कहते हैं आज के इस कोविड काल में
सकारात्मकता ही सफलता की कुंजी है। सकारात्मक सोच एवं सुरक्षात्मक उपाय अपनाते रहें तो शायद इस काल का पार कर जाएं।
शुरुवात में तो दिन दिन भर
बैठ कर यही देखते थे टीवी पर की कितने और मरे? हर बढ़ते आंकड़े के साथ दिल की धड़कन बढ़ती जाती। जितनी बार वो टीवी पर विज्ञापन आते कि हाथ साबुन से २०
सेकेंड तक धोते जाओ, उतनी बार उठाकर हाथ धोने जाते। फिर सीएनएन ने बताया की जितनी
देर मे दो बार हैप्पी बर्थ सांग गाओगे, २०
सेकेंड पूरे हो जायेगे। देखते देखते धुलते धुलते हाथ बाकी के शरीर से गोरा हो गया
और कंठ हैप्पी बर्थडे गाने में माहिर मगर करोना का भय टिका रहा यथावत।
विशेषज्ञों ने सलाह दी कि
टीवी दिन में एकबार १० मिनट के लिए देखो वो भी सिर्फ यह देखने के लिए कि सरकार का
कोई नया आदेश तो नहीं आया जो आपको पालन करना है। टीवी देखना बंद कर दिया। हाथ धोना
बंद नहीं किया अतः भय मानस पर छाया रहा। अब हैप्पी बर्थ डे याने तुम जिओ हजारों
साल, साल के दिन हों पचास हजार गाते हुए लगता कि करोना उससे अपने लिए गाया मान कर
दिन प्रति दिन विस्तार प्राप्त कर रहा है। आखिर दुनिया भर में उसे याद करके कितने
सारे लोग हाथ धोते हुए यही गा रहे है तो दुआओं का असर तो होना ही था। जब गुडडु ये
गाना १ साल की उम्र से सुनते आज ८० के होकर चुस्त दुरुस्त हैं तो भला करोना का क्या
बिगड़ना है। यही सोच कर अब गाना बिना गाए हाथ धोने लगे हैं।
टीवी पर समाचार देखने की आदत
तो शराब पीने की लत से भी ज्यादा खराब बताई गई है। शराब और गांजे की आदत तो छुड़वाई
जा सकती है। मगर टीवी पर समाचार देखने का चस्का ऐसा होता है कि बिना देखे जीवन
नीरस लगने लगता है। दरअसल दूरदर्शन वाले समाचारों में वो नशा न था जो आजकल वालों
में हैं। धूमधड़ाके के साथ ऐसा लगता है समाचार नहीं, कोई फिल्म देख रहे हैं जिसकी
एकदम मस्त पटकथा लिखी गई है, सटीक डॉयलॉग लिखे गए हैं और जैसा निर्देशक ने चाहा है
वैसा ही मनभावन अभिनय किया गया है अपने फाइनेंसर का पूरा ध्यान रखते हुए। हर
समाचार रूपी फिल्म का उद्देश्य मात्र इतना की फाइनेंसर को किसी न किसी रूप से
फायदा मिलता रहे। फाइनेंसर आका होता है। उसे नाराज नहीं किया जा सकता। इतिहास गवाह
है की जिसने भी उसे नाराज किया है, उसकी दुकान सिमट गई है।
खैर टीवी का नशा छुड़ाने के
लिए सोशल मीडिया का हाथ थामा तो पाया की यह तो गाँजा छुड़ाने के लिए चरस पीने लगे।
व्हाट्सअप्प, ट्वीटर, फेसबुक, ईमेल जहाँ जाओ, वहाँ करोना पसरा पड़ा है। कोई इलाज
बता रहा है तो कोई इसे लाइलाज बता रहा है। कुछ बुद्धत्व को प्राप्त लोग इसे बीमारी
मानने को ही तैयार नहीं और इसे अफवाह बता कर निकल जा रहे हैं। कोई घर पर हैन्ड सेनेटाइज़र बता रहा है तो कोई
इम्यूनिटी बढ़ाने का तरीका मगर ले देकर बात करोना की ही हो रही है और हम अभी भी हाथ
धो धो कर करोना भगाने में लगे हैं और वो दिमाग पर चढ़ अपनी विकास यात्रा में लगा
है।
लगने लगा की कहां चले जाएं
जहाँ इसकी कोई बात न हो। कोई जिक्र ही न आए और यह हमारे सिर से उतरे। कहते हैं न
कि उदण्ड बच्चे की बदमाशी बंद करवानी हो तो उसे इग्नोर करो। उसकी बात ही न करो।
थोडी देर में अपनी उपेक्षा देख कर वो बदमाशी करना बंद कर देगा।
मगर वैसी कौन सी जगह है?
क्या देखूँ -क्या सुनूँ? कुछ नहीं समझ आता- जित देखूँ तित लाल की तर्ज पर हर तरफ
करोना की बात – कारोना मय वातावरण।
तब एकाएक एक ईश्वर का भेजा
कोई दूत मुझे मन की बात सुनने की सलाह दे गया। तब जा कर इस बैचेन दिल को करार आया।
न करोना की कोई बात, न आंकडे और न इससे होने वाले नुकसानों की कोई बात। अहा!! कोई
तो ऐसी जगह मिली। आराम से बैठो- देशी कुत्तों की प्रजातियाँ जानो। मोर को दाना
खिलाओ। सब सुनो बस करोना को छोड़ कर। ऐसे शुद्ध वातावरण और करोना मुक्त स्थल आज बचे
कहाँ हैं।
आज फिर हमने अपने आपको विश्व
गुरु साबित कर दिया। मैं करोना भय से मुक्त हुआ। आपको भी भय मुक्त होना है तो मन
की बात सुनो।
गौतम बुद्ध भी कहा करते थे
की जब बाहर बहुत कोलाहल हो तो मन की बात सुनना चाहिए। आज जाकर उनकी बात का गूढ़
अर्थ समझ आया।
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार सितंबर २०,२०२० के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/55078867
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5 टिप्पणियां:
Excellent.... In
उपयोगी आलेख।
मोर को दाना डालो ...
एकांत मन के पास ही है .... उसे देखो ... सही है व्यंग की धरा ...
बड़ी ऊहापोह में सारा जग जी रहा है
बहुत ख़ूब। ताली...
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