जैसे बचपन में रेल गाड़ी के साथ
साथ चाँद भागा करता था और रेल रुकी और चाँद भी थम जाता था। चाँद को भागता देखने के
लिए रेल का भागना जरूरी है। जो इस बात को समझता है वो जानता है कि देश के विकास को
देखना है तो खुद का विकसित होते रहना आवश्यक है। खुद का विकास रुका तो देश का
विकास रुका ही नजर आयेगा। हम आप सब मिलकर ही तो देश होते हैँ। खुद का विकास रोक कर
रोज पान की दुकान पर वैसे किस विकास का इन्तजार कर रहे हो और खुद को कोसने की बजाय
सरकार को कोस रहे हो।
नेताओं को देखो कितने विकसित
होते जा रहे हैं दिन प्रति दिन, इसलिए उन्हें विकास भी दिखता है। जब चुन कर गए थे
तो एक बंगला था, आज न जाने कितने प्लाट, मॉल, रुपयों के वाटर फॉल हैं। उनसे शिकायत
करोगे कि विकास नहीं हो रहा तो वो नाराज ही होंगे न! देश का विकास देखने के लिए
आत्म निर्भर बनो। खुद का विकास करो।
अपने घर में और घर के आस पास
कूड़ा फैला कर रखोगे तो देश कैसे स्वच्छ होगा चाहे लाख स्वच्छता अभियान चलता रहे।
स्मार्ट सिटी भी हमारी तुम्हारी स्मार्टनेस से ही बनती है। खुद ढपोरशंख बने
स्मार्ट सिटी को तलाशने वालों के वही हाथ लगता है जो तुम्हें हाथ लग रहा है।
कंप्यूटर की दुनिया में एक
जुमला है ‘गीगो’ – GIGO – ‘गारबेज इन गारबेज आउट’ याने कि कचरा डालोगे तो कचरा ही निकलेगा। ये बात न
सिर्फ आपकी सोच पर लागू होती बल्कि इसका जीता जागता उदाहरण देखना हो तो अपने चुनी
हुई सरकारें ही देख लो – कचरा चुन कर भेजोगे और आशा करोगे कि वो सोना उगलेंगे तो
बौड़म कौन कहलाया- तुम कि जिनको तुमने चुन कर भेजा है?
वैसे जिसे भी चुनो उसको रोल
मॉडल बना लो तो अजब सा सुकून मिलता है वरना ठगे से होने का अहसास होता है। ९० फसीदी
जनता इसी चक्कर में मुंह बाये बैठी है। यहाँ रोल मॉडल का भक्त हो जाना भी जरूरी
है। भक्ति भाव हार्ड वर्क जैसा ही है, जिसका कोई आल्टर्नेट नहीं है। जैसे कि एक थे
जो गरीबी को मानसिक अवस्था मानते थे और एक हैँ कि पकोड़े तलने को रोजगार मानते हैँ।
दोनों का निचोड़ गीगो ही है मगर काँटों को दरकिनार कर गुलाब तोड़ लाना या कीचड़ से
दामन बचा कर न सिर्फ कमल तोड़ लाना बल्कि उसकी डंठल से कमलगट्टे की सब्जी बना कर सुस्वादु
भोजन उदरस्थ कर संतुष्ट हो लेना भी इसी मान्यता को प्रमाणित करना है।
सूरज को शीशे में कैद कर
उसकी जगमग से किसी की आखों को जगमग कर उसे किसी तिलस्म में गुमा देना ही राजनीति
का आधार है। यही राजनीति का मूल मंत्र है। हमारे सभी नेता ऐसा ही आईना थामे हमें
दिगभ्रमित करने की महारत हासिल किये हुए हैँ और हम हैं कि उन्हें अपना रहनुमा मानकर
भक्तिभाव में लीन सोचते हैं कि वो हमें राह दिखा रहे हैं। चौंधियाई आंखों से दिखते
मंजर में सरकार में छिपे मक्कार भी परोपकार करते नजर आते हैँ। इससे बेहतर और मुफ़ीद
बात क्या हो सकती है सत्ता में काबिज लोगों के लिए।
काश!! कोई ऐसी क्रिस्टल बॉल
बने जो आमजन को उस आईने का सच बताए जो हर नेता अपने हाथ में थामें उनकी आँखों को
चौंधिया रहा है। यूवी रे वाले चश्मे तो बाजार का वैसा ही भ्रम है जैसे कि गोरा
बनाने वाली बाजार में बिकती क्रीम। हम से बेहतर इसे कौन जान पाएगा? अब तो कन्हैया
लाल बाजपेई की निम्न पंक्तियां जीवन का सूत्र बन गई है:
काश!!
आमजन भी इस सत्य को जितना जल्दी पहचान ले – उतना बेहतर!!
मगर
आमजन का क्या है- इतना उदार है कि सीटी बजाने को ओंठ गोलियाता है मगर निकलती बस
हवा है वो दोष ठंड को मढ़ देता है। ठंड भी सोचती होगी कि तेरी सीटी न बजने में मेरा
क्या दोष! नाच न आवे आँगन टेढ़ा!!
हम
वही तो हैँ जो सड़क की टूट फूट का जिम्मेदार बरसात को मानने के आदी हैँ।
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के सोमवार फरवरी १५, २०२१ के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/58444040
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
5 टिप्पणियां:
सही बात है ,जब तक स्वयं का विकास नहीं करेंगे देश कैसे विकसित होगा ? सटीक बात तंज कटे हुए व्यंग्यात्मक शैली में लिखी है । बढ़िया लेख ।
दादा! चरण स्पर्श,
15 Feb यानी आज का ही है, एकदम फ्रेश फ्रेश .😊👌
सुबह सुबह चाय पीते हुए पूरा पढ़ गई. पांच व्यक्ति जब एक जगह इकट्ठे होते हैं तब उनकी राष्ट्र के प्रति चिंता, राजनीति ज्ञान देखने सुनने काबिल होता है. हा हा हा नब्ज़ पकड़ने में माहिर हैं आप.
अरसे बाद आपको पढ़ा. पढ़ती नही तो comment करने का हक़ भी तो नही रखती न? आजकल रोज़ एक दो ब्लॉग तो पढ़ती ही हूँ.
अपनी 'share to list' में मुझे वापस एड कर लीजियेगा. - आपकी वो ही- छुटकी
True!!!
बहुत सार्थक।
जब रामजी ने नहीं सोचा तो लोग क्या एक्सट्रा विचारवान हैं.....
एक टिप्पणी भेजें