शनिवार, मई 09, 2020

मुस्कान संक्रामक होती है, मुस्कराते रहिये




मुस्कान संक्रामक होती है, मुस्कराते रहिये -ये अब कल की बात हो गई है.  
अब तो मुस्कराओ या कि मनहूस की तरह मूँह बनाये बैठे रहो, कोई देखने वाला नहीं. सब मास्क के पीछे छिपा रहेगा.कोई फरक नहीं. सब धान बाईस पसेरी वाला मुहावरा इससे बेहतर कहाँ सटीक बैठेगा?
अब शायरों को भी अपनी शायरी में लबों पर मुस्कान का जुमला भुलाना होगा. शायरी तो महबूबा के लिए होती है और आजकल कौन सी महबूबा बिना मास्क के मिलने का जोखिम उठायेगी. कम से कम वो वाली तो नहीं जो अभी शेर शायरी को प्रेरित कर रही हो. जब तक मास्क उतारकर मिलने लायक पहचान होगी, तब भला कैसा शेर और कैसी शायरी. बीबी के लिए भला कौन लबों पर मुस्कान वाली शायरी लिखता है?
नया शायर लिखेगा:
उसकी इसी अदा पर, तबीयत मचल जाती है,
वो जब भी मिलती है, आँखों से मुस्कराती है.
हो सकता है ये शेर बहर में न हो, व्याकरण में सुधार मांगता हो. सो तो ये जिन्दगी भी ऐसी डगर पर है कि हर एक कदम पर जीने के तरीके में सुधार मांग रही है. अब तो फुसफुसा का इश्क का इज़हार करना भी कहाँ संभव है. माना कि फोन पर फुसफुसा कर कहा जा सकता है लेकिन फोन नम्बर लेने के लिए इस सोशल डिस्टेन्सिंग के चलते ६ फुट दूर से चिल्ला कर फोन नम्बर माँगना पड़ेगा. मानो कि आप सफल भी हो गये तो वो भी तो चिल्ला कर ही अपना नम्बर दे पायेगी. और जब तक आप नम्बर पा जाने की खुशी से उबर कर उसे फोन लगायेंगे. तब तक उसी वक्त आसपास से गुजरते चार लड़के उसका फोन नम्बर नोट करके उसको फोन मिला चुके होंगे. संभव है उनमें से किसी के साथ बात इतनी कुछ बढ़ भी गई हो कि आपको रॉन्ग नम्बर कह कर टाल दिया जाये. 
फास्ट ट्रेक का जमाना है. सब इतने लम्बे लॉक डाउन की चोट और महामारी की मार देखकर कोई एक भी पल गँवाने को तैयार नहीं. क्या पता कब वायरस धर ले और आप की आत्मा वायर लैस होकर उड़ान भर ले.
यूँ भी आने वाले समय में मुझे लगता है कि अरेन्जड मैरिज का जमाना फिर से जगमगा उठेगा. लोग रिश्ता लायेंगे कि हमारी रिश्तेदार की बच्ची है. बिना मास्क के बहुत सुन्दर दिखती है. दाँत भी एकदम ऐसे जैसे मोती पिरो दिये हों. बिना किसी के रेफरेन्स के क्या पता कि फेसबुक प्रोफाइल पर किसकी तस्वीर चिपका रखी हो. वहाँ तो खैर लड़के भी लड़कियों की प्रोफाइल बनाये बैठे हुए हैं. उनके चक्कर में पड़ जाओगे तो मिलना तो खैर कभी होगा नहीं, बस उनके मोबाईल रीचार्ज कराने से लेकर पिज़्ज़ा भिजवाते ही नजर आओगे. 
लड़का चुनना भी बिना रिफरेन्स के कैसे होगा? तमाम गुटका खा खा कर लाल दांत किये भी मास्क की आड़ में खप जायेंगे. कोई भरोसा नहीं कि एक पीर गुटकेबाज मास्क पहन कर दंतमंजन का विज्ञापन कर रहा हो, कौन जान पायेगा. 
समय ऐसा बदला है कि खुद को कितना बदलें वो भी समझ आना बंद हो गया है. भारत से कनाडा शिफ्ट हुए तो नमस्ते करना छोड़ कर हाथ मिलाने लगे सबसे. अब सब हाथ मिलाना छोड़ कर यहाँ नमस्ते कर रहे हैं और हम बचपन से नमस्ते के अभ्यासीपुनः नमस्ते करने के अभ्यास में जुटे हैं.  
क्या क्या बदलेगा कौन जाने. लिप्स्टिक लगे मास्क आयेंगे या गुटका थूकने के लिए खिड़की लगे वाले .बस जो नहीं बदलेगा वो ये है कि हमारे नेताओं के चरित्र में कोई अंतर नहीं आयेगा. पहले भी वो अदृश्य मास्क पहने ही रहते थे. जो थे वो वैसे कभी कहाँ नजर आये? अब बस वो अदृश्य मास्क दिखने लगेगा. मगर वो दिखने वाला मास्क तो सबके चेहरे पर होगा. भीड़ में मास्क पहने कौव्वे और हंस सब एक ही नजर आयेंगे. चाहे कौव्वा लंगड़ाये या हंस सीधा चले, कौन समझ पायेगा. 
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार मई ०, २०२० के अंक में:
ब्लॉग पर पढ़ें:

#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging

Indli - Hindi News, Blogs, Links

10 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

वर्तमान पर्यवेक्षक में मास्क का विवेचन श्रृंगार भाव से लेकर राजयोग तक, जीवन के बदलते स्वरूप पर आधारित अति सुंदर व्यंग,. Great!!!

Girish Kumar Billore ने कहा…

बाबू मोशाय
गजब लिखते हो । जब असली चेहरा दिखने लगा नेताओं का ससुरों को मास्क लगाना जरूरी हो गया । सब के सब एक थैली के चट्टे बट्टे और यह पत्रकार ज़ी टीवी पर शाम को कुत्ता लड़ाई करवाते हैं और हम बेवकूफ अच्छा हुआ मास्क लग गया कम से कम इनका दूसरी चेहरा तो दिमाग खराब ना करेगा एक उम्दा लेख के लिए साधु साधु

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

फिर तो कोरोना के डर से माँ और बच्चों की बड़ी मुसीबत होगी ।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

नेता बदल जाएँ तो मास्क कौन पूछेगा
अब तक किसी नेता के रिश्तेदार ने डिजायनर मास्क बनाने की फैक्ट्री तैयार भी कर ली होगी। लाॅकडाउन खुला नहीं कि इनका काम शुरू

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

हा हा हा हा हा बहुत मजेदार. कौन जाने मास्क लगाए-लगाए क्या-क्या न करना पड़े. सबसे तो अच्छा रहेगा स्कूल कॉलेज में. टीचर किसी की पहचान ही न कर पायेंगे, किसे पीटना था कौन पिट गया. न अब कोई दिखेगा कार का शीशा नीचे किये हुए धुएँ का छल्ला उड़ाते हुए. जाने क्या होगा, क्या न होगा.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

पहले कोरोना तो जाये, बाद में मुस्करा भी लेंगे।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अब नमस्ते करना ही अच्छा है ... और मुस्कुराना जो जितना चाहो ... ये बिमारी फैले तो अच्छा ही है ...

Satish Saxena ने कहा…

नेता तो न जाने कब से मास्क पहनते रहे हैं , शायद ही कोई बिना मास्क पब्लिक में आया होगा , उन्हें आदत है इसकी !

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

उसकी इसी अदा पर, तबीयत मचल जाती है,
वो जब भी मिलती है, आँखों से मुस्कराती है.

बहुत सुंदर प्रस्तुति ....

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

समय ऐसा बदला है कि खुद को कितना बदलें वो भी समझ आना बंद हो गया है. भारत से कनाडा शिफ्ट हुए तो नमस्ते करना छोड़ कर हाथ मिलाने लगे सबसे. अब सब हाथ मिलाना छोड़ कर यहाँ नमस्ते कर रहे हैं और हम बचपन से नमस्ते के अभ्यासी, पुनः नमस्ते करने के अभ्यास में जुटे हैं. समय फिर पीछे की ओर चला गया है नमस्ते का दौर फिर से आ गया ....