शनिवार, जुलाई 25, 2020

जाओ तो जरा स्टाईल से...


आज एक चिट्ठी आई. उसे देखकर बहुत पहले सुना हुआ एक चुटकुला याद आया.
एक सेठ जी मर गये. उनके तीनों बेटे उनकी अन्तिम यात्रा पर विचार करने लगे. एक ने कहा ट्रक बुलवा लेते हैं. दूसरे ने कहा मंहगा पडेगा. ठेला बुलवा लें. तीसरा बोला वो भी क्यूँ खर्च करना. कंधे पर पूरा रास्ता करा देते हैं. थोड़ा समय ही तो ज्यादा लगेगा. इतना सुनकर सेठ जी ने आँख खोली और कहा कि मेरी चप्प्ल ला दो, मैं खुद ही चला जाता हूँ.
चिट्ठी ही कुछ ऐसी थी. एक बीमा कम्पनी की. लिखा था कि अपने अंतिम संस्कार का बीमा करा लें. पहले बताया गया कि यहाँ अंतिम संस्कार में कम से कम ५००० से ६००० डालर का खर्च आता है और अक्सर तो १०००० डालर तक भी चला जाता है अगर जरा भी स्टेन्डर्ड का किया. साथ में पिछले १० सालों में बढ़े दाम का ग्राफ भी था. पहली नजर में ग्राफ देख कर लगा की इन्होंने भारत के पेट्रोल के भाव का ग्राफ क्यूँ भेजा है? पेट्रोल छिड़क कर जलाएंगे क्या घी के बदले? फिर ध्यान से पढ़ा तो इनके पैकेज का भाव था जो पिछले १० सालों में बढ़ा था. जरा विचारिये कि जब तक आप का नम्बर आयेगा तब तक मुद्रा स्फिति की दर को देखते हुए यह २५००० डालर तक भी हो सकता है. अब अंतिम संस्कार का मामला है, चाहे जो भाव कर दें, करना तो पड़ेगा. यूरोप घूमना तो मंहगाई के चलते आप टाल भी लो. 
आगे बताया गया कि आप अपनी मनपसन्द का ताबूत चुनिये, डिजाईनर. जिसमें आप को आराम से रखा जायेगा. कई डिजाईन साथ में भेजे ताबूत सप्लायर के ब्रोचर के साथ. सागौन, चीड़ और हाथी दाँत की नक्काशी से लेकर प्लेन एंड सिंपल तक. उसके अन्दर भी तकिया, गुदगुदा गद्दा और न जाने क्या क्या.
फिर आपके साईज का सूट, जूते, मोजे, टाई आदि जो आपको पहनाये जायेंगे पूरी बामिंग और मेकअप के साथ. फेमस मेकअप स्पेशलिस्ट मेकअप करेगी, वाह!! यह तो हमारी शादी में तक नहीं हुआ. खुद ही तैयार हो गये थे. मगर उस समय तो खुद से तैयार हो नहीं पायेंगे तो मौका भी है और मौके की नजाकत भी. मलाल इस बात का रह जाएगा कि न तो जिसने सजाया उसको देख पायेंगे और न ही सज धज हम कितने राजा बाबू लगे वो देख पायेंगे.
फिर अगर आपको गड़ाया जाना है तो प्लाट, उसकी खुदाई, उसकी पुराई, रेस्ट इन पीस का बोर्ड आदि आदि. अगर जलाया जाना है तो फर्नेस बुकिंग और ताबूत समेत उसमें ढकेले जाने की लेबर. सारे खर्चे गिनवाये गये. साथ ही आपको ले जाने के लिये ब्लैक लिमोजिन आयेगी उसका खर्चा. अभी तक तो बैठे नहीं हैं उतनी लम्बी वाली गाड़ी मे. चलो, उसी बहाने सैर हो जायेगी. वैसे बैठे तो ट्रक में भी कितने लोग होते हैं? मगर लेकर तो ट्रक में ही जाते हैँ.
हिट तो ये है कि आप हिन्दु हैं और राख वापस चाहिये तो हंडिया का सेम्पल भी है और उसे लकड़ी के डिब्बे में रखकर, जिस पर बड़ी नक्काशी के साथ आपका नाम खोदा जायेगा और आपके परिवार को सौंप दिया जायेगा. हिन्दुत्व का इतना विश्वव्यापी डंका बज रहा है और कोई बता रहा था कि हिन्दुत्व खतरे में है.
इतने पर भी कहाँ शांति-फूल कौन से चढ़वायेंगे अपने उपर, वो भी आप ही चुनें. गुलाब से लेकर गैंदा तक सब च्वाइस उपलब्द्ध है.
अब जैसी आपकी पसंद वैसा बीमा का भाव तय होगा. चाहो तो इत्र भी छिड़क देंगे. थोड़ा एक्स्ट्रा दाम और दे देना. अम्मा कहा करती थीं कि जितना गुड़ डालोगे, उतनी मीठी खीर बनेगी. खीर तो चलो अगर मीठी बनाते तो खाते भी खुद ही न. यहाँ तो जब निकल लेंगे उसके बाद की खीर पकवाई जा रही है.
तब से रोज उस बीमा वाले का फोन आता है कि क्या सोचा? जल्दी करिए वरना देर हो जायेगी. आधा दिल तो उसकी हड़बड़ी देखकर बैठा जाता है की पट्ठे ने कहीं कुंडली बांचना तो नहीं सीख लिया है इसलिए उसे पता है देर हो जायेगी? कोई आश्चर्य नहीं होगा की उसने कुंडली बांचना सीख लिया हो इस हड़धप में कि भावी विश्वगुरु की विधा में पारंगत रहेंगे तो काम ही आयेगा. 
क्या समझाऊँ उन्हें कि भाई, यह सब आप धरो. हम तो भारत के रहने वाले हैं. समय से कोशिश करके भारत लौट जायेंगे. यह सब हमको शोभा नहीं देता.
हमारे यहाँ तो दो बांस पर लद कर जाने का फैशन है, अब किसी का कंधा दर्द करे कि टूटे. यह उठाने वाला जाने और उस पर खर्चा भी उसी का. अपनी अंटी से तो खुद के लिये कम से कम इस काम पर खर्च करना हमारे यहाँ बुरा मानते है.
भाई, अमरीका/कनाडा वालों, आप लोगों की हर अदा निराली है. कम से कम ये वाली अदा तो आपकी आपको ही मुबारक.
समीर लाल ‘समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जुलाई 26,२०२० के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/53749498

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10 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

Excellent humour, smszing theme and unparalleled last wish.

Really superb.....

Unknown ने कहा…

ऐसा बाजारवाद फैला है कि मरने वाले से पहले ही सब करवा लो । बाद में घर वालों ने किया या न किया, या भाग्य में क्या है ? सही अपना देश अच्छा है ।

रेखा

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

रोचक और जानकारीपरक प्रस्तुति।

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

उधर तो यह होता रहा है। बकायदा परिवारों के कक्ष होते हैं जहाँ कई पीढ़ियों के लोगों के शरीर ऐसे रखे जाते हैं। रोचक व्यंग्य। उपभोक्तावाद की यही खूबी है। ये आपको कुछ भी बेच सकती है।

कविता रावत ने कहा…

अरे बाप रे मरने के बाद इतना ताम-झाम, गरीब का क्या होता है वहां
इससे तो अपना भारत ही अच्छा.........
बहुत खूब!

Saras ने कहा…

😂😂😂👍👍
कमआआआल...!!!

Saras ने कहा…

😂😂😂👍👍
कमआआआल...!!!

Vaanbhatt ने कहा…

वाट एन आइडिया सर जी...हिन्दुस्तान में भी अब इसकी ज़रूरत पड़ने वाली है...सबको जनाज़े के लिये चार आदमी कम पड़ रहे हैं...खूबसूरत आलेख...👌👌👌

yashoda Agrawal ने कहा…

व्वाहहहहह..
सादर..

Anita ने कहा…

सेठ जी ने बढ़िया बात कही, चप्पल पहनो और खुद ही निकल लो, कितना अच्छा हो कि जब खबर हो जाये तो एक दिन पहले ही वहीँ पहुंच जाया जाये और किसी को तकलीफ भी नहीं होगी, ज्योतिषी से पूछ कर इतना तो पता चल ही सकता है