अच्छे दिन आने वाले है! अच्छे दिन आने वाले हैं!
वो रोज रोज सुनता तो था मगर दिन था कि वैसे ही निकलता जैसे पहले
निकलता था. कई बार तो वो सुबह जल्दी जाग जाता कि कहीं अच्छे दिन आकर लौट न जायें
और उसकी मुलाकात ही न हो पाये. मगर अच्छे दिन का कुछ अता पता न चला.
थक कर उसने सोचा कि आज स्कूल में मास्साब से पूछेगा. क्या पता शायद
अच्छे दिन आये हों और वो पहचान ही न पाया हो. अच्छा परखने का भी तो कोई न कोई गुर
तो होता ही होगा.
मास्साब! ये अच्छा क्या होता है? ८ वीं कक्षा का
वो नादान बालक अपने मास्साब से पूछ रहा है.
बेटा!! अच्छा वो होता है जो अच्छा होता है, समझे? मास्साब
समझा रहे हैं.
लेकिन मास्साब, वही तो मैं भी पूछ रहा हूँ कि अच्छा
होता क्या है?
मास्साब तो मास्साब!! जैसी मास्साब लोगों की आदत होती है वो तुरंत ही
नाराज हो गये कि एक तो पढ़ाई लिखाई में तुम्हारा मन नहीं लगता उस पर से बहस करते
हो. छोटी छोटी बात समझ नहीं आती. चलो, इसको ऐसे समझो कि अच्छा वो होता है जो
बुरा नहीं होता है.
याने कि जो बुरा नहीं है वो अच्छा होता है. तो मास्साब, बुरा
क्या होता है? बालक की बाल सुलभ जिज्ञासा तो मानो मँहगाई हो गई हो कि हर हाल में
बढ़ती ही जा रही थी.
और मास्साब का गुस्सा अब और उबाल पर था मगर एक मर्यादा और एक कर्तव्य
कि बच्चों की जिज्ञासा का निराकरण का जिम्मा उन पर है, उन्हें अपने
असली रुप में आने से रोके हुए था. उन्हें किसी ज्ञानी का ब्रह्म वाक्य भी याद आ
गया कि अगर आप किसी को कुछ समझा नहीं पा रहे हैं तो उसे कन्फ्यूज कर दिजिये. बस
इसी ज्ञान के तिनके को थामे उन्होंने फिर ज्ञान वितरण के अथाह सागर में छलाँग मारी
और लगे तैरने..
देखो बालक, इतनी सरल सी बात तुम्हें समझ में नहीं
आ रही है..इसे ऐसे समझो कि अच्छा वो होता है जो बुरा नहीं होता और बुरा वो होता है
जो अच्छा नहीं होता. समझे?
बालक मुँह बाये एक आम आदमी की मुद्रा में, बिना पलक झपकाये
मास्साब को देख रहा था और मास्साब गुस्से के साथ साथ उसकी मन्द बुद्दि पर तरस खाते
हुए आगे बोले..
वैसे एक बात तुमको बताऊँ कि अगर कुछ अच्छा है न..तो बताना नहीं पड़ता
..वो खुद ही समझ में आ जाता है और अगर बुरा है तो भी उसकी बुराई खुद ही उजागर हो
जाती है... उदाहरण के लिए जैसे सोचो.. मिठाई...वो अच्छी होती है इसमें बताना कैसा
और गोबर, वो बुरा होता है..खुद ही समझ में आ जाता है न!! अब तो तुमको पक्का
समझ आ गया होगा..
मास्साब अपने समझाने की कला पर मुग्द्ध बिहारी की नायिका की आत्म
मुग्द्धता के मोड में चले गये मुस्कराते हुए.
लेकिन बालक तो मानो डॉलर की कीमत हुआ हो..हाथ आने को तैयार ही नहीं..
मास्साब!! मेरे दादा जी को शुगर की बीमारी है और अम्मा कहती है कि
उनके लिए मिठाई बुरी है और फिर गोबर से तो हमारा आंगन रोज लीपा जाता है..दादी कहती
हैं इससे स्वच्छता का वास होता है और स्वास्थय के लिए बहुत लाभकारी होता है. हमारा
परिवार तो इसे स्वच्छता अभियान का हिस्सा मानता है.
मास्साब की झुंझलाहट और गुस्से की लगाम अब लगभग छूटने की कागार पर थी
मगर फिर भी..एक कोशिश और करते हुए वो बोले..देखो बच्चे, सब मौके मौके की
बात है, कभी वो ही बात किसी के लिए अच्छी होती है तो वो ही बात किसी और के
लिए बुरी हो जाती है..अगर तुम सब कुछ बुरा बुरा महसूस करने की ठान लो जैसा तुम
दिल्ली प्रदेश की सरकार की भारत सरकार से तकरार में देख रहे हो..तो अच्छा भी बुरा
ही लगेगा और इसके इतर अगर अच्छा अच्छा सा महसूस करने की आदत डाल लो तो बुराई में
भी अच्छाई का वास महसूस करोगे..
बालक की जुबान न जाने कैसे फिसल गई कि ’याने अच्छा बुरा अगर हमारे
महसूस करने की कला का ही नाम है तो कोई सरकार क्या अच्छा लाने की बात करती है..और
पहले के किस बुरे को बदलने की बात करती है? और...’
बालक अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि मास्साब के सब्र का
बाँध टूट पड़ा और उसके साथ ही वो अपनी बेंत लिए टूट पड़े उस बालक पर...और कुटाई के
साथ साथ एक ही प्रश्न बार बार...बोल, समझ आया कि और समझाऊँ?
बालक भौचक्का सा..पूर्णतः भ्रमित...बस कुटाई से बचने के लिए..कहता
रहा कि मास्साब!! समझ आ गया!
तभी दूर कहीं कलेक्टरेट के मैदान से लाऊड स्पीकर पर किसी बहुत बड़े
नेता की आवाज सुनाई दी:
’मितरों, अच्छे दिन आ गये हैं, आ
गये कि नहीं?’
समवेद स्वर गूँजे ..आ गये!!
मितरों!! बुरे दिन चले गये कि नहीं?
समवेद स्वर गूँजे ..चले गये!!
मितरों!! जो बुरा काम करते हैं मैने उनके लिए अच्छे दिन की गारंटी
नहीं दी थी कभी!!
और इधर ये बालक अपनी बेंत से हुई कुटाई के दर्द को सहलाते हुए सोच
रहा था कि शायद उसने मास्साब से पूछ कर बुरा काम कर दिया इसलिए उसकी अच्छे दिनों
से मुलाकात नहीं हो पा रही है..
आगे से ध्यान रखेगा और अच्छा अच्छा महसूसस करेगा..
शायद उसमें ही फील गुड फेक्टर मिसिंग है!!
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जुलाई 24, 2022 के
अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/69376578
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6 टिप्पणियां:
मित्रों को अपनी बात का पहाड़ा पढ़ाने वाले प्रधानमंत्री का हम क्या करें।
करारा व्यंग्य
सादर
बहुत सटीक व्यंग।
जो अच्छा है वो बुरा नहीं है और जो बुरा है वो अच्छा नहीं । वैसे किसी को भी संतुष्टि किसी हाल में नहीं ।
मास्साब जैसे जीव की आदतों से भी परिचय हुआ । बढ़िया हास्य व्यंग्य ।
बहुत बढ़िया व्यंग ..अच्छे दिन की परिभाषा मालिक की अपनी है
फील गुड मनःस्थिति है...जो पक्ष और विपक्ष पर लागू होती है...कोउ नृप होउ हमहि का हानि...सटीक लेखन...👌
जो बुरा काम करते हैं मैने उनके लिए अच्छे दिन की गारंटी नहीं दी थी कभी!
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