करोना ने जब भारत में अपनी
विकास यात्रा आरंभ की थी, तब खबर आ रही थी की जेलों में इसका विकास ठीक उसी मॉडल
पर होगा जिसे दिखाकर देश अमरीका से भी आगे निकल जाने वाला था। जहाँ नजर पड़े बस
विकास ही विकास। गोया कि विकास न हुआ -मानसून आने पर मचा कीचड़ हो की जहाँ नजर जाये
वहीं पोखरे भरे हुए और कीचड़ ही कीचड़। कभी आज तक ऐसा हुआ ही नहीं की मानसून आया हो
और हम इतने तैयार हों कि कीचड़ न मचे। हम प्रारबद्ध पर अंध विश्वास रखने वाले इस कीचड़
को भी अपनी नियति मान कर स्वीकार करते हैं और कभी कभी तो इतने लहालोट हो जाते हैं
कि इसे स्वास्थयवर्धक मड बाथ का नाम देकर इसमें लोट लगाने लगते हैं। हाल ही में एक
फेमस अभिनेता ने अपने फार्म हाउस से अपनी कीचड़ में सनी तस्वीर इंस्टाग्राम पर
वायरल कर दी थी। उसका देखा देखी बहुतेरे लोट गए कीचड़ में और लगे सेल्फी चढ़ाने।
भक्तों की अंधभक्ति की भला कोई सीमा होती है क्या? भक्ति को सीमाओं में नहीं बांधा
करते। जो भक्ति सीमाओं में बंध जाये वो चापलूसी कहलाती है।
खैर, बात जेल में करोना के
विकास की चल रही थी। सूचना के आभाव में, वो भी ऐसे वक्त में जब हमारा खुद की दान
की हुई राहत कोष की राशि के लिए पूछना भी निषेध है, कोई मासूम जेल में करोना के
केसेस के बारे सरकार से जेल की रिपोर्ट मांग बैठा। यूँ तो सरकार ऐसे मूर्खतापूर्ण
सवालों पर जबाब देना तो दूर, इनको सुनना भी गवारा नहीं करती। मगर ये मीडिया भी न,
इसका पेट न हुआ, मानो फूड कोरपोरेशन का गोडाउन हो गया हो। कितना भी अनाज डालो, सब
चूहा खा जाता है। मीडिया ने मामले को बेवजह तूल दे दी।
प्रशासन भी कभी कभी ऐसे में
मजबूर होकर कुछ न कुछ जबाब दे ही जाता है, अतः दिया।
जेल की करोना रिपोर्ट अपने अच्छे आचरण एवं खुद के परिवार पर करोना के
प्रकोप के चलते पैरोल पर घर गई है। अभी तो चाँद के आकार पर आधारित कोविड त्यौहार के
चलते पैरोल को डेट बढ़ा दी गई है, भले ही हम जीएसटी भरने की डेट न बढ़ा पा
रहे हैं। मगर कहीं न कहीं तो हम संवेदनशीलता दिखा ही सकते हैं, अतः पैरोल की डेट
पर दिखा डाली। उसके बाद भी अगर सही सलामत बिना एन्काउनटर के रिपोर्ट लौट कर जेल आ
जावेगी तो आपको सूचित करेंगे। करोना क्यूंकी विकास पर है, और विकास का अंजाम तो आप
देख ही चुके हैं। अतः सही सलामत लौटने की संभावना तभी बनेगी, अगर किसी की आबरू पर छींटे न टपकें। वैसे
ये जेल में रहने वाले अपराधिक प्रवृति के लोग, चाहे वो करोना रिपोर्ट
जैसी हसीना ही क्यूँ न हो, बनारसी पान के समान होते हैं। कितना भी
बचाओ, छींटे टपक ही जाते हैं और एकदम वहीं टपकते हैं, जहाँ
लिखा होता है कि यहाँ पान थूकना मना है। तो अंजाम ए टपकन, एन्काउनटर की धड़कन!!
देखते हैं कब तक नहीं धड़कता है।
वैसे जब तक रिपोर्ट आए, तब तक आप चाहो तो समय बिताने के लिए
अंताक्षरी की तर्ज पर ‘कोर्ट में गुहार गुहार’ खेल सकते हो। अभी की गई प्रेक्टिस
आगे चल कर स्किल इंडिया योजना में काम आवेगी। काहे की भारत के वर्चस्व के चलते अगले
एशियन गेम में 'सुप्रीम कोर्ट में गुहार गुहार' खेल को ससम्मान शामिल
किया जाने वाला है - खो खो को अलग कर के। खो खो अब अपना महत्व खो चुका है। अब पीठ
पर नहीं, छाती पर खो देकर सत्ता पलटाई
जाती है। खो का नाम अब झटका हो गया है। हालांकि नियम वही रहेंगे।
विश्व गुरु की एक कोशिश यह भी है कि खेल का नाम 'सुप्रीम कोर्ट
में गुहार गुहार' की जगह 'अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में गुहार गुहार' रख दिया जाये
ताकि चीन, कोरिया और अन्य
प्रतिभाशाली एशियन देश भी इसमें खुल कर हिस्सा ले सकें और आगे चल कर इसे ओलंपिक में शामिल करने की मांग उठाई जा सके. तब
तक के लिए आप रिपोर्ट की मांग करने वालों को हैप्पी गेमिंग - सरकार आपकी खेल के
प्रति समर्पण भावना को देख कर उत्साहित है और मौका ताड़ कर आपको अर्जुन अवार्ड से
नवाजे जाने पर भी विचार करने का मन बना चुकी है। मन बनाना और मन की बात करना सरकार
का एकाकाधिकार है। सरकार खुद भी राजस्थान, महाराष्ट्र, मप्र और
छत्तीसगढ़ में व्यापार वाला खरीदो बेचो खेल रही है, जो हम बचपन में
लूडो और सांप सीढ़ी के साथ खेला
करते थे- ये अब सीखे हैं। बचपन में खेलने का वक्त न मिला। कसी भी वजह से आभावों मे
बीता बचपन हो, तो छोटे छोटे खेल भी न खेल पाने का मलाल बड़ा होने पर बड़े खेल खेलने को प्रेरित करता है।
मगर खेल और शौक करने की भी कोई उम्र होती है क्या? गालिब
वो दिन लद गए, जब उम्र दीवार हुआ करती थी!
अब वो वक्त है जब खेल देखो और खेल की धार देखो।
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के
रविवार जुलाई १९, २०२० के अंक में:
ब्लॉग पर पढ़ें:
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9 टिप्पणियां:
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वाह वाह क्या बात की है। मान गए उस्ताद जी आपको। एकदम पक्का व्यंग्य । आप धन्य हैं।
क्या बात है , कहाँ से शुरू किया और व्यंग्य की चाशनी में लपेटते हुए विकास से लेकर कोरोना तक सबको बालूशाही बना दिया ।
रेखा श्रीवास्तव
बहुत बढ़िया।
जी सत्य है
बहुत सुन्दर और रोचक व्यंग्य।
बहुत बढ़िया
कितना गुणगान या बखेड़ा करोना का .... सभी को साथ लपेट लिए भाई ...
हमेशा की तरह 'ऑफबीट'...!
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