दुआ के वास्ते जिस मुकां पे आया हूँ
वो तेरा घर है जिस मकां पे आया हूँ.
गुजारी तन्हा रातें बिछुड कर कितनी
हिसाब उन रातों का तमाम ले आया हूँ.
ज़ब्त बातें इस जुबां पर कितनी
गज़ल मे ढाल तेरे नाम ले आया हूँ.
फ़िर ना होगी 'समीर' जुदाई अपनी
साथ अपने यकीने-जहान ले आया हूँ.
--समीर लाल 'समीर'
मंगलवार, अप्रैल 11, 2006
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