जिन्दगी का सफ़र भी कितना अजीब है. रोज कुछ नया देखने या सुनने को मिल
जाता है और रोज कुछ नया सीखने.
पता चला कि दफ्तर की महिला सहकर्मी का पति गुजर गया. बहुत अफसोस हुआ.
गये उसकी डेस्क तक. खाली उदास डेस्क देखकर मन खराब सा हो गया. आसपास की डेस्कों पर
उसकी अन्य करीबी सहकर्मिणियाँ अब भी पूरे जोश खरोश के साथ सजी बजी बैठी थी. न जाने
क्या खुसुर पुसुर कर रहीं थी. लड़कियों की बात सुनना हमारे यहाँ बुरा लगाते हैं,
इसलिए
बिना सुने चले आये अपनी जगह पर.
जो भी मिले या हमारे पास से निकले, उसे मूँह उतारे
भारत टाईप बताते जा रहे थे कि जेनी के साथ बड़ा हादसा हो गया. उसका पति गुजर गया.
खैर, लोगों को बहुत ज्यादा इन्टरेस्ट न लेता देख मन और दुखी हो गया. भारत
होता तो भले ही न पहचान का हो तो भी कम से कम इतना तो आदमी पूछता ही कि क्या हो
गया था? बीमार थे क्या? या कोई एक्सीडेन्ट हो गया क्या?
कैसे
काटेगी बेचारी के सामने पड़ी पहाड़ सी जिन्दगी? अभी उम्र ही
क्या है? फिर से शादी कर लेती तो कट ही जाती जैसे तैसे और भी तमाम
अभिव्यक्तियाँ और सलाहें. मगर यहाँ तो कुछ नहीं. अजब लोग हैं. सोच कर ही आँख भर आई
और गला रौंध गया.
हमारे यहाँ तो आज मरे और गर सूर्यास्त नहीं हुआ है तो आज ही
सूर्यास्त के पहले सब पहुँचाकर फूँक ताप आयें. वैसा अधिकतर होता नहीं क्यूँकि न
जाने अधिकतर लोग रात में ही क्यूँ अपने अंतिम सफर पर निकलते हैं. होगी कोई
वजह..वैसे टोरंटो में भी रात का नजारा दिन के नजारे की तुलना में भव्य होता है और
वैसा ही तो बम्बई में भी है. शायद यही वजह होगी. सोचते होंगे कि अब यात्रा पर
निकलना ही है तो भव्यता ही निहारें. खैर, जो भी हो मगर ऐसे में भी अगले दिन तो
फूँक ही जाओगे.
मगर यहाँ अगर सोमवार को मर जाओ तो शनिवार तक पड़े रहो अस्पताल में.
शानिवार को सुबह आकर सजाने वाले ले जायेंगे. सजा बजा कर सूट पहना कर रख देंगे
बेहतरीन कफन में और तब सब आपके दर्शन करेंगे और फिर आप चले दो गज जमीन के नीचे या
आग के हवाले. आग भी फरनेस वाली ऐसी कि ५ मिनट बाद दूसरी तरफ से हीरा का टुकड़ा बन
कर निकलते हो जो आपकी बीबी लाकेट बनवाकर टांगे घूमेगी कुछ दिन. गज़ब तापमान..हड्ड़ी
से कोयला, कोयले से हीरा जैसा परिवर्तन जो सैकड़ों सालों साल लगा देता है,
वो
भी बस ५ मिनट में.
खैर, पता लगा कि जेनी के पति का फ्यूनरल शनिवार को है. अभी तीन दिन हैं.
घर आकर दुखी मन से भाषण भी तैयार कर लिया शेर शायरी के साथ जैसा भारत में मरघट पर
देते थे. शायद कोई कुछ कहने को कह दे तो खाली बात न जाये इतने दुखी परिवार की. बस,
यही
मन में था और क्या.
शुक्रवार को दफ्तर में औरों से पूछा भी कि भई, कितने बजे
पहुँचोगे? कोई जाने वाला मिला ही नहीं. बड़ी अजीब बात है? इतने समय से साथ
काम कर रहे हैं और इतने बड़े दुखद समय में कोई जा नहीं रहा है. हद हो गई. सही सुना
था एक शायर को, शायद यही देखकर कह गया होगा:
’सुख के सब साथी, दुख का न कोई रे!!’
आखिर मन नहीं माना तो अपने एक साथी से पूछ ही लिया कि भई, आप
क्यूँ नहीं जा रहे हो?
वो बड़े नार्मल अंदाज में बताने लगा कि वो इन्वाईटेड नहीं है.
लो, अब उन्हें फ्यूनरल के इन्विटेशन का इंतजार है. हद है यार, क्या
भिजवाये तुम्हें कि:
’भेज रही हूँ नेह निमंत्रण, प्रियवर तुम्हें बुलाने को,
हे मानस के राजहंस, तुम भूल न जाने आने को.’
हैं? मगर बाद में पता चला कि वाकई उनका फ्यूनर है STRICTLY ONLY BY
INVITATION याने कि निमंत्रण नहीं है तो आने की जरुरत नहीं है.
गजब हो गया भई. तो निमंत्रण तो हमें भी नहीं आया है. फिर कैसे
जायेंगे. कैसे बाँटूं उसका दर्द. हाय!!
सोचा कि शायद इतने दुख में भूल गई होगी. इसलिये अगले दिन सुबह फोन
लगा ही लिया. शायद फोन पर ही इन्वाईट कर ले. चले जायेंगे. भाषण पढ देंगे. आंसू बहा
लेंगे. भारत में राजनीति की है , आंसू तो कभी भी बहा सकते हैं
पता चला कि ब्यूटी पार्लर के लिए निकल गई है फ्यूनरल मेकअप के लिए.
भारतीय हैं तो थोड़ा गहराई नापने की इच्छा हो आई और जरा कुरेदा तो पता चला कि ब्लैक
ड्रेस तो तीन दिन पहले ही पसंद कर आई थी आज के लिए और मेकअप करवा कर सीधे ही
फ्यूनरल होम चली जायेगी. कफन का बक्सा प्यूर टीक का डिज़ायनर रेन्ज का है फलाना
कम्पनी ने बनाया है और गड़ाने की जमीन भी प्राईम लोकेशन है मरघटाई की. अगर
इन्विटेशन नहीं है तो आप फ्यूनरल अटेंड नहीं कर सकते हैं मगर अगर चैरिटी के लिए
डोनेशन देना है तो ट्रस्ट फण्ड फलाने बैंक में सेट अप कर दिया गया है, वहाँ
सीधे डोनेट कर दें.
हम भी अपना मूँह लिए सफेद कुर्ता पजामा वापस बक्से में रख दिए और
सोचने लगे कि अगर हमारे भारत में भी ऐसा होता तो भांजे का स्टेटमेन्ट भी लेटेस्ट
फैशन के हिसाब से निमंत्रण पत्र में जरुर रहता:
"मेले मामू को छनिवाल को फूँका जायेगा. आप जलूल आना....चोनू"
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जनवरी १० ,२०२१ के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/57625431
ब्लॉग पर पढ़ें:
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
2 टिप्पणियां:
It is an excellent example of literary work on "humour in tragedy". It is a unique mix of cultural differences across nations, colloquial conversation, science of charcoal getting converted into diamond, the diamond becoming an invaluable memoir, economics and commerce of invitation with a tangential reference to political mindset.
Really a superb read....
बहुत सुन्दर।
विश्व हिन्दी दिवस की बधाई हो।
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