आँख बंद करके लंबी सांस लो, फिर उस व्यक्ति का कृत्य और चेहरा याद
करो जिसने तुमको छला है और जिससे बदला लेने की भावना अपने मन में लिये तुम इतने
दिनों से जी रहे हो. अब सांस को धीरे धीरे वापस छोड़ते हुए मन ही मन में कहो कि
जाओ, मैने तुमको माफ किया. ऐसा बार बार दोहराओ. कुछ ही मिनटों में तुम देखेगो कि
मन एकदम हल्का महसूस करने लगेगा. इतने दिनों से जो बदले की भावना का बोझ लादे तुम
दिल में घूम रहे थे, एकाएक वो बोझ उतर जायेगा. तुम एकदम प्रफुल्लित एवं तरोताजा हो
जाओगे. जिन्दगी के नये माईने मिल जायेंगे.
बाबा जी मंच से प्रवचन ठेल रहे हैं और भक्त आँख मूंदे मन के कोने
कोने में खोज खोज कर खुद को प्रताड़ित करने वालों को माफ करने में लगे हैं. अचरज ये
हैं कि सबके पास ऐसे लोग हैं. बाबा जी यह बात बहुत खूबी से जानते हैं. लोग माफ कर
रहे हैं भी या नहीं, कौन जाने? किन्तु दिखावा तो कर ही रहे हैं. सबके कारण अलग अलग
हैं.
कुछ इस वजह से माफ कर रहे हैं कि जब सब कर रहे हैं तो हम भी कर देते
हैं. भीड़ के साथ जाना हम भारतियों का शौक है. काश!! कोई कैमरा होता जो मन के अन्दर
की सेल्फी ले पाता तो कुछ मात्र सेल्फी उतार कर स्टेटस अपडेट करने के लिए कर रहे
होते. जैसा लोग मैराथन रेस के साथ करते हैं. दौड़ता कोई है, सेल्फी उतार कर चढ़वाता
कोई और है.
वैसे तो कईयों ने अभी भी फोटोग्राफर से कह कर आँख मींची है ताकि वो
तस्वीर ले ले और ये बाद में स्टेटस अपडेट कर सकें कि माफी शिविर के दौरान माफ करते
हुए. समाज में रुतबा जमेगा कि बाबा जी इतने मंहगे शिविर में शिरकत की, यह भी वजह
बना बहुतेरे लोगों द्वारा माफी प्रदान करने का.
जितने लोग, उतनी वजहें. एक भक्त ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर यह
बताया कि उसने तो माफ सिर्फ इसलिए किया है ताकि सामने वाला समझे कि मैने उसे माफ
कर दिया है और निश्चिंत हो जाये. ऐसे में उससे बदला लेना सरल हो जायेगा. छोड़ने
वाला तो मैं हूँ नहीं उसे.
एक ने बताया कि पत्नी के द्बाव में आकर उसे यह कदम उठाना पड़ा क्यूँकि
पत्नी तो जानती है कि मेरे मन उसके पिता के प्रति क्या भाव हैं. उसके जैसा
प्रताड़ित तो मुझे और किसी ने किया ही नहीं है. जिन्दगी ही बदल डाली उसने मेरी. अब
पत्नी का दबाव हो तो बन्दा तो मजबूर हो ही जायेगा. उस पर उसने कहा है कि तस्वीर भी
खिंचवा कर लाना.
किसी को मित्र मंड्ली ले आई तो किसी को व्हाटस ग्रुप से खबर मिली तो
चले आये ताकि लौट कर फोटो लगायेंगे कि हम भी हो आये.
माना कि ९८% लोगों ने विभिन्न वजहों से सिर्फ ढोंग करते हुए माफी देने
का नाटक किया मगर शिविर के कम से कम २% तो ऐसे लोग थे ही जिन्होंने वाकई में जीने
की कला सीखी, अपने मन का बोझ उतारा और अपने दुश्मन को माफ किया. उनकी जिन्दगी
निश्चित बेहतर हुई और एक नई स्फूर्ति और सार्थकता के साथ आगे की जिन्दगी गुजारने
का मौका मिला.
हर अभियान का यही फलसफा होता है वैसे तो. ९८% दिखावा, ढोंग भले हो और
बेवजह भी मगर २% सच में फायदा पहुँचता है.
ऐसे में ख्याल करता हूँ तो कभी सफाई अभियान ध्यान में आता है, वो
सेल्फी वाले लोग भी याद आये. कभी स्मार्ट सिटी तो कभी आज का नया नया ताजा ताजा ऋण
माफी अभियान याद आया.
ऋण माफी के अभियान में तो बहुत से बाबा लगे हैं और जनता आँख मींचे
अपने अपने तरह से हित साध रही है मगर अंततः हित तो बाबाओं का ही होगा.
सब नेता भी तो बाबा ही हैं. जैसे बाबा कहते हैं भक्तों से कि पैसे की
मोह माया छोड़ो और देखते देखते खुद का एम्पायर खड़ा कर लेते हैं..वैसे ही..ये भी..नेता.
चोले को माफी दे दो तो नेता और बाबा एक ही हैं.
-समीर लाल ’समीर'
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार दिसम्बर २३, २०१८ को:
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1 टिप्पणी:
बढ़िया :)
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