शनिवार, जुलाई 17, 2021

आशीर्वादी जुमलों का एक सीमित संसार

 मानसिक रूप से तिवारी जी उम्र के उस पड़ाव में आ गए हैं जहाँ मात्र आशीर्वाद देने के सिवाय और कोई काम नहीं रहता। दरअसल उम्र से तो वह लगभग अभी 60 के आस पास ही पहुँच रहे होंगे। नेता होते तो युवा और ऊर्जावान कहलाते और अभिनेता होते तो किसी फिल्म में नई आई अभिनेत्री के साथ नाच रहे होते, मगर तिवारी जी ने उम्र का वो पड़ाव जल्दी इसलिए प्राप्त कर लिया क्यूंकि उनके पास वैसे भी कोई काम नहीं रहता है। काम न रहने को उन्होंने उम्र के पड़ाव से जोड़ दिया। यह उनके मानसिक उत्कर्ष का प्रमाणपत्र है।

अब वे अपने से बड़े उम्र की महिलाओं एवं पुरुषों को भी बेटा बेटी बच्चा आदि से संबोधित करने लगे हैं। पड़ोस में रहने वाली 70 वर्षीय महिला सुशीला ने जब नमस्ते किया तो बोले ‘अरे सुशीला बिटिया – खूब खुश रहो। बड़ा सुखद लगा सुनकर कि तुम अभी से इत्ती कम उम्र में ही नानी बन गई। प्रभु का बहुत आशीर्वाद है। अब नाती पोतों के साथ खूब खेलो। जुग जुग जिओ।’ अब सुशीला भी ठहरी महिला। कोई किसी भी उम्र में महिलाओं के इतने उच्चतम सम्मान ‘इत्ती कम उम्र’ से नवाज़ दे तो उसके लिए तो वह पद्म श्री से भी बड़ा सम्मान कहलाया। वो भी इसी सम्मान से लहालहोट हो तिवारी जी के चरण स्पर्श कर गई। तिवारी जी थोड़ा पीछे हटे और कहने लगे ‘अरे नहीं नहीं, हमारे यहां बच्चियों से पैर नहीं छुलवाते।‘ लेकिन तब तक सुशीला पैर छू चुकी थी, अतः सर पर हाथ धर कर पुनः आशीर्वाद देते हुए ‘सदा सुहागन रहो’ कहने जा ही रहे थे कि एकाएक याद आ गया कि सुशीला के पति को गुजरे तो सात साल हो गए हैं। अतः सदा के साथ खुश रहो लगा कर आशीर्वाद रफू कर दिया। रटे रटाए वन लाईनर वाले आशीर्वाद भी सतर्कता की दरकार रखते हैं। सही कहा गया है ‘सतर्कता हटी और दुर्घटना घटी’। अभी अभी तिवारी जी की फजीहत होते होते बच ही गई। 

आशीर्वादों का भी अपना एक वाक्य कोष होता है। सारे बुजुर्ग उसी में से उठा उठा कर आशीष दिया करते हैं। भाषा से भी यह अछूते हैं। लगभग सभी भाषाओं में आशीर्वाद का अंदाज और अर्थ एक सा ही होता है। चुनावी जुमलों की तरह ही आशीर्वादी जुमलों का एक सीमित संसार है मगर लुटाया दोनों को ही हाथ खोल कर जाया जाता है।

आशीर्वाद पाने वाला भी जानता है कि जेब खस्ता हाल में है। मंहगाई ऐसी कि निहायत जरूरत तक के सारे सामान नहीं जुटा पा रहे हैं। पेट्रोल भरवाने जाओ तो गैलन तो सोचना भी पाप हो गया है बल्कि लीटर की जगह मिली लीटर चलन में आने को तैयार हो रहा है। इस दौर में जब घर से मंहगाई और दुश्वारियों से जूझने निकलो और पान की दुकान पर बैठे तिवारी जी मुस्कराते हुए आशीर्वाद देने मे जुटे मिलें ‘खूब खुश रहो। दिनोंदिन ऐसे ही तरक्की करते रहो।‘ तब सिर्फ भीतर भीतर कोफ्त खाने के और क्या हो सकता है। बुजुर्ग की उम्र का लिहाज ऐसा कि कुछ कह भी नहीं सकते। बुजुर्ग भी अपनी उम्र का पावर जानता है। नेता भी तो अपने पावर के चलते जुमले पर जुमले उठाए रहते हैं और आम जानता भी सब कुछ जानते समझते भी सिवाय कुढ़ कर रह जाने के क्या कर सकती है।

घंसू, जिससे विगत में तिवारी जी का शराब पीने से लेकर गाली गलौज तक का करीबी नाता रहा, उसे भी आजकल वह ‘बेटा, सदा खुश रहो- ऐसे ही खूब तरक्की करते रहो ’ का आशीर्वाद देते हुए न थकते हैं। घंसू भी आश्चर्य चकित सा तिवारी जी का मुंह ताक रहा है। जब उम्र के पाँच दशक से ज्यादा समय में आजतक कुछ भी कर ही नहीं पाया और यह बात तिवारी जी भी जानते हैं तो ये ‘ऐसे ही तरक्की करते रहो’ में किस तरक्की का जिक्र कर रहे हैं?

अभी घंसू इस विषय में सोच ही रहा था की उसे याद आया कि कुछ साल पहले जब एक मंच से नेता जी का भाषण हो रहा था। नेता जी ने कहा था  ‘आप और आपका धर्म संकट में हैं। मैं जीतते ही आपको संकट से उबारूँगा।‘ तब भी जिन्हें वह संकट में बता रहे थे, उन लोगों को खुद ही नहीं पता था कि वो और उनका धर्म संकट में हैं। वो भी तो यही सोच रहे थे कि नेता जी किस संकट से उबारेंगे, जब कोई संकट है ही नहीं। तब उस वक्त के युवा और ऊर्जावान तिवारी जी ने ही बताया था कि इसे जुमला कहते हैं। चुनाव में काम आता है। याद कर लो और जब चुनाव लड़ोगे तो काम आएगा। तब तुम भी यही बोलना।‘

बस, घंसू भी अब तिवारी जी की बात ‘ऐसे ही खूब तरक्की करते रहो’ का भावार्थ समझ गया। यह बुजुर्गों का एक आशीर्वादी जुमला है। याद कर लो और जब बुजुर्ग हो जाओगे तो काम आएगा।

ऐसा ही पुश्त दर पुश्त ये सिलसिला चलता आया है और ऐसे ही आगे भी चलता

रहेगा।

-समीर लाल ‘समीर’  

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जुलाई 18, 2021 के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/61871028

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9 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

Excellent reincarnation of Tiwari ji as an elderly person with his pat and Ghansu. Excellent!!!

Girish Kumar Billore ने कहा…

बड़े भाई अपनी भी स्थिति वही हो रही है। कुछ कर नहीं सकते तो आशीर्वाद ही देके देख लेतें है । गज़ब का घंसु कमाल के तिवारी जी

Ragini ने कहा…

लाल साहेब आपने बढ़ती उम्र और आशीर्वाद का बहुत ही सुंदर विवरण किया। बधाई।

महाकवि केशव रीतिकालीन कवियों में से एक थे। एक बार वे कहीं जा रहे थे तो रास्ते में उन्होंने देखा कि कुएं पर कुछ पनिहारिने पानी भर रही हैं, वे पानी पीने के लिए कुएं की जगत पर पहुंचे ,तभी एक खूबसूरत पनिहारिन ने कहा बाबा पानी पियोगे ?
केशव जी ने पानी तो पिया पर यह पंक्तियां भी लिख डाली --

केशव केसन अस करि ,जस विधि अरिहूं न कराए ,
चंद्रमुखी मृग लोचनी बाबा कहि कहि जाए।

Vaanbhatt ने कहा…

अरे सर बुजुर्गों का आशीर्वाद बहुत काम आता है...बच्चों के भी और बुजुर्गों के भी...बिना हर्र-फिटकरी के चोखा रंग ऐसे ही आता है...बच्चों को स्नेह मिल जाता है...बुजुर्गों को इज्ज़त...खुबसूरत आलेख...

Sudha Devrani ने कहा…

व्यंग और हास्य का अद्भुत मिश्रण....
आशीर्वादी जुमला!!!
बहुत मजेदार लाजवाब लेख।
🙏🙏🙏🙏

Jyoti Dehliwal ने कहा…

आशीर्वाद में भी जुमलेबाजी...बहुत खूब।

अनीता सैनी ने कहा…

वाह!बहुत सुंदर जुगलबंदी।
सादर

Mehek ने कहा…

Umar ke es padav ki sahi kashkmakash .bahut khub.

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

वाह!! बहुत सुन्दर.... सच में वृद्ध अपनी पॉवर जानते हैं... ऐसे ऐसी चीजें बोल देते हैं कि जवान आदमी सुनने के और अंदर से कुढने के अलावा कुछ नहीं कर सकता है...सटीक व्यंग्य...