शनिवार, मई 13, 2023

आखिर जाने ऐसा क्या पा लेंगे!!



मौसम ठंडा है या गरम? नहीं पता. जहाँ हूँ वहाँ अच्छा लग रहा है.

अभी अभी आँख लगी थी या अभी अभी आँख खुली है, समझ नहीं पा रहा हूँ.

पूरा बदन दर्द से भरा है. दिल नहीं, बस बदन. ज्यादा काम की थकावट. १४ घंटे काम के दिन.

त्यौहारों के दिन तो आते ही रहते हैं. कभी कोई दिन, कभी कोई दिन. छुट्टियाँ ही छुट्टियाँ मिल जाती हैं तो समझो आराम के दिन.

आराम के पहले थकान जरुरी है वरना आराम का क्या मजा?

आँख मिचमिचाता हूँ. बस, जागृत होने का प्रयास है सुप्तावस्था में.

कहाँ हूँ मैं?

है तो कोई हवाई अड्डा ही.

बिजिंग?? वेन्कूवर?? टोरंटो??

थकान सोच को बाधित कर रही है. इतना क्यूँ थकाते हैं हम खुद को? कितनी महत्वाकांक्षायें और उनके लिए यह कैसी दौड़?

आस पास देखता हूँ.

चायनीज़ खूब सारे दिख रहे हैं, शायद बिजिंग में ही हूँ मैं. आवाजें सुनता हूँ निढाल आँखे मीचें..बी डू ची..चायनीज़ में एक्सक्यूज मी. बिजिंग ही होगा और मैं अपने जहाज के इन्तजार में नींद के आगोश में चला गया होऊंगा.

अभी सोच ही रहा हूँ कि बाजू से एक ब्रिटिश एकसेन्ट में बात करता युगल निकल गया और उसके पीछे अमरीकन आवाज.

मगर यही सारी आवाजें तो वेन्कूवर और टोरंटो हवाई अड्डे पर भी सुनाई देती हैं.

कहाँ हूँ मैं?

यह क्या? पूछ रहा है कि कितने बजे फ्लाईट है अपने दोस्त से हिन्दी में!! जाने कौन है हिन्दुस्तानी या पाकिस्तानी. इसका फरक देश क बाहर निकलते ही खत्म हो जाता है- सब अपने देशी. 

यही दृष्य आये दिन वेन्कूवर और टोरंटो में भी देखता हूँ हवाई अड्डे पर.

आसपास नजर दौड़ाता हूँ. कुछ ड्रेगन आकाश से रस्सी के सहारे झूल हैं. फिर कुछ तरह तरह के पेड़ सजे हैं. झालर रोशनी का सामराज्य है हर तरफ. कोई जोकर बने घूम रहा है तो कोई मिकी माउस. उद्देश्य शायद जी बहलाने का ही होगा ताकि इंसान अपनी यात्रा की तकलीफ और थकान भूला रहे. देश में भी झालर और जोकराई इसीलिए चलती रहती होगी कि मन बहला रहे.

इससे तो कतई नहीं जान सकते कि यह बिजिंग है या वेन्कूवर या टोरंटो...

कुछ आसपास सजी दुकानों पर नजर डालता हूँ..वही चायनीज़ फूड, फिर पिज्जा पिज्जा, फिर मेकडोनल्ड फिर फिर..सब एक सी ही दुकानें हर जगह..भीड़ भी एक सीमित दायरे में कुछ वैसी ही...

आखिर दिमाग पर जोर डालता हूँ..जेब में हाथ जाता है.. मेरी टिकिट और पासपोर्ट हैं.

टिकिट पर लिखा है बिजिंग से टोरंटो, फ्लाईट एयर कनाडा १०१ दोपहर १२.४७ बजे तारीख १० मई.

दीवार घड़ी पर नजर जाती है सुबह का १० बजा है तारीख १० मई.

हाथ घड़ी देखता हूँ रात का ९ बजे का समय तारीख ९ मई.

 

तब मैं बिजिंग से दोपहर १२.४७ तारीख १० मई.पर टोरंटो के लिए उड़ने वाला हूँ और १२ घंटे १० मिनट का सफर कर १० तरीख की सुबह ही ११.५७ पर टोरंटो पहुँच जाऊंगा.

कैसी अजब दुनिया है. देख कर कुछ अंतर नहीं दिखता!!

ऐसी दुनिया किसने रची..हमने, आपने या उसने?

पूरा विश्व एक गांव हुआ जा रहा है..पहचान नहीं पाते कि यहाँ हैं कि वहाँ. सब वैश्वीकरण के इस दौर में एक दूसरे में इतना घुल मिल गये है. सबकी अपनी योग्यता है, सभी का स्वागत सभी जगहों पर हैं.

और हम हैं कभी मराठियों का जय महाराष्ट्रा तो फिर कभी विदर्भ बनाने की जुगत में लगे हैं..

सोचता हूँ आखिर जाने ऐसा क्या पा लेंगे!!

समीर लाल ‘समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार मई 14, 2023 के अंक में:

https://epaper.subahsavere.news/clip/3514

 

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2 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

👍👍

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

बहुत दिन बाद इधर आया। बहुत अच्छा लगा हमेशा की तरह।