उन अँधेरों को अब तलक एक आस बाकी तो है
दूर कहीं दूर इक दिये की लौ झिलमिलाती तो है
यूँ अब अपनों से कोई हिमायत की उम्मीद नहीं
पर गैरों में अब भी इन्सानियत नजर आती तो है..
कि कल शायद इक हाथ उजाले का बढ़ायेगा कोई..
इन अँधेरों को फिर इक नई सुबह दिलायेगा कोई...
-समीर लाल ’समीर’
उम्मीदों का दिया प्रकाश देता रहेगा ,जब तक नई भोर की उजाियारी छा नहीं जाती.
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब समीर भाई ... इंसानियत काइंडा रहे चाहे ग़ैरों में रहे ... रोशनी की उम्मीद ज़िंदा तो है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण लिखा है ...
Laajawaab,Sameer Ji .
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंऐहै फेरि बसंत ऋतु इन डारिन इन फूल
यही आस अटक्यो रह्यो अलि गुलाब के मूल।
Bahut sunder
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश!
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 19/08/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
जय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंअनेक रचनाएं पढ़ी...
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दिनांक 19/08/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
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उम्मीद का दिया जलता रहे, दुआ है मेरी | Great post!
जवाब देंहटाएंपर गैरों में अब भी इन्सानियत नजर आती तो है..उम्मीद का दिया जलते रहे। बहुत सुंदर लिखा।
जवाब देंहटाएंbaqhut khub! bahut bahut badhai...
जवाब देंहटाएंयूँ अब अपनों से कोई हिमायत की उम्मीद नहीं
जवाब देंहटाएंपर गैरों में अब भी इन्सानियत नजर आती तो है..Good Lines
बहुत ही उम्दा ..... Very nice collection in Hindi !! :)
जवाब देंहटाएंचचा, आप हमको भूल गए। फेसबुक को गरियाने का मन करता है रोज़ लिखने वाले टिपियाने वाले बुजुर्ग भी छठे-छमासे लिखते हैं। काहे? हमारे ब्लॉग पर आपको आए भी अरसा बीत गया। क्या कूड़ा लिखने लगा हूं मैं?
जवाब देंहटाएंउम्मीद पर दुनिया कायम है ... सुन्दर अभिव्यक्ति
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