रविवार, मई 19, 2019

जो गप्पी नहीं हैं, उनकी देश में कोई पूछ नहीं है


भारत गपोड़ियों का देश है. जो गप्पी नहीं हैं, उनकी देश में कोई पूछ नहीं है.
ऐसे में एक बड़ी सी गप्प हम भी हाँक ही लें. हुआ यूँ कि जब हमने सहित्यिक कृति ’बाल नरेन्द्र’ पढ़ी, तो हमसे रहा नहीं गया और हम पहुँच गये साहब का साक्षात्कार लेने.
सर, आपके बचपन पर लिखी गई ’बाल नरेन्द्र’ पढ़ी. उसमें गेंद वाला वाकिया जब गेंद तालाब में चली जाती है जिसमें घड़ियाल (मगरमच्छ) रहते हैं और सबके मना करने के बाद भी आप सर्जिकल स्ट्राईक कर घड़ियालों के घर में कूद कर न सिर्फ अपनी गेंद बल्कि घड़ियाल का एक बच्चा भी साथ ले आते हैं. इस शौर्य गाथा पर कृप्या प्रकाश डालें’
हें हें! मैं आपको बताऊँ. हुआ यूँ कि जब मैं ६ साल था तब अपने गांव के कुछ खास मित्रों के साथ टीम बनाकर गांव से दूर तलाब के किनारे सतौलिया खेल रहा था. मित्रों में बाल अरुण, बाल अमित, बाल बर्राक जो विदेश से छुट्टी मनाने अपनी मौसी के पास आया था, और भी कई थे, अब तो नाम याद भी नहीं. हमारे समय तो सतौलिया, कब्बड़ी, छुपनछुपाई बस यही सब खेल हम गरीबों के खेल थे.
मेरी पारी थी सतौलिया फोड़ने की. बाल बर्राक सामने गेंद लोकने को खड़ा था. आपको बताऊँ कि मैं गेंद इतनी ताकत से फेंकता था कि खास खास दोस्त तो प्यार से फेंकू बुलाते थे. आज भी बुलाते है जी. मैनें गेंद मारी. बाल बर्राक लोक न पाया और गेंद का दूसरा टिप्पा सीधे एक किलोमीटर दूर तलाब में लगा. तालाब में ढ़ेरों घड़ियालों का बसेरा था. जब तक हम तालाब के पास पहुँचे, एकाएक बूंदाबांदी होने लगी.
हम सभी टीम प्लेयर जिसमें से कुछ तालाब और घड़ियाल के विषय में काफी जानकारी रखते थे, आपस में विमर्श करने लगे. मेरा तभी से टीम के साथ काम करने का स्वभाव ही बन गया. जानकार टीम प्लेयरों का कहना था कि बारिश की बूँदों की टिप टिप मार से ये घड़ियाल यूँ ही गुस्से में बौखलाये होगे, ऐसे में इनके बीच जाना मतलब अपनी जान गंवाना है. हमें गेंद निकालने के अभी की बजाय समय परिवर्तित कर रात का कर देना चाहिये. तब एक तो ये घड़ियाल बूँदों से पिट पिटा कर थक कर सो चुके होंगे और अंधेरे में इन्हें बाल बर्राक नजर भी नहीं आयेगा. तो इस बात का फायदा ऊठाकर इसे तालाब में धीरे से उतार देंगे और ये गेंद लेता आयेगा. दोस्तों में हम लोग में यूँ मजाक और तू तड़ाक भी हो जाता था. आज भी कर लेते हैं.
मैने उनकी बात सुनी. हालांकि मुझे घड़ियालों के व्यवहार की साईंस की उत्ती जानकारी नहीं थी. मगर साथ ही मुझे- मैं आपको बताऊँ कि एक मिनट समय खराब करना खराब लगता है. ऐसा ही स्वभाव है जी मेरा. कईयों को बुरा भी लगता होगा कि घाई मचाता है. तो मेरे दिमाग में एक बात आई कि ये घड़ियाल तो मांसाहारी होते हैं. ऐसे में अगर मैं अपने आपको केले के पत्तों में लपेट कर धीरे से तालाब में चला जाऊँ तो बारिश की बूँदों से पिटते ये घड़ियाल समझेंगे कि केले का पत्ता है, बारिश में बहता हुआ चला आया है और मैं बारिश का फायदा उठाकर गेंद भी निकाल लाऊँगा.मैने अपनी बात सबके सामने रख दी जी और सबने मेरी बुद्धि का लोहा माना. अब प्रश्न यह उठा कि केले का पत्ता लेने तो गांव तक जाना पड़ेगा जिसमें एक घंटा एक तरफ लग जायेगा.
ऐसे में मैने आसमान में देखा तो कुछ गिद्ध उड़ते नजर आये. अच्छा, ये जो आप मेरी एक्टिंग देखते हो न, वो मुझे जन्मजात है जी. मैं बस वहीं लाश बन कर लेट गया. एक्टिंग इतनी मस्त कि गिद्ध ने समझा कि लाश पड़ी है. वो उतरा खाने और मैंने झप्पटा मार कर उसकी टांग पकड़ ली. वो घबरा कर उड़ा और मैं लटके लटके ७ मिनट में गांव आ गया केले के खेते में. फटाफट पत्ते तोड़े और फिर से लाश का इतना जीवंत किरदार निभाया कि गिद्ध को लगा कि इस बार तो पक्का लाश है. मैने फिर वो ही चकमा दिया और लटक कर वापस तालाब पर आ गया. तब मुझे पता चला कि काठ की हांड़ी भी बार बार चढ़ सकती है और मैने उसे अपने जीवन का मूल मंत्र बना लिया. आज भी बार बार काठ की हांड़ी चढ़ा ही देता हूँ.
अब मैने खुद को केले के पत्तों में लपेट कर धीरे से तालाब में बहा दिया और गेंद उठा ली. लौटते में एक घड़ियाल के बच्चे को भी साथ उठा लिया. सब घड़ियाल समझते रहे कि उनका बच्चा केले के पत्ते की सवारी के मजे लूट रहा है. किनारे आते ही मैने पत्ते उतारे और बच्चे और गेंद को लेकर सरपट भागा. तब घड़ियालों को समझ आया कि मैं तो उनसे भी बड़ा वाला घड़ियाल निकला. आपको बताऊँ कि उसी घड़ियाल के बच्चे से मैंने आंसू बहाना सीखा.
ऐसे ही एक मजेदार वाकिया और है जी. मैने बचपन में गिरगिट का बच्चा भी पकड़ लिया था. उससे भी सीखा. उसकी कहानी बाल नरेन्द्र के अगले संस्करण में आयेगी.
अगर आप में ललक है तो आप हर किसी से कुछ न कुछ सीख सकते हैं, ऐसा मेरा मानना है जी!!
-समीर लाल ’समीर’  
   
दैनिक सुबह सवेरे में रविवार मई १, २०१९ को:





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4 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

बहुत बखूबी से घड़ियाल की व्यंग-कहानी निर्मित की है , बधाई !!!

रचना दीक्षित ने कहा…

मस्त है। जी सीखने की कोई उम्र नहीं होती। आपकी
बात से सहमत हूँ

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (20-05-2019) को "चलो केदार-बदरी" (चर्चा अंक- 3341) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 119वां जन्मदिवस - सुमित्रानंदन पंत जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।