एक सामान्य जीव के संज्ञान में मात्र तीन मौसम होते हैं. सर्दी,
गर्मी
और बरसात और इन तीन मौसमों के भीतर प्रति मौसम के दो स्वरुप- एक तो ठीक ठाक और
दूसरा भीषण.
आप जब कभी उनसे पूछें कि मौसम कैसा है? तो जबाब में या
तो वो कहेंगे कि ठीक ठाक ही है या फिर भीषण गर्मी पड़ रही है या भीषण ठंड या भीषण
बारिश. डिग्री, सेल्सिय या मिलिमीटर आदि से उनका कोई साबका नहीं होता. उनकी नजर में
ये सब मौसम विभाग के चोचले हैं और इससे मौसम पर कोई फरक नहीं पड़ता.
इनसे इतर कुछ ऐसे जीव है तो एक खास तबके के बीच ज्ञानी मात्र इसलिए कहलाये
जाते हैं कि उन्हें मौसमों के वो नाम आज भी याद हैं जो कभी दर्जा छ: की किताबों
में पढ़कर, हिन्दी वर्णमाला की तरह, प्रायः सभी के द्वारा भुला दिये जाते
है. उनके द्वारा जब महफिलों में, मौसम के नाम शरद, शिशिर,
हेमन्त,
गीष्म,
वर्षा
और बसंत गिनाये जाते हैं तो महफिल में उपस्थित सभी लोग अपना बचपन का पाठ याद कर,
मूँह
बाये बतानें वाले की विद्वता को ताकते नहीं अघाते. महफिल में खुद मूर्ख नज़र न आयें
इसलिए बगल में बैठे व्यक्ति को कोहनी मारकर बताते हैं कि भाई साहब ठीक बता रहे
हैं.
सामान्य जन द्वारा इन मौसमों के साहित्यिक नामों को भुला दिया जाना
स्वभाविक सा भी है. जिस चीज का इस्तेमाल आम भाषा में नहीं होता और जो प्रचलन से
बाहर हो चुकी हों, उहें कोई याद भी रखे तो कैसे और क्यूँ? इसी तरह हिन्दी शब्दकोष
कें न जाने कितने शब्द आम प्रचलन ओर बोलचाल के आभाव में विलुप्त हो शब्दकोष के
भीतर कैद हो गुमनामी की जिन्दगी बसर कर रहे हैं.
विचारणीय एवं चिन्तनीय मुद्दा यह न्हीं है कि प्रचलन के आभाव से क्या
विलुप्त हो रहा है या प्रचलन के प्रभाव से क्या स्थापित हो रहा है. विचार करने
योग्य मुद्दा यह है कि आने वाली पीढ़ी, ऐसे मौसम के नाम सुन, प्रचलन
के प्रभाव से प्रभावित हो, पड़ोसी को कोहनी भी मारने योग्य न रह
जायेगी.
आने वाली पीढ़ी का बड़ा प्रतिशत अंग्रेजी माध्यम स्कूलों से आयेगा और
वो शायद इस तरह के शरद, हेमन्त आदि नामों से कभी परिचित भी न हो पायेगा. वो भी एक अलग सा ही
मौसम होगा जहाँ, हिन्दी रोजगार की भाषा होने के आभाव में, अधिकाशतः मात्र
बोलचाल की भाषा बन कर रह जायेगी. शरद का नाम सुन कर उनको मौसम नहीं, महाराष्ट्र
सरकार का समर्थन और गिरना नजर आएगा।
प्रचलन के प्रभाव में आकर आने वाले समय में शायद मौसम के नाम कुछ नये
तरीके के लिए जाने लगें –मसलन चुनाव का मौसम, परीक्षा का मौसम,
डैंगू
का मौसम, त्यौहारों का मौसम, विवाह का मौसम, घूमने का मौसम,
विधायक खरीददारी को मौसम (यह तो बारहमासी है) ...आदि आदि. इन मौसमों में हवायें भी
अपना स्वरुप बदलेंगी जैसे पछुवा और पुरबिया हवा के बदले चुनाव कें मौसम में मोदी
की हवा या केजरीवाल की हवा, त्यौहारों के मौसम में मंदी और तेजी की
हवा आदि चला करेंगी.
प्रचलन के आभाव का प्रभाव देखना हो तो हिन्दी के मौसम में, हिन्दी
दिवस के आसापास, हिन्दी साहित्य कें तथाकथित वरिष्ठ साहित्यकारों को हिन्दी कें
सम्मेलनों में हिन्दी की बिगड़ती स्थिति पर चिन्ता व्यक्त करने के बाद, मंच
से उतार कर हिन्दी वर्णमाला पूछकर देखिये और अंग्रेजी में डांट खाकर बदलते मौसम का लुत्फ उठाईये या सर फोडिये,
सब
आप पर निर्भर है.
मौसम कब एक सा रहा है वो तो स्वभावतः बदलता ही रहेगा.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जुलाई 3,2022 के
अंक में:
https://www.readwhere.com/read/c/68981709
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2 टिप्पणियां:
मौसम के बहाने अच्छा तंज़ कसा है ,।
अंग्रेजी माध्यम वालों के तो सारे रिश्ते ही अंकल आंटी हो गये...मौसम तो दूर की बात है...वैसे आजकल वायरल का मौसम चल रहा है...फ़ेसबुक पर आपकी यूएस वाली गोष्ठी का भरपूर आनन्द लिया...धन्यवाद साझा करने के लिये...👏👏👏
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