कल शाम दफ्तर से लौट कर हेयर कटिंग करवाने चला
गया. पहले से फोन पर एप से रिजर्वेशन करा लिया था तो तुरंत ही नम्बर आ गया. दिन भर
दफ्तर की थकान, फिर लौटते वक्त ट्रेन में भी कुछ ज्यादा भीड़ और उस पर से बरफ भी
गिर रही थी तो मोटा भारी जैकेट. जैकेट उतार कर जरा आराम मिला नाई की कुर्सी पर
बैठते ही और नींद के झौके ने आ दबोचा.
इस बीच कब वो बाल काटने आई, उसने रिकार्ड से
पिछली बार के कटिंग की पर्ची निकाल कर कब पढ़ा कि साईड में १ नम्बर और ऊपर २, वैसे
ही काटना है क्या? और कब हमने हमेशा की तरह पूरे भरोसे के साथ मुंडी हिला कर हामी
भर दी, पता ही न चला.
वैसे भी अब यहाँ इतने भारतीय हो गये हैं कि ये
भी जान गये हैं कि एक सच्चा भारतीय हाँ कहने के लिए मुंडी ऊपर नीचे हिलाने के बदले
साईड बाई साईड हिलाता है अन्यथा पहले यह पूछ लिया करते थे कि हाँ बोल रहे हो या
ना?
बाल काटने के बाद जब उसने गरम तौलिया माथे पर
रख कर हल्की सी मसाज की तो जैसे पुनः स्फूर्ति लौटी. सामने शीशॆ पर नजर पड़ी तो
एकाएक पहचान वाले को देखकर हैलो बोलने ही वाले थे कि समझ आया अरे, यह तो हम ही
हैं. मगर हमारे बाल? सफाचट? सफाचट मतलब कि
एकदम छोटे छोटे. मरा हाथी भी तो सवा लाख टाईप.
एकदम से घबरा कर हमने उस लड़की से पूछा कि ये
बाल इतने छोटे क्यूँ काट डाले? ये किस बात का बदला निकाल लिया. हमारे खिलाफ तो कोई
#मीटू भी नहीं है
फिर हमसे यह बर्ताव? इस पर उसने पिछली कटिंग की पर्ची दिखलाई और कहा कि मैने आपको यह
पढ़कर सुनाई भी थी और आपने हाँ भी कहा था, तो काट दिये.
हमने कहा कि चलो हाँ तो भले ही नींद में कहा
होगा या इतने सालों में आजतक ऐसा धोखा नहीं हुआ इस हेतु अति अविश्वास में कह दिया
होगा मगर हमारी तो पिछली बार क्या कभी भी ऐसी हजामत नहीं बनी है जो आपने बना डाली.
तो ये नम्बर कहाँ से आये हमारी पर्ची पर?
बड़ी हलचल मची. खोजबीन की गई तो पता चला कि किसी
और की पर्ची प्रिंट हो गई थी और हजामत बन गई हमारी. मगर अब क्या हो सकता है? भले
ही पर्ची गलत प्रिंट हुई हो मगर हामी तो हमने भी भरी थी. हमारा आलस्य, हमारी नींद,
हमारा सजग न रहना, हमारे हाँ और ना के बीच कोई भेद न रहना और भी न जाने क्या क्या
वजह हो सकती हैं जिस पर दोष डाला जा सकता है मगर भुगतना तो हमको ही है और वो भी तब
तक, जब तक बाल फिर से एक निश्चित समय के बाद स्वतः उग नहीं आते.
थोड़ी देर दुखी होने के बाद तय किया कि मायूसी
की चादर उतारी जाये और इसमें भी कुछ खुश होने का कारण खोजा जाये. यूँ भी तकलीफ जब
हद से गुजर जाये तो आंसू हंसी में तब्दील हो जाते हैं. बस कुछ ऐसी ही सोच लिए
विचार कर मुस्कराये कि अब कम से कम कुछ दिन तक सुबह कंघी करने की झंझट से मुक्ति मिलेगी
और उससे भी बड़ी मुक्ति उस ग्लानी से मिलेगी जो कंघी से लिपट कर आये कभी न लौटने
वाले बालों को देखकर होती थी कि हाय!! अब के बिछड़े तो शायद फिर कभी ख्वाबों में
मिलें. फिर अब ठंक का मौसम आ गया है, टोपी उतारो तो सब बाल बिखरे छितरे, उससे भी छुटकारा
मिला..बाल हों तो बिखरें. टोपी भी उदास होगी कि अब किसे छेडूँ? अब कौन मुझ पर #मीटू लगायेगा? कल को हालात ऐसे ही रहे तो लड़के
लड़कियों से ऐसी दूरी बनायेंगे कि लड़कियाँ भी सोचेंगी कि अब किस पर #मीटू लगायें.
घिघियायेंगी लड़को के सामने कि बात तो करो हमसे..कसम #मीटू की ..कभी जो #मीटू का नाम
भी लिया तो.
खैर, तेल, जैल, शेम्पू आदि के पैसे भी तो
बचेंगे ही कुछ समय के लिए. मगर बड़ी बात तो यह है कि एक आध साल में वैसे भी समस्त
बालों का ओम नमः स्वाहा तो होना ही है तो एकाएक झटका लगने की बजाय ये उसी का एक
रिहर्सल मान लेते हैं. सही रिहर्सल रहे तो मंच पर सही में उतरते वक्त कम नरवसनेस
रहती है. यह हम कवियों से बेहतर कौन जानता है.
चलो, हमारी तो जो गत हुई सो हुई, आप अपनी देखो.
चुनाव सामने हैं. कुछ सीख ले सको तो ले लो हमारी हालत से. अभी वो आयेंगे आपके पास
कि प्रभु!! आपको पिछले चुनाव में हमने यह पर्ची सुनाई थी कि आपका विकास होगा,
अच्छे दिन आवेंगे, आपके खाते में १५ लाख हम पहुँचावेंगे, हम आपकी गरीबी मिटावेंगे,
आपकी पूजा पाठ के लिए हम राम मंदिर यहीं बनायेंगे आदि आदि. और तुम पिछले पांच साल
से भागते दौड़ते हमारी तरह नींद और आलस्य की चादर ओढ़े कहीं बिना सजग हुए मुंड़ी न
हिला बैठना वरना इनके जीतते ही जब ये अपने गुरुर और पॉवर की गरमी का असर तुमको ऐसा
दिखायेंगे तो स्फूर्ति की बजाय करेंट लगेगा. फिर तुम्हारे हाथ बच रहेगा अगले पाँच साल तक मुंड़ी हिलाते
रहना. फिर उसमें से खोजने को खुश होने के साधन भी न बचेंगे क्यूंकि एक ही बहाने से
आखिर कितनी बार खुश हो सकते हो.
काठ की हांडी बार बार थोड़े न चढ़ती है.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के रविवार नवम्बर
१८,२०१८ में:
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
11 टिप्पणियां:
इसके साथ एक फ़ोटो भी लगा देते तो ठीक से समझ में आता,बिना देखे क्या कहें ...
जिस प्रकार हजामत तेल-मालिश , चम्पी शब्दों का ुकोग कर नाई दुकान का सजीवीकरण लेख में किया है और उसे आने वाले चुनावी दौर से जोड़ा है अत्यंत सराहनीय है , अगले लेख के इंतजार में हम सने वाले सप्ताह को बिताएंगे।
एक फोटो तो बनती है...साइड बाई साइड तो साउथ में हिलती है...उत्तर वाले तो ऊपर नीचे ही करते हैं...रोचक संस्मरण...बहुत खूब...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-11-2018) को "महकता चमन है" (चर्चा अंक-3160) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
Very nice post...
Welcome to my blog for new post.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन महान स्वतंत्रता सेनानी महारानी लक्ष्मी बाई और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन दोस्तों का प्यार - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
"काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती" बहुत ही अच्छा व्यंग्य से भरा लेख हैं. जारी रखे.
भाव पूर्ण अभिव्यक्ति
ब्लॉगस्पॉट पर ब्लॉग न बनाएं 11 कारण
बेहतरीन लेख !
कोटि कोटि नमन !
Hindi Panda
Very great article keep us posted
Stuart Binny Wife
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