चौबे जी और उनके बेटे मुकेश का परिवार उनके साथ कटनी
में रहता था। बेटा शहर की एक कंपनी मे मैनेजर था और चौबे जी रिटायर मास्साब। मुकेश
अभी एक साल पहले ही मुंबई से वापस आया है, जहाँ वह एक मल्टी नेशनल में काम करता
था।
कुछ साल पहले चौबे जी की पत्नी नहीं रहीं। चौबे
जी अकेले रह गए थे। दमा के मरीज थे। कई बार बेटे से कहा कि बेटा, अब अकेले नहीं
रहा जाता, क्या मैं तेरे पास मुंबई आ जाऊं? हर बार वही जबाब कि
कंपनी का दिया छोटा सा फ्लैट है और उसमें
वो, उसकी पत्नी और दो बच्चे। हालांकि तीन बेड रूम और एक गेस्ट रूम भी है मगर उसमें
से एक स्टडी और एक गेस्ट के लिए है, आप कहाँ रहेंगे?और फिर वहाँ आपके परिचित लोग
हैं। यहाँ मुंबई में तो पड़ोसी भी नहीं किसी को पूछते, आप बोर हो जाएंगे।
कहते सुनते पाँच साल निकल गये थे किन्तु न कभी मुकेश
उन्हें ले गया न कभी उसके फ्लैट में इतनी जगह बन पाई कि चौबे जी वहाँ जाकर रह
पायें। इतने दिनों में मुकेश भी एक ही बार कटनी आया था, वो भी नगर निगम से कोई
सत्यापन करवाना था। पत्नी और बच्चे तब भी नहीं आए थे। मुकेश का मानना था कि वो
चूना भट्टी से उठते पलूशन से बीमार पड़ जाएंगे।
दो साल पहले मुकेश की नौकरी जाती रही। ७-८ महीने
कोशिश की किन्तु कहीं कोई उम्मीद नजर न आई। हार कर सपरिवार वो कटनी चला आया। चौबे
जी के पुराने परिचय के चलते एक अच्छी कंपनी में मैनेजर हो गया। बच्चे यहीं स्कूल
में भर्ती हो गए। उसकी पत्नी और बच्चों की तबीयत भी ठीक रही। रिटायर्ड मास्साब
चौबे जी का घर बहुत बड़ा तो नहीं था किंतु फिर भी तीन बेडरूम, ड्राइंग और डाइनिंग तो
था ही। एक बेडरूम मुकेश और उसकी पत्नी ने ले लिया। एक एक दोनों बच्चों ने और चौबे
जी का बिस्तर ड्राइंग रूम में लगा दिया गया। कुछ दिन तो सब ठीक चला किन्तु चौबे जी
दमा के चलते रात भर खाँसते तो मुकेश की पत्नी को शिकायत रहती कि न तो खुद सोते हैँ
न ही हमको सोने देते हैं। उसने कई बार मुकेश से अलग घर लेने के लिए कहा किन्तु अब
न तो सेलरी इतनी ज्यादा थी और ७-८ महीने मुंबई की बेरोजगारी के बाद बचत ही। अतः मन
मार कर साथ रहते रहे।
पत्नी की शिकायत बढ़ती रही। मुकेश सोचता रहता कि क्या
किया जाए। एक दिन गुस्से में पत्नी ने कहा कि इतना भी क्या सोचने में लगे हैं?
बाबू जी को ओल्ड एज होम में अच्छा सा कमरा दिलवा दीजिये। वहाँ इनकी उम्र के मित्र
भी मिल जाएंग एवं मन भी लग जाएगा। फिर मेडिकल और भोजन की व्यवस्था भी अच्छी खासी
है वहाँ। पेंशन से इतना पैसा तो आ ही जाता है कि ओल्ड एज होम का किराया भरने के
बाद भी कुछ जेब खर्च बचा रहे। फिर हम तो हैं ही अगर कुछ और जरूरत हुई तो। बीच बीच
में मिल आया करना।
मुकेश भी सोचता रहा कि कैसे कहे बाबू जी से। कोई
तरीका नहीं सूझ रहा था। ऐसे में एकाएक महामारी ने देश में अपने पाँव पसारे। करोना
का हाहाकार मच गया। बुजुर्गों पर तो उसका कहर ऐसा कि जिस घर में बुजुर्ग हों उस घर
के बच्चे और जवानों को घर से न निकलने की सख्त हिदायत दे दी गई।
मुकेश की नौकरी ऐसी थी कि उसे तो दफ्तर जाना ही था। न
जाने क्यूं उसे इस आपदा में अवसर नजर आया। उसने तुरंत बाबूजी से कहा कि आप घर में
सेफ नहीं हैं। मुझे आपकी बहुत चिंता हो रही है। मैं दफ्तर जाता हूं। बच्चे बाहर
खेलते हैं। न जाने कब कौन करोना साथ ले आए और आपकी तबीयत पर बन आए। मैंने पास के
ओल्ड एज होम में बात कर ली है। उन्होंने बुजुर्गों की कोविड से रक्षा की विशेष
व्यवस्था की है। आप कुछ दिन वहाँ रह लें और जैसे ही माहौल ठीक हो जाएगा, हम आपको
वापस ले आएंगे। चौबे जी का मन तो न था और वो सब समझ भी रहे थे मगर क्या करते। हाँ
कह दिया।
अगले दिन जब मुकेश उन्हें वहाँ पहुंचाने गया तो पास
वाला ओल्ड एज होम शहर से कई सौ किमी दूर इंदौर में था। मुकेश उन्हें वहाँ छोड़ कर
उसी रात कार से वापस लौट गया। चौबे जी धीरे धीरे वहाँ रहने की आदत डालने लगे। घर
के ड्राइंग रूम के एकाकीपन से बेहतर धीरे धीरे यहाँ का माहौल अच्छा लगने लगा। कुछ
हम उम्र हम व्यथा से गुजरते साथी बन गए। बीच बीच में मुकेश को फोन करते तो पता
चलता कि हालत बहुत खराब हैं, आप वहीं रहें।
साल बीत गया। वैक्सीन आ गई। ओल्ड ऐज होम वालों को
प्राथमिकता की श्रेणी में रखा गया था अतः चौबे जी को वैक्सीन लग गई। उन्होंने फोन
पर मुकेश को बताया कि अब टीका लग गया है। अब मुझे कुछ नहीं होगा, मुझे वापस घर ले चलो।
मुकेश ने कहा कि अभी संभव नहीं है। जब तक घर में सबको नहीं लग जाता, तब तक आप वहीं
रहिये। वैसे भी आपको वहाँ तकलीफ क्या है? आराम से रहिये। यहाँ धूल धक्कड़ में आकर
क्या करिएगा। बात सुनकर चौबे जी को थोड़ा धक्का तो लगा और यह भी समझ में आ गया कि
अब बाकी का जीवन भी यहीं बिताना होगा।
एकाएक सरकार का आदेश आया कि जो लोग अपने बुजुर्ग माता
पिता के साथ रहते हैं, उन्हें भी प्राथमिकता की श्रेणी में रख कर वैक्सीन लगाया जाएगा। यह खबर
टीवी पर चौबे जी ने ओल्ड ऐज होम में और मुकेश और उसकी पत्नी ने अपने घर पर सुनी।
उस शाम मुकेश और उसकी पत्नी का फोन बाबू जी के पास
पहुंचा। अब तो आपको वैक्सीन लग गई है, अब आप वहाँ ओल्ड ऐज होम में क्या कर रहे
हैं? अब आप अपने घर वापस आ जाइये। हम आपको कल लेने
आ रहे हैं।
चौबे जी मुस्कराये और बोले- रहने दो बच्चों। अब यही
मेरा घर है और यही मेरा परिवार, मैं यहाँ बहुत खुश हूँ।
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अप्रेल
18,
2021 के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/59852255
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9 टिप्पणियां:
A very heart touching blend of influence of urbanization, nucleus families and Corona pandemic on society. A deep thought.....
बहुत ही मार्मिक कहानी है
आपकी रचना से सोच में पड़ गया हूँ
बहुत सुन्दर।
विचारों का अच्छा सम्प्रेषण किया है
आपने इस कहानी में।
Very emotional story
बहुत मार्मिक कहानी। पर यही सत्य है।
स्वार्थ से भरी दुनिया का सत्य है ये कहानी जो आज घर-घर की कहानी बन चुकी है।
"ओल्ड ऐज होम" पर मैंने भी अपनी कुछ सोच को सभी से साझा किया है कभी फुर्सत मिले तो पढियेगा सर
और अपने विचार रखियेगा मुझे ख़ुशी होगी ,सादर नमस्कार आपको
" बृद्धाआश्रम "बनाम "सेकेण्ड इनिंग होम "
बहुत बढ़िया।
हद्द दर्जे के स्वार्थी होते हैं । मर्मस्पर्शी कहानी ।।
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