन्दकारी होता है और अति सुख प्रदानकर्ता.

मगर मेरा मानना है कि अति सुख और आनन्द की परिभाषा समयविशेष और व्यक्तिविशेष पर आधारित है, कब्जियत के शिकार को एनिमा लगवाने के बाद जो निस्तार में सुख मिलता है और दाद के मरीज को दाद खुजलाने में, दोनों किसी भी अन्य सुख से अतुलनीय है, मगर बिना अनुभव के इस आनन्द की कल्पना करना भी संभव नही है. कुछ इसी तरह का सुख और आनन्द मैने कुछ राजनैतिक पार्टियों को सरकार गिरा कर और कुछ लोगों को पड़ोसियों पर आयी विपदा में प्राप्त करते हुये देखा है हालांकि वो भी जानते हैं, न तो सरकार गिराने से वो सरकार में आ जायेंगे और न ही पड़ोसी पर आयी विपदा से इन्हें कोई फायदा होगा, मगर फिर भी. अब यह बात तो हम भावावेश में बता गये, मगर यही एक सिद्ध सत्य है

हम तो निकले थे टहलने सो टहलने लगे. कुछ और लोग भी सुबह की टहल कदमी में व्यस्त थे, कुछ स्वास्थय के कारणों से, ज्यादा फैशन के कारण से और उससे भी ज्यादा, अधिकारियों से संबंध बनाने के चक्कर में. मगर हमारा तो पूरा कारण मात्र एक था पत्नी का दबाव, डॉक्टर की सलाह पर, वजन कम करने के लिये. सो टहल रहे थे. हालांकि टहल खतम होने पर, मै और मेरे मित्र राकेश जी, औपचारिकतावश, नुक्कड़ की दुकान से पोहा जलेबी खाते हुये घर लौटते हैं जिसका ज्ञान हमारी पत्नियों को अब तक नहीं है और वो संपूर्ण टहल का सार बराबर कर देते हैं, और हम जैसे निकले थे वैसे ही सेम टू सेम घर लौटते हैं और पत्नी हमारे वजन को अनुवांशिक दोष मान कर संतोष कर लेती है. हमें इससे कोई अंतर नहीं पड़ता, जब तक कि पोहा जलेबी का नाश्ता चलता रहे.

वैसे आज की टहल में नियमित की तरह राकेश जी नहीं थे, कारण शायद उनके घर आये पत्नी पक्ष के मेहमान थे अन्यथा तो इस तरह की स्वतंत्रता उनको और हमको कहां नसीब. यमराज भी लेने आ जायें तो पत्नी कहेगी कि पहले टहल कर आओ फिर और कहीं जाना. खैर, कारण जो भी रहा हो वो आज हमारे साथ नहीं थे और हम अकेले ही गुनगुनाये चले जा रहे थे कि:

अपनी धुन में रहता हूँ, मै भी तेरे जैसा हूँ.

तभी एकाएक ठोकर लगी और साथ ही आवाज आई-"कौन है, बे! देख कर नहीं चल सकता, अंधा है क्या?

हम तो आश्चर्य में पढ़ गये. ठोकर हमें लगी, चोट हमें लगी, दर्द हमें हुआ और चिल्ला वो रहे हैं. गल्ती हमारी बता रहे हैं कि "देख कर नहीं चल सकता, अंधा है क्या?"

हमने कहा, "क्या बात करते हो, पत्थर भाई, आप मेरे रास्ते में आये हैं, न कि मै आपके रास्ते में."

पत्थर तुरंत ऐंठ गया, क्या बात करते हैं, हम तो अपनी जगह ही हैं, आप आ गये रास्ते में. क्या भारत में नये आये हो? हम तो ऐसे ही हैं, आपको सड़क पर देख कर सिर्फ़ सड़क पर चलना चाहिये.

हमने कहा-नहीं भाई, हम तो पैदाईश से निरंतर यहीं रहते आये हैं, मगर सड़क पर चलने का यह नियम तो पहली बार सुन रहे हैं

वो जारी रहे- बेटा, सड़कें, हमारे बाजू से नीचे नीचे चलती हैं और हम जहां हैं वहीं है, इसीलिये हम उच्च वर्गीय कहलाते हैं, सब हमसे दामन बचा कर चलते हैं, खास कर सड़क पर चलने वाले आम वर्गीय लोग, जो न आरक्षित हैं और न उच्च वर्गीय, वरना तो वो अपना खमजियाना अपने आप भुगतते हैं और बड़ों के मुँह लगने का परिणाम झेलते हैं.

हमने तुरंत अपनी आम वर्गीय औकात पहचानी और घटना स्थल से क्षमा मांग कर गमित हुये और एक भारतीय आम वर्गीय के पास रास्ता भी क्या हो सकता है. हमने भी वही किया जो हमारे सम वर्गीय करते हैं.

अब हमें टहलते समय ध्यान था कि उच्च वर्गीय पत्थर से बच के चलना है. बस चलते गये, बचते गये. इसी आपाधापी में गड्डे में पांव धर बैठे, फिर असहनिय दर्द और असहनिय गर्राहट: कौन है बे! देख कर नहीं चलता, अंधा है क्या?

हम तो बस भौचक रह गये, किससे बचें, किसको छोड़ें.

हमने कहा, भाई साहब, हम आम वर्गीय, उच्च वर्गीय पत्थर बचा कर सड़क पर चल रहे थे कि सड़क के आभाव में आप पर पैर पड़ गया और आपने अपने को हमारे द्वारा रौंदा महसूस किया, उसके लिये हम अति क्षमापार्थी हैं.

गड्डा कहने लगा हमने यह ढकोसले बाजी खुब देखी है, हमें न सिखाओ. मध्य प्रदेश के रहने वाले हो, जगह जगह हरिजन थाने खुले हैं और हमारे उद्धारक मंत्री जी भी यहीं के हैं, इतना भी नहीं जानते. अरे, तुमने तो हमें रौंद कर वाकई जुर्म किया है, वरना तो हमारा इल्जाम लगाना ही काफी है, सात साल को गैर जमानती अंदर हो जाने को. तुम नये और सज्जन दिखते हो तो तुम्हे बताये देते हैं कि तुम्हारे लिये सड़क हमारे आस पास उपर से जाती है, देख कर चला करो और अभी की गल्ती के लिये कुछ ढीला कर जाओ नहीं तो जिंदगी चक्की पीसते बीतेगी दलितों पर अत्याचार के मामले में. हम पर भी जो सक्षमता थी उस आधार पर ढीला होकर आगे बढ़ गये. अब हम आम वर्गीय भारतीय की तरह गड्डे और पत्थरों के बीच सड़क खोजते टहलते रहे और अंत में हार मान करअपने घर की छत को अपने टहलने का अखाड़ा बना कर सड़क को कम से कम इस हेतु अलविदा कह आये.

फिर समाचार में माननीय मंत्री जी को सुनते हैं. सरकार इन गड्डों को स्थिती से चिंतित है और प्रयासरत है. प्रयास इनको पत्थर बनाने का नहीं है और न ही इन्हें समतल कर सड़क बनाने का है बल्कि जहाँ हैं जैसे हैं, के आधार को सुरक्षित कर बची हुई समतल सड़को पर और अधिक स्थान प्रदान करने का है. अब सड़कों पर और गड्डे होंगे और उनकी स्थिती आरक्षित होगी. मगर समाचार आगे जारी था एक आम नागरीक को चिन्ता की आवश्यक्ता नहीं है, सड़को पर इन गड्डों के लिये अधिक आरक्षण से आई कमी की भरपाई के लिये सड़क का दोनो बाजू थोड़ा थोड़ा चौड़ीकरण किया जायेगा ताकि चलने का जो स्थान आपको आज उपल्ब्ध है, गणना के आधार पर लगभग उतना ही उपलब्ध रहेगा बस उचकना और कुदना ज्यादा पड़ेगा ताकि इन गड्डों को अपने अस्तित्व के होने और अपने विस्तार में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना न करने पड़े.

हम तो सब कुछ झेल जाने के आदी हैं, बस चिन्ता और इंतजार उस वक्त का है, जब यह सरकार हमारी खुद की बनाई खुद के घर की छत पर अपनी नीतियां थोपेगी और हमारे घर की छत भी इन पत्थरों और गड्डों से भरी नजर आयेगी और हमें इतना अधिकार भी न होगा कि हम इन्हें हटा सकें. तब हम कहां टहलेंगे. कबीर दास जी को सुनें, न जाने कबका कह गये थे:

चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोए
दुई पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए.


वाह रे, ये खादीधारी और वाह रे, इनकी सोच. कहां ले जा रहे हैं यह इस देश को.



मेरी पसंद: (ये फुरसतिया जी की स्टाईल टीप दी)


टोपियों में छिपे चेहरे,सब सुख दुख से बेअसर
लगते तो आदमी हैं, कोई कुकुरमुत्ते नहीं हैं
वफादारी पर डालते रहे, ये तिरछी इक नजर
ये नेता लगते देशभक्त हैं, कोई कुत्ते नहीं हैं

खादीधारी ये सभी, आदमी हैं गधे नहीं हैं
ध्यान से तो देखिये, खुंटी में बंधे नहीं हैं

मार कर ज़मीर अपना, जिंदा हैं किस तरह
अंतिम सफ़र को मयस्सर, चार कंधे नहीं हैं
लगती रहीं ठोकरें, फिर भी रहते हैं बेखबर
आंखों पर हैं काले चश्मे, कोई अंधे नहीं हैं.

खादीधारी ये सभी, आदमी हैं गधे नहीं हैं
ध्यान से तो देखिये, खुंटी में बंधे नहीं हैं
Indli - Hindi News, Blogs, Links

रविवार, अक्तूबर 29, 2006

गुरु ग्रेग स्पेशल

आज भारत की टीम चैम्पियन ट्राफी से बाहर हो गई. उम्मीद और कयास तो पहले से ही लगाये जा रहे थे. आज सब अखबार, टी वी चैनल अपनी अपनी तरह से यह बात रख रहें है, तो हम अपनी तरह से कुण्ड़लीनुमा रचनाओं और हाईकु के माध्यम से:

//१//

क्रिकेट के इस खेल की, मची हुई है जंग.
ग्रेग बनें यमराज हैं, खिलाड़ी हो रहे तंग.
खिलाड़ी हो रहे तंग कि उनके क्या कहने है
जिसपे नज़र पड़ जाय, जुर्म उसको सहने हैं
कहे समीर के गुरु जी,तुम बिस्तर लो लपेट
बिन तेरे ही, हे प्रभु, हम सीख लेंगे क्रिकेट

//२//

चैंम्पियन ट्राफी में हुआ, यह कैसा अत्याचार
पाकिस्तान पहले गया, फिर भारत का बंटाधार
फिर भारत का बंटाधार कि अब खेलो गुल्ली डंडा
ग्रेग गुरु ही बतलायेंगे,जीत का फिर से हथकंडा.
कहे समीर कवि कि बैठ कर अब पियो शेम्पियन
गुल्ली डंडे के खेल में,बनना तुम विश्व चैंम्पियन.


हाईकु

खेलें क्रिकेट
गुरु ग्रेग हों संग
रंग में भंग.


-समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

मंगलवार, अक्तूबर 24, 2006

हिन्दी चिट्ठों का वार्षिक भविष्यफल

दीपावली से हिन्दु नववर्ष प्रारंभ हो गया है.

इधर चिट्ठा जगत में भविष्य वक्ताओं की बाढ आई है, तो हमने भी सोचा कि अपनी इतनी गहरी और सधी हुई पंडिताई हम कैसे छोड़ दें, तो सुनें अपने चिट्ठों का वर्षफल. यह आपके चिट्ठे के अंग्रेजी नाम के आरंभिक शब्द पर आधारित है:
तुरंत देखें, आपका चिट्ठा किस शब्द से शुरु होता है और जानें वार्षिक फल:

A,C,F,G,U, R

यह साल आपके चिट्ठे के लिये बहुत शुभकारी रहेगा. वर्ष के पूर्वार्द्ध में टिप्पणियां बहुतायत में मिलेंगी. इस अति प्राप्ति के अहम में डुबकर आप अपने आपको एक वरिष्ठ चिट्ठाकार मानने लगेंगे और आपकी प्रविष्टियों की गुणवत्ता पर इसका प्रभाव दिखने लगेगा और उसमें कमी आने की संभावनायें हैं. गुणवत्ता की गिरावट के साथ ही प्रविष्टियां प्रविष्टी कम और खानापूर्ति ज्यादा नजर आने लगेंगी. कुछ अहम और कुछ आलस्यवश, जो कि वरिष्टता के साथ आना स्वभाविक है, आप दूसरे के ब्लागों पर टिप्पणियां करना कम देंगे या सिर्फ़ औपचारिकतावश, बढ़ियां है या अच्छा लगा, तक सिमित हो जायेंगे जो कि आपके ब्लाग पर वर्ष के उत्तरार्ध में आई टिप्पणियों की कमी का कारण बनेगा.

एक बात पर आप विशेष ध्यान दें कि जो भी लिखें वो दूसरों को समझ में पूरी तरह आये या बिल्कुल न आये, तभी टिप्पणियां मिलेंगी.

टिप्पणियों का जवाब अवश्य दें अन्यथा कई लोगों को यह आभास हो सकता है कि आप उनकी टिप्पणियां पढ़ते ही नहीं हैं और वो हतोत्साहित हो टिप्पणी करना बंद कर देते हैं.

कई बार आपकी अच्छी पोस्ट भी लोग पढ़ने से कतरा जाते हैं. उसके लिये सिद्ध मंत्र है कि पोस्ट का शिर्षक भड़काऊ रखें ताकि लोग उसे देखें जरुर, भले ही उसका पोस्ट से कुछ लेना देना न हो. लोग शिर्षक और पोस्ट के सामाजस्य को बिठाने के चक्कर में ही पूरी पोस्ट पढ़ जायेंगे. ऐसे शिर्षकों के लिये रामायण और गीता की पंक्तियां या कबीर और रहिम के दोहों के अंश उच्च फलकारी होते हैं.

अपने ब्लाग की साज सज्जा पर ध्यान देने की आवश्यकता है. हल्का हरा, गहरा पीला और भूरे रंग का बेकग्राउंड़ शुभ फलकारक होगा. फोंट का रंग यदि काला है, तो उसे बदल कर कोई भी और दूसरा गाढ़ा रंग चुनें, इससे टी आर पी में बढ़त आयेगी. यदि आप एक ही विधा में लिखते हैं तो अपनी लेखनी में विवधता लायें, जैसे कि व्यंग, हास्य और गंभीर लेखन का मिश्रण आपेक्षित से बेहतर परिणाम देगा.




E,K,L,M, X

इस वर्ष आपके चिट्ठे को मिले जुले परिणाम मिलेंगे. टी आर पी की बढ़त के बावजूद टिप्पणियों की संख्या में भारी गिरावट आयेगी. ब्लाग पर स्थानान्तरण योग है. अगर आप ब्लाग स्पाट पर हैं तो संभव है आप वर्ड प्रेस पर स्थानान्तरित हो जायें मगर प्राईवेट होस्टिंग का अगर मन बनाते हैं तो पहले ट्रेफिक काउंटर लगा कर अपनी औकात का आंकलन कर लें अन्यथा कहीं लेने के देने न पड़ जायें. कभी आपको यह अहसास भी हो सकता है कि आप इससे कुछ कमा लेंगे. तो ऐसे बहकावे में न आयें. इस तरह की अफवाह फैलाने वाले खुद भी फ्री ब्लाग स्पाट पर ही हैं और वो इतना बेहतरीन लिख लिख कर कुछ नहीं उखाड़ पा रहे तो आप क्या कर लोगे. कम से कम दृष्टिगत भविष्य में तो इसकी संभावनायें नहीं दिखती हैं.

इस वर्ष ग्रहों की वक्र दृष्टी के कारण आपके द्वारा की गई १० टिप्पणियों के बदले आपको दो ही प्राप्त होंगी तो अधिक पाने के लिये उससे कहीं अधिक देना होगा. हतोत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है, वर्षांत तक स्थितियों में सुधार दिखने लगेगा, मगर किसी भी भ्रम का शिकार होने के पहले पुनः ट्रेफिक काउंटर देख कर अपनी औकात का आंकलन कर लें.

आप में से कुछ ने जो पूर्व में कीर्तिमान स्थापित कियें है, उनसे परेशान हो कर शत्रु वर्ग आपको तरह तरह से परेशान कर सकता है, मसलन छदम भेष धर कर आपके नाम से टिप्पणी या आपके चिट्ठे की हैकिंग का प्रयास इत्यादि. ऐसे में विचलित होने की आवश्यकता नहीं है. संयम बनाये रखें, अपनी स्थिती स्पष्ट करते रहें और अपना कार्य पूर्ववत जारी रखें. अगर दिल करे तो कहीं कहीं मौके का फायदा उठाकर मन के उदगार व्यक्त कर सकते है और उसका ठिकरा भी छदमनामी के सिर फोड़ कर चैन से पड़े रहें, आपका कोई नुकसान नहीं होगा.

चिट्ठे के बेकग्राउंड़ के लिये उदासीन रंगों का प्रयोग करें जैसे कि सफेद, हल्का गुलाबी, आसमानी आदि. फोंट साईज अगर १२ के नीचे हैं तो टी आर पी पर घातक असर कर सकते हैं. कवितायें, खुद की या चुराई हुई, दोनों ही अच्छा परिणाम लायेंगी मगर कृप्या कविताओं को कविता ही रहने दें. अगर स्व-लेखन से यह संभव न हो तो चुरा लें बजाय कि कहानी को कविता कहने के. इससे विपरीत परिणाम की प्राप्ति हो सकती है. अपने चिट्ठे के नाम में हिज्जे परिवर्तन से भी लाभ मिलने की संभावना है, जैसे कि उडन तश्तरी को उड़न तश्तरी या उडन तस्तरी कर दें, अच्छे परिणाम मिलेंगे.




B,D,H,W,Z

चिट्ठे का तो खैर जो भी हो, आपके तिरछे तेवर के कारण आपकी बदनामी तय है और उसका परिणाम झेलेगा बेचारा आपका चिट्ठा बिना किसी वजह के. कोशिश करके इस वर्ष कम से कम लिखें और जब भी लिखें तो सिर्फ लिखें न की बकर करें. दूसरों के उपहास से सबको फायदा नहीं पहूँचता, यह आपको याद रखना चाहिये. पहले अच्छा लिखें फिर बुरा ढूँढें, अन्यथा चर्मयुक्त किसी वस्तु के सिर पर पड़ने की पूरी संभावना है. बड़ों के आशिर्वाद को स्विकारें न कि उन्हें उनका माखौल उड़ाने का एंट्री पास समझें. यह ब्लाग जगत बहुत सेंसिटिव जगह है, यहां कब कैसे और क्यूँ कोई बुरा मानेगा और आप पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, कोई नहीं जानता. इसके आगे सब ग्रह नक्षत्र फेल हैं.

टिप्पणियों की अपनी गरिमा और महत्ता होती है, उसे समझने का प्रयास करें. टिप्पणिकर्ता के मनोभाव को समझने का प्रयास करें, न कि उस पर अपना मनोभाव लादें जो कि आप अपनी पोस्ट के माध्यम से कर ही चुके होते हैं.

अन्य लोगों की भावनाओं का आदर करें.--तभी आदर की आशा करें और तभी आपका भविष्य भी उज्जवल होगा. अन्यथा तो आप यथोचित पा ही रहे हैं.

ब्लग डूब जायेगा, कोई बात नहीं, दूसरा खोला जा सकता मगर आपका व्यतित्व डूब जाये तब फिर क्या? सोचो. कोई यहां झगड़ने नहीं आया है, यह मात्र वैचारिक मंच है और तुम इसे पर्सनल अखाड़ा बना कर कुश्ती लड़ते हो. बाकि जगह क्या कम पड़ गई. इस दिशा में लिया गया सकारात्मक कदम आने वाले समय में बहुत अच्छे परिणाम देगा.

अपने ब्लाग को लोकप्रिय बनाने के तमाम उपायों को अंगिकृत करने से पहले पढ़नीय सामग्री प्रेषित करें और मात्र खानापूर्ति के सिवाय कुछ वाकई में लिखें ताकि इस टिप्पणी, जिसे आप तारिफ मानते हैं, "क्या लिखा है", के लुप्त प्रश्नचिन्ह को भी आप देख पायें.."क्या लिखा है ?" तो कोई आश्चर्य न होगा.

साजसज्जा और फोंट कलर और साईज के ठीक होने के बावजूद वर्तनी पर ध्यान देने की आवश्यकता है, अन्यथा वर्तनी पीर से कुछ सांठ गांठ करो या फिर उसका वार झेलो. कोई पूजा पाठ आपको इससे नहीं बचा सकता. बस एक उपाय है, उसके लिये अलग से चार्जेबल बेसिस पर लिखें.


P,Q,N,S,O

आपका चिट्ठा इस वर्ष उतार चढ़ाव के नये कीर्तिमान स्थापित करेगा. कुछ चिट्ठे वर्षांत के पहले बंद होने की कागार पर आ जयेंगे, तो कुछ बंद हो चुके होंगे. वहीं कुछ अपने होने का ऊँचा परचम लहरा रहे होंगे. अति उत्साह अक्सर पूर्ण विराम की ओर अग्रसित मार्ग का फ़्लाई ओवर होता है. आपको सलाह दी जाती है कि उत्साहपूर्वक लिखना अच्छी बात है मगर अति उत्साह के प्रवाह में बहकर कुछ भी लिखना घातक सिद्ध हो सकता है. संभल कर चलें.

चिट्ठे के बंद करने की घोषणा कई बार उसको नये आयामों तक ले जाती है और कई बार इसके बड़े अच्छे परिणाम देखे गये हैं, दोनो तरह से टी आर पी और टिप्पणी के आधार पर. पर यह कार्य काठ की हांड़ी जैसा है जो बार बार नहीं चढ़ाई जा सकती, अतं में इसे अजमाने के पहले साख अच्छी जमा लें और एकदम ब्रह्मास्त्र की तरह उपयोग करें.

नारद से अच्छे संपर्क रखना उच्च फलकारी होगा. बिना नारद के अच्छे अच्छों का गुजारा नहीं हो पाया है, फिर आप तो खैर आप हैं.

स्थान परिवर्तन यानि कि ब्लाग स्पाट से वर्ड प्रेस या उल्टे से कोई लाभ नहीं होगा और न ही फोंट का रंग या साईज कोई विषेश प्रभाव डालेंगे. हां, नाम परिवर्तन का प्रयास शायद कुछ सफलता दे.

नकली फोटो और बेनाम चिट्ठाकारी दोनों आपके लिये उचित नहीं है, उसके लिये बेजोड़ लेखनी की आवश्यकता है और उस दिशा में पहले आपको प्रयास करने होंगे. अपने ब्लाग पर कहीं न कहीं सरसों के तेल के दिये का चित्र अवश्य लगायें, इससे यह महादशी समय आसानी से कट जायेगा.

टिप्पणियां करने में कोताही न बरतें क्योंकि वो ही एक मात्र साधन है कुछ टिप्पणियां प्राप्त करने का. अन्यथा लेखनी सुधरने तक इंतजार करें, मगर यह भी ख्याल रहे कि कहीं चिट्ठा सुधार आते आते वीरगति को न प्राप्त हो जाये.



I,J,T,V,Y


बस आप अंतिम हैं, और अंतिम टाईप लग भी रहे हैं. भईया, आपका तो क्या कहें, जब तक लिखोगे नहीं तो पूछेगा कौन. न तो आप कोई ऐसी कोशिश करते हो कि नारद की उच्च पायदान पर बनें रहें और न ही बहुत अच्छा मटेरियल लाते हो. सिर्फ दूसरों की प्रस्तुति प्रस्तुत कर और फोटो सोटो चिपका कर क्या दुनिया की अस्मिता लूट लोगे? टिप्पणी भी चाहिये, नारद भी आपको रिपोर्ट करे और चिट्ठा चर्चा वाले भी आपके गुणगान करें और आप बैठे ठर्राओ. ऐसा कहीं होता है क्या? नारद महात्म पढ़ना शुरु कर दें हर बुधवार को और चिट्ठाकारों से मधुर सबंध बनाओ. उनकी हर लेखनी पर वाह वाह करके, तभी उद्धार होगा, वरना अपने आप आपकी नियती तो तय है.

सिर्फ दूसरों की गज़ल, कविता और लेख कहानी से कब तक चलेगा. थोड़ा तो चलेगा, यह भी तय है. मगर जब रेस लगाने निकले हो तो पूरा दौडो, थोड़े से क्या?

ब्लाग का स्थानन्तरण कुछ असर दिखायेगा, शायद नई जगह पहूँचने का स्वागत समारोह में कुछ टिप्पणियों से नवाजा जाये या कम से कम स्थानान्तरण की सूचना की एक ओरिजनल पोस्ट तो बन ही जायेगी.

परिवार में वृद्धि की संभावनायें हैं, तो और ब्लाग खोल डालिये अलग अलग नाम से. शायद कहीं टिप्पणी आ जाये, अन्यथा बन्द कर देना. कौन सा घर से पैसा लगा है जो चिंता करें.

कभी कभार थोड़ा अपना खुद का कुछ लिखा करो, उससे अंतर पड़ेगा. लिखना तो शुरु करो, रंग अपने आप आता जायेगा.

चिट्ठे के बेकग्राउंड़ के लिये गाढ़े रंगो का प्रयोग और फोंट हल्के रंगों में उपयुक्त सिद्ध होंगे, भविष्य के लिये. जब तक लिखना भी सीख जाओगे और तब फिर फोंट गाढ़े कर लेना ताकि लोग वाकई में पढ़ पायें.

इन उपायों पर काम करो, सफलता कदम चूमेगी.



इसके सिवाय यदि कोई अपने ब्लाग की पर्सनल समीक्षा चाहता है तो वो पहले हमारे ब्लाग पर ५१ टिप्पणियां कर दें और उनका विवरण दे हमें अलग से ईमेल करें, हम उसको अलग से बतायेंगे. अरे भई, सब कुछ तो सार्वजनिक किया नहीं जा सकता हालांकि अब बचा क्या है. :)


अंत, हमेशा की तरह एक कुण्ड़ली नुमा रचना के साथ:


ज्योतिष विद्या सीख लई, पढ़ कर एक किताब
सबका भविष्य बताये रहे, खुद का नहीं हिसाब
खुद का नहीं हिसाब कि सब परेशां से दिखते हैं
उज्ज्वल भविष्य की चाह लिये, सब भगते हैं.
कहे समीर कवि कि कुछ खुद कर लो कोशिश
बाकी तो सब लूटते, क्या पंडित क्या ज्योतिष.


--समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

गुरुवार, अक्तूबर 19, 2006

एक दिया जलाया है...





हाईकु रचना



आई दिवाली
जगमग करते
दीप सजे हैं
*
रोशन फिर
कितनी आशाओं के
दीप जले हैं
*
खुशियाँ छाईं
हर पनघट पे
गीत बजे हैं
*
दूर उदासी
हर उपवन में
फूल खिलें हैं
*
भूल दुश्मनी
मन उजला कर
भाई मिलें हैं.
*
एक योजना
स्वर्णिम भविष्य की
लिये चले हैं.
*
नव रचना
भारत की करने
युवा खड़े हैं


और एक कुण्ड़लीनुमा रचना इसी खास मौके पर:



दीप दिवाली के जलते हैं, गली गली हर ओर
लक्ष्मी गणेश को पूजते, सज्जन हो या चोर.
सज्जन हो या चोर कि बच्चे खेलें फोड़ पटाखे
मिठाई मेवे के संग में, बंटते रहे खील-बताशे
कहत समीर कि रात जुयें मे तेरी होवे जीत
दिवाली तुझको शुभ रहे, रोशन जग के दीप.

आप सभी को मेरी और उड़न तश्तरी की ओर से दीपावली और ईद की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें.


-समीर लाल 'समीर'

Indli - Hindi News, Blogs, Links

मंगलवार, अक्तूबर 17, 2006

चलत कत टेढ़ो टेढ़ो रे

आज एक ऐसी घटना घटी कि हम ठगे से रह गये. शायद आप भी रह गये हों तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है क्योंकि इस खुशफ़हमी के कई शिकारों से मेरी मुलाकात चैट पर हो ही चुकी है.
हुआ यूँ कि फुरसतिया जी ने आज एक लेख लिखा: लिखये तो छपाइये भी न!अब आदतन तुरंत पढ़े गये. उसी में एक जगह जिक्र आया:


पता नहीं आपको कैसा लगता है लेकिन मुझे कृष्ण बलदेव वैद की डायरी पढ़ते समय अपने तमाम ब्लागर साथियों के लेख याद आ रहे थे और यह कहने का मन कर रहा था कि ब्लाग में लिखने के साथ-साथ अपने लेख, कहानियां, कवितायें जगह-जगह पत्र-पत्रिकाऒं में छपने के लिये भेजते रहें- बिना इस बात की परवाह किये कि वे छपेंगी या नहीं। मुझे अपने तमाम साथियों की रचनायें इस स्तर की लगती हैं जो थोड़े फेर बदल के साथ आराम से पत्र-पत्रिकाऒं में छपने के लायक हो सकती हैं और सच पूछिये तो कुछ साथियों की रचनाऒं का स्तर तो ऐसा है कि वे जिस पत्रिका में छपेंगी उसका स्तर ऊपर उठेगा। मेरा सुझाव है इस दिशा में सोचा जाये और हिचक और आलस्य को परे धकेल कर अपनी रचनायें छपने के लिये भेजने का प्रयास किया जाये।



उपर बोल्ड किया वाक्य देखें:

यह मेरे लिये लिखा गया है ऐसा हमने पढ़कर सोचा भी था और बाद में चैट पर हमसे फुरसतिया जी ने बताया भी तो पूरे से कनफर्म हो गया. हमने कहा भी कि काहे नहीं हमारा नाम भी डाल दिये साथ ही. कहने लगे कि बाकी रचनाकारों का उत्साह कम नहीं करना चाहते बकिया तो सब समझ ही जायेंगे कि ये आप हैं.

हम तो नतमस्तक हो गये. सोचने लगे कि यह होते हैं बड़े रचनाकारों के गुण कि आपके बारे में भी लिख गये, सबको पता भी चल गया और किसी को बुरा भी न लगा और नाम भी न आये.

वाह भई वाह, क्या बात है हमारे फुरसतिया की.

हम सीना फुलाये चैट बज़ार की गलियों में शहंशाह बने घूम ही रहे थे कि एक और ब्लागिया मित्र से मुलाकात हो गई. वह भी अंदर से बेहद प्रसन्न और उपर से गंभीरता का लबादा ओढ़े घूम रहे थे, हमें देखते ही तुरंत चहक उठे: " आपने पढ़ा आज फुरसतिया जी ने हमारे बारे में क्या लिखा? ".

हमारे मन में एकदम साहनभूति जाग गई. एक बार मन में आया कि बेचारा, कितनी बड़ी गलतफहमीं का शिकार हो गया है. रहने देते हैं, कुछ नहीं बताते हैं, कहीं हताशा में कुछ अवांछनिय कदम न उठा ले. रचनाकार तो है ही , चाहे कैसा भी हो. भावुक हृदय होता है. फिर भी रहा न गया. मैने उन्हें समझाया कि भईये, झूठ खुशफहमी न पालिये, वैसे आप ठीकठाक लिखते हैं, मगर अब ऐसा भी नहीं कि फुरसतिया जी आपके लिये कुछ लिखने लग जायें और वो भी इस तर्ज पर. वो हमारे लिये लिखा गया है, हमें तो खुद फुरसतिया जी बताये हैं.

वो आश्चर्य से देखने लगे और भर्राये गले से कहने लगे: "क्या बात करते हो आप भी. हमें भी तो खुद ही वो ही बताये हैं."
विचारों की आंधी चल पड़ी और जब थमीं तब हम दो हो गये थे, एक ही तीर का शिकार तो लगे साथ साथ घुमने. लोग मिलते गये और देखते देखते ऐसे ही शिकारों का कारवां बनता गया और अब तक हम आठ लोगों का हुजूम तैयार कर बाज़ार में ही घूम रहे हैं. अगर आप भी इसका शिकार हैं तो देर किस बात की-आईये न! हम आठ तो घूम ही रहे हैं, आप भी शामिल हो जायें. :)

देर से प्राप्त समाचारों के अनुसार, फुरसतिया जी के इस लेख से चार तरह के घायलों के मिलने की संभावनायें व्यक्त की जा रही है:



१. जिन्हें लगा कि फुरसतिया ने उनके बारे में लिखा है.

२. जिन्हें लगा कि फुरसतिया ने उनके बारे में लिखा है और उनके मित्रों ने उन्हें इस बात की बधाई भी दी (कई ब्लाग दिखते हैं जिसमें सब मित्र मिल कर लिखते हैं और रचना पर एक दूसरे को बधाई देते हैं. अब बाहरी कोई आये न आये, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता)

३. जिन्हें लगा कि फुरसतिया ने उनके बारे में लिखा है और बाद में वो फुरसतिया जी को खोजते रहे कन्फर्म करने को और वो नहीं मिले.

४.जिन्हें लगा कि फुरसतिया ने उनके बारे में लिखा है और बाद में वो फुरसतिया जी को खोजते रहे कन्फर्म करने को और वो मिले तो कन्फर्म कर गये कि वो आप ही हैं जिनके बारे में उन्होंने लिखा है. (मैं इस श्रेणी का कहलाया)




आप भी बतायें न! क्या आप भी शिकार बनें. अगर हां, तो कौन सी श्रेणी में आप रखे जायेंगे?

याद आ रहा है मुझे:

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग साथ आते गये और कारवां बनता गया...........

--समीर लाल'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

शुक्रवार, अक्तूबर 13, 2006

चलो आगे चलें..

कल कुछ पंक्तियां लिखी थीं, देश लगे शमशान अब थोड़ा आगे बढते हैं, इन्हें देखें. कहीं कुछ जुड़ा जुडा सा लगता है :

अपने दिल में ही तलाशो,
तह में सच को पाओगे.
खुद की नज़रों से भला,
तुम कब तलक बच पाओगे.

तख़्त फांसी से उतर के,
किस तरह जी पाओगे.
डूब कर निज ग्लानि में,
तुम खुद -ब-खुद मर जाओगे.



//१//


इस जहां मे अब नहीं, कोई खुदा रह पायेगा
वहशती चालों को तेरी, अब नहीं सह पायेगा.
बांध ले सामां तू अपना, गर खुदा से वास्ता
शातिराना बात अपनी कब तलक कह पायेगा.

//२//

हो खुदा ,भगवान हो या, एक ही तो बात है
चाहे घर कोई हो तोड़ा, सिर्फ़ उसकी मात है
तोड़ कर के एक घर को, दूसरा बनवाओगे
मानता हूँ मै निहायत, बेतुका जज्बात है.

सादर
समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

बुधवार, अक्तूबर 11, 2006

देश लगे शमशान

कितने घर बर्बाद हुये हैं
कितने नर-संहार हुये हैं
तेरे घृणित कृत्य के आगे
देव सभी लाचार हुये हैं.

मानवता का वह हत्यारा
क्यूँ तेरी है आँख का तारा
उसको जीवन-दान दिला के
तूने किसको है ललकारा.

तू समझा है नाम हुआ है
ओ नादां, बदनाम हुआ है
साथ दिया है हत्यारे का
ये अक्षम्य ही काम हुआ है.

आस भोर की शाम नहीं है
जीवन यह आसान नहीं है
क्यूँ है हरदम साबित करता
नेता है तू, इंसान नहीं है.

युवा जाने कहाँ सो गया
देश महान कहाँ खो गया
ऐसा क्यूँ सब मौन धरे हो
देश लगे शमशान हो गया.

भूल यह तेरी, हरदम होगा
कल का युवा कम न होगा
अभी वक्त है जरा संभल जा
दंड भी तुझको भरना होगा.


--समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

मंगलवार, अक्तूबर 10, 2006

कुण्डली सीखो हे कविराज

// इस लेख के पहले कृप्या एक पाती-समीर भाई के नाम जरुर पढें, तो ज्यादा आन्नद आयेगा//

आज नारद फीड पर नजर के घोडे दौड़ा रहे थे कि एकाएक नजर एक पाती-समीर भाई के नाम पर गई, हम घबराये कि क्या हो गया, भईया. तुरंत चटका लगाये और पहुँच गये:

एक पाती-समीर भाई के नाम

आपकी कुण्डलियाँ पढ़-पढ़कर हमारा मन व्याकुल हो उठा है कुण्डलियाँ लिखने को, मगर हम ठहरे इसमे बिलकुल अनाड़ी, क्या करें???

अब तक ऐसे कांडों मे न जाने कितने लोगों को अधीर होते, उत्साहित होते, आतुर होते और न जाने क्या क्या होते देखा था, पर आपको इस अंदाज में व्याकुल होते देख हमारे तो आँख से अश्रुधार ऐसी फूटी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. अब जब लेख लिखने लगे हैं तो मन कुछ हल्का होता जा रहा है.आशा है पूरा लेख हो जाने पर आपकी व्याकुलता इन्डेक्स में त्वरित गिरावट आयेगी, ऐसी आशा की जाती है.

बड़ी शिकायती लहजे में कविराज जी कह रहे हैं कि वो प्रतीक जी, जीतू भाई, अनूप जी सबके पास गये और हमें गुगल चैट का आमंत्रण भी भेजे जो हमने स्विकार नहीं किया, इसलिये खुली पाती को ईमेल माना जाये.

वाह कविराज जी, आपने इतने दर खटखटाये मगर हमें एक ईमेल भी नहीं? आपका चैट का आमंत्रण भी मिल गया मगर हम समझे कवि है, जरुर कविता सुनायेगा, इसीलिये टक्कर देने के उद्देश्य से सोचे कि पहले कुछ सुनाने के लिये कवितायें लिख लें तब आमंत्रण स्विकारें. वरना तो आप ही आप सुनाते, हम सिर्फ वाह वाह कहते रह जाते औपचारिकतावश. चूँकि आप भी कवि हैं तो आप भी वाह वाह में छुपे आह आह को समझ न पाते और उसे सही की वाह वाह मान कर झिलाते चले जाते. तो सांप के काटे का जहर उतारने के लिये सांप का ही जहर चाहिये, यही सोच कर कविता लिखने में जुटे रहे और आप ईमेल की आड़ में झाड़ ही काट लिये, पूरी पोस्ट ही लिख मारे. हम घबरा गये, तुरंत आमंत्रण भी स्विकार कर लिये और आपकी पोस्ट रुपी ईमेल पर टिप्पणी रुपी पावती भी धर आये:

देखा था गुगल चैट पर, कल ही आपको कविराज
पेंडिंग पड़ा निवेदन भी, एक्सेप्ट कर लिया आज.
एक्सेप्ट कर लिया आज कि अब हम लिखेंगे लेख
कुण्ड़ली पर जो अल्प ज्ञान है तुम भी लेना देख
कहे समीर कि हमरा तो सिर्फ़ कुण्ड़लीनुमा लेखा
नियम लगे हैं बहुत से, जब असल कुण्डली देखा


कविराज जी, आपका लेख भी अच्छा बन गया. अच्छा कहने के लिये जो मापक यंत्र हमने इस्तेमाल किया है वो लेख को मिली हुई टिप्प्णियों की संख्या है. हालांकि यह यंत्र हमेशा सत्य परिणाम नहीं देता है, ऐसा मेरा मानना है और मेरी यह मान्यता तब और बलिष्ट हो जाती है, जब मेरे लेखों को टिप्पणी नहीं मिलती है. खैर, छोड़िये न इन बातों को, इसमें क्या रखा है. मगर आज तो आपके केस में इस यंत्र ने बिल्कुल ठीक कार्य किया है.

तो आपने लेख लिखने में महारथ हांसिल कर ली. हाईकु में वाह वाही तो आप लूट ही रहें हैं, खास तौर पर ब्लागर हाईकु पर तो सच्ची वाली वाह वाह भी:

समीर नहीं
अब बदलो नाम
कुंडली किंग


हमारी टिप्प्णी:

क्या लिखते हो, भाई.

// ध्यान से देखें, टाईपो नहीं है. टिप्पणी में वाक्य समाप्ति पर सच में पूर्णविराम लगाया है, प्रश्नवाचक (?) चिन्ह नहीं. //

तो हम कह रहे थे कि लेख आप लिखें, हाईकु में आप पताका फहरायें, कविता आप करें, गजल आप लिखें, क्षणिकायें आप लिखें और अब मात्र बचा हुआ एक आईट्म, कुण्ड़ली भी व्याकुल होकर करने लगें तो बाकी सब ब्लागर, जीतू भाई की शैली में, क्या तेल बेचें. कुछ तो छोड़ दो, महाराज. हर मैदान में तो आपका झंड़ा ही फहरा रहा है फुरुर फुरुर..कहीं तो हमें भी, झंड़ा न सही, फटा हुआ रुमाल टांगने की जगह तो दे दो, हे महारथी.

वैसे, हम जानते हैं कि अगर हम नहीं बतायेंगे तो भी आप चुप थोड़े बैठोगे. अरे, जब हमारे चैट का निमंत्रण न स्विकार करने की बात आपने नगाड़ा बजा बजा कर वाया प्रतिक भाई, अनूप भाई, जीतू भाई को बताते बताते पूरे ब्लाग जगत को बता दी तो यह कोई दबेगी छुपेगी थोड़ी. फिर कोई न कोई दयालु आपको वो पता भी बता ही देगा, जहाँ से नियम टीप कर हम पूरी तो नहीं, मगर कुण्डलियों के समान दिखने वाली रचनायें लिखना सीख गये. तो हम भी सोचते हैं कि चलो छोड़ो यार, बता ही देते हैं. ज्यादा होगा तो रुमाल जेब में ही रखे रहेंगे और गाहे बगाहे हाथ से ही हवा में लहरा दिया करेंगे.

ठीक है जैसी हरि इच्छा:

हमने सबसे पहले इसके बारे में पढ़ा था अनुभूति पर और फिर इस बारे में कभी कुछ नहीं पढ़ा, तो सो ही आप भी कर लो और अगर वहां जाकर नहीं पढ़ना तो वह भाग विशेष यहां पुनः आपकी सेवा में पेश है. अब चूँकि लेख का इस्तेमाल आपको जानकारी देने हेतु किया जा रहा है, अतः मुझे विश्वास है कि पूर्णिमा वर्मन जी इसके इस हिस्से के बिना अनुमति के पुर्न-प्रकाशन का बुरा नहीं मानेंगी:



कुण्डलियाँ

इसके आरंभ मे एक दोहा और उसके बाद इसमें छः चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में चौबीस मात्रायें होती हैं. दोहे का अंतिम चरण ही रोला का पहला चरण होता है तथा इस छ्न्द का पहला और अंतिम शब्द भी एक ही होता है.

उदाहरण-

दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान.
चंचल जल दिन चारिको, ठाऊँ न रहत निदान.
ठाऊँ न रहत निदान, जयत जग में रस लीजै.
मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही की कीजै.
कह 'गिरधर कविराय' अरे यह सब घट तौलत.
पाहुन निशि दिन चारि, रहत सबही के दौलत.


दोहा

इस छ्न्द के पहले-तीसरे चरण में १३ मात्रायें और दूसरे-चौथे चरण में ११ मात्रायें होती हैं. विषय(पहले तीसरे)चरणों का आरम्भ जगण नहीं होना चाहिये और सम (दूसरे-चौथे) चरणों का अन्त लघु होना चाहिये.

उदाहरण-

मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय.
जा तन की झाँइ परे, स्याम हरित दुति होय. (२४ मात्राएं)


रोला

रोला छंद में २४ मात्रायें होती हैं. ग्यारहवीं और तेरहवीं मात्राओं पर विराम होता है. अन्त में दो गुरु होने चाहिये.

उदाहरण-

'उठो उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो.
१२ १२ २ २१, २१ २१ १२ २२ (२४ मात्रायें)
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो.
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो.
भारत के दिन लौट, आयेंगे मेरी मानो.



गण और मात्राओं के विषय में अधिक जानकारी के लिये अनुभूति पर देखिये.



आशा है अब आप कुण्डली कला मे पारंगत हांसिल करेंगे और शीघ्र ही कुण्डलियाँ दागना शुरु करेंगे.

हम तब तक आपके लिये कुण्डली-वीर का खिताब धो-पोंछ कर रखने की तैयारी में निकलते हैं.

--समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

सोमवार, अक्तूबर 09, 2006

भगवान से मुलाकत

बीती ४ तारीख को हमारे चिट्ठे पर एकाएक भगवान अवतरित हुये और हमारे कवि सम्मेलन वाले लेख पर टिप्प्णी लिख कर भाग गये.

"अगर पोस्ट कर देते अपने ब्लाग पर, तो हम भी चले आते, चलो खैर...."

और अपना नाम लिख गये कालीचरण. अदा देखते ही हम समझ गये कि हो न हो, यह इस ग्रह का नागरिक तो दिखता नहीं है. जरुर, कोई दिव्य शक्ति का धारक है जो ऎसी बात कर रहा है. हमने तुरंत उनके नाम पर चटका लगाया और पहूँच गये दिव्य लोक "भात भाजी". शक बिल्कुल सही निकला. दरवाजे पर ही तख्ती टांगे बैठे थे, हम अब भी भगवान हैं.."I am STILL God".

हम साष्टांग दंडवत की मुद्रा में आ गये. प्रभु दर्शन को कुण्डी खटखटाई, उधर से आवाज आई " कौन है इतनी रात गये.आराम भी नहीं करने देते". एक बार तो मन किया कि दबे पांव वापस भाग चलें, कहीं प्रभु आराम में विघ्न डालने के उपलक्ष्य में शाप रुपी माला न पहना दें. मगर तुरंत ही दूसरा ख्याल आया कि अब भाग भी जायेंगे तो भी क्या. वो तो भगवान हैं, जान ही जायेंगे कि कौन आया था. अब मरता क्या न करता, डले रहे साष्टांग, जब तक दर्शन नहीं हो गये. भगवान ने दर्शन दिये, हम धन्य हो ही रहे थे कि दहाडते हुये बोले: " कैसे आये हो इतनी रात गये".

घबराये तो हम थे ही सो घिघियाते हुये कहे: "प्रभु, आप तो नाराज हो गये. हमने जब अपने चिट्ठे के दरवाजे पर आपका छोड़ा संदेशा देखा तो क्षमा मांगने तुरंत भागते चले आये. अब आप ही बतायें कि ऎसी बदहवासी में समय का क्या ख्याल रहता है?"

भगवान गरजे:" अच्छा तो तुम हो उड़न तश्तरी. हमें काहे नहीं बताये पहले से, वो बफैलो वाले कवि सम्मेलन के बारे में, हमें भी आना था वहां". हमने उसी घिघियाये अंदाज को बरकरार रखते हुये अपनी बात धरी: " प्रभु, आपको क्या बताते, हम समझें आपको तो पता ही होगा, आप तो अंतर्यामी हैं" प्रभु भी थोडी छाती फुलाते हुये और साथ ही अपने बड़प्पन का परिचय देने के चक्कर में उगल गये: " अरे, अब काहे के अंतर्यामी." अब कह तो गये फिर एकदम सकपका गये कि अरे, यह क्या निकल गया मुँह से. हमने भी स्थिति भांपते हुये तुरंत फायदा उठाया और अपनी मुद्रा, घिघियारी से दो स्तर पदोन्नत कर सहज और फिर मजाकिया कर ली: " क्या प्रभु, आप भी पृथ्वी दोष का शिकार हो गये कि अब बिना बताये कुछ पता ही नहीं चलता फिर तो आप भी उन्हीं स्वयं-भू ईश्वरों की जमात के कहलाये जो सुबह से ही टी.वी. पर आसान जमा कर बैठ जाते हैं. सिर्फ अपनी राग गाते हैं और अपनी दुनिया में ही मगन रहते हैं, भले ही बाकी दुनिया में आग लगे."

प्रभु सकुचाये और उवाचे:" वैसे तो मैने भी उसी महान धरती पर नर्मदा की गोद में जन्म लिया है किन्तु जब यह सारे तथाकथित भगवान झूठमूठ की तपस्या के लिये अप नार्थ में बद्रीनाथ केदारनाथ साईड के जंगलों की तरफ जा रहे थे, हमने असल तपस्या के लिये कांक्रीट के जंगल चुने. हमने अभियांत्रिकी की तपस्या पूरे पांच साल की." अब जब ये सारे भगवान अपने मठ खोल खोल कर भारत में टीवी के माध्यम से प्रसारित एवं प्रचारित हो रहे हैं और प्रचार पाते ही विदेशों की तरफ नजर दौडाते हैं ताकि आर्थिकता का ढांचा भी मजबूत हो जाये, तो हमने सीधे ही अमरीका का रुख किया और यहीं पर मठ की स्थापना कर डाली. प्रचार प्रसार के लिये भी टीवी की बजाय इंटरनेट का हाथ थामा. अब नया प्रयोग है तो समय तो लगेगा ही मगर मै अब तक मिले समर्थन और भक्तों की संख्या से संतुष्ट हूँ और सुनहरे भविष्य के प्रति आशान्वित भी.

हमने बात आगे जारी रखने के उद्देश्य से पूछा, "तो भगवन, जैसी की भ्रांति है कि आप अंतर्यामी हैं, वो क्या गलत है." बोले "भाई, अब तुम से जब इतनी बात हो ही गई है तो किसी से बताना नहीं मगर हम कोई अंतर्यामी-वामी नहीं हैं, वो तो हमारा खबरी है न! नारद, वही हमें सब बताता है सो हम जान जाते हैं. अब पिछले माह काम के अधिकता के कारण उसे दिल का दौरा पड़ा तो हमारी सूचना का साधन बंद. अब तो काफी ठीक हो गया है. कह रहा था एक दो हफ्ते में फिर से काम पर लग जायेगा. मगर अभी डाक्टर ने थोड़ा सतर्क रहने को कहा है तो सारी खबर रोज नहीं दे पायेगा. पता नहीं कोई फार्मूला गांठा है कि कुछ तो रोज सुनायेगा, कुछ एक हफ्ते में और कोई कोई तो महिने में और तो और कोई तो तब तक नहीं, जब तक खबर पैदा करने वाला आकर खुद नारद को खबर न करे. अब देखो क्या होता है, जैसा भी है-है तो बड़ा सहारा.

हम कहे:" महाराज, नारद की अनुपस्थिती में कुछ और खबरिये पैदा हुये थे जो अपनी अपनी राग में लोगों तक सब खबर पहूँचा रहे थे. कुछ तो पूरी कथा की तर्ज पर जैसे ऊ चिट्ठा चर्चा वाले. उसी में तो हमारे कवि सम्मेलन वाली खबर भी थी. आपको मालूम चल जाता अगर इस बीच आप उनको साथ रखते तो. देखिये न, ऎसन छपी थी:

" उधर टोरंटो से तीन घंटे की दूरी पर स्थित बफ़ैलो(क्या नाम है) में आयोजित कवि सम्मेलन में हिंदी के धुरंधर ब्लागर अपने जौहर दिखायेंगे जिनमें शामिल होंगे राकेश खंडेलवाल,अनूप भार्गव और उड़नतस्तरी वाले समीर लाल. "

भगवान एकदम क्रुद्ध हो गये, बोले:" हम तो सिर्फ खबरों पर भरोसा रखते हैं और फिर नज़रिया अपना बनाते हैं कि कैसे उस खबर पर क्या करना है. मगर यहां तो ये अपना नजरिया ही गड़बडा़ देते हैं, किसी की तारिफ और किसी की खिंचाई( हमार नारद की भाषा में-चिकाई) तो कौनों को कवर ही नहीं किये और कौनों को दो दो बार. नहीं भईया, ये कोई खबरी थोड़े ही हैं, यह तो विश्लेषक टाईप कुछ दिखते हैं, इन चिट्ठा चर्चा वालों का काम दूसरा और नारद का काम दूसरा. हमें तो बस खबर बताओ, बकिया हम खुद देख लेंगे.

हम कहे:"आप ठीक कहते हैं भगवान. आप तो सब जानते हैं, इनका काम दूसरा है. यह नारद के विक्लप नहीं. इनकी अलग महत्ता है और नारद की दूसरी" तो भगवान मैं चलता हूँ. आगे कभी ऎसा कार्यक्रम हुआ तो जरुर सूचित कर दूँगा. अगर न भी आ पाया तो ईमेल से, जरा अपना ईमेल दे देते"

भगवान प्रसन्न दिखे, बोले लिखो मगर किसी को देना मत नहीं तो स्पाम की बड़ी समस्या हो जाती है :"दानव डाट नचान ऎट @@@@.com" हमें हल्की सी हंसी आ गई. भगवान तो भगवान. तुरंत समझ गये कहने लगे "बेटा, जब मैं नाचता हूँ तो बिल्कुल दानव हो जाता हूँ और फिर जो तांड़व मचता है कि देखने वाले देखते रह जाते हैं."

हमने तुरंत साष्टांग दंड़वत किया और रुख किया अपने घर का. तो ऎसी रही भगवान से हमारी भेंट.


अब वापस आकर बैठे हैं तो चिट्ठा चर्चा के भविष्य को लेकर चिंता में वजन कम हुआ जा रहा है, थोड़ी मदद करें, बतायें कि नारद की वापसी के बाद चिट्ठा चर्चा का क्या स्वरुप होना चाहिये. क्या, जैसे वो चल रही है, उसे वैसा ही चलाना चाहिये या कि कोई और स्वरुप?



-एक प्रस्तुति के साथ विदाई--

हमरे दर पर आये थे, एक दिन श्री भगवान
हम भी मिलकर आ गये, अपना सीना तान.
अपना सीना तान, वो कुछ परेशान से लगते
नारद की बीमारी से आम इन्सान से दिखते
कह समीर कविराय कि नारद जल्दी आ जाओ
भगवान बहुत ही दुखी दिखे, अब न तड़पाओ.


--समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

शुक्रवार, अक्तूबर 06, 2006

अब लगा गुहारें

होगा क्या अब लगा गुहारें, कुछ करके दिखला दो न
उजड़े बाग चमन करने को, कुछ नव पुष्प लगा दो न.

खून खराबे से क्या हासिल है, क्यूँ मारो नादानों को
राह अहिंसा की चलने के, कुछ अब गुर सिखला दो न.

अपना मकसद सबको प्यारा, तुझ पर भी यह बात सही
मंजिल की है राह सही क्या,कुछ इनको भी बतला दो न.

इक धरती के इक टुकडे़ पर, क्यों मचता कोहराम यहाँ
किसकी खेती कौन है जोते, कुछ तो हिसाब समझा दो न.

कल की ही तो बात रहे थे, हम प्याला हम भी तुम भी
फिर क्यूँ हुये खून के प्यासे, कुछ प्रेमसुरा छलका दो न.

कुछ समीर ने समझा है, कुछ तुम समझो तब बात बनें
अगर भेद हो कहीं समझ में, उसे भी आज मिटवा दो न.

--समीर लाल ‘समीर’ Indli - Hindi News, Blogs, Links

सोमवार, अक्तूबर 02, 2006

धरम के नाम पर

धरम के नाम पर हम ही, विवादों को उठाते हैं,
भरम इस बात का हमको कहीं कुछ नाम पाते हैं.

बदल जायेगी दुनिया ही, पता तो था जमाने को
मगर फिर भी ये हरकत है, कहाँ हम बाज आते हैं.

दिया सब छोड़ अपनों ने, घिरे तूफ़ान में जब भी
दिखे बस हाथ गैरों के, जो संग अपना निभाते हैं.

पकड़ कर उंगलियां मेरी, जो चलना सीखते मुझसे
सहर की लाल किरणों मे, मुझी को पथ दिखाते हैं.

चमन में हर तरफ अब तक, अंधेरा ही अंधेरा था
वजह थी बेखुदी जिनकी, शमा वे ही जलाते हैं.

लगी है आग बस्ती में, झुलसती आज मानवता
दिये जो आँख में आंसू, उन्हीं से हम बुझाते हैं.

जगो तुम आज जगने को, ‘समीर’ आवाज़ देता है,
मिटाने आज वहशत को, चलो कुछ कर दिखाते हैं.

--समीर लाल ‘समीर’ Indli - Hindi News, Blogs, Links