उन अँधेरों को अब तलक एक आस बाकी तो है
दूर कहीं दूर इक दिये की लौ झिलमिलाती तो है
यूँ अब अपनों से कोई हिमायत की उम्मीद नहीं
पर गैरों में अब भी इन्सानियत नजर आती तो है..
कि कल शायद इक हाथ उजाले का बढ़ायेगा कोई..
इन अँधेरों को फिर इक नई सुबह दिलायेगा कोई...
-समीर लाल ’समीर’
16 टिप्पणियां:
उम्मीदों का दिया प्रकाश देता रहेगा ,जब तक नई भोर की उजाियारी छा नहीं जाती.
वाह
बहुत ख़ूब समीर भाई ... इंसानियत काइंडा रहे चाहे ग़ैरों में रहे ... रोशनी की उम्मीद ज़िंदा तो है ...
बहुत ही भावपूर्ण लिखा है ...
Laajawaab,Sameer Ji .
अति सुन्दर।
ऐहै फेरि बसंत ऋतु इन डारिन इन फूल
यही आस अटक्यो रह्यो अलि गुलाब के मूल।
Bahut sunder
सार्थक सन्देश!
जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 19/08/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
जय मां हाटेशवरी...
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दिनांक 19/08/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
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इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
उम्मीद का दिया जलता रहे, दुआ है मेरी | Great post!
पर गैरों में अब भी इन्सानियत नजर आती तो है..उम्मीद का दिया जलते रहे। बहुत सुंदर लिखा।
baqhut khub! bahut bahut badhai...
यूँ अब अपनों से कोई हिमायत की उम्मीद नहीं
पर गैरों में अब भी इन्सानियत नजर आती तो है..Good Lines
बहुत ही उम्दा ..... Very nice collection in Hindi !! :)
चचा, आप हमको भूल गए। फेसबुक को गरियाने का मन करता है रोज़ लिखने वाले टिपियाने वाले बुजुर्ग भी छठे-छमासे लिखते हैं। काहे? हमारे ब्लॉग पर आपको आए भी अरसा बीत गया। क्या कूड़ा लिखने लगा हूं मैं?
उम्मीद पर दुनिया कायम है ... सुन्दर अभिव्यक्ति
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