पिछले सात दिन से न कोई नई पोस्ट और पिछले दो दिनों से न तो कोई टिप्पणी. यह भी नहीं पता कि कब से सिलसिला फिर शुरु होगा. शायद कल से ही या कुछ रुक कर. कितनी अनिश्चितता है. खुद को खुद का पता नहीं. अभी जरा सा समय मिला, तब सोचा कि सूचित तो कर ही दूँ वरना आप लोग क्या का क्या सोच बैठो. सोचने पर क्या लगाम है? :)
अरे हाँ, एक जरुरी बात तो बताना भूल ही गया. ३-४ दिन पहले किसी हुश हुश नागराज जी का हमारी चिट्ठाकार स्पेशल पोस्ट पर कमेंट आया:
बहुत बढ़िया डमरु बजा लेते हो, गुरु. खूब मजमा लगा रखा है. xxx, ब्लॉगिंग छोड़ कर मदारी का काम पकड़ लो, कुछ कमाई भी हो जायेगी और लोगों का मनोरंजन भी. भीड़ जमा करने की कला वहीं दिखाओ और यहाँ लिखने वालों के लिए जगह खाली करो, समझे की नहीं. वरना xxxxx
(इसके बाद वो अपनी औकात पर उतर आये-हम आई पी से पहचान तो गये मगर उनसे मुझे इससे ज्यादा उम्मीद भी न थी)
उनका कमेंट मैं जरुर अप्रूव करता मगर जिस जगह से वो अपनी पहचान पर उतरे उस जगह से आगे संपादित कर कमेंट प्रकाशित करने की सुविधा ब्लॉग स्पॉट नहीं देता और उस भाषा को बिना कांट छांटा के छापने की इजाजत मेरा विवेक नहीं देता. तो मजबूरीवश पूरा कमेंट ही रिजेक्ट करना पड़ा. मगर हुश हुश नागराज जी ने तबियत से पीकर मन की उतारी और हमें खूब महिमा मंडित किया. :)
न तो उनके ब्लॉग का पता है और न ही ईमेल का. अतः मजबूरीवश यहाँ लाना पड़ा वरना ईमेल से जबाब दे लेते.
प्रिय हुश हुश नागराज जी:
हमारी भी हुश हुश!!
अच्छा लगा अपने विषय में जानकर. मेरी मदारी कला से आप प्रभावित हुए, यह मेरे लिए सम्मान का विषय है रिटायरमेन्ट के बाद क्या करुँगा-इस चिन्तन को आपने एक नया आयाम दिया है. काफी बोझ उतरा सा लग रहा है. किस तरह आपको साधुवाद पहुँचाऊँ और आभार प्रदर्शन करुँ, समझ नहीं पा रहा हूँ. कम से कम ईमेल ही दे देते.
आपने जिस धारा प्रवाह में गाली-उवाच किया है, वो भी काबिले तारीफ है. सबके बस में नहीं, इतने तुकबंदी के साथ गाली बकना. काश, बेहतर शब्द इस्तेमाल करते तो शायद आपका कथ्य अमर काव्य बन जाने की काबिलियत रखता. कभी विचार करियेगा.
चलते चलते एक बात और बताता चलूँ कि बजाता तो मैं बीन भी बहुत अच्छी हूँ. कभी नाचने का मन हो तो बताईयेगा, आपके लिए जरुर बजाऊँगा. जो भी पैसा और दूध इक्कट्ठा होगा, सब आपका. कोशिश करुँगा नागपंचमी पर आपका शो रखा जाये, ज्यादा दूर है भी नहीं. आना जरुर. इन्तजार रहेगा.
सादर
उड़न तश्तरी
आज इरफ़ान झांस्वी शेर याद आता है, जो फुरसतिया जी ने सुनाया था:
संपेरे बांबियों में बीन लिये बैठे हैं,
सांप चालाक हैं दूरबीन लिये बैठे हैं।
यह बताने की एक वजह और थी कि इसे बताने के बहाने विन्डोज लाईव राईटर टेस्ट भी हो जायेगा और इसी बहाने एक कागज की चिन्दी पर कभी उतारे चंद शब्द भी सधा लेंगे.
ये रंग कैसे कैसे:
दुनिया!!!
वो कहता है-नीली है
मैं कहता हूँ-हरी है
उसकी नजरों में सुनहरी है..
दुनिया कैसी है?
दुनिया क्या है?
दुनिया वो है
जो तुम हो
जो हम हैं...
बाकी सब
हमारे चश्मों के रंग हैं..
सबके देखने के
अपने अपने ढंग हैं.
-समीर लाल ’समीर’
रविवार, जून 15, 2008
किस नजर से देखूँ दुनिया तुझे...
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61 टिप्पणियां:
सुबह से तीन पोस्टें पढ़ीं, दो पर सांप थे और तीसरी पर खुद।
गली मुहल्ले वालों ने तो पाबंद कर दिया है, इसलिए टिप्पणियों में गल्लियाते हैं।
मस्ती मस्ती में ही आप खूब लिख लेते हो समीर जी.
कैसे-कैसे चाहने वाले हैं जी आपके! हुश-हुश नागराज!
दिल की बात "ब्लॉग" पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं
हमने सुना था इस बस्ती में दिलवाले भी रहते हैं
एक हमें गलियाते रहना बहुत बड़ी कोई बात नहीं
दुनिया वाले ब्लॉगवालों को और बहुत कुछ कहते हैं
दुनिया वो है
जो तुम हो
जो हम हैं...
बाकी सब
हमारे चश्मों के रंग हैं..
सबके देखने के
अपने अपने ढंग हैं.
सही बात लिखी है। आदमी की खुद की भावना पर निर्भर करता है कि वह किसी चीज को किस नजरिये से देखता है।
मुझे भगवान बुद्ध की एक कथा याद आ रही है। एक बार वह कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक आदमी उन्हें गालियां देने लगा। वे खड़े-खड़े चुपचाप सुनते रहे और मुस्कुराते रहे। गालियां बकनेवाला थक गया तो खीझकर बोला- तुम्हें लाज-हया नहीं, इतनी देर से गालियां दे रहा हूं और तुम हंस रहे हो। गौतम बुद्ध ने उस आदमी से पूछा कि यदि मैं तुम्हें कोई चीज दूं और तुम उसे स्वीकार न करो तो वह किसके पास रहेगी। आदमी बोला कि तुम्हारे पास रहेगी। बुद्ध ने कहा- मैंने भी तुम्हारी गालियां स्वीकार नहीं की।
अरे साधुवादी मनई के पास भी नाग/सांप आते हैं? राम-राम!
अशोक जी की कथा से सहमत हू.. आई पी एड्रेस भी सार्वज़निक कर देते तो ठीक रहता.. वैसे इन महाशय का डांस देखने की इच्छा हो गयी अब तो.. नाग पंचमी का इंतेज़ार रहेगा...
हुश हुश नागराज तो बीन देखकर ही भाग गये होंगे । लेकिन नागराज के बहाने ही सही मुझे बचपन की कामिक्सों के किरदार याद आ गये ।
मनोज कामिक्स, राज कामिक्स, डायमंड कामिक्स आदि । नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, चाचा चौधरी और साबू, राम रहीम, बांकेलाल, डोगा, फ़ाईटर टोड्स, लल्लू-बिल्लू और भी न जाने क्या क्या :-)
दुनिया वो है
जो तुम हो
जो हम हैं...
बाकी सब
हमारे चश्मों के रंग हैं..
सबके देखने के
अपने अपने ढंग हैं.
sameer ji
bahut suder ,maan khush ho gayaa
दुनिया जो कहे कहने दो
कब किसने क्या कहा
रहने दो
बहती नदी है
जो लायक है ले लो
जो ना लायक है
उसे बहने दो
देखिये, लात चलाने का एक मौका हाथ आया भी तो आप लात छोड़ने की जगह, दही और भात खिलाने लगे..
ठाक्क ठाक्क... धम्मक्क धम्मक्क ....ठाक्क ठाक्क
जिये जिये रे समीर लला
अय हय समीर लला.. 1001 टिप्पणी से कम न लूँगा ठाक्क ठाक्क !
अरै तू गरियाया गया है ... लाख पोस्ट लिक्खै हज़ार गालियाँ रोज़ मिले .. तू और बड़ा ब्लागर कहलाये ... और मोटी मोटी गालियाँ मिले ...अय हय जिये जिये रे समीर लला .. .. बड़ा ब्लागर हो गया है तू तो
1001 से कम न लूँगा / लूँगी , इससे कम का बधावा नहीं बनता है ...धम्मक्क धम्मक्क ....ठाक्क ठाक्क
आप तो जमाये रहिये।
आपको उखाड़ना किसी के बूते की बात नहीं है।
Sameer ji ,
main ab tak sochti thi ki jealousy jaisee bhavnayen sirf mahilaon mein hoti hain--magar yahan to 'males' bhi is bhaavna se grast ho jaate hain!
kammal hai!
pata nahi Kuchch logon ko ye kyun samjh nahin aata KI-
'blog swatantr abhivayakti ka Ek bada madhyam hai '-aur khuub space ublabdh hai--aur kya kahin koi niyam hai ki humen hamesha gambhir vishy hi likhne chaheeye??ye sahitya manch nahi hai--mila jula sangam hai---sab ka apna alag dayra hai--pahunch hai--ruuchi hai---
Agar kisi ko kisi ki koi post pasand na aaye to na padhey..ye koi school ka anivarya vishay nahin hai jo aap ko padhna hi hai...
Naagraaj sahab Google walon ne bahut jagah khaali rakhi hai--aap jitne bhi blog chahen banaye aur likhen---
Har post ka apna ek alag Pathak varg hai.
-IS tarah ke josh ko samaj sudhar mein istmaal kiya jaaye to achcha hai--is tarah se agar to hindi bloggers niraash hi honge.
Yahan kuchh samay insaan relax hone ke liye achcha -rochak -manpasand padhne ,likhne aur share karne aur haan seekhne bhi aata hai--
is tarah se kisi ko jaleel kar ke Un Sahab ko kya haseel hoga??
Aap to Sameer ji likhte raheeye--aap ke pathak varg par koi farq nahin padega--
kyun na naagraaj ji yah jan.ne ki koshish karen ki--kaise sameer ji itne lokpriy hain aur apne bhi pathak banayen--
shubhkamnayen
यह हूश हूश क्या बला हुई?
और जब टिप्पणियों के ढ़ेर के ढ़ेर पायेंगे तो , ऐसी शुभकामनाएं आयेगी ही. :)
अपनी चाल से चलते जाईये....लोगो का क्या है...
बाकी सब
हमारे चश्मों के रंग हैं..
सबके देखने के
अपने अपने ढंग हैं.
बिल्कुल सही कहा है आपने।
buhut aache sameer ji...dukh hota hein kuch log, kabhi aacha nahin sikh pate..unki sari shakti doosro ko neeche laane mein lagi rehti hein...
samay hein jagrookta ka..aap apni pratibha isi tarah humtak puhuchatey rahe.
aapka gumnam preshak
दुनिया वो है
जो तुम हो
जो हम हैं...
बाकी सब
हमारे चश्मों के रंग हैं..
सबके देखने के
अपने अपने ढंग हैं.
वाह क्या बात कह दी सच दिल खुश हो गया।
ये भी खूब रही... हुश-हुश नागराज जी अगर शो के लिए राजी हो जाएँ तो हमें भी बुला लीजियेगा... कुछ हम भी दे ही देंगे :-)
और ये नई वाली तस्वीर (आराम के पोज में) मस्त है... ऐसे पड़े-पड़े वजन में और बढोत्तरी तो नहीं हो रही?
kavitaa bahut achhi lagi...baaqi..kuch to log kahengey,logon ka kaam hai kehnaa :)
छुट्टियों पर जा रहे हैं क्या सरजी... हमे भी लेते जाइए..
वैसे हुश हुश के बारे मे कहना चाहुँगा कि, हर एक्शन का रिएकेशन जरूरी तो नहीं.... बहुतों मिलेंगे ऐसे...
देखिये न समीर जी आपको लोग कितना प्यार करते हैं कितना हक समझाते हैं ..:) अशोक जी की बुद्धा जी वाली बात पर गौर करे नही तो गांधी वादी बन जाए :)
बाकी सब
हमारे चश्मों के रंग हैं..
सबके देखने के
अपने अपने ढंग हैं.
बाकी आपने यह सब बहुत सत्य लिख हो दिया है :)
अपनी अपनी सोच। अभी मेरे ही एक पोस्ट में मुझे भी एक ऐसी ही टिप्पणी मिली, कुछ तुकबंदी थी। एक और पोस्ट में मुझे गिद्ध कह दिया गया। मैं आपको आईपी मेल कर रहा हूं। जरा दोनों को मिला लीजिए कि क्या दोनों एक ही शख्स हैं।
आपने पोस्ट मे जिस बेबाकी से नागराज का जिक्र किया वह सराहनीय और काबिले तारीफ है . ऐसे पोटरी मे बंद जनों को सबके सामने लाना भी साहस है जो दिलेरी से ऐसे तत्वों का सामना करते है . चाहे हुश शुश फुस हो या कोई भी सभ्य समाज मे ऐसे तत्वों का विरोध किया जाना चाहिए . राह मे चलते समय कंकर या पत्थर आ जाता है तो हम अपना रास्ता बनाने के लिए उसे पैर से अलग कर देते है पर हम चलना रोकते तो नही है . अमर्यादित टिपण्णी से हिन्दी ब्लॉग जगत की छबी बन नही रही बल्कि बिगड़ रही है यह कटु सत्य है . कलम का सतत लेखन जारी रहे शुभाकमानो के साथ .
बाकी सब
हमारे चश्मों के रंग हैं..
सबके देखने के
अपने अपने ढंग हैं.
सार की बात तो यही है बस...और हाँ नागराज जी को हमारी भी हुश हुश.
दुनिया वो है
जो तुम हो
जो हम हैं...
बाकी सब
हमारे चश्मों के रंग हैं..
सबके देखने के
अपने अपने ढंग हैं.
बहुत खूब! आपके चश्में से हम कुछ देर से दुनिया देख रहे हैं और हमे मज़ा आ रहा हैं। बाकि तो दुनिया में अपनी अपनी चाहते हैं... और खुदा ने कोई लगाम ही तो नही बनाईं।
जुनुने जहन्नुम वो जो पाल रखे हैं,
हम क्यों बताये जन्नत भी कोई चीज़ हैं!
समीर जी
आप भी कहाँ कीचड में पत्थर फैंक रहे हैं...कीचड का तो कुछ बिगड़े का नहीं आप के कपड़े ख़राब हो जायेंगे...आप तो बिंदास लिखो टिप्पणियों में कोई क्या लिखता है उस से क्या फरक पढता है...आप जैसा ना कोई है और ना कोई होगा...कहें तो स्टाम्प पेपर पर लिख के देदें?
नीरज
यह तो आपकी प्रसद्दि है कि नागों के देवता भी आपके ब्लाग तक आ पहुँचे , अब जब उनकी request है तो उनके लिये भी जगह का प्रंबध करिये :)
चलो हुश हुश जी की भड़ास तो निकल गई...! आप ईश्वर को धन्यवाद दीजिये कि उसने इस नेक काम के लिये आपको चुना
मदॆ को चाहिए कायम रहे इमान के साथ ।
ता दमे मगॆ रहे यादे खुदा जान के साथ ।।
मैने माना कि तपम्हारी नही सुनता कोइ ।
सुर मिलाना तुम्हें क्या फजॆ है शैतान के साथ ।।
ऐसे हुश हुश नागराज को पता चल गया होगा कि उडनतस्तरी जी को लोग कितना प्यार करते है।
ऐसों के मुंह नही लगिये गंदी नाले के गंदे कीडे है।
jay ho bandhu....jame rahiye....
man ki bin bajate rahiye
Hush Hush hush ....... ary hush na...
nahi udta....... jaane do samir ji,
lagta hai ye hush hush ekdam hi besharam ho gaya hai :)
likhte rahen, kahne vaalon ka kya hai , aap jari rakhen.
देखिये हमने आज सुबह इसलिए ही आपको ब्लॉग रत्न की उपाधि नही दी थी .......आपकी टी आर पी से लगता है लोग घबरा गये है ...पर आपके फोटो भी बढ़िया है,शेर भी,ओर कविता भी......ओर बीन भी.......एक शेर हमने भी कभी लिखा था इसे भी सुन लीजिये .....
आप खेलिए इन लफ्जों से सियासत
हमे तो कुछ शेर कहने आते है
बाकी साहब अगली पोस्ट मे I.P सार्वजनिक कर दीजिये
ये क्या हुआ ?
कैसे हुआ ?
क्यूँ हुआ
..ये न सोचो ..
-लावण्या
हुस्स की फुस्स निकाल दी आपने। दिल्ली में मॉनसून आ गया है, सांप-नाग तो निकलते रहेंगे। सब जहरीले नहीं होते। वैसे आपने बहुत बेहतरीन ढंग से नागराज का ज़हर उतार दिया है।
दुनिया वो है
जो तुम हो
जो हम हैं...
बाकी सब
हमारे चश्मों के रंग हैं..
सबके देखने के
अपने अपने ढंग हैं.
bilkul sahi baat,sehmat hai,sundar kavita badhai
अरे, आपको भी एसे लोग मिलने लगे! आपको तो हम अजातशत्रु समझते थे!
जबरदस्त जवाब. पढ़कर मजा आ गया. उत्सुकता भी जाग गयी, बिना ब्लॉग बिना ई मेल के शख्स, फिर भी इतने परिचित कि आप आई पी से पहचान गए.
aapke prashansak bhut hai.sayad unhe aap se chid ho gai hai.par jo aacha likhta hai use comment to ate hi hai.
sameer sher to apne dhoondh kar nikala hai...
संपेरे बांबियों में बीन लिये बैठे हैं,
सांप चालाक हैं दूरबीन लिये बैठे हैं।
kya baat hai.....
Likhte rahen... ati sundar
sirf haaziri lagane aaye hain, posts fursat me parenge....
समीर जी! हुश हुश अगर नागराज की जगह ,भैस निकले तो .......बीन के साथ एक डंडा भी रख लीजिए,कनाडा मे न मिले तो जबलपुर से भिजवाऊ? ध्यान से देखिए गोबर किया है या जहर उगला है।आप तो जमे रहिएः
"होंगे कोई और तेरी महफिल से उठ कर जाने वाले,
हजरत ए दाग जहाँ बैठ गए तो बैठ गए.............."
बॉस इस महाजन को मेरी और से धन्यवाद कह दीजिए
और बता दीजिए "जबलपुर का डमरू वाला अच्छे अच्छे को अपना बन्दर या नाग बनालेता है उसे किसी की सलाह की ज़रूरत नहीं होती "
रहा सवाल मुलाक़ात का सो हम उनको नरघैया,तिलक भूमि तलैया,पुरवा,आदि स्थानों पे होने वाले ब्लागर सम्मेलन में आमंत्रित कर लेते हैं
वैसे.....?
aapka ye lekh padh kar hasi ki khub prapti hui...hush hush nagraj naam se le kar...naag panchmi tak ka safar aap ke lekhan ke sang bada hi aahladak raha...
kuchh deewane aise bhi to hote hain...hush hush nagraj...par aap ka prtyuttar behtarin tha...nagpanchami ke din, bin ke saaz par nagraj ka nach kaisa hoga wo khayal bhi mazedar hain...
टिपण्णी देख ली होगी हुस हुस फुस नागराज जी हम सभी भाई समीर जी,यक्ष जी,बिल्लौरे जी ,विजय तिवारी"किसलय" महेन्द्र मिश्र,पंकज स्वामी "गुलुस" यमराज आदि संस्कारधानी जबलपुर के है ( जो पत्थरो के शहर के नाम से जाना जाता है ) किसी बेसुरा हुस हुस फुस को पसंद नही करते है . भाई समीर जी ने हिन्दी ब्लागिंग जगत मे जो अमूल्य सेवाए प्रदान कर इस शहर का नाम भी रोशन किया है . समीर जी के प्रशंसक सारे भारत मे है .हुस हुस जी को सलाह है की वो अपनी बामी के अन्दर रहे वरना पकड़ कर जैसा की बिल्लौरे जी ने कहा किसी तलैया मे नचवा दिया जावेगा .
अभी बहुत व्यस्त चल रहा हूं सो आज जाकर आपका ये पोस्ट पढा.. अच्छा लगा..
वैसे आपने मेरे ब्लौग पर पूछा था कि मुझे नौकरी कब लगेगी तो बता दूं अगले पोस्ट में मैं अपनी नौकरी लगा ही दूंगा.. बहुत दिन बेरोजगार बैठ गया.. :D
aaj hi aapki ye post dekhi.bina wazah bawaal machane wale logon ki kami nahin. samne ki bahas se log bachte hain aur peeche se waar karte hain..
देर से पहुँची ,सभी अपने अपने तरीके से अपनी बात कहते हैं पर ज्ञान भाई सही कह रहे हैं..।
दुनिया वो है
जो तुम हो
जो हम हैं...
बाकी सब
हमारे चश्मों के रंग हैं..
सबके देखने के
अपने अपने ढंग हैं.
bahut achhi lagi yen panktiyan...aapka andaaz bhi behad pasand aaya
bahut badhiya
sameerji hush hush fuss fuss se milwakar aapne to hume cartoon k liye masaala de diya.........lage rahiye
shabdon ki maaya se kaun bach saka... saamp... baap re baap...
समीर भइया, ये हुश हुश नागराज कभी-कभी बिल से निकले तो आते-जाते कुछ बोलेंगे ही...नागपंचमी आ रही है. इनकी 'बीन' बजा दीजिये.
कविता अद्भुत है. और वही जवाब भी.
Dear Sameer Bhai Saheb, ye hush hush bhai saheb ke liye maine vanya prani visheshagya, Manish Kulshreshtha ko 9425151570 par mobile kar diya hai. Jald pakad liye jayenge. Maze kee baat ye ke is mausam main blog par bhee saamp-naag nikalte hain, batlaiye !
आज कल कुछ अजीब सा लग रहा है । नागराज की नाराजगी कोई बड़ी बात नही । ऐसे तो हर नुक्कड़ पर मिल जायेगें ।
लेकिन आप अगर नुक्कड़ पर मिलते तो नुक्कड का नजारा अलग होता । मगर आप तो नुक्कड़ से दूर सात समन्दर पार चाय की चुस्कियाँ ले रहे हैं ।
ईश्वर मेहरबान है …
विन्डोज लाइव राइटर का प्रयोग आपने शुरु किया …जानकर खुशी हुई
साथ ही अगर " The Hindi Writer " का प्रयोग किया जाय तो मजा आ जाता है ।
यह एक ऐसा साफ़्ट्वेयर है जिससे हम हिन्दी बहुत जल्दी लिख पाते है बिना इन्टरनेट का प्रयोग किये ।
वाकई मज़ा आता है …कैफ़े टाइपिंग टूल मे वो मज़ा नहीं …
डाउनलोड करने का लिंक ……
http://www.download.com/HindiWriter/3000-2279_4-10451513.html?tag=lst-1&cdlPid=10609454
है ।
आप ज़रूर इस साफ़्ट्वेयर से प्रभावित होंगे।
ऐसी उम्मीद है :)
"bhut sunder article, accha lgaa"
Regards
दुनिया वो है
जो तुम हो
जो हम हैं...
बाकी सब
हमारे चश्मों के रंग हैं..
सबके देखने के
अपने अपने ढंग हैं.
Bahut sunder Sameer ji...... Kaun hai yeh Naagraj? hindi blogger?
kya
ghlglsdhfywearhkhxdfkh
ise samjhe aap???
क्या खूब चश्मे के रंग हैं - जो ढंग हैं संग हैं, जो बदरंग हैं सो तंग हैं - क्या कहते हैं ?-
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