Sometime falling back is good- it gives you one hour of extra sleep
जब दिन और रात
दोनों में रोशन है यहाँ
हर इक बुलंद
इमारत का हर कोना
कोना
उन जगमग
एलईडी लाइटों की रोशनी से
रोशन
धूप दुपहर मे भी न जाने किस अबुझ
चौंधआई
आँखों के परे अंधेरे को चुनौती देता हुआ
मानिंद
अखंड भारत को बेवजह जोड़ने का प्रयास
कुछ
यूं ही तो प्रतीत होता ये एक नया फलसफा
तब आज इस नवंबर
के महीने के शुरुवाती दौर
में
सोचता हूँ क्यूँ
अनायास घड़ी की सुई घूम जाती है
अपने आज के समय
से एक घंटे पीछे की तरफ
एक रिवाजतन उस
डे टाइम सेविंग के नाम पर,
क्या पता कुछ
थके हारे लोग राहत पा जाते हों
इसी बहाने निद्रामग्न
एक घंटा और नींद निकाल
या किसी और
को बोनस में मिल जाता
है यूं ही
एक
घंटा और बेशकीमती इसी फिसलती जिंदगी का
और वो
यूं ही कह उठता हो वाह कमाल है जिंदगी!!
और
मैं न जाने क्यूँ सोचता रह जाता हूँ नाहक ही
यूं
इस तरह बेवजह ही इस समय की बर्बादी क्यूं?
मशीनवाली
घड़ी की सुई कब से तय करने लगी है
मेरे
अपने ही दिल के जज़्बातों की गहरी गहराईयां
मेरे
अपने मन में पलते ख्वाबों की ऊँची ऊँचाईयां?
मैं
नहीं सुनता आजकल एक और घड़ी की झंकार
मैं
नहीं सोता आजकल पुनः फिर सुनकर ये हुंकार
कि मेरे
अलावा सा है मेरा यह ख्वाबों का संसार!!
-समीर
लाल ‘समीर’
2 टिप्पणियां:
मशीनवाली घड़ी की सुई कब से तय करने लगी है
मेरे अपने ही दिल के जज़्बातों की गहरी गहराईयां
बहुत खूब,सादर नमन आदरणीय सर
...मेरे अलावा सा है मेरा...
आदरणीय बहुत खूब ....
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