शनिवार, फ़रवरी 04, 2023

बस कोई कविता मुझे कह जाती है

 


मैं कभी कोई कविता नहीं कहता

बस कोई कविता मुझे कह जाती है-


मेरा वक्त न जाने कब मेरा रहा है

वो तो गुजर जाता है यह खोजने में

कि ये मेरा वक्त आखिर गुजरता कहाँ है


मैं कोई कहानी नहीं, मैं निबंध भी नही

मैं किसी उपन्यास का हिस्सा भी नहीं

कभी बहुत दूर तलक अगर सोच पाऊँ तो

मैं किसी आप बीती का किस्सा भी नहीं


सोचता हूँ फिर आखिर मैं ऐसा कौन हूँ


एक शक्स जो कभी कविता नहीं कहता

मगर कविता उसे हमेशा कह जाती है-

-समीर लाल ‘समीर’


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10 टिप्‍पणियां:

Bharti Das ने कहा…

बेहद सुंदर सृजन

Krishna Kumar Yadav ने कहा…

बहुत बढ़िया !!

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
क्या बात ...
लाजवाब👌👌

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

मगर कविता उसे हमेशा कह जाती है..
मन के भावों का सटीक उद्बोधन!

मन की वीणा ने कहा…

वाह! अप्रतिम मैं कविता नहीं कहता कविता मुझे कह जाती है ।
शानदार।

रेणु ने कहा…

कविता कभी लिखी नही जाती ये खुद ही सवार हो जाती है आत्मा पर अभिव्यक्ति के लिए।सुन्दर प्रस्तुति समीर जी।होली की बधाई और शुभकामनाएं स्वीकार करें 🙏🙏

Sweta sinha ने कहा…

क्या बात है सर
बेहतरीन आत्माभिव्यक्ति।
सादर।

दीपक कुमार भानरे ने कहा…

उम्दा अभिव्यक्ति । सादर ।

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया
रंगपर्व की हार्दिक शुभकामनायें

बेनामी ने कहा…

कभी-कभी कोई रचना लगता है कि हमारे भीतर उतर कर हमसे लिखवा रही है…ऐसी ही रचना …👌👌