कितने नर-संहार हुये हैं
तेरे घृणित कृत्य के आगे
देव सभी लाचार हुये हैं.
मानवता का वह हत्यारा
क्यूँ तेरी है आँख का तारा
उसको जीवन-दान दिला के
तूने किसको है ललकारा.
तू समझा है नाम हुआ है
ओ नादां, बदनाम हुआ है
साथ दिया है हत्यारे का
ये अक्षम्य ही काम हुआ है.
आस भोर की शाम नहीं है
जीवन यह आसान नहीं है
क्यूँ है हरदम साबित करता
नेता है तू, इंसान नहीं है.
युवा जाने कहाँ सो गया
देश महान कहाँ खो गया
ऐसा क्यूँ सब मौन धरे हो
देश लगे शमशान हो गया.
भूल यह तेरी, हरदम होगा
कल का युवा कम न होगा
अभी वक्त है जरा संभल जा
दंड भी तुझको भरना होगा.
--समीर लाल 'समीर'
11 टिप्पणियां:
मानवता का वह हत्यारा
क्यूँ तेरी है आँख का तारा
उसको जीवन-दान दिला के
तूने किसको है ललकारा.
ये लाइने क्या किसी ज्योतिषी से भविष्य जानकर लिखी गयीं हैं? क्या यह माना जा रहा है कि जीवनदान मिल ही जायेगा.
ज्योतिष तो नहीं, मगर नज़ारों की ताल देख कर अंदाजा तो लग ही जाता है...इतने हल्ले के बाद आरक्षण मे क्या हुआ, जो नेताओं ने चाहा, वही न! तो अब कैसे मान लें कि कुछ अलग हो जायेगा...यह क्ॐअ अपना मनवाना जानती है, इंसान नही है न!
क्ॐअ को कौम पढ़ें.
आपकी यह कविता सत्य के निकट है, आज के दौर मे यह कविता प्रासंगिक है।
"नेता है तू, इंसान नहीं है."
गागर में सागर भर दिया साहब।
भोली जनता को मूढ मानकर,
खामोशी को कमजोरी जानकर,
भूल ना कर पछताएगा,
अगले चुनाव में रह जाएगा,
लाख ठोकरें खाकर भी,
कहाँ तु चेता है?
सब जानते हैं रे तुझे,
तु नेता नहीं अभिनेता है!!
समिरलालजी आपने हमारी भावनाओं को शब्द दे दिये हैं.
साधुवाद.
अगर देख लें आईना ये राजनीति के पेशे वाले
इन सबको अपने चेहरों के रंग दिखेंगे केवल काले
सुन्दर लिखा है समीर भाई
इन्सान अगर वो रह पाते
नेता कैसे बन पाते।
देश चाहे होवें शमशान
वो तो सोवें लम्बी तान।
sahi likha aap ne Sameer ji
समीर जी,
बहुत सुंदर कविता है ।
धन्यवाद एवं बधाई !!
रीतेश
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