कोई
सुन्दर बाला आपसे कहे कि वो २०-२० मैच में हिस्सा लेकर लौट रही
है, तो सीधा
दिमाग में कौंधता है कि चीयर बाला होगी. किसी के दिमाग में यह नहीं आता कि हो सकता
है महिला लीग का २०-२० खेल कर लौट रही हो. वही हाल हमारा होता जा रहा है जब शाम
हमारे घर लौटते समय कोई मिल जाये और उसे हम बतायें कि जिम से लौट रहे हैं. सब
समझते हैं कि ऑडिट करके आ रहे होंगे या जिम में एकाऊन्टेन्ट होंगे. सी ए होने के
यह लोचे तो हैं ही. शरीर देखकर कोई यह सोच ही नहीं पाता कि बंदा कसरत करके लौट रहा
है. कई मारवाड़ी मित्र सोचते हैं कि बोलने में मात्रा गलत लगा दी होगी तो पूछते
हैं कि कहाँ से जीम कर लौट रहे हो? उनको लगता है कि किसी दावत से जीम (खा)
कर लौट रहे हैं.
अतः अब
हमने यह सोच कर बताना ही बंद कर दिया है कि बाद में तब बतायेंगे जब करनी और कथनी
एक सी दिखने लगेगी. हालांकि जिम जा जा कर हम वजन के जिस मुकाम से लौट कर आज जिस
मुकाम पर खड़े हैं, इस मुकाम
तक आने के लिए हमें जितना वजन घटाना पड़ा, उसका आधा वजन घटा कर बंदे देश भर में
फिटनेस गुरु से बने फिटनेस के मंत्र बांटते नहीं थक रहे. वो ९० किलो से ८० पर आकर
अपनी शौर्य गाथा सुना रहे हैं और एक हम हैं कि १२० से १०० पर आकर भी मूँह खोलकर
बता नहीं पा रहे हैं कि जिम से लौट रहे हैं. ऐसा मानो कि कोई एवरेस्ट के बेस कैम्प
नेपाल तक जाकर लौट आया हो दिल्ली वापस और देश भर को पर्वतारोहण के तरीके और गुर
सिखा रहा हो और मीडिया उसके इर्द गिर्द लट्टू सी नाच रही हो. एक हम हैं कि एवरेस्ट
पर झंडा गाड़ कर वापस उतर रहे हैं और किसी को दिल्ली में कानों कान खबर तक नहीं
है.
मीडिया भी
एवरेस्ट पर चढ़कर कवरेज करने से तो रही और सनसनीखेज की तलाश भी अनवरत बनी रहती है
तो ऐसे ही लोग बच रहते हैं जो बेस कैम्प से लौट नुस्खे बांट रहे हों और पत्रकार
उनसे पूछ रहे हों कि आप युवाओं को पर्वतारोहण के लिए क्या टिप देना चाहेंगे? और टिप के नाम पर बंदे ज्ञान का मंत्र
उच्चारण शुरु कर देते हैं.
वक्त वक्त
की बात है. एक दिन हम भी एवरेस्ट से उतर कर जब दिल्ली पहुँचेंगे तो तहलका मचायेंगे, ऐसा विचार है मगर तब तक मीडिया ऐसे
छद्म पर्वतारोहियों से इन्टरव्यू ले लेकर पर्वतारोहण का ही क्रेज खत्म कर डालेगी तो हमारी सुनेगा कौन?
ये वैसे
ही है जैसे कि बच्चे आज भी बोरवेल में गिरते हैं मगर कोई खबर तक नहीं लेता. सब
मीडिया की अति का कमाल है. एक समय में २४ घंटे बोरवेल में गिरने को ऐसी हाईप दी कि
अब क्रेज ही खत्म हो गया. एक दिन ऐसा भी आयेगा कि जब मर्डर, रेप, रेल दुर्घटनायें, भ्रष्टाचार, बाबाओं का सियासत से मिल कर रचा जा रहा
सामराज्य एवं तांडव, सिस्टम की
कार गुजारियाँ आदि सब बच्चे के बोरवेल में गिरने जैसा ही बिना कान पाया हादसा होने
लगेंगे. न कोई सुनाने वाला होगा और न कोई सुनने वाला.
सजग होना
होगा मीडिया को कि दिल्ली की गोदी से उतर कर हिमालय की वादी तक पहुँचे पर्वतारोहण
की खबर जुटाने. खबर की तह को पहचाने बजाये इस्त्री से बनी फुलपेन्ट की क्रीज को
जायज ठहराने के. उसे फरक करना होगा खबर और सनसनीखेज चमकदार वारदात के बीच. वरना
शायद एक रोज टीआरपी देने वाले ही मुँह मोड़ कर आरआईपी (RIP) कहने लग जायेंगे. तब हाथ मलने के सिवाय
कुछ न बच रहेगा. याद रहे सोशल मीडिया नित जिम जा जा कर मजबूत हुआ जा रहा है.
यूँ तो मीडिया में हिम्मती और दिग्गज अपवाद हैं, जान की परवाह किये बगैर सच
को सच कहना जानते हैं- उन्हीं से कुछ सीख ले लो. रेमन मैग्सेसे सम्मान यूँ ही नहीं
मिला करते.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे दैनिक
में रविवार अगस्त ११, २०१९ के अंक में:
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1 टिप्पणी:
Excellent picked up threads from words जिम and जीम to convey falacy of hype being created by media which is turning away real craze of audience. Great!!!
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