एक बार फिर- तीन कविताओं के साथ प्रस्तुत. शायद जल्द नियमित हो जाऊँ इस उम्मीद के साथ. एक नये उपक्रम को अंजाम देने की चाहत में कुछ पुरानी नियमित दिनचर्या से दूर:
-१-
कह तो गये...
उत्तेजना में आकर
युवा मन के भाव जताने...
धूप
कोई आईना नहीं..
बस अंधकार को मिटा
राह देखने का साधन...
तो फिर..
मिट्टी के कसोरे में
भरो कडुवा तेल..
बना लो रुई की बाती
रगड़ कर हथेलियों में..
और सुलगा उसे
चकमक पत्थर को घिस...
पुकार लेना...
सूरज!!!
कहो!!
पुकार सकोगे यूँ??
नहीं न!!
तभी तो कहता हूँ मैं...
गाँधी को समझ पाने के लिए
एक उम्र चाहिये!!
युवा उत्तेजना से
अनर्गल प्रलाप के सिवाय
क्या पा जाऊँगा मैं इस बाबत!!
-२-
एक चश्मा
उन वादियों के बीच
उतरता है सोच में..
मानिंद
चश्मा
तेरी आँखों की
नम गहराई में..
चौंधियाता है
इन आँखों को..
गर न पहनूँ...
वो चश्मा...
जो खरीदा था तुमने..
मेरे वास्ते..
-३-
कि सोचता हू मैं.. कहानी पढ़ूँ...
कुछ जाम गले से उतारुँ..और
फिर एक कहानी गढ़ूँ...
कि गीत सुन लूँ कोई...
कि गीत गुन लूँ कोई..
और ओढ़ लूँ एक नई शक्शियत..
बदल जाऊँ इन उपकरणों की दुनिया में..
बन एक नया उपकरण...
अचम्भित कर दूँ तुम्हें!!!
बात- एक जाम की...
बात- तेरे नाम की...
-समीर लाल ’समीर’
47 टिप्पणियां:
बहुत खूब। आपकी नियमितता का हमें इंतज़ार रहेगा।
-नीलम अंशु
बहुत समय बात आकर कठिन सी कविता में उलझा दिया.........
:-)
but good to see u sir
regards.
anu
बहुत समय बाद आकर उलझा दिया कठिन सी कविता में...
good to see u sir
regards
anu
Aapke kisee bhee lekhan pe tippani dene me mai apne aapko asamarth patee hun!
बहुत उम्दा!
जबरदस्त समीर भई ... उम्र चाहिए गांधी कों समझने में ... सही कहा ...
कहां बिजी हो आजकल ... नियमिती हो जाओ .. सूना सूना है ब्लॉगजगत तुम्हारे बिना ...
इस पर टिपण्णी नहीं चिंतन की गुंजाईश बनती है आपने ह्रदय और दिमाग को खाली कहाँ छोड़ा ?
जल्दी लाइन पर आइये . :)
आपका स्वागत है .
आपकी अनियमितता में एक बात नियमित है.. वह है चिंतन... सुन्दर कवितायेँ...
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
कल 30/05/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' एक समय जो गुज़र जाने को है ''
तीनो रचनाऐ उत्कृष्ट है और बहुत उम्दा प्रस्तुति......आभार
जीवन भर तो मेहनत की है
अब कुछ तो आराम चाहिए
कौन यहाँ आकर के, समझे
मुझको भी अर्चना चाहिए !
काश कहीं से हवा का झोंका,मेरे बालों को सहला दे
क्षमा करें मालिक बनने की, इच्छा करते मेरे गीत !
और ओढ़ लूँ एक नई शक्शियत..
बदल जाऊँ इन उपकरणों की दुनिया में..
सार्थक अभिव्यक्ति!!
सन्देश साफ़ दिए हैं.....सुनाई पड़ते हैं !
सन्देश साफ़ दिए हैं.....सुनाई पड़ते हैं !
bhaut hi khubsurat......
उम्र लेखन पर हावी है,
यही भाव भावी है।
सच कहा- एक उम्र चाहिए गांधी को समझने के लिए, आज के युवा सोचते हैं ज़रा सी देख ली दुनिया और पढ़ ली कुछ किताबें और जान गए गांधी को. बहुत गहरे विचार. तीनों कविता बहुत अर्थपूर्ण, बधाई समीर जी.
गहरा अर्थ सहेजे रचनाएँ...... बहुत उम्दा
बहुत खूब। नये उपक्रम के लिये शुभकामनायें!
पहली कविता तो निश्चित रूप से ही सशक्त है ..इसमें कोई दूसरी राय ही नहीं .. और सही कहा आपने कि गांधी को समझने के लिए एक उम्र चाहिए .. बिम्ब कमाल के है ...सर जी.
दूसरी कविता निश्चल प्रेम का बोध है जी.
और तीसरी कविता पर फेसबुक पर मैंने कुछ लिखा था . जो इस वक्त याद नहीं आ रहा है .
आपकी निरंतरता का इन्तजार रहेंगा जी.
'चौके-छक्के' के ज़माने में भाग कर '३ रन' ले लेना, अधिक संघर्षपूर्ण है, भावनाओं का संघर्ष !.......सुन्दर अभिव्यक्ति.
http://aatm-mathan.com
bahut sundar kavitaayen...
बहुत खूब सर |||
बहुत ही बेहतरीन रचना है...
:-)
आपकी दूसरी कविता भावुक कर गयी हमें..
शुभकामनाएं. सादर.
बहुत बढिया!!शब्दों के साथ अपनी भावनाओ को बाँधना..और व्यक्त करना...यह भी एक संघर्ष ही तो है..
भाई रमाकांत जी की बात से सहमत....
चिंतनोन्मुख करती खूबसूरत रचनाएँ...
सादर।
अलग सी कविताएं । खास कर उपकरण बन कर चौंकाने वाली ।
नये उपक्रम में एकदम तीन कवितायें - प्रशंसनीय १
इसी गति की आशा रखेंगे हम .
तीनों कवितायेँ इस बात का गवाह हैं के आपकी पकड़ विषयों और उन्हें पध्य बद्ध करने में कितनी निपुण है...आप और आपकी लेखनी को सलाम...
नीरज
चिंतन जग-जाहिर होता हुआ पुनः आप से हम तक हैं ये कविताएं !
तभी तो कहता हूँ मैं...
गाँधी को समझ पाने के लिए
एक उम्र चाहिये !!
बहुत ही सटीक भावप्रधान अभिव्यक्ति ... आप जल्द नियमित हों ... आभार
एक साथ तीन कवितायें ....
सच ही गांधी को समझने के लिए तो एक उम्र भी कम है ....
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
--
बुधवारीय चर्चा मंच ।
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
--
बुधवारीय चर्चा मंच ।
बेहतरीन !
अबूझ.. पर जितना भी बूझ पाया, सुन्दर..
बार बार पढ़ा आपकी इस कविता को !
समझने की कोशिश अभी भी जारी है ....
उम्दा रचना !
सादर !!
बार बार पढ़ा आपकी इस कविता को !
समझने की कोशिश अभी भी जारी है ....
उम्दा रचना !
सादर !!
der aaye durust aaye.....
अपने बहुत ही अच्छी तरह से और सयुक्त सब्दो को सजोया है मन पर्फुलित होगया यहाँ आके
http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/06/blog-post_04.html
आप मेरे ब्लॉग पर आकर आपने प्रोत्साहित करने के लिए धन्यवाद., आशा करता हूँ की आप आगे भी निरंतर आते रहेंगे
आपका बहुत बहुत धयवाद
दिनेश पारीक
अपने बहुत ही अच्छी तरह से और सयुक्त सब्दो को सजोया है मन पर्फुलित होगया यहाँ आके
http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/06/blog-post_04.html
आप मेरे ब्लॉग पर आकर आपने प्रोत्साहित करने के लिए धन्यवाद., आशा करता हूँ की आप आगे भी निरंतर आते रहेंगे
आपका बहुत बहुत धयवाद
दिनेश पारीक
जवाब नहीं! हिंदी के चश्मे का
उर्दू के चश्मे से साम्य प्यारा लगा !!!
रब करें आप जल्द नियमित हों!!!!
आज 18/06/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
"गाँधी को समझ पाने के लिए
एक उम्र चाहिये!!"
in one word...jabardast..
आपकी कविताओं की सार्थकता यह सभी टिप्पणियां ही है। Rkavyasansar.blogspot.com
बहुत खूब ..
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