रविवार, अक्तूबर 15, 2023

बस!! जरा जाग कर तो देखो।

इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं

जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं..

गधे हँस रहे, आदमी रो रहा है

हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है..

जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है

जो माइक पे चीखे वो असली गधा है..

इन पंक्तियों के रचयिता ओम प्रकाश आदित्य तो अब रहे नहीं।  मगर यह कविता कालजयी है। अकसर तो कविताएं कालजयी अपने बलबूते पर होती हैं मगर इसके कालजयी होने में हमारे नेताओं का बहुत बड़ा योगदान है।

आज की शाम में हुई चुनावी बयान बाजी ने इन पंक्तियों की याद ताजा की जब उसमें गधों का जिक्र आया। गधों के बीच भी जब तक गधों का जिक्र न आये तब तक गधा भी गधा नहीं होता बल्कि इन्सान सा नजर आता है। गधा गधे को गधा कहकर यह समझ रहा है उसने अगले को अपमानित कर डाला यह अपने आप में कितने अचरज की बात है और ऐसा सिर्फ सीसे वाले गधे ही कर सकते हैं। बताते चलें कि यह असल गधों का स्वभाव नहीं, इन्सानों का स्वभाव है जो अपने कर्मों से गधों से बराबरी करने निकाल पड़े हैं।

गधों की भी कई नस्लें होती हैं। उनमें से एक नस्ल होती है जिसे जुमेराती कहते हैं। जुमेराती गधा – अपने आप में अनोखा। मात्र इस नस्ल को लेकर भगवान और खुदा दोनों एकमत हुए होंगे शायद कभी और तब दोनों ने मिल कर सिर्फ इस नस्ल को यह वरदान दिया होगा कि वो शोहरत और बेइज्जती के बीच के अंतर को कभी न समझ पाएंगे और जूते और फूल की माला, दोनों ही उनके लिए एक समान होगी। वो दोनों से ही अपने आपको सम्मानित महसूस करेंगे। करेंगे क्या, करते ही हैं।

अतः ये वाली सारी नस्ल, जिसे जुमेराती के नाम से जाना गया, अपनी मोटी चमड़ी और मोटी बुद्धि के साथ संसद के दोनों सदनों और विधानसभाओं से लेकर अनेक निर्णायक स्थानों पर जनता की उदासीनता के चलते विराजमान है, इन्हें इन्सानों से अलग पहचान देने हेतु नेता पुकारा गया है। दिखने में इन्हें इन्सान सा दिखने का वरदान भी मिल कर ही दिया है भगवान और खुदा ने। इसके बाद भगवान और खुदा फिर कभी नहीं मिले, ऐसा शास्त्र और कुरान दोनों बताते हैं। इसके बाद दोनों एक दूसरे को अलविदा कह गये, अतः बाकी के सारे गधे धोबी के साथ साथ घाट घाट घूम रहे हैं और आम इन्सान तो खैर हर घट का पानी पिये अपने जुमेराती गधा न हो पाने के मातम में डूबा ही है।

यह भी मुझे एक ऐसे ही नेता ने बताया है और मैंने जैसा की आम जनता की आदत होती है, उसकी बात को सच मान कर यहाँ प्रस्तुत भी कर दिया है।

बस आज आगाह करने को मन किया कि अगर ईश्वर कभी आपको गधा बनाये तो प्रार्थना करना कि जुमेराती ही बनाये..इत्ती सी च्वाईस तो मिलती ही है जब पुनर्जन्म होता है। अगर न मिलती हो तो भाईयों बहनों, मिलनी चिए कि नहीं मिलनी चिए? मिलनी चिए कि नहीं मिलनी चिए? पुनर्जन्म में तो हर मजहब भरोसा धरता है, अतः इस वक्तव्य में सेक्यूलरवाद की महक न आनी चाहिए किसी को। मगर लोगों को पता ही नहीं होता, अतः वो बस यूं ही मायूस हो कर कह देते हैं कि अब गधा बना ही रहे हो तो कोई सा भी बना दो। गधा तो गधा ही होता है। कितना मासूम है ये इंसान – शायद इसीलिए लुटा पिटा सा है।

याद रखना इस मायूसी और मासूमियत का अंजाम- फिर वही धोबी मिलेगा तुमको - .घाट घाट घुमाने को। .संसद के सपने बस सपने में ही आएंगे।

जागो और मांगो अपने जुमेराती होने के अधिकार को – कल को तुम भी चाय बेच सकते हो – कल को तुम भी देश बेच सकते हो। सब संभव है- संभव तो यह भी है कि देश को बिकने से बचा जाओ। बस!! जरा जाग कर तो देखो। कितनी उम्मीदें हैं तुमसे और तुम हो कि सो रहे हो!!

यह आलेख इस हेतु यहाँ लिखा कि जान जाओ और जाग जाओ :)

-समीर लाल ’समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अकतूबर 16, 2023  के अंक में:

https://epaper.subahsavere.news/clip/7572


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6 टिप्‍पणियां:

Kundan ने कहा…

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Sweta sinha ने कहा…

मारक व्यंग्य... बेहद धारदार लिखा है सर।
प्रणाम सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १७ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

हरीश कुमार ने कहा…

जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है..
वाह 😜😜😜

मन की वीणा ने कहा…

सटीक कटाक्ष, शानदार प्रस्तुति।

Amit Kumar ने कहा…

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सुशील कुमार जोशी ने कहा…

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